**Frequently Asked Questions**. (बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम,2015)

बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार 
अधिनियम,२०१५.
                *प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न*
      **(Frequently Asked Questions)**
                            (FAQs)
बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम,२०१५ एवं बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार नियमावली,२०१६ में वर्णित प्रावधानों तथा इस आलोक में सर्वजन की जानकारी हेतु सरकार द्वारा प्रकाशित मार्गदर्शिका में परिवाद दायर करने एवं उसकी सुनवाई से सम्बंधित दिशानिर्देश दिए गए हैं.  
चूंकि यह अधिनियम अपेक्षाकृत नया है; अतः इसकी समुचित जानकारी हेतु इसका प्रचार-प्रसार अधिक से अधिक होना वांछनीय है. 
          आमजन सहित सरकारी अधिकारी,लोक प्राधिकार को इस अधिनियम के सम्बन्ध में अभीष्ट जानकारी दिये जाने के उद्देश्य से उन प्रावधानों एवं दिशानिर्देशों को प्रश्नोत्तर रूप में दिया गया है. 
          इस व्यवस्था से लाभ उठाने में रूचि रखने वालों के लिए यह प्रश्नोत्तरी उपयोगी सिद्ध हो सकती है.
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१. बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम,२०१५ क्या है?
उत्तर-यह राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया एक कानून है जिसमें राज्य में चलाई जा रही किसी योजना, कार्यक्रम या सेवा के सम्बन्ध में फायदा या अनुतोष मांगने, राज्य में प्रवृत्त किसी विधि,नीति, सेवा, कार्यक्रम या योजना के उल्लंघन से उद्भूत किसी मामले की शिकायत सम्बंधी परिवाद पर सुनवाई और निवारण का अवसर तथा उस परिवाद पर सुनवाई में किये ग‌ए विनिश्चय के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार किसी नागरिक या नागरिक के समूह को प्रदान किया गया है.
२.यह कब लागू किया गया है?
उत्तर-यह अधिनियम समूचे राज्य में ५ जून २०१६ से लागू है.
३.प्रश्न-इस अधिनियम का प्रशासी विभाग कौन है?
उत्तर- इस अधिनियम का प्रशासी विभाग सामान्य प्रशासन विभाग है जो इस अधिनियम एवं इसके तहत बनी नियमावली के आधार किये जा रहे कार्यों का अनुश्रवण बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन सोसायटी, बिहार पटना (बीपीएस‌एम) के माध्यम से करता है.अपर मिशन निदेशक एवं मिशन निदेशक द्वारा इस समूचे तंत्र को नियंत्रित एवं नेतृत्व प्रदान किया जाता है.प्रधान सचिव सामान्य प्रशासन विभाग बीपीएस‌एम के मिशन निदेशक होते हैं.
४. यह अधिनियम कैसे कार्य करता है? इसकी कार्यप्रणाली क्या है?
