स्वामीरुपी मनुष्य का अपने सेवकरुपी अन्य जीवधारियों के प्रति व्यवहार.

इस धरती पर मनुष्य का व्यवहार कुछ इस तरह का हो गया है मानो सम्पूर्ण धरा से लेकर अनंत गगन तक का वह एकमात्र स्वामी हो. उसने विकास तथा प्रतिस्पर्धा के नाम पर अपने क्रियाकलापों को इस प्रकार विद्रूप कर लिया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उसे छोड़कर किसी अन्य जलचर थलचर और नभचर जीव को इस जीव-जगत में रहने का कोई अधिकार हीं नहीं है. 
हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जितना इस जगत में रहने का अधिकार मनुष्य को है उससे रत्ती भर कम अन्य जीवों को नहीं है. 
किंतु अफसोस मनुष्य ने जीव के ईश्वर प्रदत्त इस अधिकार का अपहरण कर लिया है.

यदि ऐसा न होता तो आज सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु विकास की गाथा लिखने के नाम पर न तो वृक्षों की निर्ममतापूर्ण कटाई होती न हीं पहाड़ एवं जंगलों को क्रूरतापूर्ण ढंग से नष्ट करने का उपक्रम जारी रहता और न हीं समुद्र एवं नदियों में कचरा गिरा-गिरा कर उसे दूषित किया जाता. नीला आकाश भी ज़हरीले धुएं से दूषित न होता. 
सारांश यह है कि हमारे क्रियाकलापों ने इस सम्पूर्ण वायुमंडल में जीवों को अपना जीवन जीने का अधिकार छीन लिया है. 
हमें विकास की ऐसी गाथा लिखने वाले से यह सवाल पूछना चाहिए कि उन जीव जन्तुओं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारे स्वयं के जीने में सहायक हैं, को इस विकास से कौन सा लाभ प्राप्त हुआ है या हो रहा है.
क्या इस धरती पर रहने का अधिकार सिर्फ मनुष्य को हीं है? 
क्या हम सोचते हैं कि एक वृक्ष को जब हम काटते हैं तो न सिर्फ एक वृक्ष का धरती पर अस्तित्व समाप्त हो जाता है बल्कि वह वृक्ष अनगिनत पशु-पक्षी, कीट-पतंगादि का आश्रयदाता भी होता है जिसके आश्रय को हम निर्ममता पूर्वक नष्ट कर देते हैं. 

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी बड़ी संख्या में पेड़ काटने को मानव हत्या तुल्य अपराध माना है.

मैं पूछता हूॅं कि जिसने अपने जीवन काल में एक भी पेड़ नहीं लगाया उसे फल खाने का क्या अधिकार है? 

क्या हम सोचते हैं कि जब एक नदी में हम जहरीला कचरा डालते हैं तो कितने जीवन को हम नष्ट कर रहे होते हैं जो ऐसे जहर के सम्पर्क मात्र से छटपटा कर अपना प्राण त्याग देते हैं?
 जब आर्थिक लोलुपता के वशीभूत होकर जब कोई पहाड़ कट कर सड़क बना दिया जाता है तो यह कितने वन्य प्राणी को उसका आशियाना छीन लेता है. तब बेचारा लाचार होकर किसी गांव या शहर में कोई तेंदुआ या चीता घुसता है तो हड़कम्प मच जाता है. फिर भागो-भागो या मारो मारो आदि.
 
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ये तो चलिए विकास के नाम पर की जा रही लीला है.
 विनाश का खेल भी हमें कम रुचिकर नहीं है.
 आपसी द्वेष तथा वर्चस्व की लड़ाई में एक देश दूसरे देश पर ऐसे-ऐसे आग्नेयास्त्र का प्रयोग कर रहा है कि पूरा आकाश जिसमें हम साॅंस ले रहे होते हैं, क‌ई-क‌ई दिनों तक आग के गोला के रूप में आच्छादित दिखता है.
  प्रश्न है कि आपका और धरती को नुक़सान पहुंचाने का हक़ आदमी को किसने दिया ?
मात्र अपनी सुविधा तथा आराम को दृष्टिगत रख दूसरे प्राणियों के जीवन को असहज करने या नष्ट करने कि अधिकार हमें किसने दिया ? 

उत्तर है-मनुष्य की ताक़त और बुद्धि. अंग्रेजी में कहावत है-Might is right.

यदि ऐसा हीं चला तो अन्य जड़-चेतन के शापवश एक समय ऐसा आएगा जब इस पृथ्वी पर अन्य जीव तो रहेंगे किंतु मनुष्य समाप्त हो जाएगा तब पर्यावरण अपने मूल रूप में अनायास ही लौट आएगा. 

शाप और कुछ नहीं है; यह किसी की आत्मा को कष्ट पहुंचने पर मुख से अनायास निकले आह का कुफल है.
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हम आज इतने विकसित हो ग‌ए हैं कि परमाणु बम तथा तरह-तरह के जैविक हथियार बना कर, उसे इकठ्ठा कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं तथा एक निमेष में पूरी दुनिया को खत्म कर देने का दंभ भरते हैं.

 प्रश्न है कि हमारे अविवेकपूर्ण विकास या परस्पर वर्चस्व की लड़ाई का खामियाजा ये मनुष्येतर जीव-जगत क्यों भुगते?

क्या आदमी सबसे ताकतवर या होशियार दूसरे के प्राण लेने के लिए हीं बना हैं? 
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यदि मनुष्य स्वयं को इस जीव-जगत का वास्तविक स्वामी समझता है तो उसे वास्जैतविक स्वामी जैसा व्यवहार भी सीखना होगा. 

स्वामी का यह कर्तव्य है कि उस पर आश्रित सभी का वह पोषण करे न कि उत्सादन की सीमा तक शोषण या दोहन.
आज विकास में विवेक का तत्व पूर्णतः लुप्त हो गया है. मनुष्य स्वार्थांध होकर दौड़ा जा रहा है. कहाॅं रूकेगा पता नहीं.

गोस्वामीजी कहते हैं-
मुखिया मुखु सो चाहिए खान पान कहुॅं एक।
पाल‌इ पोष‌इ सकल ‌अंग तुलसी सहित बिबेक।।
(भावार्थ-परिवार के मुखिया को मनुष्य के मुख के समान होना चाहिए जैसे भोजन ग्रहण तो करता है मुॅंह किंतु उस मुख से ग्रहण किए गए भोजन से सम्पूर्ण शरीर का पालन-पोषण होता है.
 इसलिए मुॅंह अविवेकपूर्ण ढ़ंग से यदि जलपान के बदले विषपान कर ले तो परिणाम सम्पूर्ण शरीर का नाश हीं है.
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इस पर्यावरण दिवस पर प्रभु ऐसे मनुष्यरुपी स्वामी को सद्बुद्धि प्रदान करें .

राजीव रंजन प्रभाकर.
विश्व पर्यावरण दिवस 
  05.06.2025. 



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