समयस्य महती प्रतिष्ठा
अहम् समयोऽस्मि. सर्वे कुर्वंति मम प्रतीक्षा किंतु अहमस्मि नैव कस्यचित् किंचित् कश्चित् वा कदाचित्।
मम क्षमता अपरिमितो अपारश्च।
अखिल ब्रह्माण्ड मम गर्भ: जात:।
अहमैव एकमेव हेतु: जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा।
प्रकृत्या: अहम् सतत् सदैव प्रवाहमानम् अछेद्यम्: अदाह्यम्
अशोष्यम् अक्लेद्यम्।
तर्हि मम प्रतिष्ठा सर्वेषु कालेषु सार्वदेशिक सार्वभौमिकश्च वर्तते।
अहम् सदैव सर्वगत: सर्वव्यापकश्च।
अपि च गणनार्थे नरा: भजन्ति माम् भूत वर्तमान भविष्य रूपिणम्. सर्वे सन्ति मम नियंत्रणाधीन:।
मया निरादरेण नर: पतन्ति नानाविध गर्तेषु.
ये माम भजन्ति स्वकर्मणा ते अचिरेण भवन्ति स्वे स्वे कर्मणि सफल: ।
आलस्य-स्फूर्ति ममैव यमलौ पुत्र पुत्रीश्च. एक: प्रगति रोधक: अपर: प्रगतिकारिणीम्।
मम कृपापात्र: प्राप्नोति यशम् धनम् च श्रियम्; मम विना न किंचित अवशिष्यति।
निमिषेण अनन्तरम् मम वक्र दृष्टया राजा भवति रंक: एवं मम प्रसादात् श्रीहीन: जायते अधिपति:।
अहम् साक्षात् कालरूप: भगवदरूपश्च.
गीतायाम् श्रीभगवान् घोषित: यत्
१. "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत प्रवृद्ध:"
२.“ ये यथा माम् प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम्”.
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तस्मात् वदाम्यहम्-सर्वेषु कालेषु स्वकर्मणा तोषयतु माम्।
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(सद्योलिखित:)
राजीव रंजन प्रभाकर:
**भावार्थ**
समय की महान प्रतिष्ठा(सत्ता)
मैं समय हूॅं. इस जगत में जितने भी चर अचर हैं सभी मेरी प्रतीक्षा हेतु बाध्य हैं किन्तु मैं किसी की किंचित भी कभी प्रतीक्षा नहीं करता. मेरी क्षमता अपरिमित एवं अपार है.
मेरे गर्भ से हीं यह अखिल ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ है. जगत की उत्पत्ति एवं संहार का मैं हीं एकमात्र कारण हूॅं. प्रकृति से मैं सदैव एवं सतत प्रवाहमान हूॅं तथा मुझे कोई न काट सकता है (अछेद्य), न जला सकता (अदाह्य) है,न सोख (अशोष्य) सकता है, न हीं गीला(अक्लेद्य)कर सकता है. मेरी सत्ता सभी कालों में, सभी देशों में, सभी भूमि पर अक्षुण्ण है.
मैं सदैव सभी में समाया हुआ हूॅं तथा सर्वव्यापी हूॅं. किंतु गणना के प्रयोजनार्थ लोग मुझे भूत वर्तमान एवं भविष्य रूप में देखते और पूजते हैं.
सभी चराचर जगत मेरे नियंत्रण में हीं अपने अंतिम गति को प्राप्त हो रहे हैं. इस संसार में मेरे निरादर करने से हीं सभी नर नाना प्रकार के गड्ढे में गिरते हैं. जो जो नर अपने कर्म से मुझे हीं भजता है वह अपने अपने कर्मों में शीघ्र ही सफल हो जाता है. आलस्य और स्फूर्ति मेरे हीं जुड़वां पुत्र और पुत्री हैं. एक प्रगति रोधक तो दूसरी प्रगतिकारिणी.
मेरा कृपापात्र हीं यश,धन और श्री की प्राप्ति करता है. मेरे विना कोई भी किंचित भी शेष नहीं रह सकता.
मेरी वक्र दृष्टि पड़ने से राजा एक क्षण में रंक बन जाता है तथा मेरे प्रसाद से श्रीहीन व्यक्ति एक क्षण में ही श्रीसम्पन्न नरेंद्र हो जाता है.
गीता में भगवान ने भी इसकी घोषणा इस प्रकार की है-
१. मैं हीं सम्पूर्ण सृष्टि के नाश हेतु काल रुप हूॅं.
२. जो मुझे जिस प्रकार भजता है मैं भी उसे उसी प्रकार भजता हूॅं.
इसलिए मैं कहता हूॅं- अपने अच्छे कर्मों से मुझे हीं संतुष्ट करो.
राजीव रंजन प्रभाकर.
२८.०५.२०२५.
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