तुम और वह ~ वह और तुम.
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यदि तुम "स्वयं" के अस्तित्व को स्वीकार कर रहे हो तो "उसके"अस्तित्व को नकारना हठ के सिवा कुछ भी नहीं है.
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जैसे "जल" को रखने के लिए "थल" का होना जरूरी है उसी तरह "तुम्हारे" होने के लिए "उसका" होना जरूरी है.
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पहले "वह" है तब "तुम" हो- यह तुम्हारी आस्था, विश्वास या श्रद्धा है.
यदि"तुम" हो तो "वह" भी है.- यह तर्क (deduction) है.
और
यदि "तुम" नहीं हो तब भी "वह" है- यह ज्ञान है.
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"तुम" वही हो जो "वह"है - यह विशेष ज्ञान अर्थात् विज्ञान है.
"तुम" उसी के हो- यह तुम्हारी भक्ति है.
~R.R.Prabhakar.
26.12.2022.
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