बनावटी हितैषी से बचें

प्रिय आलोक,
सबसे पहले मैं आपको ये बताना चाहता हूं कि आपके प्रश्न मुझे कहीं से बोझिल नहीं करते; बल्कि ऐसे प्रश्नों के उत्तर की खोज करना व्यक्ति के life skill को और विकसित हीं करता है.
सामान्यत: बिना दीर्घकालिक सम्पर्क के किसी की  प्रकृति के बारे में कोई अनुमान लगाना बहुत मुश्किल काम है. बनावटी लोग के संदर्भ में तो यह और भी कठिन है. वे अपनी कुटिल मंशा को अपने नाटकीय कौशल से छिपा पाने में इतना दक्ष होते हैं कि सरल स्वभाववाले  उन पर सहज ही विश्वास कर अपनी समस्या या और भी कई गोपनीय मनोभावों को उस व्यक्ति के सामने रख देते हैं. कहने की आवश्यकता नहीं है कि बाद में उन्हें अपने इस सीधेपन पर भारी अफसोस/दुःख होता है जब वे पाते हैं कि उनके कष्ट,क्लेष या राज को वही व्यक्ति जिस पर उसने विश्वास किया, दूसरों के बीच मिर्च मसाले के साथ उस बात का मखौल उड़ा रहा होता है.हालांकि ऐसे लोग अंततः expose हो हीं जाते हैं तथा ऐसे लोग से दूसरे धीरे धीरे दूरी बना लेते हैं. ऐसे लोगों के संदर्भ में हीं गोस्वामीजी ने मानस में कहा है-
उघरहिं अंत न होइ निबाहू ।
कालनेमि जिमि रावन राहू।।
अस्तु.
इस समय मुझे अंग्रेजी में कही गई एक पंक्ति भी याद आ रही है-
Be Courteous to all, intimate with a few but let those be well tried before you repose faith in them to share your secrets or personal problem.
लेकिन उपरोक्त आपके उस प्रश्न का उत्तर कदाचित नहीं है जिसमें आपने पूछा कि बनावटी लोगों की पहचान कैसे की जाय.
इस सम्बन्ध में मैं ये सोचता हूं कि इस प्रकृति के लोग यदि आपसे सहानुभूतिपूर्ण बातें करते हैं
१. तो पहले ये देखें कि उनकी रूचि कहीं आपके व्यक्तिगत जीवन के उन पहलुओं को तो जानने में नहीं है जिसका कि आपके इस वर्तमान समस्या से कोई लेना देना नहीं हो सकता.
२.ऐसे लोग प्राय: सूक्ष्मतापूर्वक हीं सही यदि आपके सामने किसी दूसरे की हंसी उड़ाते देखे जाय तो समझना चाहिए कि वह आपकी बातों का भी दूसरे के सामने gossip बनायेंगे. Thumb rule यही कहता है.
३. ऐसे लोगों का eye movement को जरूर वाच करना चाहिए. मेरा मानना है कि व्यक्ति की आंखें उसके  चरित्र के बारे बहुत कुछ बता सकती है. कहा गया है-Face is the index of mind. लेकिन यह आंख हीं है जो facial expression को सीधे सम्प्रेषित कर देता है. Fake people are not generally seen to see eye to eye.हांलांकि इसके कुछ अपवाद भी हो सकते हैं जैसे जिसे हम बहुत आदर देते हैं या जिनसे डरते हैं तो उनसे आंख में आंख मिला कर बात करना गलत समझा जाता है.ये अलग है कि मैं यह मानता हूं कि genuine person को हमेशा विनम्रतापूर्वक आंख से आंख मिलाकर हीं बात करना चाहिए.
४.ऐसे बनावटी लोग किसी पर आफ़त या समस्या आने पर सहानुभूति का यदि overdose देते हुए पाये जायें तो सतर्क हो जाना चाहिए.  सहानुभूति की आड़ में या तो वे प्रताड़ित करते हैं अथवा आपको जरूरत से ज्यादा खोलना(open) चाहते हैं. इनके पास आपके problem का solution कम sympathy ज्यादा रहता है.
५. किसी व्यक्ति के बारे में बिना सम्पर्क में आये बहुत कुछ इस तरह से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि वह अपने से कमजोर(अशक्त) से, अपने से उम्र में छोटे से, अपने से उम्र में बड़े (वृद्ध) से किस प्रकार पेश आता है; ताकतवर अथवा अपने Boss से तो सभी बहुत  विनम्रता से व्यवहार करते हैं.
                        एक बात यह भी है कि आजकल बहुत कम लोग किसी का सीधे सीधे मखौल उड़ाते हैं, बल्कि यह काम बहुत हीं महीन तरीके से करते हैं.इसलिये आवश्यक है कि पहले उस व्यक्ति का taste जाना जाय. देखना चाहिए कि उसे किस तरह की बातें करने में मन लग रहा है. वह व्यक्ति अपने भाई, पिता, दोस्त इत्यादि के संदर्भ में कैसी बातें करता है, उसका दूसरे के प्रति सम्बोधन कैसा है,आदि. सच कहिए तो निंदा सुनने में प्राय: सभी को अच्छा ही लगता है.चुप रह कर भी लोग निंदा सुनना पसंद करते हैं. निंदा रस में अजीब स्वाद होता है.यह भी किसी न किसी तरह से मखौल उड़ाना ही कहा जाएगा. Educated लोग बहुत होशियारी से इस निंदा रस का आनन्द लेते हैं.
इस सम्बन्ध में फिलहाल मैं इतना हीं सोच पा रहा हूं, यदि इससे आपकी जिज्ञासा का कुछ समाधान हो पा रहा हो तो मेरे लिए यह संतोष का विषय होगा.
शेष कुशल है,अपना ख्याल रखना.कोरोना के मद्देनजर यह और भी आवश्यक है.
राजीव रंजन प्रभाकर.
09.05.2020.

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