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डैमेज कंट्रोल.

डैमेज कंट्रोल. ****************************************************** बीडीओ साहेब का सरकारी आवास. (बीडीओ साहेब ब्लाक में अपने इस सरकारी आवास में अकेले रहते हैं; परिवार पटना में रहता है. उन्होंने ब्लॉक के हीं किसी गांव के एक बीस-एक्कीस वर्ष के युवक जिसका नाम बिनोद है,को अपने साथ रखा है. बिनोद उनका घरेलू स्टाफ के तौर पर काम करता है तथा बीडीओ साहेब के क्वार्टर के आउटहाउस में हीं रहता है.) ****************************************************** बीडीओ साहेब के आवास पर एक काले रंग की एसयूवी एकाएक आ कर रूक जाती है. गाड़ी के आगे वाले प्लेट पर बड़े अक्षरों में "विधायक" लिखा हुआ था.विधायक जी की गाड़ी में उनके साथ एक-दो लोग और थे. गेट पर गाड़ी रूकते हीं बिनोद अपने बनियान के ऊपर कमीज डाल उसका बटन लगाते-लगाते हीं दौड़ पड़ता है. ****************************************************** तब तक विधायक जी गाड़ी से उतर चुके थे. वे इधर-उधर बस यूं ही खड़े-खड़े गरदन घुमा-घुमाकर चारों ओर मुआयना करने लगे. हांलांकि बाद में उन्हें महसूस हुआ कि बेकारे गाड़ी पर से उतरे; बिनोद तो आइये रहा था. सोचने लगे उतरना...

अर्थ विज्ञान.

******************************************************** यदि आपने इस रूचि से कि प्रस्तुत लेखन धनप्राप्ति विषयक है तो इसे आगे पढ़ना छोड़ भी सकते हैं.  इसका कारण यह है कि प्रस्तुत आलेख धनविषयक न होकर शब्दार्थ विषयक है. निम्न पंक्तियों में उन पहलुओं पर विचार किया गया है जिसमें कोई शब्द अपना अर्थ किस प्रकार ग्रहण करता है या कहिए कि वे कौन से साधन है जो किसी शब्द का अर्थ उस रूप में प्रकाशित करता है जो किसी लेखक या वक्ता का अभीष्ट है.  इन पहलुओं की चर्चा मोटे तौर पर भाषा-विज्ञान के अंतर्गत की जाती है. अर्थ विज्ञान भाषा विज्ञान का हीं एक अवयव है. ********************************************************  अब यहीं लीजिए.  "अर्थ" शब्द का अर्थ "धन" भी है और "आशय" या कहिए "मतलब" भी अब यह शब्द कब कौन अर्थ ग्रहण करेगा यह संदर्भ (context) पर निर्भर है.  अतः यह स्पष्ट हुआ कि शब्द के अर्थ को प्रकाशित करने में संदर्भ एक महत्वपूर्ण साधन है. इसी तरह के अन्य साधनों की चर्चा प्रस्तुत लेख का अभीष्ट है.  ********************************************************  कोई शब्द ...

Types of People.

****************************************************** The following lines which I propose to write are not the product of my own thinking.  They are based on my reading an article published in a devotional magazine. The said article classified the people of any society into seven categories.                It is worth mentioning these categories for our better understanding. The knowledge of this classification may prove to be beneficial in our efforts to improve from within. ****************************************************** 1.Class -1 type of people.(संत स्वभाव)     This category of people is the best.   Such a person is always really available by all means to help others to such an extent that they do so even at the cost of harming himself or his own interest.  The centre of concern of such types of people is always "concern for others" only; nothing else. These types of people are saintly souls on earth. Thes...

25 years of serving.

25 years is a period that matters. I am saying this because yesterday;that is 25 years ago on the 26 th of August, all of the 40th batch of the Bihar Administrative Service were born after undergoing through parturition-pain like pangs of unemployment for most of us.  Keeping in view the importance of this eventful date of 25 th milestone in our service career our colleagues decided not to let this milestone go unnoticed for understable reasons. Consequently we assembled to showcase our "एकजुटता "by way of a simple get-together with our family to commemorate and celebrate through revelling, eating, singing and gossiping.  All did that which they were best at.                    As far as I am concerned I consider myself best at eating. My eating talent multiplies with the variety of food on the table. यत्र-यत्र भोजनम् तत्र-तत्र राजीवम्. In short,we were trying to re-live the moments of 1997 by the way we could. ****************...

