चींटी के पग घुंघरू बाजे वो भी साहब सुनता है.
भगवान हमेशा भक्त से परास्त हो जाते हैं. यह नियम है जिसे उन्होंने हीं बना रखा है. जो वास्तव में भक्त होते हैं वे इसका परीक्षण भी कर चुके होते हैं. हमारे शास्त्रों में इसके अनेक उदाहरण हैं.
इसी तरह का एक प्रसंग जो मैंने कहीं पढ़ा है, इस प्रकार है.
कोई भक्त लगातार 20 वर्षों से गीता का पाठ करता चला आ रहा था.
एक दिन भगवान उस भक्त को सपने में आकर बोले- मूर्ख तूॅं क्या समझता है कि तुम्हारे 20 साल से गीता का पाठ करने से मैं तुमसे प्रसन्न होकर तुम्हें मनचाहा फल दे दूंगा? ये तेरा वहम है.
भक्त ये सुनकर सपने में खुशी से नाचने और झूमने लगा.
भगवान हैरान होकर बोले- तूॅं तो वास्तव में मेरे अनुमान से भी ज्यादा मूर्ख निकला. मैंने कहा कि मैं तुम्हारे पाठ से खुश नहीं हूॅं और तूॅं नाच रहा है?
भक्त- भगवन! आप प्रसन्न हैं या नहीं ये बात मैं नहीं जानता. कम से कम आपने मेरा पाठ सुना तो सही. ये क्या कम है?
भगवान चुप. कहाॅं चले थे भक्त को परास्त करने और स्वयं परास्त हो गये.
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ये है भक्ति का असली भाव. प्रभु प्रसन्न हों या नहीं यह सोचना हीं नहीं है.
उनको भजते हुए अपना काम करते रहना है वे आपके सभी कर्म को आपसे अधिक सूक्ष्मता से देखते हैं जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.
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और सुनते कैसे नहीं हैं; भले सुन कर करने के सम्बन्ध में निर्णय उनका अपना होता है जो भक्त के हित में हीं रहता है जिसे भक्त प्रायः देर सवेर समझ पाता है.
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फिर सिर्फ सुन लेते हैं यही क्या कम है? इस दुनिया में कौन साहब है जो सबकी सुनता हो? एक बार से अधिक फरियाद लेकर जाइए तो; झिड़की के सिवा कुछ मिलने वाला है?
लेकिन जो दुनिया का साहब है वह सबकी सुनता है. कोई झिड़की नहीं, कोई डांट नहीं, कोई फटकार नहीं, कोई अपमान नहीं; अपितु ऐसा लगता है कि वह आपके आने का इंतजार हीं कर रहा हो.
कबीर साहब कहते थे-
चींटी के पग घूंघरू बाजे वो भी साहब सुनता है.
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राजीव रंजन प्रभाकर
०१.०६.२०२५.
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