महादेव बाबू का बजट एक्सरसाइज.

महादेव बाबू का बजट एक्सरसाइज.
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१ तारीख को महादेव बाबू के एकाउंट में वेतन आ जाता है. अब तक वह अपना वेतन एटीएम से निकाल कर पत्नी को देकर निश्चिंत हो जाते थे. सारा घर का खर्च वही चलाया करती थी.
अन्नपूर्णा देवी महादेव बाबू की पत्नी हैं.
अन्नपूर्णा वास्तव में देवी अन्नपूर्णा हीं हैं. पढ़ी-लिखी भी कोई मामूली नहीं थी. अपने जमाने की ग्रेजुएट थी. आमदनी कम हो या ज्यादा; घर के खर्च को मैनेज करना कोई उनसे सीखे.
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महादेव बाबू पटना यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एम‌ए फर्स्ट क्लास से किए हुए थे. वह भी उस समय का फर्स्ट क्लास जब थर्ड डिवीजन से पास करना भी बहुतों के लिए मुश्किल होता था. एक जमाने में कभी वे भी यूपीएससी दिया करते थे. ये बात अलग है कि असफल रहे बांकि नौलेज में कोई कमी नहीं थी. फिलहाल बिहार सरकार के एक दफ्तर में बड़ा बाबू का ओहदा सम्हाल रहे हैं. अपने डिग्री और अर्थशास्त्रीय ज्ञान का गुमान कार्यालय से लेकर घर तक गाहे-बगाहे उनसे प्रदर्शित हो हीं जाता है. 
आज दफ्तर में साहब के चेम्बर में लगे टीवी में वित्त मंत्री का "बजट स्पीच(Budget Speech)" लाइव आ रहा था. फाइल ले जाने के बहाने वह भी मंत्री जी के उस "बजटीय भाषण" को देखे जा रहे थे. मंत्री जी का भाषण सुन कर उनका भी मन उत्साहित हुआ जा रहा था. बजटीय भाषण से चहुंओर उजियारा हीं उजियारा मालूम दे रहा था. कहीं कोई दिक्कत नहीं. सारी समस्या अपने आप में हीं है. नहीं मानो तो नहीं है.सारांश में "अमृतकाल" के इस बजट से टपक रहे  अमृत बूंद का वह रसास्वादन किए जा रहे थे.
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 वह दफ्तर से घर लौट रहे हैं; मन ही मन सोच रहे हैं कि इस बार वह बजट बनाएंगे और घर का सारा खर्च वह "बजट इस्टीमेट(BE)" के मुताबिक खुद करेंगे. अन्नपूर्णा के हाथ से अनाप-शनाप खर्च हो जाता है. बेचारी मामूली ग्रेजुएट ठहरी. अर्थशास्त्र पढ़ी हो तब न. 
बाद में महंगाई को देखते हुए यदि खर्च में कुछ ऊंच-नीच होता है तो "रिभाइज्ड इस्टीमेट(RE)" का विकल्प है हीं. 
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घर पहुंचकर वह अपनी पत्नी अन्नपूर्णा से कहते हैं-
जरा अलमारी से मेरी डायरी देना.
पत्नी- आते हीं तुम्हें डायरी की क्या जरूरत पड़ गई?
महादेव बाबू- सोचता हूं फरवरी महीना का बजट बना लूं. बिना बजट बनाए आमदनी और ख़र्च का पता हीं नहीं चलता. फिर मेरा अर्थशास्त्र का ज्ञान किस दिन काम आएगा? तुमको पता है न यूपीएससी में मेरा आप्शनल इकोनोमिक्स था.
पत्नी- बड़े आए बजट बनाने वाले. अपने को वित्तमंत्री समझ रहे हो क्या? 
महादेव बाबू (तुनक कर)- तुम क्या समझते हो मैं बजट नहीं बना सकता? सिर्फ वित्त मंत्री को हीं बजट बनाने का अधिकार है? अरे प्रत्येक व्यक्ति या परिवार को भी अपना बजट बनाना चाहिए. 
और बजट है क्या? यह आने वाले महीने में क्या आमदनी होगी और क्या ख़र्च होगा;उसी का हिसाब या ब्योरा तैयार करना तो है. सरकार इसे वर्ष भर के लिए तैयार करती है. इसलिए इसे वह एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट (Annual Financial Statement) कहती है. आम बोलचाल में यही बजट है.
अन्नपूर्णा-हूॅंऽऽ;तो बनाओ बजट मैं भी तो देखूं कैसे-कैसे तुम बजट बनाते हो.
महादेव बाबू- तो बताओ इनकम बेस्ड(Income Based) बजट बनाऊॅं कि एक्सपेंडिचर बेस्ड(Expenditure Based)?
