हे अनंत!

हे अनंत! 
तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ;
तू है महासागर अगम, मैं एक धारा क्षुद्र हूँ.
तू है महानद तुल्य तो मैं एक बूँद समान हूँ;
तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ.
                            - गया प्रसाद शुक्ल'सनेही.

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