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Showing posts from 2025

सलाह.

सलाह. ***** एक जमाना था जब लोग अपने से बड़े बुजुर्गों से सलाह लेने आया करते थे. सलाह देने वाले को भी स्वयं के महत्वपूर्ण होने का अहसास होता था.  किंतु आज स्थिति दूसरी है.   आज के इंटरनेट वो कृत्रिम प्रज्ञा(Artificial Intelligence) के इस युग ने प्रायः हर किसी को समान रूप से बुद्धिमान बना दिया है.       सभी के पास प्रायः उतनी हीं सूचना रहती है जितना दूसरों के पास. साथ हीं निर्णय लेने के लिए जितनी सूचना का होना आवश्यक होता है वह हर किसी के पास कमोवेश बराबर परिमाण में हीं रहता है.           इसलिए आज का जमाना किसी को सलाह देने का नहीं रह गया है. ***************************************  वैसे तो बिना मांगे सलाह देना नहीं चाहिए; मेरे विचार से तो अब मांगने पर भी नहीं देना चाहिए. इधर-उधर की बात कर के टाल देना चाहिए.               जानते हैं क्यों?  सलाह मांगने वाला अपना निर्णय पहले हीं ले चुका होता है. आपसे सलाह मांग कर वह आपका सिर्फ व्यू प्वाइंट जानना चाहता है.        ...

Oh Sanskrit !

Oh Sanskrit! I didn't give you your due while I was a student.  I thought you to be merely a language of little relevance in view of my inclination to pursue science in college. You appeared to me as a load to get rid of by passing the exam anyway. Moreover,for long as a student and many years even after that,I remained under the impression that you are the language of rituals. More deplorably,I associated you,not without reason,with a particular section of society.  How mistaken I was to remain under such a falsely concluded impression!           As I grew up I began to feel your true worth in shaping an individual as a worthy member of the society. Slowly slowly as I started enhancing acquaintance with you I realised that - 1.You are not just a language but much more than that. While other languages are mere mediums of communication you are the creator and nourisher of all that is good in an individual. 2.While other languages compete unhealthily wit...

वैसी ही मेरी सीरत-वैसी ही मेरी सूरत

पढ़ कर मेरी नज़्में  मत लगाना मेरे तू सीरत का अंदाज़ा  जिस वक़्त जैसी  दिमाग़ी कैफियत वैसी हीं मेरी सीरत वैसी ही मेरी सूरत  वैसी हीं मेरी फितरत  वैसी हीं मेरी नज़्में  वैसे हीं मेरे रब्त़ वैसे हीं मेरे ज़ब्त.                       ~राजीव रंजन प्रभाकर                               ३१.०८.२०२५ پڑہ کر میری نظمیں  مت لگانا میرے تو  سیرت کا اندازہ۔ جس وقت جیسی  دماغی کیفیت  ویسی ہی میری سیرت  ویسی ہی میری صورت  ویسی ہی میری فطرت  ویسی ہی میری نظمیں  ویسے ہیں میرے ربط ویسے ہیں میرے ضبط۔  نظم و ربط ضبط ۔ ***************************       بصد شوق  ~راجیو رنجن پربھاکر

विभक्तिमाला

विभक्तिमाला ******************************* संस्कृत में विभक्ति और लकार का बहुत महत्व है. जहाॅं शब्दों के रूप विभक्ति के अनुसार धारण करते हैं क्रिया का रूप काल के अनुसार बदलता रहता है जिसे लकार कहते हैं. संस्कृत में मुख्य रूप से सात कारक विभक्तियाँ होती हैं, जो क्रिया के साथ संज्ञा के विभिन्न संबंधों को दर्शाती हैं:  प्रथमा: कर्ता कारक (चिह्न: ने).  द्वितीया: कर्म कारक (चिह्न: को).  तृतीया: करण कारक (साधन) (चिह्न: से, के द्वारा).  चतुर्थी: सम्प्रदान कारक (देने या लेने के लिए).  पंचमी: अपादान कारक (अलगाव या दूरी दर्शाने के लिए).  षष्ठी: संबंध कारक (संबंध बताने के लिए).  सप्तमी: अधिकरण कारक (स्थान या समय बताने के लिए).  इनके अतिरिक्त एक संबोधन भी होता है.  संक्षेप में, विभक्ति शब्दों को वाक्य के अन्य शब्दों से जोड़ती है, जिससे वाक्य में व्याकरणिक संबंध और अर्थ स्पष्ट होता है. ******************************* निम्न श्लोकों में शब्दों में क्रम से सातो विभक्तियों का प्रयोग देखना रोचक है.              प्रस्तुत...

आप कौन हैं ?