उत्तर- अधिनियम संक्षेप में इस प्रकार है-
    इस अधिनियम अंतर्गत प्रत्येक विभाग में जिस पदाधिकारी द्वारा किसी शिकायत के निवारण की जिम्मेदारी दी गई है, को लोक प्राधिकार के रूप में विहित किया गया है तथा बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी को अधिनियम अंतर्गत लोक प्राधिकार एवं परिवादी को नोटिस जारी कर परिवाद पर सुनवाई के उपरांत शिकायत का निवारण करने हेतु लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के रूप में पदस्थापित किया गया है.शिकायत के निवारण हेतु त्रिस्तरीय प्रणाली का गठन किया गया है जिसमें एक स्तर अनुमंडल स्तर का है जहां दायर परिवाद का निवारण अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी (जिन्हें राज्य के प्रत्येक अनुमंडल में पदस्थापित किया गया है) द्वारा अनुमंडल के अधीन लोक प्राधिकार से कराया जाता है. दूसरा स्तर जिला का है. जिला स्तरीय लोक प्राधिकारों से सम्बंधित परिवाद के निवारण हेतु प्रत्येक जिला में अपर समाहर्ता- सह-जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी का पद सृजित कर उन्हें पदस्थापित किया गया है. तीसरा स्तर सरकार के विभिन्न विभागों से संबंधित परिवाद का होता है जिसका निवारण विभाग में अलग से बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी को हीं विभागीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के रूप में पदस्थापित कर कराया जाता है. अनुमंडल स्तर पर निवारण योग्य परिवादों के मामले में अपर समाहर्ता (लो.शि.नि.)-सह- जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी प्रथम अपीलीय प्राधिकार तथा जिला पदाधिकारी द्वितीय अपीलीय प्राधिकार के रूप में अधिनियम के तहत विनिर्दिष्ट किये गये है. जहां परिवाद की सुनवाई परिवादी एवं जिला स्तरीय लोक प्राधिकार के बीच जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा की जाती है,उस परिवाद में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के द्वारा पारित विनिश्चय के विरुद्ध प्रमंडलीय आयुक्त प्रथम अपीलीय प्राधिकार एवं उस जिला स्तरीय लोक प्राधिकार के विभागीय सचिव द्वितीय अपीलीय प्राधिकार के रूप में अधिनियम में विनिर्दिष्ट किये गये हैं. इसी प्रकार सम्बंधित विभाग में भी परिवाद के निवारण हेतु विभागीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के विनिश्चय से क्षुब्ध होने की स्थिति में सम्बंधित विभाग में हीं प्रथम अपीलीय प्राधिकार एवं द्वितीय अपीलीय प्राधिकार विहित किए गए हैं.
कार्य प्रणाली संक्षेप में इस प्रकार है-
 इस अधिनियम को कार्यान्वित किये जाने हेतु अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (1) प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर, राज्य सरकार द्वारा एक नियमावली यथा "बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार नियमावली,2016 बनायी गई. परिवाद दायर करने की विधि,परिवाद की पावती, परिवाद का अंतरण, सुनवाई की नोटिस का तामिला, सुनवाई दिवस-परिवाद की सुनवाई,नियत समय सीमा की संगणना, प्रथम अपील, द्वितीय अपील अथवा पुनरीक्षण आवेदन की विषयवस्तु, निष्पादन की प्रक्रिया, अपील के साथ संलग्न किए जाने वाले दस्तावेज, परिवादी या अपीलकर्ता के हाजिर होने से सम्बंधित सभी पहलुओं को इस नियमावली में विनिर्दिष्ट किया गया है. 
नियमावली के अधीन यह और किस तरह कार्य करता है, से सम्बंधित तथ्यों को निम्नलिखित प्रश्नों के माध्यम से निरुपित किया गया है.
५. इस अधिनियम के तहत परिवाद दायर करना हो तो क्या करना होता है?
उत्तर- कोई भी नागरिक या नागरिकों का समूह, जो अधिनियम के अधीन अपनी परिवाद पर सुनवाई और उसके निवारण का इच्छुक हो, प्रपत्र -1अथवा सादे कागज में अपना नाम, पता मोबाइल/फोन नंबर,ई-मेल, आधार कार्ड संख्या और परिवाद की विशिष्टियों का उल्लेख करते हुए लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को परिवाद आनलाईन(www.lokshikayat.bihar.gov.in) या सीधे लोक शिकायत निवारण कार्यालय में आकर प्रस्तुत कर सकता है.
६. क्या मोबाइल नंबर/फोन नंबर आधार कार्ड का परिवाद पर उल्लेख अनिवार्य है?
उत्तर-नहीं; किंतु उल्लेखनीय है कि यह तंत्र पूर्णतः सोफ्टवेयर परिचालित रहने के आलोक में 
परिवाद पत्र पर फोन नम्बर या मोबाइल नंबर एवं इ- मेल अंकित रहने से परिवादी को सुनवाई की तिथि,विनिश्चय आदि की जानकारी प्राप्त करने में स्वयं उन्हीं को सुविधा है.
