एकटा रहय इलबा.

एकटा रहय इलबा
***********************************************
आय भोरे में रोशन के फोन आयल छल. बहुतो साल सऽ ओ आब बम्ब‌ई में रहैत ये. दू तीन मास पर कखनो कऽ ओ फोन हमरा अवश्य करैत ये. बम्ब‌ई में ओटो रिक्शा चलाबै ये. ओकर बिवाह सेहो भऽ गेल छै.
जखन ओ फोन हमरा करैत ये ओ कहैत जे सर! एक बेर बम्ब‌ई आबू. सौंसे बम्बई हम अहां आउर दीदी के अपन टेम्पू पर बैसा कऽ घूमा देब. हम कहैत छी-हंऽ-हंऽ अवश्य. हम एक दिन जरूर बम्बई जेबौ तोरा संऽ भेंट करै के हमरो बड़ मोन करैत ये आ तोहर दीदी के तूं प्रायः याद अबैत रहैत छी.
****************************************************
रोशन!-आय से प्रायः बाइस बरस पहिने एक दस-बारह बरिसऽक बालक. ओकर गाम आ घर ओतेह जतऽ हमर पत्नीक जन्मस्थली. बलाॅक'क पोस्टिंग बुझिते छी तखन केहन-केहन बन खंड में होयत छल. हमरा पोस्टिंग सेहो तेहने सन जगह में होयत रहै जतऽ हम बुझैत छी जे केओ आबैय ले नै चाहैत. कहै ले तऽ ब्लाॅक किंतु न ढंग के आवागमन'क साधन नै बिजली; बूझू जे घोर असुविधा. हमर पत्नी के तहिया बड़ खौंझ होय; प्रायः कहथिन एते टा कम्पीटीशन पास कऽ के लोक के अहि सब तरहक जगह पर नोकरी करै आबय पड़ैत छै,इ नहिं बूझैत छलिय. 
आब तऽ उहो बेश बुझनुक भऽ गेल छथि.व्यक्ति के लेल सबसऽ पैघ शिक्षक ओकर परिस्थिति होयत छै. ओना आब ब्लाको सब बहुतो रास सुविधा संऽ लैस भऽ गेल अछि किंतु तहिया एहन विकास नहिं रहय.अस्तु.
ताहि समय में एक बेर सपत्नीक सासुर जेबाक अवसर भेटल. हमर पत्नी के दू-ढ़ाई बरिसक बेटी के सम्हारैये में अपसियांत देखि हुनकर मां-बाबूजी के इ बूझै में भांगठ नहिं रहलैन जे हुनकर बेटी के ब्लॉक में घरेलू काज संगहिं बच्चा के सम्हारै में बेश दिक्कत भऽ रहल होयत हेतैक.
वापसी बेर में हमर ससुर हमरा सं कहलखिन- पाहुन! इ बच्चा के संग नेने जाउ. एकरा अपन बच्चा जाइन अपने लंग राखब. जहां तक संभव हो एकरा पढ़ाबैक सेहो ब्लाकेक कोनो स्कूल में इंतजाम कऽ देबैक. इ हो छौंड़ा अहां संग रहि दू अक्षर सीखबो करत आ संगहि हमर नतिनी के खेलायत ताकि हमर बेटी के काज करै में किछु सुविधा भऽ सकैत.
हम देखलिए जे ओ बालक के माता-पिता सेहो ओतैय रहैथ. हुनका हम देखलिए जे कोनो आपत्ति नहिं बल्कि हुनक चेहरा पर प्रसन्नतेऽक अनुभव भेल. जहां तक अपन बात; हमरा तऽ बुझू जे मनऽक बात भऽ गेल आ पत्नी'क प्रसन्नता ते पूछू नै.
****************************************************
ब्लाक'क ग्रामीण परिवेश. सांझ होयते भकोभंट अन्हार भऽ जाय. बिजली के कोनो प्रश्ने नै. ओहि अन्हार के सोलर लैलटर्न अपन समस्त ऊर्जा खर्चो केला क पर्यंत परास्त नहिं कऽ पाबैत.
ग्रामीण परिवेशजन्य अभ्यास'क अधीन रोशन हमरा नया- नया में मालिक कहि संबोधित करै ताहि पर ओकर दीदी कहलकै- तूं हुनका मालिक-फालिक जूनि कहल करही. आब से तूं हुनका 'सर' कहल करबहिक. ओ अपन सरल स्वभाव वश अपन दीदी से पूछलक- तखन मालिक के छथिन्ह?
       हम चट दऽ अपन सीओ वाला विद्वत्ता छंटैत कहलिए- अहिठाम'क मालिक बिहार सरकार आओर संसार'क मालिक भगवान.