आप कौन हैं? मैं एक प्राणी हूॅं.  'अजीब बात है ये कोई जवाब हुआ! प्राणि तो सभी हैं. मेरा मतलब है कि हैं कौन? मैं एक मनुष्य हूॅं  देखिए आप बात को घुमाने की कोशिश मत कीजिए. मेरा आप से कौन हैं, से मेरा पूछने का तात्पर्य यह है कि आप का 'नाम' क्या है, 'कहाॅं' रहते हैं, 'क्या' करते हैं वग़ैरह वग़ैरह.  आप से पूछा जा रहा है तो आप भाव खा रहे हैं जी? मेरा नाम अ.ब.स है मैं धरती पर रहता हूॅं और जीने के लिए काम करता हूॅं. तो आकाश में कौन रहता है?  रहता है न? कितने हीं पक्षी हैं जिनका आशियाना यह मुक्ताकाश है. ऐसे प्राणी नभचर कहलाते हैं. ज्यादा बनिए नहीं आप अपना परिचय ठीक से दीजिए; समझ गये न? मेरा नाम अ.ब.स है, मैं क.ख.ग शहर में रहता हूॅं और सरकार का एक मुलाज़िम हूॅं. वो तो ठीक है लेकिन इस परिचय में भी कमी हीं रह गया है.  मतलब केंद्र सरकार में कि राज्य सरकार में?  राज्य सरकार में. मतलब इतने से हो गया परिचय? राज्य सरकार के किस सेवा सम्वर्ग से हैं, किस विभाग में आदि आदि.  आप या तो बहुत चालाक हैं या अत्यंत मंदबुद्धि.  मंदबुद्धि तो आप दिखते नहीं फिर आप चालाकी कर रहे ...

संस्कृत दिवसे किंचित मम भावोद्गार:

अद्य श्रावण मासस्य पूर्णिमा तिथि:। प्रायः सर्वे जना: इयम तिथिम् रक्षा बंधन पर्वरूपेण जानन्ति.  किंतु अस्येतर: इयम तिथि विद्वानस: संस्कृत दिवस रूपेण अपि प्रतिष्ठितवान.  तर्हि प्रत्येक सम्वत्सरे इयम तिथि: संस्कृत दिवसाय आरक्षित:। सम्पूर्ण विश्वे संस्कृत भाषा तुल्य: न कोऽपि भाषा प्राचीनतमा विद्यते.  सर्वे भारतवासिन: कृते अयम गर्वविषयक तथ्य: यत् अस्या भाषाया: उद्गमस्त्रोत वेदा: वर्तते अपि च अस्य उद्गम स्थल: भारतस्य पुण्य भूमि.  सनातन धर्मस्य सम्पूर्ण वाड्मय संस्कृत भाषायाम् रचितं विद्यते।  वेदा: उपनिषद्श्च स्मृतिश्च मंत्रश्च संस्कृत भाषायाम् रचित कारणे यदि कोऽपि इयम भाषायै: सनातन धर्मधारिणी भाषा वदति इदम् न किंचित अतिशयोक्ति। प्राचीन काले संस्कृत भाषैव लोक व्यवहारस्य भाषाऽपि आसीत।  गुप्त काले संस्कृत भाषा लोक व्यवहारस्य शासनव्यवहारस्यश्च भाषा अपि आसीत।    कालक्रमे अस्य प्रसार: लोकानाम् क्रमशः क्षीणताम् प्राप्त:। वैज्ञानिक दृष्टया अपि च इयम भाषाया: प्रामाणिकता उपादेयता च अद्य निर्विवाद रूपेण प्रतिष्ठित:। अधुना संगणक(computer) विषयै: कृत्रिम प्रज्ञा(Ar...

कश्मकश

कश्मकश  ***************************** बोलूॅं तो वबाल हो, चुप रहूॅं तो सवाल हो. या रब मेरे तूॅं ही बता अब, आख़िर कैसा मेरा आ'माल हो?      ~राजीव रंजन प्रभाकर  کشمکش  ***************************** بولوں تو وبلا ہو چپ رہوں تو سوال ہو یا رب میرے تو ہی بتا اب آخر کیسا میرا اعمال ہو؟ ~ بصد احترام  راجیو رنجن پربھاکر

America's Diplomacy: Veering Towards a New Normal.

America's Diplomacy is trying to shift itself towards a new normal. Words that are used for gaining edge over the others are far from diplomatic.  Words indicative of hubris and intimidations are issued as political statements even during peace times. We have known altercation as an anathema to diplomacy.   However altercation in open is more frequent and is being given a favour to be recognised as a way of talk on the diplomatic table. We have already seen America doing this while talking to Ukraine. These days America is in great haste. It is now not only in the role of a self- assumed global leader but global arbitrator also with a patent ambition to be recognised as a harbinger of peace and hegemony together at the same time. Their power borne hubris has tattered even the minimum diplomatic courtesy.            Diplomatic nuances stand substituted by clear cut ludicrous intimidatory language that even the spokesperson of the foreign secre...

