उगना रे मोर कतय गेला
***उगना रे मोर कतय गेला***
मैथिल कोकिल विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त छलाह. विद्यापति केर भक्ति सं प्रसन्न भऽ भगवान सोचलैन जे नोकर बनिकऽ अपन भक्त केर सेवा कैल जाय. भगवान अपन भक्त के दुआरे की की नै करै छथि. ओना तऽ हम सब गोटे इ जनैते छी जे भगवान सदिखन भक्त केर बस में रहै छैथ तथापि इ जनैतो एहि दिस प्रायः उपेक्षे भाव रहैत ये. अस्तु.
तखन विलम्ब कोन बात के! शिवजी तुरंत विद्यापति के ओहिठाम मनुखक भेस में नोकर बनय खातिर ठाढ़ भऽ गेलाह.
(अहि संदर्भ में हुनकर एक लोकप्रसिद्ध खिस्सा- उगना रे मोर कतय गेलाह-जे प्रायः सबगोटे जनैत छथि अपन भाषा में लिखैक प्रयत्न कऽ रहल छी. सुधी पाठक लोकैन से निवेदन जे ओ तथ्यगत वा भाषागत त्रुटि के क्षमा कऽ देता.)
********* *********** ********** *******
विद्यापति अपन दुआर पर बैसल छलाह; मनहि मन आंखि मूनि किछु सोचिए रहल छलाह तावत एक बालक अवस्था करीब १४-१५ बरिस उपस्थित भऽ बाजल.
बालक- सरकार! हम बड गरीब छी. हमरा अहां अपन नोकर राखि लिय. हम अहांक सेवा टहल करब.
वि०- तों कतऽ से उगि गेलाह! तोहर नाम कि छौ; कोन गाम तोहर घर भेलौ? तों एहि गामक ते नै बुझि पड़ै छह. देखै में बेस संस्कारी बुझि पड़ैत छह. तोहर माय-बाबू के छथुन?औ बाबू सुनू ; हम सरकार नहि छी जे अहां हमरा सरकार कहलौं.हम स्वयं गरीब ब्राह्मण छी. पंडिताई कऽ जीवनयापन करैत छी.दोसर हमरा नोकर रखबाक ओकादो नहि अछि. तों राजा साहेब'क ड्योढ़ी पर चैल जाऽ,ओ सरकार छथि;बड दयालु छथि. ओ तोरा अवश्य राखि लेथुन. ओतय सुखी संऽ रहबऽ.
बा०- पंडी जी! हमरा अपन नाम-गाम क कोनो ठेकान नहि ये. हमरा कोनो महीनवारी नै चाही. जे अपनेक ओहिठाम रूखल-सूखल भेटत सैह हमरा लेल प्रसाद होयत आ तहीमें हम अहांक सेवा-टहल करब और मैलिकीनियो के भानस-भात में मदैत कऽ देबै! हमरा अहां और कतहु जाय लेल नहि कहू.हम अहांक पैर पड़ैत छी.
(ताबत पंडिताइन घर से बहार निकैल दुआर पर आबैत छथि)
पंडिताइन- कथि के एतैक घमर्थन भऽ रहल छै यौ? कनि हमहूं बुझिये! अहां के ते कोनो काज-धाज अछि नहिं. हम भरिदिन खटैत खटैत अपसिंयांत भेल रहै छी आ इ दलान पर बैसिकऽ चिरौरी करैत रहताऽ.
(पाठक लोकैन के लेल ई जानब जरूरी जे जतबे शांतचित्त प्रकृति के विद्यापति छलाह हुनक पत्नी बेस गरम मिजाज रहथिन. ओना प्रायः सबहक घरवाली गरमे मिजाज रहैत अछि. की करबै!)
वि०- देखियो नै! इ तखन से हमरा घिरिया रहल ये जे हमरा नोकर राखू-नोकर राखू. कहैये एकोटा कैंचो नै लेब;खाली बुताते पर खटता. दोसर हिनकर नामो-गाम के ठेकान नहिं. ओना इ अकस्मात अहिठाम उगि गेल ये ताहि लेल एकर नाम हम "उगना" राखि दैत छियै. अहीं कहू जे एहना स्थिति में कि कयल जाय?
वि०-(उगना दिस ताकि) कि रौ! हमर राखल नाम "उगना" पसिन पड़लौ?
उगना-हं पंडी जी!
पंडिताइन इ सुनि मनेमन बड प्रसन्न भेली जे इ छौंड़ा केवल बुताते पर खटैक लेल तैयार अछि.
