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चींटी के पग घुंघरू बाजे वो भी साहब सुनता है.

भगवान हमेशा भक्त से परास्त हो जाते हैं. यह नियम है जिसे उन्होंने हीं बना रखा है. जो वास्तव में भक्त होते हैं वे इसका परीक्षण भी कर चुके होते हैं. हमारे शास्त्रों में इसके अनेक उदाहरण हैं. इसी तरह का एक प्रसंग जो मैंने कहीं पढ़ा है, इस प्रकार है.       कोई भक्त लगातार 20 वर्षों से गीता का पाठ करता चला आ रहा था. एक दिन भगवान उस भक्त को सपने में आकर बोले- मूर्ख तूॅं क्या समझता है कि तुम्हारे 20 साल से गीता का पाठ करने से मैं तुमसे प्रसन्न होकर तुम्हें मनचाहा फल दे दूंगा? ये तेरा वहम है. भक्त ये सुनकर सपने में खुशी से नाचने और झूमने लगा. भगवान हैरान होकर बोले- तूॅं तो वास्तव में मेरे अनुमान से भी ज्यादा मूर्ख निकला. मैंने कहा कि मैं तुम्हारे पाठ से खुश नहीं हूॅं और तूॅं नाच रहा है? भक्त- भगवन! आप प्रसन्न हैं या नहीं ये बात मैं नहीं जानता. कम से कम आपने मेरा पाठ सुना तो सही. ये क्या कम है? भगवान चुप. कहाॅं चले थे भक्त को परास्त करने और स्वयं परास्त हो गये. ******************************************************* ये है भक्ति का असली भाव. प्रभु प्रसन्न हों या नहीं यह सोचना ह...

31.05.2025.

31.05.2025 The day marks the end of the five months long training programme at BIPARD and as I sit down to try to summarise this unbelievable journey, I am reminded of 01.01.2025 - the first day of the year, as well as in BIPARD. I won’t deny that I wanted to leave from this institute the very same day. From getting my first ever saline bottle injection and nebuliser to fainting in the PT ground, there were innumerable first-hand and not-so-pleasant experiences here. The challenge was huge, both physical as well as emotional. But as we know, time heals it all. With time, things started becoming tolerable, not easy though. Everything was still challenging, but I was stronger than before, and each day I grew stronger. The days went by, complaining, crying, making plans to escape classes/pt and counting days left for going back to my home and family. Sitting continuously for ten hours is not an easy job for anybody and every class began with people ranting - क्या फालतू पढ़ा रहा है यार! An...

इक भगवान जानता है.

भगवान जानता है  जाकर जहाॅं से कोई  वापस नहीं आता  वह कौन सी जगह है; भगवान जानता है. जो भी भला बुरा है; भगवान जानता है.  कब किसे है देना कितना; भगवान जानता है. कब किससे है लेना कितना; भगवान जानता है. हर लेन-देन का हिसाब; भगवान जानता है. जमाना क्यों बदलता है; भगवान जानता है. घटनाएं क्यों घट रही हैं, भगवान जानता है. यह सब क्यों हो रहा है; इक भगवान जानता है. भविष्य में क्या लिखा है; भगवान जानता है. पर्दों में क्या छुपा है; भगवान जानता है. पुण्य कितना बचा है; भगवान जानता है. पाप का घड़ा कितना भरा है; भगवान जानता है. सारा का सारा सब कुछ  भगवान जानता है. ~ ब्रह्मलीन पुण्यश्लोक          सुभाष चंद्र वर्मा,  (my elder brother Drawn from his writings)