७. क्या परिवाद दायर करने की कोई कोर्ट फीस भी है या परिवाद में स्टाम्प भी लगाना पड़ता है?
उत्तर- नहीं. परिवाद दायर करने में कोई कोर्ट फीस या स्टाम्प नहीं लगाना है. सुनवाई की सुविधा पूर्णतः नि:शुल्क है.
८. फिर लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई किस तरह की कार्रवाई है?
उत्तर -लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई एक अर्ध-न्यायिक कार्रवाई है क्योंकि किसी परिवाद या अपील का विनिश्चय करते समय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, प्रथम अपीलीय प्राधिकार और द्वितीय अपीलीय प्राधिकार को वही शक्तियां इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित मामलों के सम्बन्ध में सिविल प्रक्रिया संहिता,१९०८(१९०८ का केन्द्रीय अधिनियम सं.-५) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय जो सिविल न्यायालय में निहित होती हैं, अर्थात्
      (क) किसी भी व्यक्ति को सम्मन करना और उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना.
      (ख) किसी दस्तावेज या साक्ष्य के रूप में पेश की जा सकने वाली तात्विक सामग्री को प्रकट करना और प्रस्तुत करना.
      (ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना.
      (घ) किसी लोक अभिलेख की अपेक्षा करना.
      (ड.) साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना.
      (च) अपने विनिश्चयों,निदेशों और आदेशों का पुनर्विलोकन करना और/या 
      (छ) कोई अन्य मामला जो विहित किया जाय.
९.कैसे पता चलेगा कि मेरे परिवाद की विषयवस्तु का निवारण हेतु कौन सक्षम लोक प्राधिकार हैं?
उत्तर- सामान्यतः उसी कार्यालय के कार्यालय प्रधान सक्षम लोक प्राधिकार के रूप में अधिनियम अंतर्गत अधिसूचित हैं जिस कार्यालय से परिवादी की शिकायत रहती है. किंतु यदि किसी कारणवश परिवादी को इसकी जानकारी नहीं भी हो तब भी वह उस लोक शिकायत निवारण कार्यालय जहां यह परिवाद जमा (ओनलाइन या आफलाइन जिस भी तरीके से) किया गया हो,का यह दायित्व है कि परिवाद की विषयवस्तु के अनुरूप सक्षम लोक प्राधिकार का चयन कर उसे सुनवाई में उपस्थित होने का नोटिस निर्गत करे.
१०. क्या किसी भी लोक शिकायत निवारण कार्यालय में परिवादी अपना परिवाद दायर कर सकता है?
उत्तर-हां,किसी भी लोक शिकायत निवारण कार्यालय जाकर राज्य के किसी भी जिले के लोक प्राधिकार से सम्बंधित परिवाद दायर किया जा सकता है.जहां परिवाद दायर किया गया हो, उस कार्यालय का यह दायित्व होगा कि वह उस परिवाद को उचित लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को अंतरित कर दे. कहने की आवश्यकता नहीं है कि लोक शिकायत निवारण के पोर्टल पर यह अंतरण तत्काल सम्पन्न हो जाती है.
११. यदि परिवाद दायर करने में किसी तरह की सहायता की आवश्यकता हो तो?
उत्तर-अधिनियम अंतर्गत निर्मित नियमावली में इस बात का ख्याल रखा गया है. यह प्रावधान के अनुरूप प्रत्येक लोक शिकायत निवारण कार्यालय में सूचना एवं सहायता केंद्र स्थापित है. परिवादी उस केंद्र पर जाकर प्राधिकृत व्यक्ति से न केवल परिवाद का प्रपत्र प्राप्त कर सकते हैं बल्कि परिवाद भरने में कोई समस्या होने पर प्राधिकृत कर्मी से वांछित सहायता ले सकते हैं.प्राधिकृत कर्मी का यह दायित्व है कि वह उन्हें वांछित जानकारी एवं सहायता प्रदान करे.
