दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य.


आज हनुमान जयंती है.
आज इस अवसर पर उपरोक्त प्रसिद्ध श्लोकांश के सहारे हनुमत् चर्चा कर आनंद प्राप्ति का उद्योग प्रस्तुत निम्न पंक्तियों के सहारे किया गया है जिसे मैंने आज से लगभग दो वर्ष पूर्व मैंने लिखी थी.
यह लेखन रामचरितमानस एवं बाल्मीकि रामायण में वर्णित प्रसंग पर आधारित है; किंतु कतिपय महत्वहीन हेरफेर के साथ.

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पटना रेलवे स्टेशन के समीप स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर की दीवार पर यदि आपने ध्यान दिया होगा तो निम्नलिखित श्लोक को एक जगह लिखा अवश्य देखा होगा-

दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य: रामस्याक्लिष्टकर्मण:।
हनूमाञ्शत्रुसैन्यानां निहन्तामारूतात्मज: ।।
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हनुमान ने कहा - माता मुझे बड़े जोर की भूख लगी है. अशोक वाटिका में ऐसे सुंदर-सुंदर पके फलों को देख मेरी क्षुधा और बलवती हो गई है; माते! मेरे मुंह में पानी आ रहा है.
आप आज्ञा दें तो मैं इन सुस्वादु फलों को खाकर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर दूॅं. 
सीताजी- बेटा तुम कैसी बातें करते हो? तुम्हें बुद्धि नहीं है क्या? दुष्ट रावण ने इस बाग की रखवाली का जिम्मा अपने राक्षसी सेना की एक विशेष टुकड़ी को सौंपा हुआ है. नाना प्रकार के शस्त्रास्त्रों से लैस वे घोरकर्मा निशिचर रात-दिन इस विपिन की रखवाली करते हैं. वे तुम्हें देखते हीं मार डालेंगे. बेटा वे बलवान तो हैं ही साथ ही बड़े क्रूर भी हैं.

हनुमान- माॅं! मैं सौ योजन समुद्र लांघकर आया हूॅं; सच कहता हूॅं मुझे इस समय भूख बहुत लग रही है और इन पके फलों को देख मेरी भूख मेरे कब्जे से बाहर हो रही है.

माॅं! एक क्षुधावंत वानर को फलों के बाग को देख कर हीं संतोष करना पड़े तो बड़ी अनहोनी बात होगी.

 माता!बस यदि आप आज्ञा दें तो मैं अपनी भूख मिटा सकूं. हाॅं;आप जो इन रखवाले राक्षसों के बारे में कह रहीं हैं कि वे बलवान हैं,क्रूर हैं आदि-आदि.
तो माॅं! मुझे उनका मुझे कोई भय नहीं है,मुझे तो बस आपकी आज्ञा चाहिए और कुछ नहीं.
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बालहठ के सामने माता को झुकना पड़ा.
हनुमान आज्ञा पाते ही फल खाने लगे और साथ ही साथ उन फलों के वृक्षों को उखाड़-उखाड़ कर फेंकने लगे. 
बाग को तहस-नहस करते देख सारे राक्षसों ने हनुमान पर हमला कर दिया और उन्हें चारों और से घेर लिया.
वे नाना शस्त्रास्त्रों को हनुमान के सामने चमकाते हुए पूछने लगे-रे उपद्रवी-उत्पाती बानर! क्या तुम्हें अपने प्राण का कोई मोह नहीं? क्या तुमने कभी महापराक्रमी,महान बलशाली राक्षसेन्द्र लंकेश रावण के विषय कुछ नहीं सुन रखा है जो तुमने इस बाग के फल को तो खाया हीं साथ हीं इस सुंदर बाग को उजारने की भी धृष्टता की है? 
 तूॅं तो बड़ा नि:शंक दीख रहा रे!
 तूॅं आखिर है कौन और किसके कहने से तूने ऐसा किया है? तुझे किसी ने यहां भेजा तो नहीं है न?
जल्दी बता नहीं तो इसी क्षण तुम्हारे प्राण लेने को मेरे ये अस्त्र और शस्त्र व्याकुल हो रहे हैं.
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स्वर्णवर्ण वीर हनुमान ने अपना परिचय उन राक्षसों को किस तरह दिया; ये देखिए.
प्रस्तुत लेखन का उद्देश्य भी यही है कि हनुमान का स्वयं के बारे में दिए गए उस परिचय को स्मरण कर आनंदित हुआ जाय.

आगे का प्रसंग बाल्मीकि रामायण से लिया गया है. 