समयस्य महती प्रतिष्ठा

अहम् समयोऽस्मि. सर्वे कुर्वंति मम प्रतीक्षा किंतु अहमस्मि नैव कस्यचित् किंचित् कश्चित् वा कदाचित्।  मम क्षमता अपरिमितो अपारश्च।   अखिल ब्रह्माण्ड मम गर्भ: जात:।  अहमैव एकमेव हेतु: जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा।  प्रकृत्या: अहम् सतत् सदैव प्रवाहमानम् अछेद्यम्: अदाह्यम्  अशोष्यम् अक्लेद्यम्।    तर्हि मम प्रतिष्ठा सर्वेषु कालेषु सार्वदेशिक सार्वभौमिकश्च वर्तते। अहम् सदैव सर्वगत: सर्वव्यापकश्च।  अपि च गणनार्थे नरा: भजन्ति माम् भूत वर्तमान भविष्य रूपिणम्. सर्वे सन्ति मम नियंत्रणाधीन:। मया निरादरेण नर: पतन्ति नानाविध गर्तेषु.  ये माम भजन्ति स्वकर्मणा ते अचिरेण भवन्ति स्वे स्वे कर्मणि सफल: । आलस्य-स्फूर्ति ममैव यमलौ पुत्र पुत्रीश्च. एक: प्रगति रोधक: अपर: प्रगतिकारिणीम्।     मम कृपापात्र: प्राप्नोति यशम् धनम् च श्रियम्; मम विना न किंचित अवशिष्यति। निमिषेण अनन्तरम् मम वक्र दृष्टया राजा भवति रंक: एवं मम प्रसादात् श्रीहीन: जायते अधिपति:।  अहम् साक्षात् कालरूप: भगवदरूपश्च.  गीतायाम् श्रीभगवान् घोषित: यत्  १. "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत प...

जो बात चेहरे से 'अयाॅं हो उसे ज़ुबाॅं से कहना ठीक नहीं

जब आहिस्ता चलना हीं काफी हो तो छलांग लगाना ठीक नहीं  जो नफ़्श हीं बेक़ाबू हो तो बेकार में क़ाबिल बनना ठीक नहीं  जब सही की भी सफ़ाई देनी पड़े तो राबत़ा रखना ठीक नहीं  जब बात चेहरे से हीं 'अयाॅं हो जाए उसे जुबाॅं से बयाॅं करना ठीक नहीं इन बातों का ख़्याल कर अगर कोई चले  फिर दुनिया उसको ग़ाफ़िल कहे चाहे भले                   ~राजीव रंजन प्रभाकर جب آہستہ چلنا ہیں کافی ہو تو چھلانگ لگانا ٹھیک نہیں۔ جب نفس ہیں بے قابو ہو تو بیکار میں قابل بننا ٹھیک نہیں۔ جب صحیح کی بھی صفائی دینی پڑے تو رابطہ رکھنا ٹھیک نہیں۔ جب بات چیہرے سے ہیں عیاں ہو تو زباں سے بیاں کرنا ٹھیک نہیں۔ ** ان باتوں کا خیال رکھ اگر کوئی چلے  پھر دنیا اسے غافل کہے چاہے بھلے۔ ~راجیو رنجن پربھاکر

हनुमत्श्लोक (स्वरचित)

हनूमान प्रभंजनजाया सर्वविद्या विशारद: आञ्जनेयं महावीर: संकटापन्ने आत्मबल: चिरंजीवी सर्वकाले सर्वकार्यविधायक: यदृच्छयासमुत्पन्नम् अनिष्टोत्पातविनाशक: प्रविश्यस्वर्णपूरीददाहलंकाम् हत्कुमारअक्षय: पददलितोपिनष्टपुरीश्च मर्दितोदर्प रावण: हनुमतोर्वसतिससीतराम: रामस्याक्लिष्ट कर्मण:  सकृदपि पठेत् वा भजते भावपूर्वक: अचिरात भवति ते रामद्वार प्रियसेवक: ************************************* ~राजीव रंजन प्रभाकर:      ‌ *** आंजनेय वायुपुत्र महावीर हनुमान सर्वविद्याविशारद हैं तथा संकट काल में आत्मबल रूप हैं. वे चिरंजीवी हैं तथा सभी काल में सभी कार्यों के विधायक हैं. हनुमान संयोगवश वा आकस्मिक रूप से उत्पन्न अनिष्ट एवं उत्पात के विनाशक हैं. उन्होंने स्वर्ण पूरी लंका में प्रवेश कर सम्पूर्ण पूरी को जला दिया तथा रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर डाला.  अपने पैरों के नीचे लंका में सभी को कुचल कर तथा पूरे लंकापूरी को पीस कर हनुमान ने घमंडी रावण के दर्प को चूर-चूर कर डाला. हनुमानजी के हृदय में सीताराम बसते हैं तथा वे हीं भगवान श्रीराम के कठिन कार...

