जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा
जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा
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आज हनुमान जयंती है. इस पुनीत अवसर पर हनुमान जी का स्मरण करना चाहिए.
ये हनुमान जी हीं थे जिनकी कृपा से गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम के दर्शन हुए. कृतज्ञ तुलसीदास जी ने हनुमानजी के प्रति आभार व्यक्त करने में हनुमान चालीसा की हीं रचना कर दी.
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हनुमान चालीसा के नाम,गुण और प्रभाव के बारे में इतना कहना हीं पर्याप्त है कि इसे “पढ़’’ लेने मात्र से हीं व्यक्ति सिद्ध हो जाता है.
इसकी घोषणा मैं नहीं बल्कि गोस्वामी जी ने स्वयं उसी हनुमान चालीसा में कर दिया है.
शायद आपने भी हनुमान चालीसा की इस पंक्ति पर ध्यान दिया होगा.
“जो यह 'पढ़ै' हनुमान चलीसा होय 'सिद्धि' साखी गौरीसा.”
गोस्वामीजी ने यह नहीं कहा कि जो यह गावै या ध्यावै या पूजै या अर्चै; उन्होंने मात्र इतना कहा कि “जो यह पढ़ै”.
अर्थात् हनुमान चालीसा के पढ़ने मात्र से व्यक्ति सिद्धि प्राप्त कर लेगा.
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इसके अतिरिक्त इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि गोस्वामी जी ने यह नहीं कहा कि जो नर या नारी या भक्त या ज्ञानी, या योगी पढ़ै हनुमान चालीसा.
उन्होंने कहा “जो” यह पढ़ै अर्थात् मनुष्य पढ़ै,देवता पढ़ै,यक्ष पढ़ै,गंधर्व पढ़ै, किन्नर पढ़ै, नर पढ़ै,नारी पढ़ै, बालक पढ़ै,ज्ञानी पढ़ै,अज्ञानी पढ़ै,योगी पढ़ै, भोगी पढ़ै, ब्राह्मण पढ़ै अब्राह्मण पढ़ै ,सेठ पढ़ै, हेठ पढ़ै, विद्वान पढ़ै, मूर्ख पढ़ै, हाकिम पढ़ै, मुलाजिम पढ़ै,भक्त पढ़ै,अभक्त पढ़ै जो पढ़े वह सिद्ध हो जाएगा.
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ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस बात की गारंटी कौन लेता है?
इसके सम्बंध में गोस्वामी जी कहते हैं -होय सिद्धि साखी गौरीसा
अर्थात् पढ़ने से सिद्धि प्राप्त हो जाने की गारंटी भगवान शंकर स्वयं लेते हैं. भगवान शंकर इस बात के साक्षी हैं.
बताइए सिद्ध होने का इतना आसान साधन कहीं और मिल सकता है क्या कि 'पढ़' लीजिए और 'सिद्ध' हो जाइए?
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यहां ‘सिद्धि’ का अर्थ प्रत्येक के लिए अलग-अलग है किन्तु भाव एक हीं है.
उदाहरण के लिए विद्यार्थी के लिए विद्या अर्जन की क्षमता में वृद्धि, गृहस्थ के लिए पारिवारिक दायित्व के निर्वहन की क्षमता में वृद्धि, मालिक के लिए उसकी पूंजी में वृद्धि,मजदूर के लिए अपनी श्रमशक्ति में वृद्धि,ज्ञानी के लिए ज्ञान में वृद्धि, इंजीनियर के लिए कौशल में वृद्धि, डाक्टर के लिए बीमार को ठीक कर देने करने की क्षमता में वृद्धि, भक्त के लिए भगवान की प्राप्ति हेतु सामर्थ्य में वृद्धि आदि सभी 'सिद्धि’ प्राप्त होने का हीं पर्याय है. अर्थात् जिसका साधन जो भी हो उससे उसमें सिद्धि प्राप्त होना है. यह निश्चय बात है.
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और हनुमान जी के लिए ऐसी सिद्धि हनुमान चालीसा मात्र ‘पढ़’ लेने वालों को प्रदान करना कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है. यह उनके लिए बहुत छोटी बात है. यदि श्रद्धा के साथ पढ़ें तो कहना हीं क्या!
उन्हें तो आठो प्रकार की न केवल सिद्धि बल्कि नौ तरह की निधि भी अपरिमित मात्रा में माता सीता की प्रसन्नता प्राप्त करने से वरदान के रूप में मां जानकी ने स्वयं दिया था.
इस तरह माता सीता ने उन्हें पहले से ही अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों का दाता बना रखा है जो चालीसा की इन पंक्ति से प्रमाणित भी है.
“अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता अस वर दीन जानकी माता.”
सियावर रामचंद्र की जय.
राजीव रंजन प्रभाकर.
(हनुमत् जयंती)
१२.०४.२०२५
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