गयातीर्थ में पिंडदान एवं तर्पण का माहात्म्य.

आज महामहिम राज्यपाल का पितृपक्ष में गयाजी आकर विष्णुपद मंदिर में दर्शन-पूजन एवं तदन्तर पिंडदान तथा तर्पणादि का कार्यक्रम है. इसके पूर्व पक्षारम्भ में ही इसी अभीष्ट की पूर्ति हेतु महामहिम उप-राष्ट्रपति महोदय का भी आगमन हो चुका है.
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गयाजी तीर्थ में विगत सात-आठ दिनों से लगातार भारी संख्या में अपने पूर्वजों के प्रति पिंडदान एवं तर्पण के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित करने आनेवाले तीर्थयात्रियों को देख मुझ जैसे क‌ई लोग जिन्होंने अपनी बुद्धि को श्रद्धा एवं विश्वास पर राज करने के लिए नियुक्त कर रखा है,के लिए किसी अचरज से कम नहीं है.
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 आज के लाभ-हानि आकलनलिप्त एवं तर्कप्रस्तुत समाज में भारतवर्ष के विभिन्न भू-भागों से आए सभी वर्णों के राजा,वणिक,भिखारी सदृश लोगों का श्रद्धा एवं विश्वास का आश्रय लेकर यहां आना और उससे भी बढ़कर उस श्रद्धा-विश्वास के तहत उन्हें पंडाजी के निर्देशन में अपने पूर्वजों के प्रति कर्मकांड करते हुए देखना यह साबित करता है कि बुद्धि कितनी भी लाभालाभ के उद्योग में लिप्त क्यों न हो जाए किंतु आज भी हृदय से भावना,श्रद्धा एवं विश्वास को निष्कासित करने में समर्थ नहीं हो पायी है.
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 प्रबल बुद्धिवाद जो इसे ढ़कोसला, पाखंड एवं ठगविद्या से अधिक नहीं मानता, को यहां आस्था और विश्वास से पराजित होते देखना किसी कौतुक से कम नहीं है.
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गयातीर्थ अन्य तीर्थों से इस प्रकार से भी महत्वपूर्ण है कि जहां श्रद्धालु अपने कल्याण की कामना से प्रेरित होकर अन्य तीर्थों की यात्रा करते हैं वहीं गयाजी में अपने पूर्वजों के कल्याण हेतु गयाजी जाते हैं. इससे उनके पूर्वज का कल्याण तो होता हीं है अपने इस सुकृत्य से उनका अपना कल्याण भी स्वयमेव हो जाता है.
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गयाजी के माहात्म्य तथा पिण्डदानादि की महत्ता को कतिपय शास्त्रों में किस तरह से निरूपित किया गया है; उन्हीं शास्त्रों में उल्लिखित कतिपय श्लोकों को यहां निवेदित किया जा रहा है.

                यदि शास्त्रोक्त वचनों को प्रमाण माना जाए तो निःसंदेह पूर्वजों की क्षुधा-पिपासा को पिंडदान एवं तर्पण के द्वारा शांत करना उसके संतान की ज़िम्मेदारी बनती है. ऐसा कर वे अपने पूर्वजों को तो तृप्त करते हीं हैं साथ हीं श्रद्धालु स्वयं अपने कल्याण का मार्ग भी पूर्वजों की प्रसन्नता और उनके आशीर्वाद से प्रशस्त कर लेते हैं. 
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श्रीमद्देवीभागवत में एक श्लोक है जिसके अनुसार किसी पुत्र की पुत्रता निम्नलिखित तीन बातों से हीं प्रमाणित होती है-
१. माता-पिता के जीवित रहने तक उनके वचनों का आदर करना,उनकी आज्ञा का पालन करना-(जीवतो वाक्यकरणात्)
२. उनकी मृत्यु पश्चात श्रद्धापूर्वक श्राद्ध सम्पन्न करते हुए ब्राह्मण भोजनादि उदारतापूर्वक कराना (क्षयाहे भूरिभोजनात्)
३. तदन्तर गयाजी आकर उनके निमित्त पिंडदान एवं तर्पणादि कर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करना (गयायां पिण्डदानाच्च)
उपरोक्त तीनों कर्तव्यों का निर्देशन श्लोकरूपेण निम्नवत है-
जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्।
गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभि:पुत्रस्य पुत्रता ।। 
            (श्रीमद् देवी भागवत)
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वायु पुराण में एक श्लोक है जिसमें पूर्वज अपने बारे में कहते हैं—-
जो पुत्र गया जाएगा वह निश्चित रूप से हमें त्राण दिला देगा.
क्या वह इतना भी नहीं करेगा कि वह अपने पैरों से फल्गु के जल को स्पर्शमात्र का दान हमें दे सके?
श्लोक इस प्रकार है-
गयां यास्यति य: पुत्र: स नस्त्राता भविष्यति।
पद्भ्यामपि जलं स्पृष्ट्वा किं न दास्यति।।
            (वायु पुराण)
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एष्टव्या: बहव: पुत्रा यद्येकोऽपि गयां व्रजेत्।
अर्थात् 
मनुष्य को बहुत से पुत्रों की कामना इसलिए करनी चाहिए कि उनमें से कोई एक भी गया हो आए अथवा अश्वमेध यज्ञ करे अथवा पितरों की सद्गति के लिए नीलवृषभ का उत्सर्ग करे.
             (वायु पुराण)
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वायु पुराण में हीं वचन है-
गया आए अपने पुत्रों को देखकर उनके पूर्वज उत्सव मनाने लगते हैं.
गया प्राप्तं सुतं दृष्ट्वा पितृणामुत्सवो भवेत्।
                       
