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रावण का रथ.

आज विजयादशमी है. मान्यता है कि आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने दसानन रावण का वध कर स्वर्णपुरी लंका पर विजय पाया था. इसी संदर्भ में भावशुद्धि-आत्मशुद्धि के निमित्त एक प्रसंग है जिसका वर्णन गोस्वामीजी ने अपनी कालजयी रचना श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में किया है.युद्धभूमि में श्रीराम केे पास न तो कोई रथ था न हीं युद्ध में तन की रक्षा हेतु कोई कवच या पांव में जूते. वहीं कुलिस के समान कठोर कवच धारण किये तथा हाथों में नाना प्रकार के आयुध से लैस बलशाली रावण बिजली के समान तेज गति से चलने वाले रथ पर घमंडपूर्वक सवार हो भगवान श्रीराम को ललकार रहा था.यह दृश्य देख बिभीषण को बड़ी चिंता हो गयी. अधिक प्रेम होने से उनके मन में संदेह हो गया कि भगवान राम इस रथारूढ़ रावण पर कैसे विजय प्राप्त कर सकेंगे. कहां बिजली की फूर्ति से चलकर बवंडर उत्पन्न करता रावण का रथ और कहां युद्धभूमि में उनके स्वामी भगवान राम जिन्हें न कोई रथ न कवच न पादत्राण(जूता)!अधीर बिभीषण श्रीरामजी के चरणों की बंदना कर मोह एवं स्नेह के वशीभूत हो बोले- हे नाथ! मुझे बड़ी चिंता हो रही है. आपके पास युद्ध के लिये आवश्यक न कोई रथ है न ...

विद्या और शिक्षा में अंतर

शिक्षा और विद्या में अंतर करना जरा मुश्किल है, क्योंकि यह अंतर वही करने की पात्रता रखता है जो शिक्षित होने के साथ-साथ विद्यावान भी है. और विद्यावान को ऐसा करना जरूरी नहीं है. वह अंतर क्यों करे! विभेद करना अविवेकता की पहचान है जो हम जैसे व्यक्ति बड़े हीं चाव से न केवल करते हैं बल्कि उसे लिखते भी हैं. अस्तु.  जिस प्रकार जानकारी का संग्रह शिक्षा नहीं है उसी प्रकार शिक्षित होने का अर्थ यह नहीं है कि ऐसा व्यक्ति विद्यावान भी हो हीं. शिक्षा से जीवन को सुंदर एवं सुखमय बनाया जा सकता है किन्तु इससे अज्ञानरुपी अंधकार का नाश नहीं होता. यदि ऐसा होता तो सामाजिक मान्यताप्राप्त उच्चशिक्षित-प्रशिक्षित लोग जिसे आमजनता गौरव से देखती है, कुछ ऐसा न कर बैठते जिससे समाज में हताशा और निराशा का संचार होता हो. कभी ये शिक्षित-प्रशिक्षित किसी घपले-घोटाले या व्यभिचार-बलात्कार में संलग्न हो अखबार की सुर्खी बटोरते हैं तो कभी ये सफलता के शीर्ष पर आकर अपनी जीवनलीला को ही विषादबस अकस्मात समाप्त कर देते हैं. उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है. इसे अंधकार ही तो कहेंगे.  यह विद्या है न कि शिक्षा जो इस अंधकार का ना...

Model Code of Conduct(MCC) for the coming Bihar Assembly Elections 2020.

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This is an oral presentation by me on the subject of Model Code of Conduct(MCC) for the coming Bihar Assembly Elections 2020.                                                                                       Rajeev Ranjan Prabhakar,                                                                   Additional Collector-cum-District PGRO,Darbhanga                                                                           ...

अपने भीतर के शत्रुओं से लड़ने से ही आत्मविजय का द्वार खुलता है.

मानव मन में सभ्य और विकसित के साथ ही आदिम, पुरातन एवं शिशु भी उपस्थित रहता है. हमारे अन्दर जो जड़ता और बुराई है, उसके विरुद्ध हमें संघर्ष जारी रखना चाहिए. हमारे समस्त शत्रु हम...

साधन चतुष्टय

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, उपरोक्त का आशय चार साधनों के समूह से है. ये कौन से साधन हैं जो मनुष्य को बन्धन से मुक्त करते हैं-इसे आचार्य शंकर ने स्वरचित ग्रंथ 'विवेक-चूड़ामणि' मे...

What should education mean to us?