प्रकाश्यत: बजलीह-तखन एकर बुतातो बहुत भरिगर हेतैक! कि नै रौ!
उगना- नै मैलकिनी! हम खाइत काल परसनो नै लैत छी. एक बेर जे साग-कोन भेट जाइत तहि में हम संतोष कऽ लेब. बेसी हम की कहू.
पंडीजी के हम सबटा काज बूझू जे चानन-चंद्रौटा- फुलडाली नित्य माजिकऽ तैयार कऽ देबैन, स्नान सं पहिने हुनक धोती-उतरीय, खराम इत्यादि सबटा वस्तु तैयार कऽ देबैन. पूजा पर बैसेक पहिने आसनी,अरघा,घंटी,दीप, फल- फूल-बेल-पत्र सबटा इंतजाम कऽ रखबैक.माटिक महादेव सेहो हमरा बनाबऽ लेल आबै ये. बूझू जे पंडीजी के कोनो वस्तु हेरऽ नहिं पड़तैन. जजमानी में जतऽ इ जेता हिनकर संग सेवा टहल खातिर संग जेबैन. संगहि पंडी जी के जनेऊ- सुपारी,पाग-डोपटा,चादैर इत्यादि जे-जे वस्तुजात जजमानी में भेटतेन्ह सबटा हम सुरक्षित घर नेने आयब.
पंडिताइन(तमकैत)-आ हमर कोनो काज नहि करबहक?
उगना- नहिं-नहिं मैलिकिनी! अहूं के हम सबटा टहल-टिकोरा कऽ देब. जारैन-काठी सं लऽ के नोन-तेल-हरैद आदि सब वस्तु हम बजार से आनि देब. पंडीजी वा अपने के कतहु जाय के कोनो जरूरीये नै पड़त.
पंडिताइन-बेस; बेसी ढ़कऽ जुनि.
************** ************* ***************
महादेव आब उगना बनि के विद्यापति ओहिठाम रहऽ लगला. भोर स लऽ कऽ राति सूतैत काल धरि विद्यापति दूनू प्राणी के मुंह से खाली यैह बहराय-रे उगना! इ ला!रे उगना! उ ला!
हुनक पत्नी कहथिन- ओतय से इ काज केने आ! इ काज अखन धरि नै भेलो! कतऽ संऽ इ धीमर हमरा कपार में बथा गेल.तों बड आलसी भऽ गेल छैं.
इ जनतियै जे इ खाली बैस के एक पसेरी खायत तऽ हम किन्नौं एकरा नोकर नहिं राखितौं. हम इ पंडितक फेरी में परि गेलौं.आदि-आदि.
विद्यापति पंडिताइन क दिस से उगना के इ दशा होयेत देख दुःखी भऽ जायत मुदा पत्नी सं किछु कहबाक साहस नै होयन.
उगना निर्विकार इ सब उपराग सुनैत रहैथ. जेना ओ बहिर होयेथ. कखनो के पंडिताइन के सेहो आश्चर्य होय जे इ हमर एत्तेक रास गज्जन कोना के सहि लै ये.
मुदा उगना लेल धैन सन. उपराग काल में ओ अपन काज एना करै जेना ओ बहिर हो.
*********** *********** ***************
विद्यापति के काशी एबाक निमंत्रण भेटलैन. मार्गक क्लेश के आब हुनका कोनो चिंता नहि रहलैन. ओ जतय जाइत रहैथ, सेवा टहल लेल उगना हुनका संगहि जाइत छैन्ह.
मिथिला से काशी बड दूर. आजु काल्हिक भांति रस्तो पेरा कोनो प्रशस्त नहिं. मोटर टरेन के तऽ कोनो चरचे नहिं बुझू. मार्ग में कतेको नदी जंगल बियाबान तै समय में रहब कोनो आश्चर्यक गप नहि. ओहि मार्ग में कोनो ठाम निठाह निर्जन स्थल पर विद्यापति के बड जोरक पियास लागि गेलैन.
वि०-रौ उगना! हमरा तऽ बड जोर पियास लैग गेल. कतहु सं बाव! एक चुरू जल आन नहि त पियासे हमर जान चैल जायत.
उ०- पंडी जी! एहिठाम ते पाइन भेटब असंभव बुझाइत ये. कतहु कोनो आबादियो नै देखै छियै. कूप,नदी, तडाग कतहु किछु देखबा में नहिं आबि रहल छै.
एकाध कोस और चलू; कहीं संयोग से कोनो जलक स्रोत
भेट जाय! एतऽ तऽ किछु नहि देखैत छिय.