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इसी शास्त्र में उल्लिखित है कि यदि गयाजी में आकर पिंडदान करने का सामर्थ्य होते हुए भी यदि पुत्र गया न जाए तो उनके पूर्वज सोच में पड़ जाते हैं कि उन्होंने व्यर्थ हीं पुत्र प्राप्त करने का परिश्रम किया.

गयाभिगमनं कर्तुं यः शक्तो नाभिगच्छति।
शोचन्ति पितरस्तेषां वृथा तस्य परिश्रम:।। 
            (सन्दर्भ-वायुपुराण)
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इसी में आगे कहा गया है-
गया में ऐसा एक भी स्थान नहीं है जो तीर्थरूप में विद्यमान न हो. सभी तीर्थों में गयातीर्थ वरेण्य है.
गयायां न हि तस्थानं यत्र तीर्थ न विद्यते।
सांनिध्यं सर्वतीर्थानां गयातीर्थं ततो वरम्।।
            (सन्दर्भ-वायुपुराण)
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इसी पुराण का श्लोक देखिए जो गया तीर्थ के महात्म्य को दर्शाता है-
ब्रह्मज्ञानेन किं कार्यं गोगृहे मरणेन किम्।
वासेन किं कुरूक्षेत्रे यदि पुंसो गयां व्रजेत्।।
            (सन्दर्भ-वायुपुराण)
इस श्लोक का आशय इस प्रकार है-
ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होने से या गोशाला में शरीर त्याग होने का सुयोग प्राप्त होने से या फिर कुरूक्षेत्र में वास करने से हीं क्या लाभ यदि पुत्र गयाजी में एक बार जाकर पिंडदान या तर्पण न करे.
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 पिंडदान का संकल्प लेकर एक बार घर से गया जी के प्रति यात्रा शुरू कर देने मात्र से यात्रा का प्रत्येक कदम पितरों के निमित्त निर्मित स्वर्गारोहणरुपी सोपान का एक-एक पद में परिणत हो जाता है.
गृहाच्चलितमात्रेण गयायां गमनं प्रति।
स्वर्गारोहणसोपानं पितृणां च पदे पदे।।
        (सन्दर्भ-वायुपुराण)
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आदिगदाधरदेव का ध्यान करते हुए श्राद्ध एवं पिण्डदानादि करनेवाला अपने सौ कुलों का उद्धार कर समस्त पितृगणों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति करा देता है.
आद्यं गदाधरं ध्यायन् श्राद्धपिण्डादिदानत:।
कुलानां शतमुद्धृत्य ब्रह्मलोकं नयेत्पितृन्।।
          (सन्दर्भ-वायुपुराण)
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अग्नि पुराण में बताया गया है कि गया में साक्षात् विष्णु हीं पितृदेव के रूप में विराजमान हैं,उन कमलनयन भगवान का दर्शन करके मनुष्य तीनों ऋणों से मुक्त हो जाता है.
गयायां पितृरूपेण स्वयमेव जनार्दन:।
तं दृष्ट्वा पुण्डरीकाक्षं मुच्यते वै ऋणत्रयात्।।
              (संदर्भ-अग्निपुराण)
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गरूड़ पुराण में यह कहा गया है कि जिसने गरूड़ पुराण नहीं सुना और गया जाकर अपने पितरों का श्राद्ध नहीं किया,वह पुत्र कैसे कहला सकता है और वह कैसे ऋणत्रय (देव ऋण,ऋषि ऋण तथा पितृ ऋण) से मुक्त हो सकता है?
श्लोक है-
न श्रुतं गारूड़ं येन गया श्राद्धं च नो कृतम् ।
स कथं कथ्यते पुत्रं कथं मुच्येद् ऋणत्रयात्।।
                   (संदर्भ- गरूड़ पुराण)
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और तो और यदि किसी प्रसंगवश भी गया में पहुंच कर कोई श्राद्ध करता है तो वह अपने पितरों को तार देता है और स्वयं भी परम गति को प्राप्त करता है.
गयां प्राप्यानुषंगेण यदि श्राद्धं समाचरेत्।
तारिता: पितरस्तेन स याति परमां गतिम् ।।
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कूर्मपुराण का यह श्लोक देखिए-
धन्यास्तु खलु ते मर्त्या गयायां पिंडदायिन: ।
कुलान्युभयत: सप्त समुद्धृत्याप्नुयात् परम् ।।
                 (संदर्भ-कूर्मपुराण)
अर्थात्
वे मनुष्य धन्य हैं जो गया में पिंडदान करते हैं. वे दोनों (माता-पिता) के कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार कर स्वयं भी परम गति को प्राप्त करते हैं.

                ॐ गयायै नमः 
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                        राजीव रंजन प्रभाकर.
                              ०७.१०.२०२३.

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