बड़ा कौन?
बड़ा कौन?
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बड़ा वही है जो अपने व्यवहार से दूसरे को बड़ा बना दे.
दूसरे शब्दों में; जिसके पास जाकर-बैठकर आप खुद को छोटा महसूस नहीं करते, वही बड़ा है.
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एक कहानी अमिताभ बच्चन साहब केबीसी के एक शो के दौरान हौट-सीट पर आये एक प्रतिभागी को सुना रहे थे. शायद आपमें से कई लोग उस शो को देखे भी होंगे.
कहानी बेशक अच्छी है और यदि कहें तो इसमें जो संदेश निहित है वह वास्तव में व्यक्ति और समाज दोनों में बदलाव लाने में कारगर है.
जो लोग बड़े हैं या खुद को बड़ा समझते हैं उनके लिए तो यह और भी अनुकरणीय है क्योंकि ऐसा करने से वे पहले से ज्यादा बड़े हो जाएंगे.
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कहानी ये है कि गणित के अंकों में से अंक नौ ने एक बार पता नहीं क्यों अंक आठ को थप्पड़ मार दिया.
अंक आठ ने नौ को पूछा- तूने मुझे थप्पड़ क्यों मारा?
अंक नौ बोला- क्योंकि मैं तुमसे बड़ा हूं. मैं थप्पड़ मार सकता हूं सो मार दिया; बस ऐसे हीं.
यह सुन आठ ने भी अपने बगल में बैठे अंक सात को थप्पड़ जड़ दिया.
आठ का सात को थप्पड़ मारना था कि सात ने छः को मारा, छः ने पांच को मारा.
समझिए कि अंकों में अपने से छोटे अंक पर थप्पड़ मारने का सिलसिला चल पड़ा.
यह देख शून्य जो एक के बायीं ओर बैठा था,घबड़ा गया. उसे लगा अब अंक "एक" उसे कसकर जोरदार थप्पड़ रसीद करने वाला है.
उसकी मन: स्थिति देख अंक ने शून्य से कहा- मेरे भाई तुम क्यूं परेशान हो रहे हो? मैं तुम्हे और अंको की तरह थप्पड़-वप्पर मारने वाला नहीं हूं.
ऐसा करो तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ.
अंक "एक" ने उसे प्यार से अपनी पीठ पर बैठा लिया.
अब "शून्य" अंक "एक" की पीठ पर बैठ कर पूर्णतः सुरक्षित था और अंक "एक" अंक "दस" बन चुका था.
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मित्रों! बड़ा वह नहीं जो छोटे को छोटा होने का अहसास कराते रहे बल्कि बड़ा वह है जो अपने से छोटे को "संरक्षण" दे.
यह संरक्षण प्रेम,क्षमा,सहायता,मृदुवचन,सम्मान,सुरक्षा आदि किसी भी रूप में हो सकता है.
यदि छोटे के समक्ष अपने अहंकार प्रदर्शन से भी बाज आते हैं तो यह भी एक प्रकार से उनकी आप सहायता करते हैं.
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मैं इन सभी को "संरक्षण" हीं कहूंगा.
और जैसे हीं वह अपने व्यवहार से अपने से छोटे को "संरक्षण" देने का स्वभाव बना लेगा वह स्वयंमेव बड़े से और बड़ा बल्कि सबसे बड़ा होता चला जाएगा.
उसे और कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी.
इस भाव को हर उस को आत्मसात करने की आवश्यकता है जो कद से,पद से,मद से,बल से,धन से,ज्ञान से,वैभव से, विरासत से,अधिकार से बड़े हैं या स्वयं को बड़ा समझते हैं.
जितना कहना और लिखना आसान है,अमल उतना ही कठिन.
राजीव रंजन प्रभाकर.
३०.१०.२०२२.
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