द्रौपदी का चीरहरण

दुर्योधन एवं दुशासन सिर्फ़ महाभारत काल में ही नहीं पैदा हुए थे.
द्यूतकर्म से पराभव को प्राप्त सर झुकाए-छुपाए अर्जुन सरीखे बहुतो पांडव भी दिख हीं जाते हैं.
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जुए में हारी रोती बिलखती सब महानुभावों के सामने अपने शील रक्षा की भीख मांगती चीखती चिल्लाती द्रौपदी का चीरहरण भी ऐसा नहीं कि सिर्फ महाभारत काल में हीं हुआ हो.
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वह आज भी हो रहा है- बल्कि चीरहरण सहित शीलहरण भी. वह भी एकांत में नहीं बल्कि सर्वजन के समक्ष. 
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            राजधर्म की रक्षा हेतु वीर-धीर भीष्ण जैसे मर्द भी एक नहीं अनेक हैं जिन्हें राज की सुरक्षा, प्रतिष्ठा एवं विकास का पताका फहराने की प्राण से अधिक चिंता है.
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                      नहीं है तो बस कृष्ण.
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                           ~राजीव रंजन प्रभाकर.
                               २३.०७.२०२३.



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