कृष्णा

एक पुरानी कहानी है. इसे मैंने Like the flowing river नामक पुस्तक में 
 पढ़ी है. किताब Paulo Coelho ने लिखी है. ब्राजील मूल के बहुत ही प्रसिद्ध लेखक हैं. ये अपनी रचना The Alchemist के लिए काफी मशहूर हुए. 
Like the flowing river किताब है तो यह मूलतः उनके यात्रा संस्मरणों का पुलिंदा किंतु इस मामले में जरा अलग है कि यह लेखक के reflective mood और content से पाठक को सिर्फ परिचित हीं नहीं कराता प्रभावित भी करता है. उनकी कोई भी किताब कम से कम जब तक हाथ में है लेखक से बेहतरीन ढंग से connect कर देती है. लेखक जो extraordinary होते हैं उनकी ये खूबी होती है. फिर Paulo Coelho तो जिनियस है हीं; इसे वे अपने बारे में इस किताब के preface में ही घुमा फिरा कर कह दे रहे हैं.
         बहरहाल Paulo Coelho अपनी उस किताब में लिखते हैं कि उन्हें भी ये कहानी किसी ने उनके बंगाल भ्रमण के दौरान हीं सुनायी थी जिसे उन्होंने अपने इस पुस्तक में शामिल कर लिया. क्यों शामिल किया? नहीं पता.
                     किंतु मैं इस कहानी को क्यों अपनी भाषा में क्यों लिख रहा हूं; ये मुझे भी नहीं पता.शायद कहानी पढ़ने के बाद पाठक अपने-अपने रुचि,धारणा या मान्यता के अनुसार निष्कर्ष निकाल सकें.
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कहानी कुछ इस तरह है.
बंगाल का एक गांव.उस गांव का एक बालक अपनी मां के साथ रहता था. उसके पिता की मृत्यु उस समय हो गई जब मुश्किल से कोई पांच साल का रहा होगा. मां उसे बहुत कठिनाई से पाल पोस कर बड़ा कर रही थी. जैसा कि स्वाभाविक है लड़के को अपने मां से गहरा लगाव हो गया था. वह सोचता था मुझे मां की हर बात माननी है. मां को उसके खातिर तकलीफ उठाते देख उसे मन ही मन बहुत दुख होता. 