१२. क्या परिवाद दायर करने के पश्चात कोई पावती भी दी जाती है?
उत्तर-परिवाद प्राप्त होने पर, लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी या उनके द्वारा प्राधिकृत कर्मी परिवादी को प्रपत्र -2 में पावती देगा.इलेक्ट्रोनिक माध्यम से प्राप्त होने वाले परिवाद की प्राप्ति प्रपत्र -2 के बदले उसी इलेक्ट्रोनिक माध्यम से दी जाएगी जिस माध्यम से परिवाद प्राप्त हुआ हो. परिवाद की सुनवाई के लिए परिवादी को सूचना इलेक्ट्रोनिक माध्यम से हीं उसके मोबाइल या ई-मेल पर चला जाता है.इसके अतिरिक्त लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी अधिनियम के अधीन सुनवाई से संबंधित सभी सुसंगत सूचनाओं को प्रपत्र-4 में सूचना-पट्ट पर प्रदर्शित करता है. यह सूचना -पट्ट लोक शिकायत निवारण कार्यालय के सहज-दृश्य स्थान पर लगा रहता है.
१३. परिवाद दायर करने के पश्चात उसके निवारण की कोई समय सीमा भी है?
उत्तर- हां,इस अधिनियम अंतर्गत परिवाद के निवारण हेतु समय सीमा 60 कार्य दिवस निर्धारित है. इस अवधि के भीतर लोक प्राधिकार एवं परिवादी को सुनकर लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को निवारण सम्बंधी विनिश्चय पारित कर देना है. अपरिहार्य कारणों से उन कारणों का उल्लेख करते हुए लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी परिवाद में अंकित विषय अनिवारित रहने की स्थिति में निर्धारित 60 कार्य दिवस की अवधि को विस्तारित कर सकते हैं. कार्य दिवस की संगणना सोफ्टवेयर आधारित है.
१४.प्रश्न- यदि लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा पारित विनिश्चय से कोई परिवादी संतुष्ट नहीं है तो वह क्या करे?
उत्तर-लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा पारित विनिश्चय से असंतुष्ट रहने की स्थिति में परिवादी उस विनिश्चय के विरुद्ध प्रथम अपीलीय प्राधिकार के न्यायालय में प्रथम अपील ऐसे विनिश्चय पारित होने के ३० दिवस एवं विलम्ब की स्थिति में ४५ दिवसों से अनधिक कालावधि के विलम्ब के कारणों को स्पष्ट करते हुए प्रथम अपीलीय प्राधिकार के समक्ष अपील दायर कर सकता है. 
  अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के विनिश्चय के विरूद्ध जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी प्रथम अपीलीय प्राधिकार हैं तथा जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा पारित विनिश्चय के विरुद्ध प्रमंडलीय आयुक्त प्रथम अपीलीय प्राधिकार हैं.
१५. प्रश्न- अपील दायर करने की क्या प्रक्रिया है?
उत्तर-अपीलवाद भी उसी तरह दायर होता है जिस तरह परिवाद दायर किया जाता है. अपील आवेदन के साथ निम्नलिखित सूचनाओं का उल्लेख किया जाना आवश्यक है-
    (क) अपीलकर्ता का नाम, पता.
    (ख) निम्न न्यायालय के आदेश के विशिष्टियाॅं जिसके विरुद्ध अपील किया जाना है.
     (ग) अपील का आधार
     (घ) माॅंगी गई राहत
१६.प्रश्न-अनन्य संख्या क्या है?
उत्तर- जैसे हीं कोई परिवाद इलेक्ट्रोनिक तरीके से दायर होता है तो स्वयमेव एक यूनिक आईडी कम्प्यूटर में जेनरेट हो जाता है. आफलाइन दायर करने पर जब प्राधिकृत कर्मी द्वारा जब इसे सिस्टम में प्रविष्ट कराये जाता है, यूनिक आईडी जेनरेट हो जाता है. यह यूनिक आईडी जिसे हिन्दी में अनन्य संख्या कहते हैं का तात्पर्य यह है कि लोक शिकायत निवारण प्रणाली में इस अंक का कोई दूसरा परिवाद नहीं हो सकता है. यह 18 अंको वाली होती है.