नाम की महिमा,नामापराध तथा उसके प्रकार

 भगवान के नाम में कल्याण की अपार शक्ति है.अपने किसी भी नाम की महिमा का सम्पूर्णता में बखान स्वयं भगवान भी नहीं कर सकते हैं.  रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं- कहौं कहां लगि नाम बड़ाई  राम न सकहि नाम गुण गाइ उसी स्थल पर यह भी उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि नाम और नामी(वह व्यक्ति जिसका कि वह नाम हो) यद्यपि प्रथम दृष्टया एक प्रतीत होता है किन्तु दोनों के बीच अंतर है. उसमें जहाॅं नाम स्वामी है तो नामी सेवक. सामान्य अनुभव भी यही कहता है कि यदि हम किसी का नाम लेकर पुकारते हैं तो उस नाम का जो भी व्यक्ति (नामी) वहाॅं उपस्थित रहता है उसका ध्यान पुकारने वाले पर चला हीं जाता है. आप पुत्र को या पत्नी को या भाई को उसका नाम लेकर पुकारते हैं तो वह आपके पास न भी हो तो सुनने पर वह आ जाते हैं; यह हम सभी का सामान्य अनुभव है.प्रेम से पुकारने में वह व्यक्ति(नामी) आपसे वैसा हीं व्यवहार भी करता है.  फिर समझने कि बात यह है कि यदि हम भगवान का नाम लेकर उन्हें पुकारें तो कोई कारण नहीं कि उनका ध्यान हमारे ऊपर न जाए. अस्तु. ********************************************************** कि...

सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी

रिश्ता निभाने में मैंने अपने जानते कोई कमी नहीं की दूर के सगे सम्बन्धी से लेकर नजदीक के भाई-भतीजे तक दूर के इष्ट से लेकर क़रीब के मित्र तक  कभी नहीं गया मैं उनके यहाॅं बग़ैर सौगात लेकर  पड़े दोस्त अगर बीमार तो दौड़ पड़ा दवा लेकर   दौरान-ए-कोविड तो भेज दिया अपना टीका भी उनके घर  दा’वत में कभी उन्हें बुलाया तो कभी मैं गया उनके यहाॅं ऐसा लगता था कि मैं उन नातों-रिश्तों की बदौलत पहाड़ से भी टकरा सकता हूॅं  *** हक़ीक़त तब समझ में आई जब किसी बात को लेकर  अपने एक पड़ोसी से आज मेरी ठन गई  मैंने सोचा नातेदारी रिश्तेदारी किस दिन काम आएगी सभी को फोन मिलाया जवाब मुख़्तलिफ़ आया ज़वाब क्या था महज़ हीला हवाली और क़ज़ा लुब्ब-ए-लुबाब ये कि वक़्त पर कोई काम नहीं आया ‘ऐन वक़्त पर ख़ुद को अकेला हीं पाया  मौक़े’ पर आने की कौन कहे  सभी सिर्फ दूर से मशविरा वो नसीहत हीं देते रहे  इस नये तजुर्बे से मैं अब ये सबक़ लूॅंगा  नातेदारी रिश्तेदारी को उतना ही अहमियत दूॅंगा जितना रिश्ता रखने भर ज़रुरी समझूंगा मैं अब सिर्फ ख़ुद पर हीं भरोसा करूंगा  दोस्ती औ...