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कवीश्वर बाल्मीकिजी रामायण में लिखते हैं-
तब पर्वत के समान विशाल शरीर धारण कर श्रीमान हनुमान ने अपनी पूॅंछ को पृथ्वी पर पटक कर बड़े जोर से गर्जना करते हुए इस प्रकार घोषणा की-
जयत्यतिबलो रामो लक्षमणश्च महाबल:‌।
(अत्यंत बलवान भगवान श्रीराम तथा महाबली लक्ष्मण की जय हो.)
राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालित:।।
(श्री राघवेन्द्र के द्वारा सुरक्षित राजा सुग्रीव की जय हो.)
 दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मण:।
(मैं अनायास ही महान पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्री रामचन्द्र जी का दास हूं.)
 हनूमाञ्शत्रुसैन्यानां निहन्तामारूतात्मज:।।
(मेरा नाम हनुमान है. मैं वायु का पुत्र एवं शत्रु सेना का संहार करने वाला हूं.)
न रावण सहस्त्र मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्।
शिलाभिश्च प्रहरत: पादपैश्च सहस्त्रश:।।
 मैं हजारों वृक्ष और पत्थरों से जब प्रहार करने लगूंगा तब तेरे वे सहस्त्रों रावण मिलकर भी युद्ध में मेरा सामना नहीं कर सकेंगे जिनका तूं नाम ले-लेकर मुझे डराने का व्यर्थ प्रयत्न कर रहा है.)
अर्दयित्वा पुरीं लंकामभिवाद्य च मैथिलीम्।
समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतांसर्वरक्षसाम।।
(मैं तुम्हारे इस सम्पूर्ण लङ्कापूरी को तहस- नहस कर डालूंगा और मिथिलेशकुमारी सीता को प्रणाम कर तुम्हारे सामने देखते-देखते हीं अपना कार्य सिद्ध कर चला जाऊंगा.)
                      (बाल्मीकि रामायण)
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हनुमान के इस गर्जना मात्र से सम्पूर्ण राक्षसदल भय से थर्रा उठा. 

 पट्टिश,शूल,प्रास,गदा,बाण, मुगदर,तोमर,भिंडिपाल,परिघ जैसे नाना शस्त्रास्त्रों से लैस उन राक्षसों को वीर हनुमान ने अपने लातों,दांतों एवं लोमपाश से तथा वज्रमुष्टि के प्रहार से भूलूंठित कर धरती पकड़ा दिया.
राक्षसों में किसी की भुजा उखड़ ग‌ई तो किसी की गर्दन मरोड़ दी गई. किसी की कमर टूट कर पेड़ से लटक गई तो कोई हनुमान के मुष्टि प्रहार से पेट के फट जाने पर पीड़ा से चीत्कार करते हुए अपने प्राणों को छोड़ रहा था.

गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं -जो बचे वे रावण के पास रोते-बिलखते-कराहते ये कहने पहुॅंचे कि
                                 -"प्रभु मर्कट बल भूरि."
सभामध्य सिंहासनासीन रावण ने अपने पुत्र अक्षय को इशारा किया.
 अक्षयकुमार बाॅंह ठोकते हुए चले. उसे आते दूर से देखते हीं कपिकेसरी हनुमान अक्षय के वक्ष को लक्ष्य कर हवा में फूर्ति से ऐसा उछले कि उनके दोनों लातों ने अक्षय के अस्थिपिंजर को हीं क्षत-विक्षत कर दिया. 
अचेत अक्षय धराशाई हो ग‌ए. पल में उसके प्राण पखेरू उड़ गए.
पुत्र के मारे जाने का समाचार सुन रावण की आंखें आश्चर्य से फटी रह गई;दूसरे हीं पल वह क्रोध से तिलमिला उठा.
        ऊपर से शांत दिखने का अभिनय कर उसने अपने प्रिय पुत्र बारिदनाद की तरफ देखते हुए कहा-
पुत्र! देखो तो सही ये कौन अजगुत बानर है!
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हनुमानजी का काम बन गया था. अगले ही पल वह दसानन के सम्मुख थे-भले ही ब्रह्मास्त्र से आबद्ध.
         उन्हें तो लंका को जला कर शत्रु पक्ष में वह आतंक पैदा करना था जो रावण सहित उसके परिजन और पुरजन को चैन से सोने न दे–न दिन में न रात में.
इस तरह बुद्धि-बल से पूजित हनुमान ने स्वयं को भगवान श्रीराम का लंका में Visiting Card के रूप में प्रस्तुत कर रावण को बतला दिया कि आगे क्या होने वाला है. 
राम-रावण युद्ध का ट्रेलर जातुधान सेना अशोक वाटिका में हनुमानजी के सौजन्य से देख हीं चुकी थी.

राजीव रंजन प्रभाकर.
२३.०४.२०२४.

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