नज़रियात जानिब ज़िन्दगी के

नज़रिया-१ ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा कुछ भी नहीं  और जुर्म मेरा क्या है ये पता ही नहीं  इतने हिस्से में बॅंट गया हूॅं मैं मेरे हिस्से का कुछ पता ही नहीं                        ~ना'मालूम नज़रिया-२ ज़िन्दगी से बड़ी ने'मत है कुछ भी नहीं  किस नेकी की है ये फ़ज़ीलत पता ही नहीं  हलकान इतना इसके करने के बावजूद  मोहब्बत का नशा इससे ता'उम्र छूटता नहीं  ~राजीव रंजन प्रभाकर. نظریہ- ١ زندگی سے بڑی سزا کچھ بھی نہیں  اور جرم کیا ہے یہ پتہ ہی نہیں  اتنے حصے میں بنٹ گیا ہوں میں میرے حصّے کا کچھ پتہ ہی نہیں  ~نامعلوم  نظریہ -٢ زندگی سے بڑی نعمت ہے کچھ بھی نہیں  کس نیکی کی ہے یہ فضیلت پتہ ہی نہیں  ہلکان مجھے اتنا اسکے کرنے کے باوجود  اس سے محبت کا نشہ تاعمر چھوٹتا نہیں  بصد احترام  -راجیو رنجن پربھاکر

आज का मित्रहीन समाज

आज मैत्री दिवस है.प्रत्येक वर्ष अगस्त के प्रथम रविवार को यह मनाया जाता है. आज की सच्चाई यह है कि फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर मित्र सूची सैकड़ों हज़ारों की संख्या में रहते हुए भी हम सभी प्रायः मित्रहीन ही हैं. आज के मित्रहीन समाज में मैत्री का महत्व को वही समझ सकता है जो वास्तव में एक-दूसरे के सुख-दुख का साथी हो.  किंतु जहाॅं सहयोग पूरी तरह से प्रतिस्पर्धा द्वारा विस्थापित किया जा चुका हो वहाॅं मैत्री का निर्वाह हो तो कैसे?  आज मित्रता समान सतह पर अवस्थित दो व्यक्तियों के मध्य हास-परिहास,आलाप-वार्तालाप की विषयवस्तु भर रह गई है.  यह हास परिहासादि भी तभी तक जारी रहता है जब तक दोनों की परिस्थितियां एक जैसी रहती है. जैसे हीं परिस्थिति बदलती है मैत्री समाप्त.   संस्कृत में इससे संबंधित एक श्लोक है-  कार्यार्थी भजते परस्परम् यावत् कार्यं न सिद्ध्यते।     प्राप्ते तु परे पारं नौकाया: किं प्रयोजनम्‌।। कार्यार्थी एक-दूसरे को तभी तक भजते हैं जब तक कि उनका एक-दूसरे से कार्य सिद्ध नहीं हो जाता है.  यह ठीक उसी तरह है जैसे पार उतर जाने पर नौका को लोग मुड़ कर भी नह...

What looks -----is usually

1.What looks effortless is usually deeply rehearsed. 2.What looks strenuous is usually not that much as it poses itself to be. 3.What looks indispensable is usually disposable at the end. 4.What looks glittering is usually not the gold. 5.What looks useless is usually sought after it ceases to exist. 6.What looks naive is usually a ruse. 7.What looks like justice is usually the  choice of those who dispense it. 8.What looks like injustice is usually the preference of the society. 9.What looks effective is usually efficient also. 10 What looks in order is usually based on tradition.                                         ~R.R.Prabhakar.

महादेव स्तुति.

यस्य स्मरणमात्रेण दृश्यते जगत् हस्तामलकसम। नमाम्यहम् तम् महायोगी अजमनादिम् महेश्वरम्।। (जिसके स्मरण मात्र से सम्पूर्ण जगत हथेली पर रखे ऑंवले के बराबर दिखता है उस अनादि,अजन्मा एवं महायोगी महेश्वर को मैं प्रणाम करता हूॅं.)                     ***** यस्य वामांके विभाति अन्नपूर्णा मातापार्वती। नमाम्यहम् तम् आशुतोष: त्र्यंबक: महेश्वम्।। (जिनके वाम भाग में अन्नपूर्णा माता पार्वती शोभित हो रही हैं उन आशुतोष त्रिनेत्र सम्पन्न महेश्वर को मैं प्रणाम करता हूॅं.)                     ***** यस्य भाले शोभते मयंकश्च गंगा त्रिपथगामिनी। नमाम्यहम् तम् भुजंगभूषित सर्वलोकमहेश्वरम्।। (जिनके मस्तक पर चंद्रमा और त्रिपथगामिनी गंगा शोभायमान है उन भुजंगाभूषण से भूषित सर्वलोक महेश्वर को मैं प्रणाम करता हूॅं.)                      ***** यस्य रामभद्रास्ति एकमात्र स्वामी सखा सेवक: नमाम्यहम् तम् विश्वनाथं उमापति महेश्वरम्।। (जिनके श्रीराम स्वामी सखा और सेवक एक साथ त...

