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Same Sex Marriage: the issues involved therein.

Homosexuality,though not ever unexisting, is looked down upon in our society. It was decriminalized only a few years ago. Those who support this practice have proved in the court that being homosexual is an urge just in the same way the urge is that of being hetero sexual. So by no means it is a queer behavior on part of one who practices homosexuality to satisfy one's sexual & emotional needs. The consistent persistence with organized movement of LGBT community bore fruits in the way that homosexuality is no more a criminal offense. That is, it stands decriminalized now. ******************************************************* The story doesn't end here. Their demand now extends to allowing same sex people to marry one another. How far this demand despite being justifiable is justiciable is under probe by the constitutional bench of the apex court.  ******************************************************* In so far decriminalization is concerned one thing must be kept in min...

बुद्धिमानी या भगवत्कृपा.

इस सिस्टम में बहुत दांव-पेंच है; फिर भी अभी तक आप इसके शिकार नहीं हुए हैं या उस सिस्टेमेटिक दांव-पेंच से निकल जा पा रहे हैं तो इसे आप इसे अपनी बुद्धिमानी का परिणाम कम बल्कि ऊपर वाले की कृपा ज्यादा समझिए.  **************************************************           सब मान-अभिमान,ज्ञान-विज्ञान,विधान-संविधान इसी धरा पर धरा का धरा रह जाता है और जो होना होता है,वह या तो धर-धराकर हो जाता है या ऐसा होता है कि आपको पता भी नहीं चलता है जब वह हो रहा होता है. **************************************************           उम्र बढ़ने के साथ यदि आप में इस अहसास की वृद्धि होती मालूम दे रही हो कि "मेरे 'हाथ' में कुछ भी नहीं है" तो समझिए आप परिपक्व हो रहे हैं.  यहीं से इस शुभ भाव का उदय होना प्रारम्भ होगा कि "सब कुछ उसी के 'हाथ' में है".     राजीव रंजन प्रभाकर.           २७.०४.२०२३.

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त

विभूति नारायणजी गांव में रहते थे. अपने जमाने में मेरिट से पढ़ाई कर वे सेकेंड डिवीजन से बीए भी पास किए थे; किन्तु चाह कर भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सके. एक दो जगह लिखित परीक्षा पास करने पर इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आया. इंटरव्यू देने के बाद कमरे से बाहर चपरासी कह रहा था-अरे ई सब नाटक हो रहा है. सब सीट पर बहाली पहले से फिक्स है.  बात जो भी हो; नौकरी नहीं मिल पाने पर उनके पिताजी ने कहा- कहॉं नौकरी के चक्कर में भटक रहे हो. गाॅंव में हीं हमारे खेती-किसानी में हाथ बटाओ. तब से गांव में हीं रह कर खेती किसानी करने लगे. धीरे-धीरे उसी में रम गए और खुश रहने लगे.शादी तो पढ़ते हीं समय हो गई थी और जैसा कि स्वाभाविक है शादी के साल भर में हीं एक लड़का भी पैदा हो गया. विभूति बताते हैं कि उनके पिताजी ने हीं उसके लड़के का नाम सुफल नारायण रखा था. तब मां-बाप अपने बच्चे का नाम तक अपनी इच्छा से नहीं रख सकते थे.अब जमाना भले कुछ और हो गया हो.   सुफल बड़ा होता गया. कभी-कभी जब मन करता तो पूछ बैठते-बेटा ठीक से पढ़ रहे हो न? इसके आगे फिर कुछ नहीं पूछते.  अवकाश के क्षणों में जब पति, पत्नी और बे...

ग़लती और माफी

आज के दौर की सबसे अजीब बात ये है कि हमें अपनी भूल या ग़लती का अहसास होने के बावजूद हमारा अहंकार हमें माफी मांगने से रोक देता है. माफी मांगना हम अपनी तौहीन समझते हैं. नुकसान झेलना ज्यादा मुफीद मालूम पड़ता है. शायद पहले ऐसा नहीं होता था. हमें पता होना चाहिए कि दिल की गहराई से मांगी गई एक छोटी सी माफी हमें स्वयं को पहले की अपेक्षा न केवल ऊंचा उठा देती है बल्कि यह हमें जाने-अनजाने में हुई अपनी भूल या ग़लती से उत्पन्न प्रतिकूलता से रक्षा भी करती है.              क्षमा मांग कर हम अपने भीतर के अहंतत्व का परिष्कार करते हैं; सम्बन्धों को सहज बनाते हैं.              लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि हम गलती करते रहें और माफी मांगने की आदत को अपने स्वभाव में शामिल कर निकलते बनें.तब इसे apology driven strategy हीं कहा जाएगा. **************************************************                                             ...