परिवादी या अपीलार्थी इसी यूनिक आईडी को सिस्टम में सर्च कर परिवाद के बाबत प्रगति की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं. वे चाहें तो सिस्टम से हीं अंतरिम आदेश या अंतिम आदेश की प्रति डाउनलोड कर सकते हैं.
इसी यूनिक आईडी के आधार पर दायर अपील भी स्वयमेव इलेक्ट्रोनिक विधि से अपील के रूप में सिस्टम में रजिस्टर्ड हो जाता है.
१७.प्रश्न-प्रथम अपील के भी विनिश्चय से यदि संतुष्ट न हों तो?
उत्तर- प्रथम अपीलीय प्राधिकार के निर्णय से असंतुष्ट होने पर परिवादगत मामले में द्वितीय अपील भी दायर किये जा सकने का अधिनियम में प्रावधान किया गया है. द्वितीय अपील दायर करने की समय सीमा भी वही है जो प्रथम अपील के मामले में लागू है.
यदि परिवाद की सुनवाई अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा की गयी है तो द्वितीय अपील जिला पदाधिकारी के समक्ष तथा यदि परिवाद की सुनवाई जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा हुई हो तो द्वितीय अपील परिवाद जिस विभाग की विषयवस्तु है उस विभाग के सचिव/प्रधान सचिव के समक्ष की जाती है.
१८.प्रश्न- परिवाद दायर करने में फीस नहीं देनी पड़ती है लेकिन अपील दायर करने में तो फीस लगती होगी?
उत्तर- अपील चाहे प्रथम हो या द्वितीय, इसमें भी कोई फीस नहीं देनी पड़ती है. परिवाद एवं अपील, दोनों सुविधा नि: शुल्क है.
१९.प्रश्न- परिवादी या अपीलार्थी का सुनवाई में आना आवश्यक होता है?
उत्तर- सुनवाई में परिवादी या अपीलार्थी का आना आवश्यक नहीं है,यह ऐच्छिक है. किंतु यदि वे उपस्थित होते हैं तो वे अपनी बात लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को बेहतर बता सकते हैं.  
२०.और लोक प्राधिकार की उपस्थिति?
उत्तर- ध्यान देने की बात यह है कि लोक प्राधिकार की सुनवाई में उपस्थिति को अनिवार्य किया गया है. बीपीएस‌एम एवं सामान्य प्रशासन विभाग सुनवाई में लोक प्राधिकार की अनुपस्थिति को अत्यंत गंभीरता से लेता है. युक्तियुक्त कारण जो कि लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को स्वीकार्य हो, के बिना लोक प्राधिकार की अनुपस्थिति उनके विरुद्ध कार्रवाई को आमंत्रित करता है.
२१. सुनवाई में उपस्थित नहीं होने पर केस खारिज भी हो जाता है?
उत्तर- सुनवाई में यदि परिवादी या अपीलार्थी अनुपस्थित भी रहते हैं तो वाद को खारिज नहीं किया जाता है बल्कि परिवाद में वर्णित विषय पर लोक प्राधिकार का पक्ष एवं उनसे प्राप्त प्रतिवेदन में अंकित तथ्यों पर सम्यक विचारोपरांत निवारण योग्य परिवाद के निवारण की दिशा में जो भी कार्रवाई अपेक्षित होती है, लोक प्राधिकार से करायी जाती है.
२२. क्या अपने परिवाद की सुनवाई में मैं अधिवक्ता को प्राधिकृत कर सकता हूं?