रावण का बेटा प्रहस्त

रावण के अनेक पुत्र थे. उनमें उसके दो पुत्र मेघनाद तथा अक्षय कुमार के बारे में प्रायः सभी लोग जानते हैं. मेघनाद उसका ज्येष्ठ पुत्र था जो अपने पिता के समान हीं अत्यंत मायावी एवं अतुलित बलशाली था. परम मायावी तथा अतुलित बलशाली होने के साथ-साथ मेघनाद अपने पिता का परम आज्ञाकारी भी था. रावण की जो भी आज्ञा होती उसे वह ऑंख मूंद कर पालन करता था. यही कारण था कि वह अपने पिता का परम प्रिय पुत्र था.  अक्षय कुमार भी अपने ज्येष्ठ भ्राता के समान हीं बलवान और पितृभक्त था.           जहाॅं युद्ध में मेघनाद का वध रामानुज लक्ष्मण के हाथों हुआ अक्षय कुमार हनुमान के हाथों युद्ध से पहले हीं मारा गया.  ******************************************************* उपरोक्त दोनों पुत्रों के अतिरिक्त रामचरितमानस में रावण के जिस एक अन्य पुत्र की चर्चा हुई है, उसका नाम प्रहस्त है.  प्रहस्त उचित वक्ता था. वह ठकुरसुहाती करना नहीं जानता था. यह अनुभव की बात है कि जो सत्य बोलता है वह किसी का प्रिय नहीं होता है. सत्ता को तो बिल्कुल नहीं.  सत्ता को स्तुति प्रिय है.सत्ता का यह सहज य...

कस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता?

कस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता?       वशे हि यस्य इन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता.                                      (२/६१)       इन्द्रियाणि इन्द्रियार्थेभ्य: तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता.                                      (२/५८) (२/६८)       न अभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता.                                      (२/५७)                         From the Bhagavad Gita. 

Did You Know?

Knowing these words is not necessary at all.           However knowing them may be interesting to those who are driven by the passion to enrich their vocabulary. So here is the list- Did you know? 1. The cry of a new born baby is called 'vagitus'. 2. The space between your eyebrows is called 'glabella'. 3. The little toe or finger is called 'minimus'. 4. The sick feeling that you get after eating and drinking too much is called 'crapulence'. 5. The space between your nostrils is called 'columella nasi'. 6. The sheen of light that you see when you close your eyes and press your hands on them is called 'phosphenes'. 7. When your stomach rumbles, that's 'wamble'. 8. Finding it difficult to get out of bed in the morning is called 'dysania'. 9. The space just below the columella nasi is covered by the ridge called philtral ridge. 10. The plastic or metallic coating at the end of your shoe laces is called 'aglet'. 11...

My Seven Personal Laws of Proportion.

My Personal Law of Proportion ********************************* 1. The more I speak the more stupid I feel afterwards.                     *** 2. The less I speak the more I am misunderstood as learned or knowledgeable.                     *** 3. The more I amend myself the more mistakes I create by such amendments.                     *** 4. The more I remain by my nature the more peace I find within me.                     *** 5. The more imposing I try to become the more ludicrous I appear to be.                     *** 6. The more I write the more I get to know the flaws that such writings have.                     *** 7. The more I observe the happenings around me the more I get to know ...

Current International Scenario.

Competition-Cut throat  Cooperation-Strategic  Confrontation-Meter Meter                       from here-there  War- Decimetre from                             Everywhere  MAD(Mutually Assured Destruction)- Milimeter Between the Berserkers. Peace- Kilometres from                                   Anywhere  Willingness to coexist-Light-Year                      ~R.R.Prabhakar.

