बुद्धिमानी या भगवत्कृपा.

इस सिस्टम में बहुत दांव-पेंच है; फिर भी अभी तक आप इसके शिकार नहीं हुए हैं या उस सिस्टेमेटिक दांव-पेंच से निकल जा पा रहे हैं तो इसे आप इसे अपनी बुद्धिमानी का परिणाम कम बल्कि ऊपर वाले की कृपा ज्यादा समझिए. 
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          सब मान-अभिमान,ज्ञान-विज्ञान,विधान-संविधान इसी धरा पर धरा का धरा रह जाता है और जो होना होता है,वह या तो धर-धराकर हो जाता है या ऐसा होता है कि आपको पता भी नहीं चलता है जब वह हो रहा होता है.
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          उम्र बढ़ने के साथ यदि आप में इस अहसास की वृद्धि होती मालूम दे रही हो कि "मेरे 'हाथ' में कुछ भी नहीं है" तो समझिए आप परिपक्व हो रहे हैं. 
यहीं से इस शुभ भाव का उदय होना प्रारम्भ होगा कि "सब कुछ उसी के 'हाथ' में है".
    राजीव रंजन प्रभाकर.
          २७.०४.२०२३.

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