   पता नहिं तखन ओ कि बुझलक किंतु तहिया से ओ हमरा 'सर' कहै लागल.
 कि मजाल कि हम रोशन पर कखनो खिसिया सकी!
               कनियो ओकरा पर खिसियेला पर ओकर दीदी (हमर पत्नी) हमरा संऽ लड़ैक लेल तैयार भऽ जाइथ. 
         आब याद अबैय जे ओ जगह आ समय सुविधा से हीन अवश्य छल किंतु जीवन'क शिक्षा में ओकर अमूल्य योगदान अछि.     
           ओ समय एहि बात'क साक्षी अछि कि अभाव में जे भाव छै से अनुभव के विषय होयत अछि वर्णन के नहिं. संगहि हमर प्रारंभिक गृहस्थ जीवन में जे रोशन'क योगदान रहल से भूलैक विषय नहिं थिक. 
हमर बेटी के लेल तऽ बूझू जे ओ एकतरह से सदिखन बडीगार्ड'क भूमिका में रहैत रहय. रोशन के हम एकटा साइकिल किन देने रहिए. साईकिल पर चढ़ि ओ बुझै जे हवाई जहाज पर चढ़ल छी. जतय-जतय हमर बेटी ब्लाक में टहलय-बुलय रोशन ओकर पाछू-पाछू साइकिल से. कि मजाल कि केओ हमर बेटी के ओकरा रहैत कुछ कैह सकै! बेटी के इस्कूल से आबैत काल हुए वा कतौ घूमैत काल - रोशन साइकिल से ओकर पाछू-पाछू. 
          कालांतर में ओ ब्लाक'क ड्राइवर साहेब सत्यनारायणबाबू के पटिया'क ड्राइवरी सेहो सीख लेलक. हम अखैन धरि निधोख चलाबै लेल सीखये नै पैलों आ रोशन ड्राइवरी में हमरा सोझे में ट्रेंड भऽ गेल.
****************************************************
सांझ'क अन्हार में मन बहलाबैक लेल हमर पत्नी कहथिन- रे रौशनमा! एगो खिस्सा कही.
रोशनमा शुरू भऽ जायत- 
"एकटा रहय इलबा,एकटा रहय पिलबा एकटा रहियै हम
      चलै चल भाय जाल खेलै ले     
       इलबा के भेल भोंरा, पिलबा के भेल रेहू हमरा फंसल एगो छोटकी पोठी
       चलै चल भाय पकबै ले
इलबो पकेलक,पिलबो पकेलक हमर गेल जैड़
इलबो देलक पिलबो देलक पेट गेल भैर
चलै चल भाय पाइन पियै ले
धार'क पाइन इलबो पीलक,पीलबो पीलक हम गेलूं पिछैड़
इलबो घीचलक पीलबो घीचलक हम गेलूं इकैल."
           इ कहि ओ खी-खी के हंसय लागै. हंसैत काल अन्हार में ओकर सुंदर दांत मोती जकंऽ चमकै लागैत आ छोट-छोट आंखि बिजली'क भुकभुकिया बल्ब जोकंऽ चमैक उठैत.
           सत्य कहय छी तहिया ओकर इ कविता के भाव हमहूं नै बूझैत रही.  
ओकर इ फकरा सुनि-सुनि तथा प्रस्तुति वा कहैक अंदाज देखि सब गोटे खाली हंसैत रही.  
***********************************************
 सुखकालीन परस्पर सहकार आ संकटकालीन सहयोग'क भाव वा दर्शन जे इ कविता में प्रछन्न अछि ओकरा आय धरि हम सब आत्मसात नहिं कऽ सकलहुं.
नै ते समाज वा कि दुनिये में एतैक रास वैमनस्यता,कटुता रहित'ग! सहयोग वा सहकार'क तऽ बाते छोड़ू.
***********************************************
ब्लाके-ब्लाक जतय-जतय हमर पोस्टिंग भेल गेल रोशन हमरा संगै रैह ज़बान भेल गेल आ मैट्रिक पास कैला'क पश्चात नीक अवसर'क तलाश में बम्बई गेल. तहिया से ओहिठाम ये. 
 टेम्पू सेहो ओकर अपने छै.
ओतय ओ नीक जोकां रहै ये;आमदनियो एतुका कतेको नोकरी से बहुत बढ़िया. 
भगवान ओकरा सानन्द राखथुन्ह.
राजीव रंजन प्रभाकर.
२२.०५.२०२२.

Comments

Popular posts from this blog

साधन चतुष्टय

न्याय के रूप में ख्यात कुछ लोकरूढ़ नीतिवाक्य

भावग्राही जनार्दनः