Sustainable Development

Sustainable Development. ****************************************************** A few days ago I got an opportunity to speak on the topic of sustainable development before the students of a management institute of repute. The said institute was celebrating a function on the occasion of Azadi ka Amrit Mahotsav.                 I am not from academics nor have I any specific expertise on sustainable development. Despite it being so, the opportunity I got was due to my friend who holds an administrative post in that institute. He,acting out of sheer love and affection, invited and expected me to participate in the function with the aforesaid assignment. In a bid to help me my daughter apprised me that there is plenty of materials on the internet as sustainable development is the most talked about proposition in the present global scenario. But that was only partly satisfying for me. Besides,thinking in my own way on an issue has always been my habit ...

बिहारी कहलाना गाली नहीं गौरव है.

बिहारी कहलाना गाली नहीं गौरव है. *************************************************** आज सुबह में मन विचलित करनेवाली खबर पढ़ अंदर हीं अंदर खौल गया. *************************************************** कारण था इस हद तक पढ़ी-लिखी महिला जो दिल्ली उच्च न्यायालय में एडवोकेट है,ने अपने "सुशिक्षित", "संस्कारी" एवं "सम्भ्रांत" होने का परिचय कुछ इस तरह दिया कि सुरक्षा गार्ड द्वारा अपार्टमेंट का गेट जरा सी देरी से खोलने पर न केवल उसे भद्दी-भद्दी गालियों से नवाजा बल्कि उसका कालर पकड़ उसे बेशर्मी से धक्का भी दिया.  लर्नेड एडवोकेट का नाम है-भाव्या राय. *************************************************** भाव्या राय यहीं नहीं रूकी. उन्होंने उस गार्ड को बतौर गाली "बिहारी" कह कर उन सभी को आहत एवं आक्रोशित किया है जिनका ताल्लुक बिहार से है. मैडम भाव्या राय! मैं नहीं जानता कि आप किस राज्य से हो किन्तु आपके राज्य को पूरे सम्मान देते हुए यह कहना चाहता हूं कि मैडम!आप क्या जानो बिहार और बिहारी क्या और कौन हैं?  किसी भी मामले में कोई भी बिहारी के सामने नहीं टिक सकता है. ...

एकता और एकजुटता

एकता और एकजुटता; क्या दोनों एक ही शब्द हैं? क्या दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं? यदि नहीं तो दोनों में क्या अंतर है?                                 मेरा ध्यान इन शब्दों पर नहीं जाता यदि इन दो शब्दों का उल्लेख प्रधानमंत्रीजी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में नहीं किया होता. *********************************************** तत्काल मैंने भी वही किया जो आमतौर पर लोग करते हैं अर्थात् इंटरनेट की मदद. लेकिन इस मामले में वह भी कुछ खास कारगर साबित नहीं हो सका. मतलब ऐसा कोई स्पष्ट अंतर वहां मुझे नहीं मिल सका जो मुझे संतुष्ट कर सके. यदि कुछ ऐसा था भी तो यही कह सकता कि मुझे ठीक से समझ में नहीं आया.  ऐसी स्थिति में व्यक्ति को स्वयं अपने हीं विवेक का सहारा लेना पड़ता है. इससे कम से कम ये होता है कि वह स्वयं को संतुष्ट कर सकता है भले ही दूसरे लोगों को वह समझ अपर्याप्त अथवा असम्बद्ध लगे तो यह कोई असामान्य बात नहीं है.  *********************************************** आज से पहले एकता शब्द के साथ प्रायः अखंडता शब...

तुलसी जयंती (श्रावण शुक्ल सप्तमी)

तुलसी जयंती (श्रावण शुक्ल सप्तमी) **************************************************** आज श्रावण शुक्ल सप्तमी तिथि है. इसी तिथि को कलि काल के बाल्मीकि कहलाने वाले भक्तमाल के सुमेरू संत शिरोमणि कविकुल तिलक तुलसीदास जी का जन्म संवत १५५४ में हुआ था. आज प्रायः सभी इस तिथि को भूल चुके हैं. मुझे स्मरण होता है कि इस तिथि के आने के क‌ई दिन पूर्व से हीं मेरे जैसे सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले छात्रों को इस अवसर पर भाषण प्रतियोगिता या रामचरितमानस का पाठ- गायन अथवा मानस आधारित नाटक आदि खेलने की तैयारी विद्यालय के शिक्षक अति उत्साह से करवाते थे.  प्राइवेट या अंग्रेजी स्कूलों की बात तो छोड़ हीं दिया जाय अब मुझे नहीं लगता कि कोई सरकारी विद्यालय में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते होंगे. मुझे आज भी याद है कि कैसे मेरे एक सहपाठी ने तुलसी जयंती पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में फर्स्ट प्राइज जीता था जबकि तैयारी उसकी मैंने भी कोई कम नहीं कर रखी थी. लेकिन उसकी प्रस्तुति बेहतर थी. **************************************************** आज हम अपनी संस्कृति से जुड़ने-जोड़ने का दंभ तो जरूर करते हैं किंतु व्यवहार म...