मोर्निंग वाक

मोर्निंग वाक ******************************************************* हम- देखू; अहाॅं भोर में टहलल करु. आलस करनाय नीक गऽप नहिं. ओजन सेहो अहाॅं केर बढ़ल जा रहल ये. अहाॅं के हमर गऽप नै सोहाय ये तऽ कम से कम अप्पन स्वास्थ्य केर तऽ चिंता अहाॅं के अवश्य करऽक चाही. ओ(तमैकत)-कि कहलिय? हम्मर weight बढ़ल जाय छै?अहाॅं अप्पन ओजन'क चिंता करु. बुझलिय नै! हमरा बेसी ज्ञान नै दिय.  हम- हम अप्पन ओजन'क चिंता करैत छी तैं न हम भोरे उठि टहलाब'क लेल निकैल जायत छी.अहूं टहल'ल करु. ओ- हमरा पास कोनो अहाॅं जों कऽ टहलै वला जूत्ता अछि जे हमहूॅं अहाॅं जों कऽ मोर्निंग वाक लेल वाकिंग शू पहिर कऽ छमैक कऽ घर से निकलू. हम-अच्छा इ बात. हमरा एकर तऽ ख्याले नै छल. आइये सांझ में आफिस से घूरैत काल हम अहाॅं लेल सेहो एकटा स्टेंडर कम्पनी के लेडीज वला वाकिंग शू नेने आयब. ******************************************************* हम- उठू नै ये,छ बाजि गेल. आब तऽ अहाॅं लेल जूत्तो आबि गेल. छतो पर कम से कम टहलय नै जायब कि? ओ-नै हम नै जायब. अहाॅं जाउ अपन स्वास्थ्य बनाबऽ लेल. दोसर दिन- हम-उठू नै. आइयो नै टहलै जाय के मोन ये कि?...

Apropos of tact or talent.

It was a usual cellphonic conversation with my daughter who lives away from me in the course of her studies.  My daughter asked me. Papa! Which is more important? Tact or talent? I answered with least hesitation- Presentation is very important. It matters considerably in one's success or failure. ******************************************************* Whereas presentation in matters of conversation/communication is more a matter of skills than knowledge, it is knowledge that has an upper hand over skill in respect of writing.  A person proficient in presentation skills knows how well to hide or compensate for one's deficiency in knowledge. He is expert in using knowledge to his advantage. But where you are judged by your mere writing,a good presentation without an element of knowledge may be misleading.Without content,it serves as a ruse. At best it's a paper flower sans fragrance.  It is not unusual to see an unsuccessful one yet being meritorious but devoid of presentat...

सबहिं नचावत राम गोसाईं

सबहिं नचावत राम गोसाईं ****************************************************** जरा स्वयं पर और अपने आस-पास चल रहे गतिविधि यों पर तात्विक एवं अर्थपूर्ण दृष्टि डालें. ****************************************************** कहीं दिन है तो कहीं रात कोई जाग रहा है तो कभी सो रहा है. कोई हॅंस रहा है तो अगले दिन रो रहा है. कोई ख़ुशी से निहाल है तो अगले हीं पल क्रोध से कठोर वचन बोले जा रहा है. कोई कूद रहा है तो दूसरे दिन कराह रहा है  कोई गप कर रहा तो कुछ देर बाद झगड़ रहा है. अपने बच्चे को कोई दुलार रहा है तो अगले हीं पल डांट या पीट दे रहा है. कोई मंदिर जा रहा है तो कोई मस्जिद. कोई गुरूद्वारा तो कोई गिरजाघर. कोई खा रहा है तो कोई खिला रहा है. कोई डाकू साधु बन गया है तो कहीं वही साधु डाकू. कोई व्यास गद्दी पर बैठ "ब्रह्म सत्य: जगत मिथ्या" जैसी बातें कह प्रवचन दिए जा रहा है तथा वही कुछ देर बाद पर्दे के पीछे से चढ़ावा में आए रूपए का सख्ती से हिसाब ले रहा है. न जाने और भी क्या क्या कर रहा है. कोई जा रहा है तो कुछ देर बाद लौट रहा है. कोई महल में रह रहा है तो कोई झोंपड़ी में. कोई किसी को"दौ...