संस्कृत के कतिपय छात्रोपयोगी श्लोक **************************************

छात्र जीवन किसी व्यक्ति के जीवन का एक स्वर्णिम काल होता है, ऐसा मेरा मानना है. यही वह काल है जो किसी छात्र को भविष्य में समाज के एक जिम्मेदार एवं उपयोगी सदस्य के रूप में न्यूनाधिक रूप से निर्धारित करता है.  यह इसलिए भी कि किसी के चरित्र निर्माण में इस काल की महत्ता निर्विवाद है. चरित्र का विद्या से सीधा सरोकार होता है. कदाचित इसी लिए छात्र के लिए हम विद्यार्थी शब्द का भी उपयोग करते हैं.  छात्र जीवन वह काल है जिसमें व्यक्ति शिक्षा और विद्या दोनों को साधता है. आजकल छात्र अपना अधिकांश समय क्षेत्र विशेष से सम्बंधित पाठ्यक्रम में सन्निहित शिक्षा जिसे विषय ज्ञान कहना अधिक उपयुक्त होगा,को हीं पढ़ने और समझने में व्यतीत कर देते हैं किन्तु उनके विद्या अर्जन का उद्योग अधूरा हीं रह जाता है. परिणामस्वरूप छात्र जीवन में जिस प्रकार का व्यक्तित्व निर्माण होना चाहिए वह हो नहीं पाता है. उसका ज्ञान पात्रता से रहित हो जाता है.  पात्रता से रहित जो भी चीज चाहे वह धन हो या पद अनिष्टकारी होता है; स्वयं व्यक्ति के लिए तथा समाज के लिए भी.  विषय मात्र का ज्ञान एवं दक्षता अर्जित करते व्यक्ति को...

जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना

प्रस्तुत है कविवर गोपाल दास नीरज की एक कविता   **    जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना      उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है                                                   ** ***************************** जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है। १. जिस वक़्त जीना ग़ैर मुमकिन सा लगे        उस वक़्त जीना फ़र्ज़ है इंसान का,      लाज़िम लहर के साथ तब है खेलना,       जब हो समन्दर पे नशा तूफान का  जिस वायु का दीपक बुझाना ध्येय हो       उस वायु में दीपक जलाना धर्म है। २. हो नहीं मंज़िल कहीं जिस राह की         उस राह चलना चाहिए इंसान को          जिस दर्द से सारी 'उमर रोते रहे          वह दर्द पाना है ज़रूरी प्यार को     जिस चाह का हस्ती मिटाना न...

चाहे कोई कुछ अच्छा करे न करे

चाहे कोई कुछ अच्छा करे न करे लेकिन        वैसा कुछ भी न करे जिसे करने के बाद दिल में अफसोस हो और        वैसा तो बिल्कुल न करे जिसे करने के बाद दिल में शर्मिन्दगी पैदा हो  और       वैसा तो किसी भी सूरत में नहीं करे जिसे करने के बाद मन ग्लानि से भर जाए और        वैसा तो किसी हाल में न करे जो खुद के मन को हीं ला'नत भेजे और        वैसा तो हरगिज़ न करे जिससे दिल को चोट के साथ जिस्म को भी चोट पहुॅंचे. ** वैसा करने का नाम होता है                  कभी ग़ैर ज़िम्मेदारी                 कभी बेअदबी                 कभी बेहूदगी                 कभी बेमुरव्वती                 कभी बेरहमी                 कभी दुनियादारी             ...

Business Partner, Strategic Partner and Friendship-some reflections in recent context.

               I don't know whether ‘Distancement’ is a word let alone a diplomatic term. However if the word is not proper or doesn't exist as a diplomatic term as such, it needs to be coined and given currency as a distinct policy choice.                  It's because of the situation found to have been deliberately caused by Trump ever since he assumed the oval office for the second time with self-confidence that appears to be more a ruse than it being something real and permanent.  The way Trump has been acting in the name MAGA(Make America Great Again) diplomacy is a blatant demonstration of the attempt to make diplomacy devoid of decency and also display power with hubris.             Trump's altercation with Ukrainian President Jelenski to reach a dictated ceasefire with Russia, his brawl with his ally now turned foe Elon Musk and his exit from the Departm...

प्रकृत्यैव मनुष्यानां प्रवृतिर्मूले.

प्रकृत्यैव मनुष्यानां प्रवृतिर्मूले ********************************** यथा यस्य प्रकृति: तथा तस्य स्वभाव:  यथा यस्य स्वभाव: तथा तस्य आहार: यथा यस्य आहार: तथा तस्य विहार: यथा यस्य विहार: तथा तस्य विचार: यथा यस्य विचार: तथा तस्य व्यवहार: यथा यस्य व्यवहार: तथा तस्य सत्कार:  यथा यस्य सत्कार: तथा तस्य आकार: यथा यस्य आकार: तथा तस्य विकार: यथा यस्य विकार: तथा तस्य अहंकार: यथा यस्य अहंकार: तथा तस्य संहार:                                            (स्वरचित) *********************************             मनुष्य की सभी प्रवृति के मूल में उसकी अपनी प्रकृति हीं है---------- जैसी जिसकी प्रकृति होती है उसी तरह का उसका स्वभाव होता है.                                    ***  जैसा उसका स्वभाव होता है उसी प्रकार का उसका आहार होता है.         ...