अन्नपूर्णा- ये इनकम बेस्ड-एक्सपेंडिचर बेस्ड से तुम्हारा क्या मतलब?
महादेव बाबू- बहुत सिम्पल है.बजट आमदनी को ध्यान में रख बनावें कि खर्च को ध्यान में रखकर. मेरे ख्याल से तो हमलोग को आमदनी को ध्यान में रखते हुए हमें अपना बजट बनाना चाहिए.
अन्नपूर्णा-नहीं-नही. खर्चे को ध्यान में रखते हुए बनाओ. मुझे तुम्हारी आमदनी से कोई लेना-देना नहीं. खर्चे जो हैं वह मुझे पता है. आमदनी को ध्यान में रख कर बनाने की चालाकी मैं समझती हूॅं. तुम ख़र्च में कटौती करने पर उतारू हो जाओगे.
महादेव बाबू- अच्छा!ये बारीकी तुम समझती हो? तब तो तुम्हे मेरा कमिटेड एक्सपेंडिचर (Committed Expenditure) भी पता होगा.
महादेव बाबू चिंता जताते हुए बोले- तुम जानती हीं हो कि मेरे वेतन से "कमिटेड एक्सपेंडिचर" के तौर पर कितना कटौती हो जाता है.
अन्नपूर्णा- "कमिटेड एक्सपेंडिचर" से तुम्हारा क्या मतलब है?
महादेव बाबू-अरे वह खर्च जो शर्तों के अधीन अदायगी मद में किया जाना हो.इसमे डिफाल्टर होने से व्यक्ति की साख पर बन आती है.यह वह खर्च है जिसे करना हीं करना है.इसमें कटौती की गुंजाइश ही नहीं है. 
अन्नपूर्णा-तुम क्या समझते हो बेटी की शादी में जो लोन लिए थे उसका इंटरेस्ट और जो बीस साल किराया पर रहते हुए जो बुढ़ापे में फ्लैट बुक कराये हो उसका इएम‌आइ जो तुम्हारे वेतन से कट जाता है,वही दू ठो "कमिटेड एक्सपेंडिचर" है?
  तुम क्या समझते हो कि जो कमिटमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन से किया जाता है केवल उसी मद का खर्च कमिटेड एक्सपेंडिचर है?
 बड़े आए हमको कमिटेड एक्सपेंडिचर का मतलब सिखाने वाले.
               तुम्हें नहीं मालूम कि १ तारीख आते हीं मकान मालिक की पत्नी गप-शप करने के बहाने सुबह-सुबह आकर मकान का किराया लेने पहुंच जाती है. किराया मिल जाने के बाद मुस्कुरा कर कहती है- भाभीजी!आप भी न, अरे मैं इसके लिए थोड़ी न आयी थी. अरे दो चार दिन बाद भी दे सकते थे. 
 फिर बिजली का बिल है, महीने में दो-दो गैस सिलेंडर का खर्च क्या काट सकते हो? दोनों बेटा बाहर पढ़ रहा है.उसको जो मंथली भेजना पड़ रहा है उसमें कटौती कर सकते हो क्या? मां-बाबूजी की जो महीने की दवा का खर्च है, उसमें तुम कटौती सकते हो? 
महीने का जो राशन का खर्च है उसको काट कर दिखा दो समझें. 
अरे ये इएमआइ यदि "कमिटमेंट टू बैंक या करार के अधीन (Contractual Commitment)" है तो ये सारे खर्च जो मैं बता रही हूं वे "कमिटमेंट टू सेल्फ फोर रिमेनिंग अलाइव(commitment to self for remaining alive)" है.
               और घड़ी-घड़ी जो तुम्हारी चाय की फरमाइश होती है; सो नहीं मिले तो सारा अर्थशास्त्र भुला जाओगे. 
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महादेव बाबू(आंखों पर से चश्मा हटा कर टेबल पर रखते हुए)- मने ये सब तो अर्थशास्त्र में "रेवेन्यू एक्सपेंडिचर(revenue expenditure)"मद में गिना आता है. मतलब वैसा खर्च जिसका पूंजी निर्माण में भागीदारी नगन्य हो. कहाॅं मैं सोच रहा था कि पूंजी बनाने के लिए "केपिटल एक्सपेंडिचर(capital expenditures)" मद में कितना एलोकेशन रखा जाए ताकि बतौर "इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सपेंडिचर" गांव के पुराने घर को रिमोडलिंग कर दिया जाय.
उसे दो पार्ट कर के कम से कम एक में किराया लगाया जा हीं जा सकता है. इसमें जो कोस्ट आफ केपिटल इनवोल्व होगा वह रिटर्न ओन इन्वेस्टमेंट से कम हीं होगा; मैं केलकुलेशन करके देख चुका हूॅं.