सुतीक्ष्ण मुनि की गुरु-दक्षिणा

शिष्य भी गुरु के लिए कभी-कभी ऐसा कार्य कर जाता है जिससे शिष्य का जीवन तो कृतार्थ हो हीं जाता है,गुरु का जीवन भी कृतकृत्य हो जाता है. इस संदर्भ में एक प्रसंग का वर्णन अर्पित किया जा रहा है जो इसे समझने में सहायक सिद्ध होगा. गुरु-दक्षिणा वाले इस प्रसंग का मूल स्त्रोत कौन सा ग्रंथ है इसका ठीक-ठीक मुझे पता नहीं है. तथापि सीधे तौर पर तो नहीं किंतु प्रकारांतर से गोस्वामीजी रचित रामचरितमानस मानस में इसकी झाॅंकी मिलती है. ******************************************************** सुतीक्ष्ण मुनि का प्रसंग रामचरितमानस में आता है. वे त्रिकालदर्शी अगस्त्य‌ऋषि के शिष्य थे. विद्या अध्ययन की समाप्ति के पश्चात सुतीक्ष्णजी अपने गुरु अगस्त्य ऋषि को गुरू-दक्षिणा अर्पित करने के प्रयोजन से गुरू को आदेश देने का निवेदन किया. इस अनुरोध पर अगस्त्यजी बोले- वत्स! मुझे गुरु-दक्षिणा में कुछ देने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं तुम्हारी सेवा से हीं अत्यंत प्रसन्न हूॅं. तुम्हारा विद्या अध्ययन समाप्त हो चुका है. अब तुम सुखपूर्वक अपना शेष जीवन अपनी रूचि के अनुसार व्यतीत करने हेतु स्वतंत्र हो. सुतीक्ष्णजी- गुरुदेव! बिना गुर...

हे प्रभु!

हे प्रभु! मैं स्वयं को इस योग्य समझता हीं नहीं कि आप मुझे अपना रूप दर्शन करा दें. क्योंकि आपने मुझे नाम लेने योग्य बना दिया फिर भी सांसारिक प्रपंचों में घिरा ठीक से मैं आपका नाम तक नहीं ले पाता हूॅं. प्रभु!  आपसे प्रार्थना है कि मेरे ऊपर इतना भर कृपा कर दीजिए कि भले हीं आपका नाम भी ठीक से न ले पाऊॅं किंतु आपका नाम लेने की चाहना मात्र मुझमें उत्पन्न होकर नित्य बढ़ती जाए. दर्शन का क्या है;बाद में देखा जाएगा. राजीव रंजन प्रभाकर. ११.०५.२०२५.

तूॅं जहाॅं भी जाओगे सामने मुझे पाओगे.

'अमल हमारा कभी क़त्ल ओ ग़ारत का रहा नहीं  अफसोस मेरे तहम्मुल को तुमने बुज़दिली जाना  जो आ जाएं अगर हम अपने आन पे बरसा देते हैं क़हर हम आसमान से. जब हो जाए अहसास तुम्हें अपनी ग़लती का आ जाना हम माद्दा भी रखते हैं माफ करने का. ~ राजीव रंजन प्रभाकर  عمل ہمارا کبھی قتل وغارت کا رہا نہیں افسوس میرے تحمیل کو تمنے بزدلی جانا۔ جو آ جایں اگر ہم اپنے آن پہ برسا دیتے ہیں قہر ہم آسمان سے ہو جائے جب احساس تمہیں اپنی غلتی کا  آ جانا ہم مادہ بھی رختے ہیں معاف کرنےکا ~راجیو رنجن پربھاکر۔