राम दरबार के अध्यक्ष श्रीराजारामचंद्रजी की वंदना

राम दरबार के अध्यक्ष श्रीराजारामचंद्रजी की वंदना  ******************************* यस्य वामे सुशोभितोऽस्ति सर्वश्रेयस्करी माताजानकी  सेवायाम् पुरतो पवनपुत्रश्च दक्षिणे सौमित्र लक्ष्मण: पार्श्वे स्थित यश्चंद्र भरत: चरणेषु शूरवीर अनुज शत्रुघ्न: वंदेऽहं तम् अध्यक्ष: रामदरबार: श्रीराजारामचन्द्र:                                            (स्वरचित) ********************************** जिनके वाम भाग में सर्वश्रेयस्करी माता जानकी जी सुशोभित हैं; सामने सेवा में तत्पर हनुमानजी, दायें सौमित्र लक्ष्मणजी तथा पार्श्व में यशचंद्र भरत जी तथा चरणों में शूरवीर भ्राता शत्रुघ्न हैं, उस राम दरबार के अध्यक्ष श्रीराजारामचंद्रजी की मैं वंदना करता हूॅं.                                🙏🙏                     ~राजीव रंजन प्रभाकर

स्वामीरुपी मनुष्य का अपने सेवकरुपी अन्य जीवधारियों के प्रति व्यवहार.

इस धरती पर मनुष्य का व्यवहार कुछ इस तरह का हो गया है मानो सम्पूर्ण धरा से लेकर अनंत गगन तक का वह एकमात्र स्वामी हो. उसने विकास तथा प्रतिस्पर्धा के नाम पर अपने क्रियाकलापों को इस प्रकार विद्रूप कर लिया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उसे छोड़कर किसी अन्य जलचर थलचर और नभचर जीव को इस जीव-जगत में रहने का कोई अधिकार हीं नहीं है.  हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जितना इस जगत में रहने का अधिकार मनुष्य को है उससे रत्ती भर कम अन्य जीवों को नहीं है.  किंतु अफसोस मनुष्य ने जीव के ईश्वर प्रदत्त इस अधिकार का अपहरण कर लिया है. यदि ऐसा न होता तो आज सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु विकास की गाथा लिखने के नाम पर न तो वृक्षों की निर्ममतापूर्ण कटाई होती न हीं पहाड़ एवं जंगलों को क्रूरतापूर्ण ढंग से नष्ट करने का उपक्रम जारी रहता और न हीं समुद्र एवं नदियों में कचरा गिरा-गिरा कर उसे दूषित किया जाता. नीला आकाश भी ज़हरीले धुएं से दूषित न होता.  सारांश यह है कि हमारे क्रियाकलापों ने इस सम्पूर्ण वायुमंडल में जीवों को अपना जीवन जीने का अधिकार छीन लिया है.  हमें विकास की ऐसी गाथा लिखने वा...

सुभाषितानि(स्वरचित)

१ अर्जित् विद्या वा संचित् धनम्।   अप्रयुक्ते चेत प्राप्नोति नाशम्।। अर्जित विद्या हो या संचित धन; यदि इसे प्रयोग में नहीं लाया  जाए तो यह अंततः नाश को हीं प्राप्त होता है. (Acquired knowledge and preserved wealth, if left unused, go to waste) २. कुरू कर्मैव सिद्ध्यर्थे भुक्त्यर्थे वा मुक्त्यर्थे।   भगवद्घोषित्वाक्यास्ति कर्मण्येवाधिकारस्ते।। (सिद्धि के लिए या राज्य के लिए अथवा मुक्ति के लिए हीं सही कर्म तो हीं करना पड़ेगा क्योंकि भगवान ने भी यही घोषित किया है कि तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में हीं है) (Action is the only option either for achievement of external success and pleasure or attainment of internal peace and liberation; for God too has clarified that your right is to work only.) ३.यदा मानव: विन्दति सिद्धि: स्वे कर्मणि।   स्वार्थेकृततस्य कार्याणि परार्थे परिवर्तति।। (मनुष्य जब अपने कर्मों से सिद्धि को प्राप्त कर लेता है तब अपने स्वार्थ को ध्यान में रख कर किए गए कर्म भी दूसरों के कल्याण करने में परिवर्तित हो जाते हैं.) When men by his action attain perfe...

चींटी के पग घुंघरू बाजे वो भी साहब सुनता है.

