मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान परमाणु दोष

मनुष्य का जीवन माया द्वारा शासित है. अज्ञान माया का मुख्य हथियार है. इसके प्रहार से व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के नाश होते हीं मनुष्य तमाम तरह के दोषों से पीड़ित हो जाता है. 
 ये दोष सूक्ष्म रूप से न्यूनाधिकता में प्रायः सभी मनुष्यों में विद्यमान हैं. इसलिए इन्हें परमाणु दोष कहते हैं. सूक्ष्म होने के कारण ये तुरंत दिखते भी नहीं और ये जल्दी पकड़ में भी नहीं आते हैं. 
कहने की आवश्यकता नहीं है कि जिसका विवेक सदैव जाग्रत रहता है उसे इन परमाणु दोषों से उत्पन्न काम,क्रोध, लोभ, दम्भ, कपट, पाखंड परास्त नहीं कर सकता है. 
लेकिन यह भी सत्य है कि व्यक्ति का विवेक सदैव जाग्रत नहीं रहता है. यहाॅं यह बात सामान्य मनुष्य के लिए कही जा रही है. योगी, जीवन-मुक्त महात्माओं का विवेक हम सदैव जाग्रत मान सकते हैं क्योंकि उनमें मायाजन्य दोषों का प्राय: अभाव पाया जाता है. अस्तु.
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शास्त्रों में इन दोषों की मुख्यतः चार विभागों के अंतर्गत विवेचना की गई है. ये निम्नवत हैं-
१.विपर्यय- जब व्यक्ति सम्यक ज्ञान के अभाव में चीजों को कुछ का कुछ समझ ले तो इसे विपर्यय दोष कहेंगे. मान लीजिए अंधेरे में कोई रस्सी को साॅंप समझ ले और उसकी Heart Attack के कारण मृत्यु हो जाए तो इसमें उसकी मृत्यु का कारण न सांप है न हीं रस्सी न हीं हृदयाघात बल्कि वह भ्रम है जो उसे रस्सी सांप के रूप में प्रतीत हुआ. 
इसी तरह कोई ‘स्वयं’ को ‘शरीर’समझता है तो यह चीज़ों को उल्टा समझना हुआ. गीता में भी भगवान ने शरीर को ‘इदं शरीरं कौन्तेयं’ कहा है न कि ‘अहम् शरीरं कौन्तेयं’.
इस तरह विपर्यय मोटे तौर पर मनुष्य का भ्रम है. असत्य में सत्य के दर्शन होने को हीं भ्रम कहते हैं.
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२.प्रमाद- यदि कोई कार्य का निष्पादन अथवा कर्तव्य का निर्वहन उस निष्पादन या निर्वहन में निहित आवश्यक तत्वों की असावधानीवश उपेक्षा कर किया गया हो तो परिणाम त्रुटिपूर्ण होगा. प्रमाद की अवस्था में व्यक्ति inadvertent application of senses का शिकार हो जाता है. 
मोटे तौर पर आवश्यक सावधानी न वरते जाने से उत्पन्न ‘भूल’ को ‘प्रमाद’कहते हैं. प्रमाद की अवस्था में कभी कभी व्यक्ति भयानक भूल कर बैठता है जो बड़ी से बड़ी दुर्घटना का कारण बन जाता है. प्रमाद वश मुंह से बोली गई बात भी अनिष्टकारी साबित होती है. द्रौपदी ने परिहास की इच्छा से प्रेरित होकर दुर्योधन के लिए ‘अंधे का बेटा अंधा’ प्रमाद वश हीं कहा था न कि उसे जानबूझ कर अपमानित करने को लेकर किंतु इसका महाभारत रूपी युद्ध के रूप में परिणाम कितना भयंकर हुआ यह हम सभी जानते हैं.
यह प्रमाद हीं है जिसके फलस्वरूप हमारे सामने से किसी व्यक्ति या वस्तु के गुज़र जाने पर भी हमें वह याद नहीं रहता. आंखों से देखकर भी किसी चीज को नहीं देख पाना प्रमाद का अच्छा उदाहरण है.
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३.विप्रलिप्सा- अपना अवगुण या दुर्गण को छुपाना विप्रलिप्सा है. मनुष्य का यह बहुत ही स्वाभाविक गुण है कि वह अपने अवगुणों को सार्वजनिक रूप से बताना तो दूर वह उसे छुपाना चाहता है. यही विप्रलिप्सा है. इसके अतिरिक्त किसी को झूठी दिलासा देकर उसे धोखा देना, अपने फायदे के लिए किसी का शोषण करना आदि सभी के मूल में विप्रलिप्सा हीं है. स्वयं को deceptively innocent या deceptively simple दिखाने की प्रवृति विप्रलिप्सा की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है. अर्थात् आप जो यथार्थ में हैं वह दूसरे को दिखाना नहीं चाहते हैं.
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४. करणापाटव- “करणापाटव-”का अर्थ है इंद्रियों की अपटुता या असमर्थता. यह एक प्रकार का dullness of senses है जिसके चलते पूर्ण ध्यान देने के उपरांत भी हम किसी वस्तु को ठीक-ठीक समझ पाने में असमर्थ रहते हैं. इसका मतलब है कि इंद्रियों में किसी कार्य को करने की क्षमता होने के बावजूद, वे उस कार्य को ठीक से नहीं कर पा रही हैं। उदाहरण के लिए, भले ही आपके पास देखने की शक्ति हो, लेकिन आप अंधेरे कमरे में किताब नहीं पढ़ सकते.
इस तरह करणोंमें पटुता, कुशलता न होना ‘करणापाटव’ है.वक्ता जिन मन, बुद्धि, इन्द्रियाँ आदि करणोंसे अपने भाव प्रकट करता है, उनमें कुशलता नहीं है, वह श्रोताकी भाषाको नहीं जानता, श्रोताके भाव, योग्यता आदिको नहीं समझता, श्रोताको उसकी योग्यताके अनुसार समझानेके लिये वह दृष्टान्त, युक्ति आदि नहीं जानता तो उसकी बात दूसरोंकी समझमें नहीं आती और उसका असर भी नहीं पड़ता.
आप जो नहीं हैं उसके विपरीत स्वयं को दूसरे के समक्ष दिखाने की प्रवृति भी ‘करणापाटव’ है क्योंकि यह पटुता के रूप में ब्याजपटुता हुआ. मान लीजिए आप को किसी क्षेत्र का अनुभव या ज्ञान नहीं है किन्तु हाव-भाव से ऐसा प्रक्षेपित करते हैं कि मैं अमुक क्षेत्र का पर्याप्त ज्ञान या अनुभव रखता हूॅं तो यह भी करणापाटव है.
     आशा है व्यक्ति में प्रच्छन्नरूपेण उपस्थित इन चारों परमाणु दोषों का उपरोक्त विवेचन हम सभी को अपने भीतर में विद्यमान उन दोषों के परिमाण को निर्धारित करने में सहायक होगा.
राजीव रंजन प्रभाकर 
२४.०४.२०२५.

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