सुभाषितानि(स्वरचित)
१ अर्जित् विद्या वा संचित् धनम्।
अप्रयुक्ते चेत प्राप्नोति नाशम्।।
अर्जित विद्या हो या संचित धन; यदि इसे प्रयोग में नहीं लाया जाए तो यह अंततः नाश को हीं प्राप्त होता है.
(Acquired knowledge and preserved wealth, if left unused, go to waste)
२. कुरू कर्मैव सिद्ध्यर्थे भुक्त्यर्थे वा मुक्त्यर्थे।
भगवद्घोषित्वाक्यास्ति कर्मण्येवाधिकारस्ते।।
(सिद्धि के लिए या राज्य के लिए अथवा मुक्ति के लिए हीं सही कर्म तो हीं करना पड़ेगा क्योंकि भगवान ने भी यही घोषित किया है कि तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में हीं है)
(Action is the only option either for achievement of external success and pleasure or attainment of internal peace and liberation; for God too has clarified that your right is to work only.)
३.यदा मानव: विन्दति सिद्धि: स्वे कर्मणि।
स्वार्थेकृततस्य कार्याणि परार्थे परिवर्तति।।
(मनुष्य जब अपने कर्मों से सिद्धि को प्राप्त कर लेता है तब अपने स्वार्थ को ध्यान में रख कर किए गए कर्म भी दूसरों के कल्याण करने में परिवर्तित हो जाते हैं.)
When men by his action attain perfection all his actions for self interest convert into welfare of others'.
४. भक्ति विना समस्त ज्ञानम् सुगंधहीनपुष्पतुल्यम् ।
कर्मरहितज्ञानार्जनम् विषमिव शरीरे सर्वदेहिनम् ।।
(भक्ति के बिना सारा ज्ञान सुगंधहीन पुष्प सदृश है तथा विहित कर्म के बिना अर्जित ज्ञान पूरे शरीर में व्याप्त विष के समान है.)
Knowledge without devotion is equivalent to flower without fragrance; knowledge acquired without accompanying duty is just like poison spreading throughout the body.
५. यथा जलसंयोगेन फेनक: गात्राणि भवन्ति शुद्धम।
तथा अनासक्तकर्मसंयोगे आत्मा प्राप्यते शुद्धरूपम् ।।
जिस प्रकार साबुन जल के संयोग से शरीर को शुद्ध कर देता है उसी प्रकार अनासक्त भाव से किए गए कर्म के संयोग से आत्मा अपने शुद्ध रूप को प्राप्त होता है.
Just as a soap with water cleanses body of a man in the same way the soul attains purity by our actions combined with detachment.
६.परिश्रमेण प्राप्यते विद्या उद्यमेण श्रीलक्ष्मी:।
क्षीयन्ते उभौ प्राप्तौ बुद्धि: प्रमादकारिणीम्।।
विद्या परिश्रम से प्राप्त होती है तथा श्री लक्ष्मी उद्यम से
किंतु जब बुद्धि जब प्रमादकारी हो जाती है तब दोनों का नाश हो जाता है.
(Knowledge is obtained by hard work and Sri Lakshmi by enterprise.
Both are depleted when they have attained the intellect that causes heedlessness.)
Rajeev Ranjan Prabhakar
04.06.2025.
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