उत्तर- नहीं, अधिवक्ता के माध्यम से सुनवाई की परिवाद के निवारण में आवश्यकता नहीं है. आप स्वयं अपना पक्ष अच्छे से रख सकते हैं. इससे जनता के लोक शिकायत निवारण का अधिकार तथा उनसे सशक्त और आनुषंगिक विषयों का क्रियान्वयन की समय-सीमा प्रभावित हो सकती है.
२३. इस अधिनियम के तहत शास्ति (penalty) का भी कोई विधान किया गया है?
उत्तर- हां; यदि द्वितीय अपीलीय प्राधिकार यह निर्णय पर पहुंचता है कि लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी या अन्य लोक प्राधिकार या प्रथम अपीलीय प्राधिकार, बिना किसी पर्याप्त और युक्तियुक्त कारण के,नियत समय सीमा के भीतर सुनवाई एवं निवारण का अवसर प्रदान करने में विफल रहा है, वहां वह उस पर शास्ति अधिरोपित कर सकेगा, जो 500/ रूपए से कम किंतु 5000/ रूपए से अधिक नहीं होगी. किंतु यह भी कि शास्ति अधिरोपित करने के पूर्व उस व्यक्ति को,जिस पर शास्ति अधिरोपित किया जाना प्रस्तावित हो,सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया जाएगा.
इसके अतिरिक्त द्वितीय अपीलीय प्राधिकार उनके विरुद्ध लागू सेवा नियमों के अधीन कार्रवाई की भी सिफारिश कर सकता है.
द्वितीय अपीलीय प्राधिकार के उक्त आदेश के पुनरीक्षण हेतु आदेश की तारीख के 60 दिवसों के भीतर व्यथित व्यक्ति (लोक प्राधिकार,लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, प्रथम अपीलीय प्राधिकार) पुनरीक्षण प्राधिकार के समक्ष आवेदन कर सकेगा. विशेष परिस्थिति में पुनरीक्षण आवेदन देने की अवधि 75 दिवस की हो सकती है यदि पुनरीक्षण प्राधिकार का यह समाधान हो जाए कि पुनरीक्षण हेतु आवेदन स्वीकार योग्य कारणों से निर्धारित 60 दिवस में दाखिल नहीं किया जा सका.
अधिनियम की धारा 3 के तहत द्वितीय अपीलीय प्राधिकार जहां जिला पदाधिकारी होते हैं उन मामलों में पुनरीक्षण प्राधिकार प्रमंडलीय आयुक्त होते हैं तथा जिन मामलों में विभागीय सचिव द्वितीय अपीलीय प्राधिकार हैं, वहां पुनरीक्षण प्राधिकार विभागीय जांच आयुक्त अधिसूचित हैं.
२४. प्रश्न-शास्ति की वसूली किस प्रकार हो सकती है?
उत्तर-अधिरोपित शास्ति लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी या अन्य किसी लोक प्राधिकार या प्रथम अपीलीय प्राधिकार के वेतन से वसूलनीय है.
२५. प्रश्न-क्या इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा संचालित योजनाओं, कार्यक्रम,सेवाओं के विरुद्ध भी शिकायत की जा सकती है?
उत्तर-नहीं. जैसा कि पहले हीं कहा गया है कि शिकायत की प्रकृति राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं, कार्यक्रम,सेवाओं आदि के संदर्भ में हीं होना इस अधिनियम में आवश्यक किया गया है.
२६. प्रश्न-क्या राज्य की सभी योजनाओं, कार्यक्रम या सेवा इस अधिनियम से आच्छादित है?
उत्तर-नहीं; राज्य की जिन योजनाओं, कार्यक्रम, सेवा आदि के संदर्भ में फायदा या अनुतोष प्राप्त करने हेतु नागरिक(परिवादी) को अधिकार प्रदान की गई है,वे अधिनियम की धारा 4 के आलोक में विभागवार अधिसूचित हैं. समय-समय इस सूची में संशोधन किया गया है.यदि कोई शिकायत उस उक्त सूची के अंतर्गत आती हैं तो परिवादी को सुनकर उक्त शिकायत का निवारण का अधिकार उसे इस अधिनियम के तहत प्राप्त है.
