हनुमान चालीसा
हनुमान चालीसा
****************************************************
भारत वर्ष में ऐसा कौन अभागा होगा जो हनुमान चालीसा के बारे में नहीं सुना हो? बल्कि मेरी तो ऐसी धारणा है कि प्रत्येक हिन्दू ने कभी न कभी अपने जीवन में इसे अवश्य पढ़ा है और अधिकांश को तो यह चालीसा पूर्णरूपेण नहीं तो कम से कम अधिकांश मे याद अवश्य है; और इसमें कोई अचरज की बात भी नहीं है.
आज के इस घोर भोगपरायण वातावरण में भी हनुमानजी के प्रति आस्था में रंचमात्र कमी नहीं देखी जा रही है और यह हनुमानचालीसा हीं है जो इस आस्था के प्रकटीकरण का अपरिहार्य एवं प्रायः एकमेव साधन है.
क्या स्त्री क्या पुरुष, क्या बालक क्या बालिका;क्या बच्चा क्या जवान क्या बूढ़ा; क्या मूर्ख क्या पंडित;क्या आस्तिक क्या नास्तिक; क्या आसक्त क्या विरक्त; क्या भोगी क्या योगी; क्या अभक्त क्या भक्त;क्या आर्त क्या अर्थार्थी क्या जिज्ञासु क्या ज्ञानी ; क्या वैष्णव क्या शैव क्या शाक्त; क्या नैष्ठिक क्या उपकुर्वाण; क्या गृहस्थ क्या संन्यासी सभी ने कभी न कभी हनुमान चालीसा अवश्य सुना या पढ़ा है-ऐसा मैं विश्वास से कह सकता हूं. क्या उत्तर क्या दक्षिण; क्या पूरब क्या पश्चिम; सम्पूर्ण भारत में हनुमानजी महाराज की यह चालीसा की जन-जन में जितना प्रतिष्ठा और व्यापकता है वह अपरिमेय है.
****************************************************
यदि हनुमान चालीसा की प्रतिष्ठा एवं व्यापकता इतनी है तो यह अकारण नहीं है.
यदि आपकी आस्था हनुमानजी में है तो इसे आप आगे पढ़ सकते हैं अन्यथा इसे आगे पढ़ना छोड़ भी सकते हैं.
उपर जितना हनुमान चालीसा के बारे में लिखा गया है श्रद्धा-विश्वास रहित पुरुष वा नारी के लिए उतने तथ्यमात्र का हीं दिग्दर्शन पर्याप्त होगा.
****************************************************
हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास प्रणीत है. जिसके रचयिता तुलसीदास हों उस रचना को लोकप्रसिद्ध होने से भला कौन रोक सकता है? इस कलियुग में तुलसीदास जी जैसे ज्ञानी, अनन्य भक्त, विरक्त, संन्यासी जो कह लीजिए;शायद हीं कोई हुए हैं.
न भूतो न भविष्यति.
कलिकाल के वाल्मीकि कविकुल तिलक विरक्त भक्त गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह हनुमान चालीसा कल्पवृक्ष के समान है.
तुलसीदास जी हनुमान चालीसा को कोई भी पढ़ सकता है. किसी भी काल में अथवा किसी भी अवस्था में पढ़ सकता है.
इसके श्रद्धा विश्वास पूर्वक पढ़ लेने मात्र से व्यक्ति सिद्ध हो जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि हनुमानजी के पास आठो प्रकार की सिद्धि एवं नवो प्रकार की निधि है. और यह वर उन्हें माता सीता ने उन पर प्रसन्न होकर दिया था.
{अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस वर दीन्ह जानकी माता}
तुलसीदास जी कहते हैं कि मेरी बात चाहे आप न भी माने किंतु इसके साक्षी गौरीशंकर भी हैं;आप उनसे पूछ सकते हैं.
{जो यह पढ़े हनुमान चलीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा}
यदि कोई इसे श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक सौ बार पढ़ ले तो वह संसारसंसीमित बंदी हो या कारासंसीमित, मुक्त हो जाएगा.
और बद्ध होने का दुःख तथा मुक्त होने का सुख जिसे तुलसी दास जी ने महासुख कहा है,का वर्णन शब्दों में सम्भव नहीं है.
{यह सत बार पाठ कर कोई छूटै बंदि महा सुख होई}
अब ये तो अनुभव की बात है कि जिसके पास जो रहता है वह वही दे सकता है. यदि आपकी कोई उपेक्षा करता है; आपसे क्रोध करता है;आपका तिरस्कार करता है तो यह मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि उसके पास देने के लिए वही है जो वह दे रहा है. जाहिर है जिसकी झोली में जो रहेगा उससे भिन्न वह दे हीं नहीं सकता.