**Frequently Asked Questions**. (बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम,2015)

बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार  अधिनियम,२०१५.                 *प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न*       **(Frequently Asked Questions)**                             (FAQs) बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम,२०१५ एवं बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार नियमावली,२०१६ में वर्णित प्रावधानों तथा इस आलोक में सर्वजन की जानकारी हेतु सरकार द्वारा प्रकाशित मार्गदर्शिका में परिवाद दायर करने एवं उसकी सुनवाई से सम्बंधित दिशानिर्देश दिए गए हैं.   चूंकि यह अधिनियम अपेक्षाकृत नया है; अतः इसकी समुचित जानकारी हेतु इसका प्रचार-प्रसार अधिक से अधिक होना वांछनीय है.            आमजन सहित सरकारी अधिकारी,लोक प्राधिकार को इस अधिनियम के सम्बन्ध में अभीष्ट जानकारी दिये जाने के उद्देश्य से उन प्रावधानों एवं दिशानिर्देशों को प्रश्नोत्तर रूप में दिया गया है.            इस व्यवस्था से लाभ उठाने में रूचि रखने वालों के लिए यह प्र...

"मैं" और मेरा "मन"

मुझे देर हो गई है. बहुत जरूरी काम से जाना है. पहले से यात्रा की कोई योजना नहीं थी. तुरंत ट्रेन पकड़ना है.किसी शुभचिंतक ने बताया अमुक ट्रेन का अभी समय हो चला है. जल्दी कीजिए. मैं तुरंत स्टेशन की ओर चल पड़ता हूं.यदि ट्रेन समय पर चल रही होगी तो शायद हीं पकड़ पाऊंगा.                "मन" है कि ट्रेन लेट चल रही हो ताकि मैं उसे पकड़ सकूं. प्लेटफार्म पर पहुंचते-पहुंचते ट्रेन खुल जाती है. ट्रेन बिल्कुल समय से चल रही थी. **************************************************** मैं जहां गया था वहां से मुझे अब वापस लौटना है. पिछले अनुभव से सबक लेकर मैं समय पर आकर ट्रेन में अपना स्थान ग्रहण कर चुका हूं.              "मन" है कि ट्रेन बिल्कुल समय से खुले.जरा भी लेट न हो. ट्रेन है कि चल हीं नहीं रही. पता चला आगे ट्रैक में कुछ खराबी आ गई है.ठीक होने में करीब एक घंटा लग सकता है तब चलेगी. ****************************************************** ****************************************************** मित्रों! दोनों स्थितियों में परिस्थितिय...

महादेव बाबू का बजट एक्सरसाइज.

महादेव बाबू का बजट एक्सरसाइज. ******************************************************* १ तारीख को महादेव बाबू के एकाउंट में वेतन आ जाता है. अब तक वह अपना वेतन एटीएम से निकाल कर पत्नी को देकर निश्चिंत हो जाते थे. सारा घर का खर्च वही चलाया करती थी. अन्नपूर्णा देवी महादेव बाबू की पत्नी हैं. अन्नपूर्णा वास्तव में देवी अन्नपूर्णा हीं हैं. पढ़ी-लिखी भी कोई मामूली नहीं थी. अपने जमाने की ग्रेजुएट थी. आमदनी कम हो या ज्यादा; घर के खर्च को मैनेज करना कोई उनसे सीखे. ******************************************************* महादेव बाबू पटना यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एम‌ए फर्स्ट क्लास से किए हुए थे. वह भी उस समय का फर्स्ट क्लास जब थर्ड डिवीजन से पास करना भी बहुतों के लिए मुश्किल होता था. एक जमाने में कभी वे भी यूपीएससी दिया करते थे. ये बात अलग है कि असफल रहे बांकि नौलेज में कोई कमी नहीं थी. फिलहाल बिहार सरकार के एक दफ्तर में बड़ा बाबू का ओहदा सम्हाल रहे हैं. अपने डिग्री और अर्थशास्त्रीय ज्ञान का गुमान कार्यालय से लेकर घर तक गाहे-बगाहे उनसे प्रदर्शित हो हीं जाता है.  आज दफ्तर में साहब के चेम्ब...