बोर्ड परीक्षा'क रिजल्ट.

एम्हर बूझि पड़ैत जे बोर्ड परीक्षा केर रिजल्ट सब बहरायल ये.बिहार बोर्ड अपन रिजल्ट निकाललक कि नहिं से नहिं पता किंतु आयसीएससी आओर सीबीएसई केर रिजल्ट निकैल गेल अछि.  एपार्टमेंटक जतेक विद्यार्थी लोकेन परीक्षा में बैसल छलाह किनको ९० प्रतिशत से कम नम्बर नहिं छैन्ह. जकरे पुछै छी से कहै ये हमको ९२ परसेंट तो कियो कहै ये ९६ परसेंट आदि-आदि. सब खुशी से बताह छैथ. हुनकर गार्जियन लोकैन हुनको से बेसी. सुनाबऽ लेल ओ हमरा लग अबै जाय छैथ अवश्य किंतु किनको हाथ में मिठाई-तिठाई किछु नहि रहैत छैन्ह.  ओना हमरा शुगर ये; से मिठाई हम बेसी खाइतो नहिं छी.ओना कियो खुआबऽ चाहता ते हुनकर मन छोट नय भऽ जाय एकर विशेष खियाल राखि हम मना नहिं कऽ सकैत छी; हें! हें! हें!😁.              केयो कहै ले आबै छैथ- "अंकल! आय गौट 96 परसेंट" तऽ केयो अकैड़ कऽ कहै छथिन्ह- "99 परसेंट मार्क्स आया है लेकिन मैं अंकल सटिस्फाइड नहीं हूं क्योंकि इंग्लिश में 1 मार्क काट लिया गया है. सोच रहे हैं चैलेंज करने का." **************************************************** इ सब सुनि के हम छगुंता में पड़ि जायत छी...

कर्मविषयक कुछ शास्त्रोक्त सिद्धांत

कर्म के बारे में ठीक-ठीक जानना अत्यंत कठिन है फिर उसके बारे में कुछ कहना तो और भी कठिन है. बड़े-बड़े लोग इसमें चूक कर जाते हैं. अर्जुन तो मोह में आकर चूक कर हीं रहे थे कि भगवान ने उन्हें उबार लिया. लेकिन हमें उस चूक से बचाने के लिए अब उनकी वाणी हीं रह गई है या फिर शास्त्र में यत्र यत्र- तंत्र बिखरे अनमोल श्लोक जिस पर श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक चलने पर हम गड्ढे में गिरने से बच सकते हैं. गीता में भगवान ने इस विषय में पहले हीं कह दिया है -  "गहना कर्मनो गति:". क्या कर्म है क्या अकर्म है या विकर्म है इसका निर्णय करने में विद्वान और कर्म को तत्व से जानने का दावा करने वाले भी मोहित हो जाते देखे गए हैं.  *********************************************** जो बुद्धिमान होते हैं वे बहुत सोच समझकर कोई काम करते हैं. फिर भी इस सम्बन्ध में ठीक-ठीक निर्णय करना कोई आसान काम नहीं है. प्रायः अपनी हीं स्वार्थ सिद्धि की दुर्वृत्ति हमारे उस निर्णय लेने की क्षमता को गड़बड़ा देती है.          मोटे अर्थ में जो कर्म व्यक्ति को बांधता हो उसे करने से बचना चाहिए. ऐसा तब हो सकता है ज...

दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य.

पटना रेलवे स्टेशन के समीप स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर की दीवार पर यदि आपने ध्यान दिया होगा तो निम्नलिखित श्लोक को एक जगह लिखा अवश्य देखा होगा- दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य: रामस्याक्लिष्टकर्मण:। हनूमाञ्शत्रुसैन्यानां निहन्तामारूतात्मज ।। आज इसी श्लोक की चर्चा के बहाने कुछ आनंद प्राप्ति का उद्योग प्रस्तुत पंक्तियों के सहारे किया गया है.  (प्रसंग रामचरितमानस एवं बाल्मीकि रामायण पर आधारित है कतिपय महत्वहीन हेरफेर के साथ) **************************************************** हनुमान ने कहा - माता मुझे बड़े जोर की भूख लगी है. अशोक वाटिका में ऐसे सुंदर-सुंदर पके फलों को देख मेरी क्षुधा और बलवती हो गई है; माते! मेरे मुंह में पानी आ रहा है. आप आज्ञा दें तो मैं इन सुस्वादु फलों को खाकर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर दूं.  सीताजी- बेटा तुम कैसी बातें करते हो? तुम्हें बुद्धि नहीं है? दुष्ट रावण ने इस बाग की रखवाली का जिम्मा अपने राक्षसी सेना की एक विशेष टुकड़ी को सौंपा हुआ है. नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों से लैस वे घोरकर्मा निशिचर रात दिन इस विपिन की रखवाली करते हैं. वे तुम्हें देखते हीं मार डाले...