किन्तु हनुमानजी की झोली में अष्टसिद्धि और नवनिधि है. वे अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता हैं. वे ज्ञान और गुणों के सागर हैं.वे बल के धाम हैं.
हनुमान चालीसा के पढ़ लेने मात्र से भूत प्रेत पिसाच को जैसे करंट लग जाता है. वो महावीर हनुमान का नाम सुनते हीं ऐसे भागते हैं जैसे पुलिस को देखकर चोर.
{भूत पिसाच निकट नहिं आवै महाबीर जब नाम सुनावै.}
हनुमान चालीसा का पाठ रोगनाशक और पीड़ाहारी है.
{नासै रोग हरै सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा}
यदि मन को अपवित्र विचार घेर रहे हों तो ये हनुमान चालीसा तत्काल उसे कर्म रूप में परिवर्तित होने से रोक देता है.
क्योंकि हनुमानजी हैं हीं सुमति के साथी. जब हनुमानजी आपके साथ हों तो कुमति का फेन स्वत: सुमति के सागर में विलीन हो जाता है.
{महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी}
यदि आप विद्यार्थी हैं तब तो हनुमान चालीसा से बड़ा आपका कोई सहायक हो भी नहीं सकता. क्योंकि हनुमानजी स्वयं विद्यावान,गुनी और बुद्धि और चातुर्य से सम्पन्न हैं.इनके सान्निध्य में यदि आप भी बुद्धिमान और विद्यावान हो जाते हैं तो इसमें आश्चर्य हीं क्या है?
{विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर}
जहां तक संकट से छुटकारा की बात है इसके तो हनुमानजी विशेषज्ञ हैं. जब भगवान श्रीराम को ये संकट से छुड़ा सकते हैं तो हम मनुष्य क्या चीज़ हैं.
ये हनुमान हीं थे जिन्होंने धराशाई लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाकर युद्ध भूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ आर्त श्रीराम को संकट से उबार लिया और लक्ष्मण की प्राणरक्षा के हेतु बने. दूसरे देवता तो सहायता के लिए सवारी खोजते हैं और अपने हनुमानजी हैं कि डायरेक्ट पहुंचते हैं;उन्हें कोई सवारी या वाहन चाहिए हीं नहीं.
{संकट से हनुमान छुड़ाबै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै}
जहां तक उपकारी की बात है, हनुमानजी से बड़ा उपकारी कौन हो सकता है. इनकी सलाह मानकर तो देखिए. जान लीजिए इनके सलाह से हीं सुग्रीव का निर्वासित जीवन का न केवल अंत हुआ बल्कि उन्हें खोया राज्य भी प्राप्त हुआ. रावण से सदा भयभीत रहने वाला विभीषण लंकेश बन गए तो यह उनका हनुमानजी के प्रति आदरबुद्धि का हीं परिणाम था. तात्पर्य यह कि हनुमानजी के सान्निध्य में सुमति का प्रादुर्भाव होना है. यह उसी प्रकार सच है जैसे सूर्य को मेघ बहुत देर तक ढ़क के रख हीं नहीं सकता.
{तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राजपद दीन्हा
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना लंकेस्वर भए सब जग जाना}
सबसे बड़ी बात ये है कि रामदरवार में प्रवेश बिना हनुमानजी के अनुमति के हो हीं नहीं सकता. भगवान श्रीराम ने इन्हें अपने द्वार का रखवार नियुक्त कर रखा है. हनुमान चालीसा में इसकी स्पष्ट घोषणा करता है.
{राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे}
आप लाख छटपटा लीजिए बिना हनुमान जी को प्रसन्न किए आप भगवान श्रीराम के प्रिय हो हीं नहीं सकते हैं. आपका श्रीराम के दरवार में प्रवेश हनुमानजी के इच्छाधीन है.
तुलसीदासजी ने सबसे पहले इस बात को जान लिया था, इसलिए उन्होंने पहले हनुमानजी को हीं प्रसन्न करने में अपनी भलाई समझी.
क्योंकि
{तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुःख बिसरावै}
और इस तरह गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी हनुमानजी की हीं सहायता से वह सब प्राप्त कर लिया जो आज तक कोई नहीं प्राप्त कर सका.
****************************************************
जै प्रभंजनजाया हनुमान की
सुनते हैं जबतक आपको कोई आपके power की याद नहीं दिलाता है तब तक आपको स्वयं अपनी शक्ति और विशेषता का ज्ञान नहीं रहता.
इसीलिए ये रचना आपको समर्पित है.
हम पर भी प्रसन्न होइए प्रभु.
****************************************************
राजीव रंजन प्रभाकर
०१.०६.२०२२.
Comments