भगवान हमेशा भक्त से परास्त हो जाते हैं. यह नियम है जिसे उन्होंने हीं बना रखा है. जो वास्तव में भक्त होते हैं वे इसका परीक्षण भी कर चुके होते हैं. हमारे शास्त्रों में इसके अनेक उदाहरण हैं. इसी तरह का एक प्रसंग जो मैंने कहीं पढ़ा है, इस प्रकार है.       कोई भक्त लगातार 20 वर्षों से गीता का पाठ करता चला आ रहा था. एक दिन भगवान उस भक्त को सपने में आकर बोले- मूर्ख तूॅं क्या समझता है कि तुम्हारे 20 साल से गीता का पाठ करने से मैं तुमसे प्रसन्न होकर तुम्हें मनचाहा फल दे दूंगा? ये तेरा वहम है. भक्त ये सुनकर सपने में खुशी से नाचने और झूमने लगा. भगवान हैरान होकर बोले- तूॅं तो वास्तव में मेरे अनुमान से भी ज्यादा मूर्ख निकला. मैंने कहा कि मैं तुम्हारे पाठ से खुश नहीं हूॅं और तूॅं नाच रहा है? भक्त- भगवन! आप प्रसन्न हैं या नहीं ये बात मैं नहीं जानता. कम से कम आपने मेरा पाठ सुना तो सही. ये क्या कम है? भगवान चुप. कहाॅं चले थे भक्त को परास्त करने और स्वयं परास्त हो गये. ******************************************************* ये है भक्ति का असली भाव. प्रभु प्रसन्न हों या नहीं यह सोचना ह...

31.05.2025.

31.05.2025 The day marks the end of the five months long training programme at BIPARD and as I sit down to try to summarise this unbelievable journey, I am reminded of 01.01.2025 - the first day of the year, as well as in BIPARD. I won’t deny that I wanted to leave from this institute the very same day. From getting my first ever saline bottle injection and nebuliser to fainting in the PT ground, there were innumerable first-hand and not-so-pleasant experiences here. The challenge was huge, both physical as well as emotional. But as we know, time heals it all. With time, things started becoming tolerable, not easy though. Everything was still challenging, but I was stronger than before, and each day I grew stronger. The days went by, complaining, crying, making plans to escape classes/pt and counting days left for going back to my home and family. Sitting continuously for ten hours is not an easy job for anybody and every class began with people ranting - क्या फालतू पढ़ा रहा है यार! An...

इक भगवान जानता है.

भगवान जानता है  जाकर जहाॅं से कोई  वापस नहीं आता  वह कौन सी जगह है; भगवान जानता है. जो भी भला बुरा है; भगवान जानता है.  कब किसे है देना कितना; भगवान जानता है. कब किससे है लेना कितना; भगवान जानता है. हर लेन-देन का हिसाब; भगवान जानता है. जमाना क्यों बदलता है; भगवान जानता है. घटनाएं क्यों घट रही हैं, भगवान जानता है. यह सब क्यों हो रहा है; इक भगवान जानता है. भविष्य में क्या लिखा है; भगवान जानता है. पर्दों में क्या छुपा है; भगवान जानता है. पुण्य कितना बचा है; भगवान जानता है. पाप का घड़ा कितना भरा है; भगवान जानता है. सारा का सारा सब कुछ  भगवान जानता है. ~ ब्रह्मलीन पुण्यश्लोक          सुभाष चंद्र वर्मा,  (my elder brother Drawn from his writings)

समयस्य महती प्रतिष्ठा

अहम् समयोऽस्मि. सर्वे कुर्वंति मम प्रतीक्षा किंतु अहमस्मि नैव कस्यचित् किंचित् कश्चित् वा कदाचित्।  मम क्षमता अपरिमितो अपारश्च।   अखिल ब्रह्माण्ड मम गर्भ: जात:।  अहमैव एकमेव हेतु: जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा।  प्रकृत्या: अहम् सतत् सदैव प्रवाहमानम् अछेद्यम्: अदाह्यम्  अशोष्यम् अक्लेद्यम्।    तर्हि मम प्रतिष्ठा सर्वेषु कालेषु सार्वदेशिक सार्वभौमिकश्च वर्तते। अहम् सदैव सर्वगत: सर्वव्यापकश्च।  अपि च गणनार्थे नरा: भजन्ति माम् भूत वर्तमान भविष्य रूपिणम्. सर्वे सन्ति मम नियंत्रणाधीन:। मया निरादरेण नर: पतन्ति नानाविध गर्तेषु.  ये माम भजन्ति स्वकर्मणा ते अचिरेण भवन्ति स्वे स्वे कर्मणि सफल: । आलस्य-स्फूर्ति ममैव यमलौ पुत्र पुत्रीश्च. एक: प्रगति रोधक: अपर: प्रगतिकारिणीम्।     मम कृपापात्र: प्राप्नोति यशम् धनम् च श्रियम्; मम विना न किंचित अवशिष्यति। निमिषेण अनन्तरम् मम वक्र दृष्टया राजा भवति रंक: एवं मम प्रसादात् श्रीहीन: जायते अधिपति:।  अहम् साक्षात् कालरूप: भगवदरूपश्च.  गीतायाम् श्रीभगवान् घोषित: यत्  १. "कालोऽस्मि लोकक्षयकृत प...

