सबहिं नचावत राम गोसाईं

सबहिं नचावत राम गोसाईं
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जरा स्वयं पर और अपने आस-पास चल रहे गतिविधि यों पर तात्विक एवं अर्थपूर्ण दृष्टि डालें.
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कहीं दिन है तो कहीं रात
कोई जाग रहा है तो कभी सो रहा है.
कोई हॅंस रहा है तो अगले दिन रो रहा है.
कोई ख़ुशी से निहाल है तो अगले हीं पल क्रोध से कठोर वचन बोले जा रहा है.
कोई कूद रहा है तो दूसरे दिन कराह रहा है 
कोई गप कर रहा तो कुछ देर बाद झगड़ रहा है.
अपने बच्चे को कोई दुलार रहा है तो अगले हीं पल डांट या पीट दे रहा है.
कोई मंदिर जा रहा है तो कोई मस्जिद.
कोई गुरूद्वारा तो कोई गिरजाघर.
कोई खा रहा है तो कोई खिला रहा है.
कोई डाकू साधु बन गया है तो कहीं वही साधु डाकू.
कोई व्यास गद्दी पर बैठ "ब्रह्म सत्य: जगत मिथ्या" जैसी बातें कह प्रवचन दिए जा रहा है तथा वही कुछ देर बाद पर्दे के पीछे से चढ़ावा में आए रूपए का सख्ती से हिसाब ले रहा है. न जाने और भी क्या क्या कर रहा है.
कोई जा रहा है तो कुछ देर बाद लौट रहा है.
कोई महल में रह रहा है तो कोई झोंपड़ी में.
कोई किसी को"दौड़ा" रहा है तो कुछ दिनों बाद खुद" दौड़" रहा है.
कोई किसी चीज को खरीद रहा है तो बाद में परिस्थितिवश उसी चीज को बेच रहा है.
कोई परिस्थितिवश "सुन" रहा है तो कोई "सुना" रहा है.
कोई नेता बनने को बेचैन हो तो कोई अभिनेता.
कोई अधिकारी बनकर रौब गांठ रहा है तो कोई सेठ बन कर माल काट रहा है.
बड़ा अधिकारी अपने से छोटे अधिकारी को घुड़क रहा है तो छोटा अधिकारी बड़ा बाबू पर. 
बड़ा बाबू छोटा बाबू पर और छोटा बाबू चपरासी पर.
वही बड़ा अधिकारी अगले हीं दिन नेता के समक्ष विनम्रता,उदारता, सदाशयता,परदुखकातरता की मूर्ति नजर आता है.
कोई खाना फेंक रहा है तो कोई उसी फेंक दिए खाने को चुन रहा है.
पैदल साईकिल खरीदना चाहता है, साईकिल वाला बाइक. बाइक वाला फोर व्हीलर, फोर व्हीलर वाला सेडान.
कोई हवाईजहाज़ हीं खरीद रहा है.
कोई मोटर से फुर्र से इधर तो कभी उधर जा रहा है तो कोई बगल में धीरे-धीरे पैदल हीं अपने गंतव्य की ओर मुखातिब है.
कोई ट्रेन से उतरने के लिए जद्दोजहद कर रहा है तो कोई उसी ट्रेन में चढ़ने के लिए बेताब है.
रजिस्ट्रार के सामने कोई जमीन बेचने के लिए खड़ा है तो कोई खरीदने के लिए.
डाक्टर के पास कोई बच्चा पाने की आस में दिखाने हेतु घंटों बैठा है तो कोई नसबंदी/बंध्याकरण शिविर में लाइन लगा अपनी बारी का इंतजार कर रहा है.
कोई मोबाइल चला रहा है तो कोई कम्प्यूटर के पर्दे को इधर से उधर किए जा रहा है.
किसी को मरने तक की फुर्सत नहीं है लेकिन सभी 'मरे' जा रहे हैं 
आफिस में कोई काम कर रहा है तो कोई काम जैसा कुछ काम कर रहा है.
कोई घूस दे रहा है तो कोई घूस ले रहा है.
कोई ठग रहा है तो कभी खुद ठगा महसूस कर रहा है.
किसी के यहां उत्सव है तो कहीं मातम छाया हुआ है.
कहीं सड़क पर बारात जा रही है तो उल्टी दिशा में मंयत को मिट्टी देने वाले चल रहे हैं.कहीं फाइव स्टार होटल में पार्टी चल रही है तो वहीं होटल के पीछे झुग्गी में छोटा बच्चा भूख से बिलबिला रहा है.
कोई ट्रांसफर होने पर क्वार्टर खाली कर रहा है तो कोई उसी क्वार्टर में शिफ्ट करने के लिए ट्रक में सामान के साथ इंतजार कर रहा है.
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जैसे कोई मर्कट (बंदर) कूद-फांद कर पूरा दिन तृष्णा में बिता कर रात में कहीं किसी पेड़ की डाल पर सो जाता है उसी प्रकार तृष्णा ज्वर से पीड़ित यह मनुष्य जीवन भर पुत्रैषणा,वित्तैषणा और लोकैषणा के अधीन कूदता-फांदता-उछलता एक दिन थक कर हथेली खोले दांत चियारे चिरनिंद्रा में आंखें मूंद लेता है 

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निष्कर्षत: मेरे सहित सभी नाच रहे हैं. 
किंतु कौन नचा रहा है? इसका Director कौन है?
गोस्वामीजी कहते हैं-
सबहिं नचावत राम गोसाईं
नाचत नर मर्कट किय नाईं
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                            राजीव रंजन प्रभाकर.
                               ०२.०३.२०२३.

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