सनातन धर्म की सेवा में आचार्य शंकर, तुलसी एवं गीता प्रेस (कल्याण पत्रिका)का योगदान.
मेरे विचार से कलियुग में सनातन धर्म की सेवा जितना आचार्य शंकर (शंकराचार्य) से हुई है उतना कदाचित अब तक किसी से नहीं बन पड़ा है. १. बौद्ध धर्म और नाना प्रकार के वेद विरोधी पंथों के उत्कर्ष से तत्समय पराभव को प्राप्त हो रहे सनातन धर्म को एक संन्यासी युवक जिसकी अवस्था मुश्किल से २० वर्षों की रही होगी, द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिए भारतवर्ष के चारों दिशाओं में भ्रमण कर एवं मठ स्थापित कर इसे संगठित करने का जो सद् प्रयास आचार्य शंकर ने किया,वह वाणी का अविषय है. यह आचार्य शंकर का अद्वैतवाद हीं था जिसने परवर्ती विद्वानों को इसके खंडन मंडन के लिए प्रेरित किया जो फलस्वरूप विशिष्ट-अद्वैत, द्वैताद्वैत आदि सिद्धान्तों के प्रतिपादन का हेतु बना. इसके अतिरिक्त आचार्य शंकर रचित ब्रह्मसूत्र एवं भगवद्गीता पर टीका सनातन धर्म धरोहर रूप में विद्वत परिषद में धारित होकर समादृत है. शंकर ने आत्मस्वरुप के अनुसंधान हेतु वा स्वयं को शुद्ध करने के लिए अथवा किसी लौकिक अभीष्ट की प्राप्ति के लिए हीं सनातन धर्म पथ पर ज्ञान प्रत्यूह को छोड़कर भक्ति भाव से चलने की इच्छा रखने वालों के लिए भी संस्कृत में अनेक कालज...