Picking up holes in our scriptures.

Just as every "right" in our scripture can't be emulated; in the same way every "wrong"written therein can't be defended.   ********************************************** But does this position make the whole scripture worthy of being repudiated? ***********************************************         To our surprise; an honest attempt to answer this question may reveal many things that we may not be knowing hitherto about ourselves.                                                                       ~राजीव.                                                                   06.02.2023.

Man will be a man(!?)

A male student of class 12 fainted out of “nervousness” after realising that he would be taking the intermediate examination along with 50 girls in the same hall at the Brilliant School examination centre in the district of Nalanda. This news has hit the national headlines.                Incidentally, I happen to be posted in this district. Here this incident remained the talk of the day. All mentioned it in their own ways to find some enjoyment out of it. ************************************************** Having come to know about this incident,I am led back to my memory lane of the eighties of the last century when I was just a first year student of an engineering college of Bihar.              The incident that hit the headlines forced me to guess the state of being of a girl (her name is not necessary to mention) who was a single female student amongst the 300 boisterous boys of the college. The said girl s...

Coaching institutes-have they overpowered our education system?

Whenever I go to my office in the morning, it is amusing and heartening as well to see roads flocked by dozens of youngsters with bags on their backs returning from somewhere I didn't know. I ask my driver- are they returning from school? Is it not the usual time to go there? Why are they returning from there? He replies- नहीं सर! इ बच्वन सब कौचिंग कर के न आ रहा है. मेरा बेटा भी उहे कौचिंग में न पढ़ता है. अबकी बार नौ कलास में गया है. क्या करें स्कूल में त कुछो पढ़ाई होता नहीं है.  इ जीला का इहे न टाॅप का कौचिंग है सर.       (No sir; these boys and girls are returning from coaching. My son also studies in that coaching center which is the number one coaching center in this district. What could be done when in school teachers do not teach.)         I muttered in surprise- Coaching for class 9! ******************************************************* In our times coaching centers or institutes were not many. In fact,if I am to tell the truth there was...

रामचरितमानस महाकवि सूर की दृष्टि में

कहा जाता है कि एक बार बादशाह अकबर ने अपने नवरत्न में से एक रहीम कवि(अब्दुर्रहीम खानखाना) को तुलसीदास के पास तुलसी को अपना मनसबदार बनाने की बादशाह की इच्छा का संदेश लेकर भेजा. जानते हैं तुलसीदासजी ने बादशाह को अपने मित्र रहीम के मार्फत क्या उत्तर भिजवाया? हम चाकर रघुवीर के पटौ लिखो दरबार। तुलसी अब का होहिंगे नर के मनसबदार।।                                            ~Tulsidas. कहने का आशय कि तुलसी तो रघुवीर का चाकर है;जब तुलसी को राम ने हीं अपने दरबार का पट्टा लिख दिया है तो आदमी(अकबर) के दरबार का पट्टा लिखवा कर (मनसब लेकर) तुलसी क्या करेगा? उपरोक्त घटना से पहले भी एक घटना घट चुकी थी. जब तुलसीदास की कीर्ति बहुत फैल चुकी थी तो अकबर ने अपने दरबार में बुलाकर कोई चमत्कार दिखाने को कहा था और तुलसी ने मना कर दिया था.  तुलसीदास ने साफ कह दिया -मैं कोई चमत्कार नहीं जानता.  फलस्वरूप तुलसीदास को बन्दी बना लिया गया.  बाद में जब बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ तो तुलसी को कारा...