जगज्जननी सीताजी

आज वैशाख शुक्ल नवमी तिथि है. भूमिजा माता जानकी के इस तिथि में पृथ्वी पर प्रकट होने से इस तिथि को जानकी नवमी के रूप में भी स्मरण किया जाता है.  यह भी एक वास्तविकता है कि जिस धूम-धाम एवं हर्षोल्लास से प्रभु श्रीराम की जयंती सम्पूर्ण भारत में मनती है उस का न्यूनतम भी जानकी जयंती पर नहीं देखा जाता. यह आश्चर्यजनक है कि भगवान श्रीराम अवध में जन्म लेकर सम्पूर्ण सनातन धर्म के ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ हैं वहीं मिथिला में जन्मी माता जानकी को ‘जगज्जननी’ के रूप में वह प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है जो उनके पति को है.  सम्पूर्ण उत्तर भारत में रामनवमी पर सरकारी अवकाश घोषित रहता है वहीं जानकी जयंती पर सिर्फ बिहार में अवकाश घोषित है. यह अवकाश भी वर्ष 2011 से पहले हमारे प्रदेश में तो नहीं हीं था पूरे भारत के किसी राज्य में नहीं था. मेरी जानकारी में आज की तिथि में भी बिहार को छोड़कर किसी भी प्रदेश में नहीं है.  ध्यान देने योग्य बात है कि हमारे पड़ोस नेपाल में जानकी जयंती राजकीय अवकाश के रूप में बहुत पूर्व से ही प्रचलित है.  हमें यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि हैं कि प्रदेश में जानकी नवमी प...

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त.(एक लम्बी कहानी)

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त. (एक लम्बी कहानी) ************************************************** विभूति नारायणजी गाॅंव में रहते थे. अपने जमाने में मेरिट से पढ़ाई कर वे सेकेंड डिवीजन से बीए भी पास किए थे; किन्तु चाह कर भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सके. एक दो जगह लिखित परीक्षा पास करने पर इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आया. इंटरव्यू देने के बाद कमरे से बाहर चपरासी कह रहा था-अरे इ सब नाटक हो रहा है. सब सीट पर बहाली पहले से फिक्स है.  बात जो भी हो; नौकरी नहीं मिल पाने पर उनके पिताजी ने कहा- कहॉं नौकरी के चक्कर में भटक रहे हो. गाॅंव में हीं हमारे खेती-किसानी में हाथ बटाओ. तब से गाॅंव में हीं रह कर खेती किसानी करने लगे. धीरे-धीरे उसी में रम गए और खुश रहने लगे.शादी तो पढ़ते हीं समय हो गई थी और जैसा कि स्वाभाविक है शादी के साल भर में हीं एक लड़का भी पैदा हो गया. विभूति बताते हैं कि उनके पिताजी ने हीं उसके लड़के का नाम सुफल नारायण रखा था. तब मां-बाप अपने बच्चे का नाम तक अपनी इच्छा से नहीं रख सकते थे.अब जमाना भले कुछ और हो गया हो.   सुफल बड़ा होता गया. कभी-कभी जब मन करता तो पूछ बैठते-ब...

सच को सच कहना और ----

सच को जानता हूॅं पहचानता भी हूॅं पर सच को सच कहने की ताक़त नहीं  झूट को जानता हूॅं पहचानता भी हूॅं पर झूट को झूट कहने का साहस नहीं                    *** साहब को ख़ुश रखने की ख़ातिर  वही बोलता हूॅं जो वो सुनना चाहते हैं  वही लिखता हूॅं जो वो पढ़ना चाहते हैं                    *** इस दौर में जो नीम सच और नीम झूट बोलने की हिक्मत रखता है  दुनिया उसे हीं हाथों-हाथ लेती है. दुनिया उसे हीं सलाम और उसी का इस्तक़बाल करती  है.                      *** जो बड़ी ख़ूबसूरती से झूट में सच को मिलाने का माहिर है  दुनिया में वही 'आलिम है वही फ़ाज़िल है वही कामिल है कहलाने के क़ाबिल है.                     *** सच को सच कहनेवाला और झूट को झूट  निगाह ए दुनिया में है वो निहायत हीं बेवक़ूफ़                     *** ~राजीव रंज...

मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान परमाणु दोष

मनुष्य का जीवन माया द्वारा शासित है. अज्ञान माया का मुख्य हथियार है. इसके प्रहार से व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के नाश होते हीं मनुष्य तमाम तरह के दोषों से पीड़ित हो जाता है.   ये दोष सूक्ष्म रूप से न्यूनाधिकता में प्रायः सभी मनुष्यों में विद्यमान हैं. इसलिए इन्हें परमाणु दोष कहते हैं. सूक्ष्म होने के कारण ये तुरंत दिखते भी नहीं और ये जल्दी पकड़ में भी नहीं आते हैं.  कहने की आवश्यकता नहीं है कि जिसका विवेक सदैव जाग्रत रहता है उसे इन परमाणु दोषों से उत्पन्न काम,क्रोध, लोभ, दम्भ, कपट, पाखंड परास्त नहीं कर सकता है.  लेकिन यह भी सत्य है कि व्यक्ति का विवेक सदैव जाग्रत नहीं रहता है. यहाॅं यह बात सामान्य मनुष्य के लिए कही जा रही है. योगी, जीवन-मुक्त महात्माओं का विवेक हम सदैव जाग्रत मान सकते हैं क्योंकि उनमें मायाजन्य दोषों का प्राय: अभाव पाया जाता है. अस्तु.                                  *** शास्त्रों में इन दोषों की मुख्यतः चार विभागों के अंतर्गत विवेचना की गई है. ये निम...

पति-पत्नी और मोबाइल.

पति-पत्नी और मोबाइल. *************************************** पति-पत्नी का अलग-अलग दिन भर मोबाइल पर रहने से कहीं अच्छा है कि दोनों किसी-किसी छोटी बात को लेकर आपस में झगड़ पड़ें.  बहाना कुछ भी हो सकता है. The list is illustrative; not exhaustive.                          *** १.कभी दाल में नमक ज्यादा होने का मु'आमला बनाकर  २.कभी घर में चश्मा नहीं मिलने को मुद्दा' बनाकर  ३. कभी पेन यथा स्थान नहीं पाने पर इसे इशू बनाकर  ४. कभी पत्नी द्वारा पति के "बच्चे की पढ़ाई पर जरा भी ध्यान नहीं देने" का बहाना बना कर  ५. कभी पत्नी पर पति द्वारा "बच्चे को बिगाड़कर रख देने" का इल्ज़ाम लगा कर  वग़ैरह वग़ैरह वग़ैरह.                        *** खुद में खोए रहने की प्रवृत्ति और संवादहीनता जो मोबाइल के कारण बढ़ रही है, वह कम होगी और इस प्रकार घर का वातावरण बोझिल नहीं मा'लूम देगा. घरेलू संवादजन्य क्रियाकलाप शुष्क हो रहे दाम्पत्य प्रेम को सींचने का काम करता है. ...

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा  *************************************** आज हनुमान जयंती है. इस पुनीत अवसर पर हनुमान जी का स्मरण करना चाहिए. ये हनुमान जी हीं थे जिनकी कृपा से गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम के दर्शन हुए. कृतज्ञ तुलसीदास जी ने हनुमानजी के प्रति आभार व्यक्त करने में हनुमान चालीसा की हीं रचना कर दी.                           *** हनुमान चालीसा के नाम,गुण और प्रभाव के बारे में इतना कहना हीं पर्याप्त है कि इसे “पढ़’’ लेने मात्र से हीं व्यक्ति सिद्ध हो जाता है. इसकी घोषणा मैं नहीं बल्कि गोस्वामी जी ने स्वयं उसी हनुमान चालीसा में कर दिया है. शायद आपने भी हनुमान चालीसा की इस पंक्ति पर ध्यान दिया होगा. “जो यह 'पढ़ै' हनुमान चलीसा होय 'सिद्धि' साखी गौरीसा.” गोस्वामीजी ने यह नहीं कहा कि जो यह गावै या ध्यावै या पूजै या अर्चै; उन्होंने मात्र इतना कहा कि “जो यह पढ़ै”. अर्थात् हनुमान चालीसा के पढ़ने मात्र से व्यक्ति सिद्धि प्राप्त कर लेगा.                       ...

