**जीतने के दो तरीके**

जीतने के दो तरीके हो सकते हैं.
पहला तरीका तो यह है कि अपने क्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि करने का प्रयत्न किया जाय और इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं देना कि शत्रु कौन है उसका बल कितना है, कैसा है. ऐसे व्यक्ति को तो सिर्फ अपने दोषों को दूर करने एवं अपने गुणों में अभिवृद्धि करने से प्रयोजन रहता है. इसी के सहारे वह स्वयं पर भी और शत्रु पर भी विजय प्राप्त करता जाता है.ऐसे व्यक्ति को जीतने के लिए कोई विशेष रणनीति की आवश्यकता नहीं होती है. वह इसलिए कि आत्मबल के समक्ष सभी बलों की सत्ता सिकुड़ जाती है, चाहे वह बल धनबल हो,बाहुबल,राजबल हो आदि. मैंने ऐसे सभी बलों को कभी न कभी इस आत्मबल के समक्ष झुकते हुए देखा है. 
इसका कारण है. कारण यह है कि आत्मा परमात्मा का हीं अंश है; तो आत्मबल को परमात्मा का बल कहा जाय तो इसमें कोई हर्ज नहीं है.
       जीतने के इस तरीके को हम आध्यात्मिक तरीका कह सकते है जो आत्मविजय से लेकर शत्रुविजय तक में समान रूप से उपयोगी होता है.
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दूसरा तरीका है हमेशा इस बात से प्रयोजन रखना कि प्रतिद्वंद्वी या शत्रु कौन है.प्रतिद्वंदी पर विजय प्राप्त करने हेतु उसके गुण या बल को पहचानने की अपेक्षा उसकी कमी अथवा उसके दोषों पर ध्यान केंद्रित करना ज्यादा लाभदायक होता है. इस तरीके में जीगीषु अपने प्रतिद्वंद्वी के उस मर्म स्थान पर चोट करता है जिससे कि वह
 सहज हीं परास्त हो जाय.
 ऐसे तरीके में सारी ऊर्जा और युक्ति स्वयं के गुणों एवं बल में समग्र वृद्धि करने पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय प्रतिद्वंद्वी या शत्रुओं के दोषों को पहचानने एवं दांव पेंच सीखने में खर्च किए जाते हैं जिससे कि प्रतिद्वंद्वी को परास्त किया जा सके चाहे उस परास्त करने के क्रम में स्वयं के कुछ सद्गुणों में ह्रास हीं क्यों न हो जाए.
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       कहने की आवश्यकता नहीं है कि जीतने का यह पहलवानी तरीका है जो आज जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में आजमाया जाता है लेकिन ज्यादा भोंड़े रूप में आपको आज की दलगत राजनीति में दिखाई देगा.
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 पहलवानी या कुश्ती के भी कुछ नियम हैं किन्तु राजनीति में ऐसा कुछ भी नहीं. यहाॅं हिट बिलो द बेल्ट (hit below the belt)भी चलता है.
     राजीव रंजन प्रभाकर.
      17.10.2023

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