मैं भी केवट तूं भी केवट.(जिद----खेवैया केवट का श्रीराम से)

मैं भी केवट तूॅं भी केवट.
                              (जिद---खेवैया केवट का श्रीराम से)

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         कुछ अपनी ओर से लगा-बझा कर लिखने का प्रयत्न किया हूं; अरूचिकर या अतार्किक लगे तो क्षमा कर दीजीएगा.
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 श्रीराम- भाई केवट! हमें पिता की आज्ञा पालन में वन को जाना है; तुम्हारा सहयोग चाहिए. अपनी नाव से हमलोगों को देवसरि के उस पार उतार दो भाई.
केवट- वो तो सब ठीक है, किंतु हे सर्वप्रिय राम! मैंने एक बात जो आपके बारे सुन रखी है उससे मुझे घबराहट हो रही है और आप कहते हो कि अपनी नाव से पार उतार दो. 
   (श्रीराम के मुखमंडल पर आश्चर्यमिश्रित मुस्कान का आगमन होता है)
श्रीराम- क्या बात सुनी है मेरे बारे में मेरे भाई? मैं कुछ समझ नहीं पाया जरा बुझाकर कहो.
केवट- बात ये है कि मैं ठहरा एक गरीब नाविक. कुल मिलाकर एक यही नाव मेरी सम्पत्ति है. इसी नाव से मेरे समूचे परिवार का गुजर बसर होता है. नाव खेने के अलावा और कोई हुनर भी मेरे पास नहीं है. 
सब कहते हैं कि आप के पैर में कोई अजगुत जड़ी है जो पत्थर की मूर्ति को भी मनुष्य में बदल देती है. 
स्वामी!आप हीं बताएं यदि मेरी ये काठ की नाव भी कहीं मुनि पत्नी बन जाए तो क्या होगा?मैं तो कहीं का नहीं रहूंगा!
तब तो राजन! मेरी जीविका का हीं जयसियाराम हो जायेगा!
   यह कह केवट ने श्रीराम के चरण पकड़ लिए.

(श्रीराम आश्चर्य से केवट की प्रेमभरी अटपटी बात प्रेम से सुन रहे हैं किन्तु अनुज लक्ष्मण को केवट का यह प्रलाप अनर्गल लग रहा है.वे हो रहे अनावश्यक विलम्ब को देख मन हीं मन कुपित हो रहे हैं; किंतु प्रकाश्यत:कुछ कह नहीं पा रहे हैं)

श्रीराम केवट का निहोरा करते हुए बोले- तो भाई बताओ क्या किया जाए जिससे तुम्हारी नाव बची रहे. देखो तुम किसी तरह हमलोगों को पार उतार दो. बड़ी कृपा होगी. बहुत विलम्ब हो रहा है.
केवट- उपाय है स्वामी;यदि आप इसमें कुछ सहयोग करें.
श्रीराम- क्या?
हम अपने घर से कठौता लाते हैं. उस कठौता में आपके चरणों को पखार हीं आपको हम अपनी नाव में बैठाएंगे. 
       
                और सुन लीजिए स्वामी! ये जो आपके अनुज लखनलाल हम पर कुपित हो रहे हैं सो चाहे हमको ये अपना तीर चलाकर मार हीं क्यों न डालें मैं आपके चरण पखारे बिना आपको नाव में नहीं बैठाने वाला. हमको मजूरी नहीं चाहिए मात्र आपके चरणोदक का प्यासा हूं;मंजूर हो तो ठीक वरना मैं अपने घर चला.
श्रीराम- अच्छा भाई! जो तुम चाहते हो, वही करो. परन्तु हमें उस पार उतार दो भाई.
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केवट ने भगवान श्रीराम के चरण पखारे; कठौते में चरणोदक संग्रह किया तथा सपरिवार श्रद्धापूर्वक चरणोदक का पान किया. 
इस प्रकार श्रीराम सीताजी और अनुज लक्ष्मण सहित पार उतर सुरसरि के रेत पर खड़े थे. 
और केवट अपनी ढिठाई के लिए भगवान से क्षमा मांग रहे हैं. 
      इधर श्रीराम संकोच से शिथिल हुए जा रहे हैं. आज उन्हें केवट को उतराई तक देने के लिए कुछ भी नहीं है. सीताजी पति के भाव को तार अपने हाथ की अंगूठी निकालकर स्वामी को देने लगी; केवट को बतौर उतराई देने हेतु. केवट मना करने लगे. फिरती बार जब आएंगे तो मैं आप जो देंगे वह सहर्ष ले लूंगा. किन्तु श्रीराम को कुछ कहते नहीं बन पा रहा था.
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केवट प्रभु के मनोभाव देख अकुला उठे;बोले- स्वामी!भला आपसे मैं उतराई लूं यह तो पेशा का अपमान हुआ न!
श्रीराम फिर चौंके; बोले- मतलब?
केवट ने कहा-बात बहुत छोटी है स्वामी. 
 एक नाई दूसरे नाई से हजामत के पैसे लेता है क्या?
क्या एक गाड़ीवान दूसरे गाड़ीवान से गाड़ी में ले जाने के पैसे लेता है?
 एक धोबी दूसरे धोबी से पैसे ले तो ये पेशा का अपमान हुआ या नहीं? 
एक वैद्य दूसरे वैद्य से शुल्क भला लेता है क्या?

             राजन!आप जग की दृष्टि में भले हीं दशरथ कुमार हैं या फिर आप स्वयं भले जानबूझकर अंजान बन रहे हों लेकिन मैं आपको आपकी कृपा से ही जानता हूं.

आपका भी पेशा वही है जो मेरा. हम दोनों तो हमपेशा ठहरे.अंतर मात्र इतना है कि आप अपनी चरणरूपी नौका से भवसागर पार कराते हैं और मैं ठहरा गंगा घाट का एक अदना सा खेवैया. 
किन्तु स्वामी! देखिए तो निष्कर्षत: आप भी खेवैया और मैं भी खेवैया. आप भवसागर के और मैं इस घाट का.
            तो क्या एक खेवैया को दूसरे खेवैया से उतराई लेना चाहिए? आप हीं बताएं.
            भगवान चुप. आज सेवक के प्रेम से प्रभु परास्त हो ग‌ए.
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भगवान को उसका भक्त हीं परास्त कर सकता है दूसरा कोई नहीं.
 प्रभु परास्त प्रेम से होते हैं; न ज्ञान से, न कर्म से.
 केवल और केवल प्रेम से.
कहा भी गया है-
प्रबल प्रेम के पाले पर कर प्रभु का नियम बदलते देखा।
प्रभु का मान भले मिट जाए भक्त का मान न टलते देखा।।
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          कलियुग की बात दूसरी है. यहां तो हमपेशा हीं एक दूसरे का शोषण करने में अपने को गौरवान्वित महसूस करता है.
 चाहे पेशा किसी का नौकरी हो या कुछ और.
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   राजीव रंजन प्रभाकर
     २५.०५.२०२२.

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