रावण का अंत

 राम रावण युद्ध का एक प्रसंग है-  प्रभु अपने निषंग से एक से एक बाण निकालकर युद्धस्थ-सन्नद्ध रावण की ग्रीवा को लक्ष्य कर सरसंधान करते हैं और क्षणमात्र में रावण का मस्तक धर से विलग हो दूर रणभूमि में जा गिरता है.  परन्तु यह क्या! अगले हीं पल रावण के रूण्ड पर नवीन मुंड का उदय हो जाता है और रावण का राम के प्रति उपहासमय अट्टहास से रणभूमि गूंज उठती है.   यह देख श्रीराम अपने कोदण्ड एक बार पुनः खींच कर रावण पर बाण से प्रहार करते हैं; रावण का न केवल दसों शीश बल्कि बीसो भुजाएं भी प्रभु के बाण से कटकर दूर जा गिरती हैं किन्तु अगले हीं पल उन भुजाओं और सिर का रावण के धर में सृजन हो जाता देख प्रभु हतप्रभ हैं. **************************************************** भगवान प्रहार पर प्रहार किये जा रहे हैं. परिणाम है कि भगवान के बाण से भुजाओं और शीश के काटे जाने से पूरा रणक्षेत्र पटा पड़ा जा रहा है किन्तु तत्क्षण हीं नवीन भुजाओं और नवोदित मस्तक से लैस रावण पूर्ववत चुनौती देता हुआ अट्टहास करते नहीं थकता. युद्ध में समक्ष उपस्थित दुर्वध्य रावण है कि मरता हीं नहीं.      ...

If you stop doing the following---

If you stop reading you gradually lose an opportunity to learn                                                                        *** If you stop writing you gradually lose your capacity to think.                                     *** If you stop helping you gradually lose your capability to do good.                                     *** If you stop moving you gradually lose your ability to manage your health.                                     ***                         ...

यात्रा

जब तक       "हूॅं" से "हैं "           तथा      "हैं" से "है"        की यात्रा पूरी नहीं होगी;इस जीवन में शांति नहीं मिलना.                    ***                           ~R.R.Prabhakar.

तुम और वह ~ वह और तुम.

*************************************************** यदि तुम "स्वयं" के अस्तित्व को स्वीकार कर रहे हो तो "उसके"अस्तित्व को नकारना हठ के सिवा कुछ भी नहीं है.  *************************************************** जैसे "जल" को रखने के लिए "थल" का होना जरूरी है उसी तरह "तुम्हारे" होने के लिए "उसका" होना जरूरी है. ***************************************************  पहले "वह" है तब "तुम" हो- यह तुम्हारी आस्था, विश्वास या श्रद्धा है.  यदि"तुम" हो तो "वह" भी है.- यह तर्क (deduction) है.                   और यदि "तुम" नहीं हो तब भी "वह" है- यह ज्ञान है. ***************************************************   "तुम" वही हो जो "वह"है - यह विशेष ज्ञान अर्थात् विज्ञान है.   "तुम" उसी के हो- यह तुम्हारी भक्ति है.                                 ~R.R.Prabhakar.                           ...

Booking Counter empty~ Platform full with passengers.

This railway station is XYZ. I usually have to come to the platform of this railway station only to board my train for the place where my home happens to be.  Though many of my colleagues, senior or junior, use their own vehicles to reach their destination which is in the average range of 60 kilometers.  But my choice is slightly different from the rest for reasons best known to me. ******************************************************* According to my eye estimate I can say with confidence that whenever a train comes to this railway station the entire platform is filled with at least more than a thousand passengers.  To secure a seat in the train is highly difficult if not impossible. Many times I have completed my journey while standing inside train.           But to my surprise, whenever I have approached the ticket counter I have never found a single person at the ticket booking window. In fact I found the booking clerk sitting idle and waiti...

Four quadrants of the balanced reading habit.

Four quadrants of the balanced reading habit. ******************************************************* It is unsolicited advice to all who are interested in reading books or magazines. Though I know for sure that this habit of an individual is fast declining to become dead in future.  Thanks to computers and the internet in general and social media in particular that has nearly replaced books and magazines. Though I myself have become a prey to these social media temptations. Even AH Wheeler stalls at railway stations now have shelves filled more with snacks, water bottles and cold drinks than books or magazines.  However if one still considers oneself to be a good reader one must refine the habit of reading. Quality of work life (QWL) and quality of life (QoL); both improve by such refinement in our reading habits. ******************************************************* We know that we all have to do something to earn. This is necessary to support our livelihood. For that mat...