जीएसटी @५%

*********************************************** आज बाजार में आटा,चावल-दाल,नमक,तेल वगैरह खरीदने हेतु जाने पर लगाए गए "कर" चुभने से तुलसीदासजी की ये पंक्तियां बरबस याद आ गई जिसे मैंने कभी अपने स्वर्गीय पिताजी के मुख से सुनी थी.  *********************************************** बरषत हरषत लोग सब करषत लखै न कोई। तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सन होइ।। ~तुलसीदास(दोहावली). *********************************************** तुलसीदासजी कहते हैं कि सूर्य जब इस धरा से जल को खींचता है,तब किसी को पता भी नहीं चलता, परंतु जब बरसाता है,तब सब लोग हर्षित हो जाते हैं. इसी प्रकार प्रजा को बिना सताए (यहां तक कि कर देने में प्रजा को कुछ भी कष्ट न हो; इतना सा उगाह कर समय पर उसी धन से व्यवस्थितरूप से प्रजा का हित करने वाला) सूर्य सरीखा राजा प्रजा को सौभाग्य से ही मिलता है. ***********************************************  पता नहीं ऐसा वीर एवं धुरंधर अर्थशास्त्री विश्व में कब जन्म लेगा जो शासन को उन उपायों को खोज कर बता दे जिसमें खाने-पीने की वस्तुओं की कीमत में वृद्धि के बिना भी कराधान सम्भव हो सके.  ...

Some Terms From The Bhagwadgita.

           I have found a number of terms in the Bhagavad Gita.These terms are worth knowing. They have been used by Shri Bhagwan in his discourse with Arjuna towards clearing his mind that was full of doubts. We know that the mind of Arjuna stood deluded when he found that it was none but all his relatives-close or distant whom he was supposed to fight with.            In course of removing the delusion born out of ignorance Lord explained those terms to Arjuna by way of going to define them.  ***************************************************           The following represents the collection of such terms as one may find useful,interesting and in quite some cases self-instructing too. Here we find- 1."योग" **************************************************** Yoga **************************************************** Lord has defined "योग" as "समत्वं योग उच्यते". This समत्वं is being balanced in c...

Mulling "justice" on the occasion of International Day for justice (17th July)

My daughter asked me; What is justice?  I resorted to beating about the bush.I just repeated a number of cliches associated with the term "justice" like "justice delayed is justice denied"," justice hurried is justice buried"," justice should not only be done but it must seem to be done" etc.etc.  But that did not satisfy her.  She told-all these what you are saying may well be the "desirables" or "doables" in respect of justice but what actually is justice?  I had no option but to fumble again.Then  I tried to divert her. I asked- What occurred in your mind to ask this question all of a sudden? Nothing special save that it is 17th July which is observed as International Day for Justice-She said.  It was again a double whammy for me; for I didn't know this fact even.  I said- Ok.Ok. It is a matter of General Knowledge which for years I have not been in touch with. Having found myself perplexed at her query she tried to con...

Twenty-Seven Shlokas of the Bhagwadgita: Their Usefulness for Students.

I should not have endeavoured to write even a word on the Gita for the students as there is already one titled "Bhagwadgita:A Handbook for Students" written by no less than C. Rajgopalachari. That Book of Rajaji is a explanatory exposition of 226 slokas of the Gita. The above-mentioned Book is aimed at acquainting the students with basic understanding of the religion of our fathers, which is the background of all the noble philosophy,art, literature and civilization that we have inherited. Its study enables a student to become a man of wisdom with ample knowledge of philosophy of religion and action alike.  Thus whereas the objective of the Book by C.Rajgopalachari is broader in scope and purpose my instant endeavour is extremely limited.  I propose to select only such slokas as are less philosophical/religious/devotional but more direct in respect of meanings. Moreover; I thought they should seek to address the infirmities born out of immaturity by virtue of young and tender...