ठबकि न चालिबा.

ठबकि न चालिबा.
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पैर पटक—पटक कर मत चलो. शोरगुल मत करो जिंदगी में. ऐसे गुजर जाओ कि किसी को पता न चले. अनुपस्थित रहो. परमात्मा के होने का ढंग यही है.परमात्मा है, चारों तरफ उपस्थित है, लेकिन पता नहीं चलता.उसकी कला क्या है? उसकी कला है-ठबकि न चालिबा.. वह पैर पटक—पटक कर नहीं चलता. आंखों में उंगली डाल—डाल कर तुम्हें दिखाता नहीं कि देखो मुझे.

परमात्मा उपस्थित है—अनुपस्थित होकर. है वह मौजूद; किंतु वह दिखाई उनको ही पड़ता है जो खुद भी अनुपस्थित हो जाते हैं, जो खुद भी बिलकुल शून्य हो जाते हैं.बस उनकी ही आंखों में उसकी छवि बन पाती है.

ठबकि न चालिबा…….
लोग कितने अकड़ कर चल रहे हैं! अकड़े जा रहे हैं; ऐंठे जा रहे हैं.
 व्यर्थ ही अकड़े जा रहे हैं.
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तुमने खयाल किया? रास्ते पर तुम अकेले चलते हो तुम एक ढंग से चलते हो.अगर रास्ता सुनसान पड़ा हो, कोई भी न हो, सुबह तुम घूमने निकले हो, तुम एक ढंग से चलते हो. तुम्हारे चलने में ठबक नहीं होती. लेकिन फिर अचानक दो आदमी रास्ते पर निकल आयें, तुम्हारी चाल बदल जाती है.तुम कल चलकर देखना, तुम्हारी चाल बदल जाती है. दो आदमी रास्ते पर आ गये, तुम्हारी चाल बदल गयी.

अब तुम और ढंग से चलते हो.और अगर दो सुंदर स्त्रियां निकल आयें रास्ते पर तो तुम्हारी चाल और भी बदल गयी. तुम जल्दी से अपनी धांसू वो झाडूदार मूंछ पर ताव इत्यादि देने लगोगे, टाई वगैरह ठीक कर लोगे, टोपी तिरछी कर लोगे.तुम एकदम ठबक कर चलने लगोगे. 
         मूंछें नहीं भी हैं तो भी लोग ताव तो देते ही हैं.
 मूंछ होना जरूरी नहीं है ताव देने के लिए. 
          ताव की बात ही अलग है; किसी भी ढंग से दिया जा सकता है, कोई मूंछ पर देता है,कोई टाई पर देता है, कोई आस्तीन समेट कर अपने विशिष्ट होने का अहसास कराता है तो कोई अपने गिरेबान को बार-बार ठीक करने में व्यस्त हो जाता है.

 मतलब कि ताव देने के अनेक तरीके हम अख्तियार करते हैं. 
लोग ऐसे चल रहे हैं कि सारी दुनिया उन्हें देख ले;कि सबकी आंखें उन पर अटक जायें.

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ठबक का अर्थ होता है : मैं सबकी आंखों का केंद्र बन जाऊं.क्यों? क्योंकि अहंकार लोगों का ध्यान मांगता है. और जितना ध्यान लोगों का मिल जाये मेरा अहंकार उतना ही पोषण पाता है.

           तुम्हें जितने लोग रास्ते पर नमस्कार करें, जितने लोग स्वीकार करें कि ही आप कुछ हैं, उतना ही तुम्हारे अहंकार को बल मिलता है.

तुम एक दिन रास्ते से गुजरो, कोई देखे भी नहीं, कोई नमस्कार भी न करे पूरा गांव तय कर ले कि तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करेगा, कि मानकर चले कि जैसे तुम हो ही नहीं—तुम बहुत दुखी हो जाओगे. 

तुम बहुत हारे—थके लौटोगो. तुम कहोगे, बात क्या हो गयी? 
ओह!

तुम्हारी ठबक का कोई परिणाम ही न रहा.
                                                                   ~Osho.

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