जो बात चेहरे से 'अयाॅं हो उसे ज़ुबाॅं से कहना ठीक नहीं

जब आहिस्ता चलना हीं काफी हो तो छलांग लगाना ठीक नहीं  जो नफ़्श हीं बेक़ाबू हो तो बेकार में क़ाबिल बनना ठीक नहीं  जब सही की भी सफ़ाई देनी पड़े तो राबत़ा रखना ठीक नहीं  जब बात चेहरे से हीं 'अयाॅं हो जाए उसे जुबाॅं से बयाॅं करना ठीक नहीं इन बातों का ख़्याल कर अगर कोई चले  फिर दुनिया उसको ग़ाफ़िल कहे चाहे भले                   ~राजीव रंजन प्रभाकर جب آہستہ چلنا ہیں کافی ہو تو چھلانگ لگانا ٹھیک نہیں۔ جب نفس ہیں بے قابو ہو تو بیکار میں قابل بننا ٹھیک نہیں۔ جب صحیح کی بھی صفائی دینی پڑے تو رابطہ رکھنا ٹھیک نہیں۔ جب بات چیہرے سے ہیں عیاں ہو تو زباں سے بیاں کرنا ٹھیک نہیں۔ ** ان باتوں کا خیال رکھ اگر کوئی چلے  پھر دنیا اسے غافل کہے چاہے بھلے۔ ~راجیو رنجن پربھاکر

हनुमत्श्लोक (स्वरचित)

हनूमान प्रभंजनजाया सर्वविद्या विशारद: आञ्जनेयं महावीर: संकटापन्ने आत्मबल: चिरंजीवी सर्वकाले सर्वकार्यविधायक: यदृच्छयासमुत्पन्नम् अनिष्टोत्पातविनाशक: प्रविश्यस्वर्णपूरीददाहलंकाम् हत्कुमारअक्षय: पददलितोपिनष्टपुरीश्च मर्दितोदर्प रावण: हनुमतोर्वसतिससीतराम: रामस्याक्लिष्ट कर्मण:  सकृदपि पठेत् वा भजते भावपूर्वक: अचिरात भवति ते रामद्वार प्रियसेवक: ************************************* ~राजीव रंजन प्रभाकर:      ‌ *** आंजनेय वायुपुत्र महावीर हनुमान सर्वविद्याविशारद हैं तथा संकट काल में आत्मबल रूप हैं. वे चिरंजीवी हैं तथा सभी काल में सभी कार्यों के विधायक हैं. हनुमान संयोगवश वा आकस्मिक रूप से उत्पन्न अनिष्ट एवं उत्पात के विनाशक हैं. उन्होंने स्वर्ण पूरी लंका में प्रवेश कर सम्पूर्ण पूरी को जला दिया तथा रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर डाला.  अपने पैरों के नीचे लंका में सभी को कुचल कर तथा पूरे लंकापूरी को पीस कर हनुमान ने घमंडी रावण के दर्प को चूर-चूर कर डाला. हनुमानजी के हृदय में सीताराम बसते हैं तथा वे हीं भगवान श्रीराम के कठिन कार...

नाम की महिमा,नामापराध तथा उसके प्रकार

 भगवान के नाम में कल्याण की अपार शक्ति है.अपने किसी भी नाम की महिमा का सम्पूर्णता में बखान स्वयं भगवान भी नहीं कर सकते हैं.  रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं- कहौं कहां लगि नाम बड़ाई  राम न सकहि नाम गुण गाइ उसी स्थल पर यह भी उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि नाम और नामी(वह व्यक्ति जिसका कि वह नाम हो) यद्यपि प्रथम दृष्टया एक प्रतीत होता है किन्तु दोनों के बीच अंतर है. उसमें जहाॅं नाम स्वामी है तो नामी सेवक. सामान्य अनुभव भी यही कहता है कि यदि हम किसी का नाम लेकर पुकारते हैं तो उस नाम का जो भी व्यक्ति (नामी) वहाॅं उपस्थित रहता है उसका ध्यान पुकारने वाले पर चला हीं जाता है. आप पुत्र को या पत्नी को या भाई को उसका नाम लेकर पुकारते हैं तो वह आपके पास न भी हो तो सुनने पर वह आ जाते हैं; यह हम सभी का सामान्य अनुभव है.प्रेम से पुकारने में वह व्यक्ति(नामी) आपसे वैसा हीं व्यवहार भी करता है.  फिर समझने कि बात यह है कि यदि हम भगवान का नाम लेकर उन्हें पुकारें तो कोई कारण नहीं कि उनका ध्यान हमारे ऊपर न जाए. अस्तु. ********************************************************** कि...