भारतीय संस्कृति और संस्कार
हमारी सभ्यता,संस्कृति और संस्कार किसी महासागर से कम नहीं. कोई भी इसका वर्णन नहीं कर सकता न हीं इसका थाह पा सकता है बल्कि युक्ति के सहारे मात्र इसकी झांकी प्राप्त की जा सकती है.
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इसी झांकी के साक्षी बने महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोबिंद के पैत्रिक गांव परौंख(जिला -कानपुर देहात; उ.प्र.)के लोग और उनके साथ-साथ प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से समस्त भारतीय सहित सम्पूर्ण वैश्विक समुदाय जब उन्होंने देखा कि राष्ट्र के प्रथम नागरिक श्री रामनाथ कोबिंद ने मानवनिर्मित प्रोटोकॉल को तोड़ सनातन संस्कृति निर्मित प्रोटोकॉल के वशीभूत होकर अपने गांव परौंख पहुंचे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की खुद अगवानी की.
ये है भारतीय सनातन संस्कृति और संस्कार!
यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कार और संस्कृति को नियमों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है.
वरना एक राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अगवानी भला क्यों करें?
भगवद्गीता में भगवान ने कहा है-
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।।
श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं.वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, दूसरे मनुष्य उसी के अनुसार आचरण करते हैं.
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आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को तो कई अवसर देश और दुनिया देख चुकी है कि उनका व्यक्तित्व कितना उदार है जो वे दूसरे को बड़ा करने के लिए स्वयं को कैसे सहजता से छोटा बना लेते हैं जिसमें उनका सुपात्र व्यक्तियों के पैर धोना तक शामिल है.
उनका जगजाहिर मातृप्रेम हम सभी के लिए अनुकरणीय है और विशेष रूप से विद्यार्थियों के लिए तो जीवन में उतारने योग्य है. जहां तक मेरी मान्यता है विद्यार्थी के लिए यह कल्पवृक्ष के समान है तथा उसके सफल जीवन की गारंटी है जो उसी तरह सही है जितना दो और दो का योगफल चार होता है.
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यही कारण है कि समाज में जिस मनुष्य को लोग श्रेष्ठ मानते हैं उस पर एक विशेष नैतिक जिम्मेदारी रहती है कि वह अपने आचरण पर सूक्ष्मता से निगरानी रखे ताकि जहां तक सम्भव हो अच्छे दृष्टांत के रूप में लोगों को प्रेरित कर सकें तथा वह ऐसा कोई आचरण तो कदापि न करे तथा ऐसी बात भी न कहे जो लोक-मर्यादा अथवा शास्त्र मर्यादा के विरुद्ध हो.
बड़े लोगों पर मेरे विचार से यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है जिससे बड़े लोग प्रायः अनजान हीं देखे पाये जा रहे हैं.
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शाखाचंद्रन्याय का आश्रय लेकर इस गूढ़ विषय पर मैंने जो कुछ लिखने की अनधिकार चेष्टा की है उसमें यदि कोई दोष हो तो विज्ञजन उस पर ध्यान नहीं देंगे.
अनधिकार इसलिए कि कोई व्यक्ति तब ही कुछ कहने का अधिकारी है जबकि उसका स्वयं का आचरण भी वैसा हो.
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राजीव रंजन प्रभाकर
०४.०६.२०२२.
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