परिवादी को इस सूची को देखकर हीं परिवाद दायर करने की सलाह दी जाती है.
२७.प्रश्न-क्या वैसे शिकायत का भी निवारण इस अधिनियम के तहत किया जा सकता है जिसमें किसी न्यायालय या अधिकरण की अधिकारिता हो?
उत्तर-नहीं. ऐसे मामले को अधिनियम में निगेटिव सूची के अंदर माना गया है.
२८. प्रश्न-क्या सूचना के अधिकार से सम्बंधित शिकायत इस अधिनियम अंतर्गत किया जा सकता है?
उत्तर- नहीं. चूंकि इस हेतु अलग से सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 अंतर्गत पूर्व से एक तंत्र स्वतंत्र रूप से कायम है जो सूचना से सम्बंधित आवेदन पर कार्रवाई करता है;अतः सूचना के अधिकार सम्बंधित शिकायत को भी इस अधिनियम (लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम)के तहत निगेटिव सूची में रखा गया है. 
२९प्रश्न-.क्या बिहार लोक सेवा के अधिकार (RTPS) सम्बंधी शिकायत इस अधिनियम के तहत की जा सकती है?
उत्तर-नहीं. चूंकि इस हेतु अलग से बिहार लोक सेवा का अधिकार अधिनियम,2011 अंतर्गत पूर्व से एक तंत्र स्वतंत्र रूप से कायम है जो RTPS से सम्बंधित आवेदन पर कार्रवाई करता है;अतः RTPS सम्बंधी शिकायत को भी इस अधिनियम(लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम) के तहत निगेटिव सूची में रखा गया है. 
३०.प्रश्न- निगेटिव सूची से क्या आशय है?
उत्तर- इसका अर्थ उन परिवादों से है जो इस अधिनियम के अंतर्गत परिवाद की परिभाषा में शामिल नहीं है. बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम,२०१५ की धारा-2(क) में परिवाद को परिभाषित कर दिया गया है जिसके अनुसार किसी लोक सेवक, चाहे सेवारत हो या सेवानिवृत्त, के सेवा मामलों से सम्बंधित या किसी ऐसे मामले से सम्बंधित, जिसमें किसी न्यायालय या अधिकरण की अधिकारिता हो या सूचना का अधिकार अधिनियम,2005 के अधीन किसी मामले या बिहार लोक सेवा के अधिकार अधिनियम,2011के अधीन अधिसूचित सेवाओं से सम्बंधित शिकायत इस अधिनियम के अंतर्गत परिवाद में सम्मिलित नहीं है.
उपरोक्त तीनों विषयवस्तु से सम्बंधित शिकायत चूंकि सभी विभागों से सम्बंधित हो सकती हैं इसलिए इन्हें Common Negative List के रूप में परिवाद दायर किये जाने के पर अस्वीकृत किये जाने हेतु अधिनियम अंतर्गत व्यवस्था की गई है. 
३१.प्रश्न- क्या उपरोक्त के अतिरिक्त भी कोई ऐसी शिकायत हैं जो निगेटिव सूची में आती हैं?
उत्तर-हां,इसके अलावा कुछ अन्य योजना, कार्यक्रम एवं सेवायें भी हैं जिन पर परिवाद दायर नहीं किया जा सकता है. वे प्रत्येक विभाग के लिए विभागवार सूची में "वैसी योजनाएं/कार्यक्रम एवं सेवाएं जिनके सम्बन्ध में परिवाद नहीं दायर किया जा सकेगा" के रूप में Common Negative List के साथ अलग से चिन्हित कर दी गई हैं.
इस सम्बंध में परिवादी/अपीलार्थी को यह सुझाव दिया जाता है कि वे इसके लिए उपयुक्त फोरम या सक्षम प्राधिकार के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं.
                          राजीव रंजन प्रभाकर
                             अपर-समाहर्ता
                                   -सह-
     जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी, नालंदा 
                                २७.०२.२०२३



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