बालक अब हाई स्कूल में पढ़ने लगा. वह स्कूल पास के शहर में था जिसके लिए गांव के पास के कस्बे तक पैदल जाकर बस पकड़ कर शहर जाना होता था. कुछ दिनों तक तो बस से जाना सम्भव हो पाया किंतु जल्दी ही उसे महसूस हो गया कि रोज-रोज बस का किराया देकर स्कूल जाना उसके लिए अब और मुमकिन नहीं. किंतु स्कूल आते-जाते उसे यह पता चला कि गांव के बाजू से शहर जाने का कोई शार्टकट रास्ता है जो सीधा उस स्कूल के पीछे की बस्ती के पास निकलता है. लेकिन वह कोई चालू रास्ता नहीं है क्योंकि बीच में लगभग एक मील तक जंगल पड़ता था जिस होकर गुजरना वास्तव में मुश्किल तो था ही खतरनाक भी था.
उसने मां से कहा- मां! मैं अब उसी जंगली रास्ते से हीं स्कूल जाया करूंगा. मां घबराई. वह बेटे को खोना नहीं चाहती थी. पति को तो उसने जवानी में ही खो दिया था. किंतु लड़के ने माली हालत का हवाला देकर मां को समझा लिया.
मां बोली- ठीक है बेटे जब तूं ऐसा कर सकता है तो मेरी भी एक बात तुझे माननी होगी. तूं जंगल में प्रवेश करते ही कृष्णा को एक बार पुकार लेना; वे तेरे साथ चलेंगे.
बालक मां की बात वैसा करता और भगवान कृष्ण वास्तव में प्रकट हो जाते और पूरे जंगल भर उसके साथ जाकर जंगल की सीमा खत्म होते ही लौट जाते. यही क्रम चलता रहा.
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कल कालेज में विशेष समारोह होना था. स्कूल के प्रिंसिपल का जन्मदिन मनाया जाना था. सभी लड़के उनके लिए तरह-तरह के उपहार लाने की चर्चा में मशगूल थे.
बालक सोचने लगा. उसके पास तो मास्टरजी को भेंट देने हेतु कुछ है ही नहीं.
घर लौट उसने अपनी समस्या मां से साझा किया.
मां ने कहा- बेटे! तुम ये बात अपने बड़े भाई कृष्णा को हीं कहना. वही तुम्हे कोई वस्तु मास्टरजी को उपहार में देने हेतु कुछ ला देंगे.
          दूसरे दिन बालक ने कृष्णा को ये बात बताई. कृष्णा ने उसे दूध से भरा एक जग दिया. बालक बहुत प्रसन्न हुआ और गर्व से उसने वह दूध से भरा जग मास्टरजी को भेंट किया.
  प्रिंसिपल साहब को उस दूध वाले जग को देखकर कोई प्रसन्नता नहीं हुई. नजर कह रही थी कि उनके लिए इस दूध वाले जग का अन्य कीमती एवं आकर्षक उपहार के सामने कोई खास महत्व नहीं था. बहरहाल उन्होंने बिना कुछ कहे अपने एक नौकर को वो जग किचन में कहीं रख देने का इशारा किया.
नौकर ने किचन में जाकर जग में रखे दूध को दूसरे बर्तन में रख दिया.
परन्तु यह क्या! जग में तो दूध फिर आप से आप भर आया. नौकर ज्यों ही जग को खाली करता जग में दूध फिर से भर आता.
नौकर चिल्लाता बाहर निकला और उस तिलस्मी जग के बारे में प्रिंसिपल साहब को बताया.
सभी छात्र, शिक्षक और तमाम कर्मचारी उस जग को देख- देखकर हैरान थे. दूध से खाली होते ही जग अपने आप दूध से दुबारा भर जाता. सभी इसे प्रत्यक्ष देख रहे थे. कहीं कोई किंतु परन्तु की बात हीं नहीं रह गई थी.
प्रिंसिपल ने चिल्लाकर बालक से पूछा- लड़के! तुम्हें ये जग कहां से मिला?
बालक बोला- मुझे ये जग कृष्णा ने दिया. वही कृष्णा जो जंगल के भगवान हैं जिसे मेरी मां कहती है कि मैं उनका छोटा भाई हूं.
बालक की बात सुन सभी अपनी हंसी रोक नहीं पाए और सारे लोग ठठा कर हंस पड़े.
फिर प्रिंसिपल साहब समझाकर बोले-" लड़के!भगवान-अगवान कुछ नहीं होता.सब तुम्हारी मां का कोरा अंधविश्वास है जिसने तुम्हें भी चपेट में ले लिया है. सब कुछ विज्ञान है विज्ञान; क्या समझे!
इस दुनिया में पदार्थ और उर्जा के अतिरिक्त कुछ नहीं है. तुम लोग अभी हाईस्कूल में ही हो इसलिए बस थोड़े में समझा दे रहा हूं.आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत पर मेरा पीजी में स्पेशल पेपर था.क्या समझे? 
यह कहते हुए मास्टरजी जो फिजिक्स में स्नातकोत्तर थे, के चेहरे पर का रौब दर्शनीय था. 
         बालक ने कहा-जी मास्टरजी.
फिर प्रिंसिपल साहब ने कुछ देर सोचा और लड़के से कहा-अच्छा तो तुम अपने उस कृष्णा से हमलोगों को मिला सकते हो जिसने तुम्हें ये जग दिया?
लड़का खुशी-खुशी बोला- जी मास्टरजी!
लड़के के साथ मास्टरों और विद्यार्थियों की टोली चली जंगल की ओर; भेरीफिकेशन के लिए.
बीच जंगल में जाकर जोर से लड़का चिल्लाता है; कृष्णा...! कृष्णा.....!
किंतु कोई उत्तर नहीं.सिवा कृष्णा शब्द की प्रतिध्वनि के. टोली समवेत रूप से बालक के नादानी पर हंसी. लड़के को दुःख हुआ.
      बालक दुःखी होकर फिर चिल्लाता है. किंतु फिर भी कोई जवाब नहीं.सभी उसकी तरफ उपहास से देख और हंस रहे थे.
रूआंसा होकर बालक ने फिर कृष्णा को पुकारते हुए कहा- कृष्णा! तुम क्यों नहीं आ रहे हो? देखो हमारे मास्टरजी लोग तुमसे मिलने आये हैं.
इस बार बहुत हीं गुरु गंभीर वाणी जंगल को चीरते हुए सुनाई दी- मेरे छोटे भाई! जो मेरे अस्तित्व को ही नकार रहे हैं उनसे तूं और मैं यदि चाहूं भी तो कैसे मिलूं? तूं हीं बता!
                                                राजीव रंजन प्रभाकर.
                                                 देवोत्थान एकादशी.
                                                     १५.११.२०२१.



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