नाम की महिमा,नामापराध तथा उसके प्रकार
भगवान के नाम में कल्याण की अपार शक्ति है.अपने किसी भी नाम की महिमा का सम्पूर्णता में बखान स्वयं भगवान भी नहीं कर सकते हैं.
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
कहौं कहां लगि नाम बड़ाई
राम न सकहि नाम गुण गाइ
उसी स्थल पर यह भी उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि नाम और नामी(वह व्यक्ति जिसका कि वह नाम हो) यद्यपि प्रथम दृष्टया एक प्रतीत होता है किन्तु दोनों के बीच अंतर है. उसमें जहाॅं नाम स्वामी है तो नामी सेवक.
सामान्य अनुभव भी यही कहता है कि यदि हम किसी का नाम लेकर पुकारते हैं तो उस नाम का जो भी व्यक्ति (नामी) वहाॅं उपस्थित रहता है उसका ध्यान पुकारने वाले पर चला हीं जाता है. आप पुत्र को या पत्नी को या भाई को उसका नाम लेकर पुकारते हैं तो वह आपके पास न भी हो तो सुनने पर वह आ जाते हैं; यह हम सभी का सामान्य अनुभव है.प्रेम से पुकारने में वह व्यक्ति(नामी) आपसे वैसा हीं व्यवहार भी करता है.
फिर समझने कि बात यह है कि यदि हम भगवान का नाम लेकर उन्हें पुकारें तो कोई कारण नहीं कि उनका ध्यान हमारे ऊपर न जाए. अस्तु.
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किंतु भगवान के नाम का आश्रय लेकर भी यदि हमारा निम्न प्रकार को हो तो ऐसा आचरण नाम के प्रति अपराध है. इसे हीं नामापराध कहते हैं जिनके दस भेद हैं जो हमारे शास्त्रों में निम्न श्लोक से निरूपित किया गया है-
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सन्निन्दासतिनामवैभवकथाश्रीशेशयोर्भेदधीरश्रद्धाश्रुतिशास्त्रदैशिकगिरांनाम्न्यर्थवादभ्रम:।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ च धर्मान्तरै: साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश॥
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अर्थात्
१. संत-निन्दा(सन्निंदा)- यदि कोई भगवान का नाम ले और साधु-संतों की निन्दा करे.
२.भगवान के नाम वैभव के प्रति असत्य बुद्धि रखना (असति नाम वैभव कथा)
३.हरि और हर में भेद बुद्धि रखना(श्रीशेषर्योभेदधी:)
४. वेद वाक्य में अश्रद्धा का भाव रखना(अश्रद्धाश्रुतिशास्त्र)
५. शास्त्र पुराण में अश्रद्धा का भाव रखना
६.गुरू के वचन के प्रति अश्रद्धा रखना
७.नाम में अर्थवाद का भ्रम होना(नाम्नि अर्थवाद भ्रम:)
८.नाम लेने के बल पर निषिद्ध वृत्ति में रत रहना (नामा: अस्ति इति निषिद्ध वृत्ति)
९.नाम के बल पर विहित कर्मों का त्याग करना(विहित त्याग:)
१०.नाम की तुलना अन्य धार्मिक कार्य ,यज्ञ अनुष्ठानादि से करना (धर्मांतरै: साम्यं)
नामापराध के उपरोक्त दस भेद से स्पष्ट है कि नामजप के बल पर यदि आप ऐसा करते हैं तो यह भगवन्नामजप के प्रति आप अनजाने में या जानबूझ कर अपराध कर रहे हैं. तब नामजप अपना अभीष्ट फल नहीं देगा.
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नामापराध के भागी के लिए प्रायश्चित भी नामजप हीं है.
राजीव रंजन प्रभाकर
१६.०५.२०२५.
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