हिंदी भाषा की वैश्विकता

आज का दिन हिन्दी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. तारीख़ १० जनवरी १९७५; इसी तिथि को नागपुर में पहली बार विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ था जिसमें ३० से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था.
ऊपर ये लिखने का आशय है कि मात्र अंग्रेजी हीं अन्तरराष्ट्रीय भाषा नहीं है,यह प्रतिष्ठा हिंदी को भी प्राप्त है यदि हम इस तथ्य पर दृष्टि डालें कि हिंदी न केवल भारत की राजभाषा है अपितु यह मारीशस, सूरीनाम, गुयाना, फ़िजी, त्रिनिदाद, नेपाल आदि देशों में भी बोली जाती है.
हिंदी के उत्थान के लिए भारत के इतर भी क‌ई देशों में ऐसी संस्थाएं हैं जो इसके विकास एवं प्रसार के लिए प्रयासरत हैं.
मारीशस हिंदी संस्थान,विश्व हिंदी सचिवालय एवं हिंदी सोसायटी, सिंगापुर, हिंदी परिषद नीदरलैंड्स जैसी कई संस्थाएं अपने कौशल एवं सामर्थ्य से हिंदी के विकास के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयत्नशील हैं.
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यह हिंदी की विशेषता हीं थी कि जिसने फादर कामिल बुल्के को आकर्षित किया.सर्वप्रथम अंग्रेजी-हिन्दी शब्द कोष बनाकर उन्होंने हीं हिंदी साहित्य को पाश्चात्य देशों में ले जाने का महत्वपूर्ण कार्य किया जिससे हिंदी का वैश्विक साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित होने का मार्ग और प्रशस्त हुआ.
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प्रत्येक भाषा किसी न किसी देश या उसके भूभाग में रहने वाले निवासियों की मातृभाषा होती है चाहे वह अंग्रेजी हीं क्यों न हो. 
और एक माॅॅं की तुलना किसी दूसरे की माॅं से करना नादानी है. 
इसलिए मेरी किसी भाषा की किसी अन्य भाषा के साथ तुलना करने की इच्छा तो नहीं है किन्तु इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि जोड़ने का जो सामर्थ्य हिंदी भाषा में है वह अतुलनीय है. 
              राजीव रंजन प्रभाकर.
                 १०.०१.२०२४

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