मानस चालीसा

-: श्रीरामचरितमानस चालीसा :-   (श्रीराम जयराम जय जय राम) ************************************* सकल जीव संरक्षक राम । श्रीराम जयराम जय जय राम।‌।(१) चराचर सृष्टि पूजित राम ।   श्रीराम जयराम जय जय राम।।(२) कालभुजगस्य जनक: राम। श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(३) हनुमतसेवित श्रीसीताराम।    श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(४) भवानीशंकर वंदित राम। श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(५) काकभुशुण्डि बालक राम। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(६) दिनेश वंश भूषण राम।       श्रीराम जयराम जय जय राम।‌।(७) कौशल्या के नंदन राम। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(८) भरत सेवक स्वामी राम। श्रीराम जयराम जय जय राम ।।(९) दशरथ के प्राणों के प्राण। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१०) ताड़कादि निपातक राम। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(११) विश्वामित्र मखरक्षक राम‌‌। श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१२) अहिल्या के उद्धारक राम।  श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१३) वैदेही प्राणवल्लभ राम । श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१४) जनक सुनैना स्नेही राम।   श्रीराम जयराम जय जय राम।।(१५) जामजग्निगर्वविभंजकराम। श्रीराम जयराम जय जय ...

वह 'इश्क़ हीं कैसा जो

वह 'इश्क़ हीं कैसा जो ज़ाहिर होने की ख़ातिर बेताब हो. वह मंज़िल हीं क्या जो घर से निकलते हीं दस्तेयाब हो. वह फूल हीं कैसा जो काॅंटों के बीच न खिल सके. वह अनवार हीं क्या जो नफ़रत को न मिटा सके. वह सड़क ही क्या जो आगे जाकर आपस में मिलने की बजाय ख़त्म हीं हो जाती हो. वह आदमी हीं कैसा जिसकी पहचान उसके 'ओहदे के बग़ैर न हो पाती हो.                     ** जो शख़्स कोई ख़ुद को ख़ुद से मिलाने की ख़्वाहिश अगर दिल में रखे. तो क्या' व 'कैसा' के इस मे'यार को पार कर जाने की कोशिश जारी रखे. 'ईद मुबारक. ~राजीव रंजन प्रभाकर. وہ عشق ہیں کیا جو ظاہر ہونے کی خاطر بیتاب ہو  وہ منزل ہیں کیا جو گھر سے نکلتے ہیں دستیاب ہو۔ وہ پھول ہیں کیسا جو کانٹوں کے بیچ نہ کھل سکے  وہ انوار ہیں کیا جو نفرت کو نہ مٹا سکے وہ سڑک ہی کیا جو آگے جاکر آپس میں ملنےکی بجاے ختم ہیں ہو جاتی ہو۔ وہ آدمی ہیں کیا جس کی پہچان اس کے عہدے کے بغیر نہ ہو پاتی ہو۔                               ** جو شخص کوئی ...

यूॅं ख़फ़ा मत बैठे रहो.

मनाने की उम्मीद में यूॅं ख़फ़ा मत बैठे रहो  चलो उठो भी और अपना काम शुरू' करो आज के दौर में कोई किसी को मनाने आता नहीं  मत रूठो जब ख़ुद को ख़ुद से मनाना आता नहीं  ख़ुद से ख़ुद को मनाना भी एक 'आला फ़नकारी है  वरना ज़िंदगी जीना भी एक बहुत बड़ी दुश्वारी है. ~राजीव रंजन प्रभाकर  منانے کی امید میں یوں خفا مت بیٹھے رہو  چلو اٹھو بھی اور اپنا کام شروع کرو آج کے دور میں کوئی کسی کو منانے آتا نہیں  مت روٹھو جب خود کو خود سے منانا آتا نہیں  خود کو خود سے منانا بھی ایک اعلیٰ فنکار ہے ورنہ زندگی جینا بھی ایک بہت بڑی دشواری ہے ~راجیو رنجن پربھاکر