तुम और वह ~ वह और तुम.

***************************************************
यदि तुम "स्वयं" के अस्तित्व को स्वीकार कर रहे हो तो "उसके"अस्तित्व को नकारना हठ के सिवा कुछ भी नहीं है. 
***************************************************
जैसे "जल" को रखने के लिए "थल" का होना जरूरी है उसी तरह "तुम्हारे" होने के लिए "उसका" होना जरूरी है.
***************************************************
 पहले "वह" है तब "तुम" हो- यह तुम्हारी आस्था, विश्वास या श्रद्धा है.
 यदि"तुम" हो तो "वह" भी है.- यह तर्क (deduction) है.
                  और
यदि "तुम" नहीं हो तब भी "वह" है- यह ज्ञान है.
***************************************************
  "तुम" वही हो जो "वह"है - यह विशेष ज्ञान अर्थात् विज्ञान है.
  "तुम" उसी के हो- यह तुम्हारी भक्ति है.

                                ~R.R.Prabhakar.
                                     26.12.2022.

Comments

Popular posts from this blog

साधन चतुष्टय

न्याय के रूप में ख्यात कुछ लोकरूढ़ नीतिवाक्य

भावग्राही जनार्दनः