We take recourse to policy making to address our needs that always keep on changing. I feel those behind the new education policy must have felt some thing amiss in the present education system. The flaws as perceived by them apropos of the existing policy might have prompted them to go for a new one. Truly speaking, I don't know for certain what exactly are these flaws as perceived by them and in what way the new one seeks to eliminate or rectify them to say the least. Nevertheless I should have reason to believe that since any policy is formulated by the best minds employed by government in power, the new education policy should fulfill the need and expectations of the people of India in general and stakeholders in particulars. Be what it may, but I cannot desist myself from saying that 1.the basic purpose of education is character building in ways more than one.           "सा विद्या ...

आत्मज्ञान का पंख-एक रूपक

*आत्मज्ञान का पंख* मनुष्य को एक पंख उग आया - विज्ञान का पंख. उसने जोर लगाया और आकाश में उड़ गया. उसके आश्चर्य की सीमा न रही. सभी के पंख हो जाने से सभी को स्वयं के  महामानव-महाशक्ति ...

Remembering Lord Vishnu.

The effect of simply remembering with devotion the Name of the Lord of lords God Sri Hari Vishnu is miraculous for those who believe in Him with unflinching faith and devotion. Just remember Him with faith and devotion to depend solely on Him in all the worldly pursuit enjoined by action called duty; It has liberating effect from the endless coil created out of ceaseless series of birth-death-rebirth and so on.                         On the ground level; it enables one to pass through the chain of adversities thrust upon by way of प्रारब्ध with no loss of mental peace.                           And Mental Peace! I hold; it is the most precious possession of one's life. It is "not negotiable" for ...

Happiness Explored

नास्ति  विद्यासमं चक्षुर्नास्ति सत्यसमं तप:। नास्ति रागसमं दु:खं नास्ति त्यागसमं सुखम्।।                                            (नारदगीता१/५) विद्या के समान कोई ने...

देवर्षि नारद का अभिमान भंग

देवर्षि नारदजी भगवान के अन्यतम भक्त थे किन्तु उन्हें भी भगवान की माया ने प्रताड़ित नहीं किया हो;ऐसा नहीं है. हालांकि इसके साथ ही यह भी सत्य है कि सच्चे भक्त को मोहाभिमान से बचाना भी भगवान् का हीं जिम्मा है.यह उनका प्रथम कर्त्तव्य है. हम सभी जानते हैं कि कैसे एक बार मुनि को यह अभिमान हो चला कि वे कामविजयी हो गये हैं और अभिमानवश इसकी चर्चा उन्होंने कैलाश जाकर भगवान शंकर से की थी. कामारि भगवान् शंकर ने तब मुनि को यह नेक सलाह जरूर दिया कि- 'मुनिवर! अपने इस कामविजयविषयक प्रसंग की चर्चा भूल से भी करूणा-वरूणालय परमकौतुकी श्रीहरि से नहीं कीजियेगा;वे पूछे तब भी नहीं.'                                          किन्तु देवर्षि के अभिमान का परिमाण इतना हो गया था कि नारद स्वयं को संयत नहीं कर पाये.सलाह के विपरीत उन्होंने अपने कामविजयगाथा का बखान जाकर विश्वपालक भगवान विष्णु से कर हीं दिया.नारदजी का ...

जीवात्मा और परमात्मा में क्या भेद है?

सबसे पहले तो क्षमा याचना कि इस विषय पर कुछ भी बोलने-लिखने में मैं स्वयं को सर्वथा अनधिकारी मानता हूं.कारण भी प्राय: स्पष्ट हीं है;चंद धार्मिक पुस्तक पढ़ कर एवं उसी का आश्रय ल...

आचार्य श्रीशंकर विरचित प्रश्नोत्तररत्नमालिका से व्यावहारिक बोध करानेवाली सूक्तियां.

आदिशंकराचार्य को कौन नहीं जानता! वे जीवनमुक्त सन्यासी थे.ज्ञान के माध्यम से अपने विवेक को जागृत कर मोक्ष की चाहना रखनेवालों के लिए जहां एक ओर उन्होंने गीताभाष्य,विवेकचू...

बनावटी हितैषी से बचें

प्रिय आलोक, सबसे पहले मैं आपको ये बताना चाहता हूं कि आपके प्रश्न मुझे कहीं से बोझिल नहीं करते; बल्कि ऐसे प्रश्नों के उत्तर की खोज करना व्यक्ति के life skill को और विकसित हीं करता है. स...