 लेकिन तुम तो मेरे "प्लान एक्सपेंडिचर" पर हीं कुठाराघात कर रही हो. मने सब खर्चा हम नन-प्लाने में कर दें? 
अन्नपूर्णा- तुम्हें "प्लान एक्सपेंडिचर"-"केपिटल एक्सपेंडिचर"-"केपिटल फार्मेशन(capital formation)" की सूझी है; यहां महंगाई जान मारे जा रही है. 
यहां घर चलाना आफत है और ये सारा वेतन "इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट(infrastructure development)" में झोंकना चाह रहे हैं. 
मैं पूछती हूं कौन सा अर्थशास्त्र पढ़े हो तुम?. 
अरे तुम ये भी नहीं समझते कि घर में "मेवा (dry fruits)" तभी शोभता है जब "चावल-दाल" का इंतजाम पुख्ता हो.
        महादेव बाबू (सोचते हुए)-अन्नपूर्णा कह तो ठीक ही रही है. है तो ये भी कमिटेड एक्सपेंडिचर. इस मद में भी नन पेमेंट का रिस्क लेना खतरनाक हीं है.
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अन्नपूर्णा-और क्या कहे तुम? पूंजी बनाना चाहते हो? कौन सा व्यापार करते हो? जरा मैं भी तो जानू!अपने अर्थशास्त्र का ज्ञान मत बघारो. 
इनकम टैक्स रिटर्न भरते समय तुम कूथ-काथ कर जो पीपीएफ मद में कटौती करवा लेते हो उसी को तुम अपना "बचत(savings)" समझो "निवेश (investment)"समझो "पूंजी(capital)" समझो जो समझना है समझो;बांकि मेरे सामने ज्ञान बघारना बंद करो.
 पचहत्तर-अस्सी हजार के वेतन में खुद को टाटा-बिरला समझने लग ग‌ए. 
"पूंजी" बनाने का ख्वाब देख रहे हैं. अरे इतना भी अकल नहीं कि हम नौकरी करने वाले को पूंजी बनाने का हक़ नहीं है.बांकि थोड़ी बहुत "बचत" कर सकते हो तो करो. 
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हां !अपने चाय-चीनी के खर्च को तुम चाहो तो "रिवेन्यू एक्सपेंडिचर" में गिन सकते हो. उसमें कटौती हो सकती है.उसमें हमको कोई एतराज़ नहीं है.
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महादेव बाबू ये सुन उठ कर बाहर जाने लगते हैं.कपड़े उन्होंने चेंज किए नहीं थे.
अन्नपूर्णा-अरे एकाएक कहां हड़बड़ा कर चल दिए? चाय नहीं पीनी क्या? 
महादेव बाबू (तिनकते हुए)-नहीं.
(महादेव बाबू सोच रहे थे कहां वे खर्च के एक-एक आइटम पर अन्नपूर्णा से सवाल करते कि "क्यों नहीं इस मद में एलोकेशन "शून्य" कर दिया जाय?". 
तब अन्नपूर्णा ऐसा न करने का मनुहार करती और उस मद में खर्च को जायज ठहराने की कोशिश करती जाती जिसे वे गंभीर मुद्रा में अर्थशास्त्रीय तर्क देकर काटते जाते. 
फिर वे उसे गर्व से धीरे-धीरे "जीरो बेस्ड बजटिंग(Zero Based Budgeting)" एवं परफोर्मेंस बजेटिंग (Performance Budgeting) की अवधारणा से परिचित कराते लेकिन यहां तो अन्नपूर्णा उल्टा उनके चाय पर हीं आफत करने की सोच रही है)
महादेव बाबू (अन्नपूर्णा को)- जा रहा हूं एटीएम; वेतन निकालने. निकाल कर तुम्हारे हाथ में धर के निश्चिंत हो जाना चाहता हूं.
मुझे नहीं बजट बनाना.
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अन्नपूर्णा(महादेव बाबू के गले में दोनों हाथ डाल कर हंसते हुए)-बुड्ढे हो ग‌ए लेकिन गुस्सा कम नहीं हुआ. मैं तो यूं ही मज़ाक कर रही थी. मैं क्यों तुम्हारे चाय में कटौती करने चलूं भला!
(नोट-महादेव बाबू पहले भांग पीते थे. जब से उनपर कमाने-खटाने और परिवार चलाने की जिम्मेदारी आयी वे आदत सुधारते हुए भांग छोड़कर चाय पीने लगे थे;वह भी मुश्किल लग रहा था)
                                        राजीव रंजन प्रभाकर.
                                             १२.०२.२०२३.

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