Where the mind is without fear.

Where the mind is without fear
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आज ०७. म‌ई है. कविन्द्र रविन्द्र की जन्मतिथि. 
उनकी एक लोकप्रसिद्ध कविता है " Where the mind is without fear.." जो काफी लोकप्रिय है.
 ये कविता मेरी इंटरमीडिएट की अंग्रेजी वाली एक पतली-सी किताब में थी जिसे उस समय मुझे परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए पढ़ना जरूरी था. 
उस समय तो समझ उतनी नहीं थी जितनी कदाचित आज है किन्तु ये कविता बताने के लिए पर्याप्त है कि गुरूदेव के लिए स्वतंत्रता के क्या मायने हैं. 
निश्चित रूप से "स्वतंत्रता" उनके लिए राष्ट्र संसीमित न थी बल्कि यह ज्ञान और तर्क सिंचित एक ऐसी वैश्विक भूमि पर वास करना था जिसके वासी आपस की हर एक ऐसी दीवार को ध्वस्त कर सकें जो भौगौलिक एवं अन्य संकुचित संकीर्णताओं की ईंट से निर्मित हों.
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कविता इस तरह है-
Where the mind is without fear
And the head is held high;
Where knowledge is free; 
Where the world has not been broken up
Into fragments by narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth
Where tireless striving stretches its arms
Towards perfection;
Where the the clear stream of reason has not lost its way
Into the dreary desert sand of dead habitat;
Where mind is led forward by thee
Into ever widening thought and action
Into that heaven of freedom, my Father,
Let my country awake.
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आज मैने उस विराट व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने के निमित्त उनकी इस विश्वप्रसिद्ध कविता को हिंदी में अनुवाद करने का प्रयत्न किया है.
आशा है अनुवाद में मेरी अज्ञानताजन्य त्रुटियों को माफ कर दिया जाएगा.
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जहां मन भयमुक्त हो
      और भाल उन्नत;
जहां ज्ञानोद्योग करमुक्त हो;
जहां संसार को संकीर्ण देशी दीवारें खड़ी कर टुकड़ों में न तोड़ा गया हो;
जहां कोई भी "शब्द" सत्य के अंत:स्थल से निकल कर बाहर आता हो;
जहां अथक  एवं समवेत मानवीय प्रयास "त्रुटिहीनता" को कैद करने के लिए अपनी भुजाओं को सदैव फैलाते रहें;
जहां तर्क़ की निर्मल धारा मृत रूढ़ियों की बालुकाराशिरूपी मरूभूमि में कदापि विलीन न हो सके;
जहां आप हमारे मन को हाथ पकड़ कर विचार तथा कर्म के सतत विस्तार हो रहे उस प्रदेश में सदैव प्रवेश कराते रहें.
ऐसे स्वतंत्रता रुपी स्वर्ग में हीं;
                 हे मेरे परमपिता!
   मेरा देश अपनी आंखें खोले.
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Had Tagore been heeded to world would not have been what it is today.
                                                    भावानुवाद-
                                               राजीव रंजन प्रभाकर
                                                     ०७.०५.२०२२.

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