वह 'इश्क़ हीं कैसा जो

वह 'इश्क़ हीं कैसा जो ज़ाहिर होने की ख़ातिर बेताब हो.
वह मंज़िल हीं क्या जो घर से निकलते हीं दस्तेयाब हो.
वह फूल हीं कैसा जो काॅंटों के बीच न खिल सके.
वह अनवार हीं क्या जो नफ़रत को न मिटा सके.
वह सड़क ही क्या जो आगे जाकर आपस में मिलने की बजाय ख़त्म हीं हो जाती हो.
वह आदमी हीं कैसा जिसकी पहचान उसके 'ओहदे के बग़ैर न हो पाती हो.
                    **
जो शख़्स कोई ख़ुद को ख़ुद से मिलाने की ख़्वाहिश अगर दिल में रखे.
तो क्या' व 'कैसा' के इस मे'यार को पार कर जाने की कोशिश जारी रखे.

'ईद मुबारक.
~राजीव रंजन प्रभाकर.

وہ عشق ہیں کیا جو ظاہر ہونے کی خاطر بیتاب ہو 
وہ منزل ہیں کیا جو گھر سے نکلتے ہیں دستیاب ہو۔

وہ پھول ہیں کیسا جو کانٹوں کے بیچ نہ کھل سکے 
وہ انوار ہیں کیا جو نفرت کو نہ مٹا سکے

وہ سڑک ہی کیا جو آگے جاکر آپس میں ملنےکی بجاے ختم ہیں ہو جاتی ہو۔
وہ آدمی ہیں کیا جس کی پہچان اس کے عہدے کے بغیر نہ ہو پاتی ہو۔
                              **
جو شخص کوئی خود کوخود سے ملانےکی خواہش اگردل میں رکھے
 تو 'کیا و 'ایسا' کے اس معیار کو پار کر جانےکی کوشش جاری رکھے

                               **
عید مبارک 
~ راجیو رنجن پربھاکر

Comments

Popular posts from this blog

साधन चतुष्टय

न्याय के रूप में ख्यात कुछ लोकरूढ़ नीतिवाक्य

भावग्राही जनार्दनः