चलते चलिए;चलते चलिए.

गच्छन् पिपिलिको याति योजनानां शतान्यपि । अगच्छन् वैनतेयः पदमेकं न गच्छति ॥

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 भावार्थ :
लगातार चल रही चींटी सैकड़ों योजनों की दूरी तय कर लेती है, परंतु न चल रहा गरुड़ एक कदम आगे नहीं बढ़ पाता है.
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        इसलिये चलते रहिये. चलते रहिये. 
क्या घोर घाम और क्या शीत!  
         पथरीले,कटीले,रपटीले,सर्पीले,नुकीले (किंतु कभी-कभी चमकीले भी)रास्ते को नापते चलें. 
                 चरैवेति चरैवेति.
मंजिल का क्या है? 
जब मिलना होगा वह खुद चल के चली आयेगी.
                                                राजीव रंजन प्रभाकर.
१८.०७.२०२१.

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