वि०-(खिसियाइत जोंकां)- रौ उगना! हम पियासे मरि रहलहुं ये आ तोरा धैन सन! पंडिताइन सुआइत तोरा पर बाजैत रहै छथुन! तोरा देह में ते सौंसे आलसे भरल छौ.जा कऽ कतौ से जल्दी पाइन ताकि के आन!नै ते हमर प्राण एतहि निकसि जाइत. काशी हम जाइते रहि जाइब.
उगना- अहां बाते नै बुझै छियै. अहिठाम कतऽ हम पाइन देखियेगऽ.
वि०(क्रोधित भऽ कऽ)- हम बात नै बुझै छियै; आब तों हमरा ज्ञान सिखाबै छैं!
उगना- तऽलाउ! झोरी सं लोटा बहार कऽ दिय. लोटा लऽ कऽ देखैत छी कतऽ पाइन भेटैये. हमरा तऽ किछु फुराइये नै रहल ये जे एहिठाम पाइन कतऽ भेटत?
उगना लोटा लऽ कऽ पाइन हेरैले बिदा भेल. विद्यापति रौदा में आंखि मूंदि माथ पकड़ के एकटा गाछ तर बैस रहलाह.
कनिये काल भेल होयत कि उगना घूरि के चलि आयल.
ओकरा देखैत विद्यापति क्रोधित भऽ बाजि उठलाह- आखिर में तों पाइन नहिये आनलऽ. हौ अथाह! चारूकात दस डेग घूमला सं तोरा जलाशय भेट जैतोक! सुआइत शास्त्रक वचन छै- कुतर्की परिचारी सर्वथा त्यजेत!
उगना- पंडीजी! अहां बलौं तमसाय छी. हम जल लऽ कऽ आयल छी; देखिय़ो लोटा में जल छै कि नै! लिय जल पिबू.
विद्यापति उगना हाथ सं लोटा लऽ कऽ जल पिबऽ लगला.
जल पिबैत देरी ओ आश्चर्य से उगना दिस तकैत बजला- उगना! तों इ जल कतऽ सं आनलऽ?इ तऽ गंगाजल थिक! तों बता इ बियाबान में गंगाजल तोरा कतऽ स भेटलौ?
उगना- आब देखू तमाशा. पहिले पाइन-पाइन रटैत छलाह, जल पीबला के बाद आब दोसरे तजबीज में लैग गेला. जल पीबलौं ने! आब चलू.
वि०- ने रौ उगना! पहिले हमरा तों बता जे इ गंगाजल तों एहन बियाबान निर्जन में अनलऽ कतऽ स?
आब उगना के अपन वास्तविक रूप में आबय पड़ल.
मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित, जटा संऽ सुरसरि'क धार बहैत,गऽर में सर्पक हार,हाथ में डमरू लेने विद्यापति के समक्ष साक्षात् महादेव!
विद्यापति अवाक्.
ओ ठामहि भगवान के पैर भरि पांजि कऽ पकड़ लेलनि.
आंख से झर झर नोर बहैत विद्यापति बजलाह- हमरा क्षमा करू भगवन! अज्ञानता में हम अपने के कि कि नै कहल.
भगवान बजलाह- विद्यापति! अहां हमर भक्त छी. अपनेक भक्ति सं प्रसन्न भऽ हम सोचल जे हम अहांक भृत्य बनि सेवा करी.ताहि दुआरे हम उगना बनि कऽ अपने के सेवा में प्रस्तुत भेलहुं. किंतु अहांक निर्मल ह्रदय और सरल स्वभाव पाबि हम अति प्रसन्न भेलहुं ते अहां के अपन दर्शन देबाक लेल ई प्रपंच हम कैयल.
लेकिन पंडितजी इ रहस्य हमरा और अहांक बीचे में रहैक चाही तखने हम फेर उगना के रूप में अहां लग रहब. जो इ रहस्य अहां किनको समक्ष प्रकट करबै तऽ हम तखने लोपित भऽ जायब.
विद्यापति गट गट सबटा कल जोरि सुनैत गेलाह. महादेव फेर अपन उगना के रूप में आबि तहिना रहऽ लगला जेना ओ पहिने रहथि.
******** ********* **************************
इ घटना के उत्तर परिणाम भेल जे विद्यापति आब उगना के किछु नै कहैथ. जहां उगना कोनो टहल पंडी जी के करऽ लागै विद्यापति चट दऽ ओ काज अपने करै लागैथ. इ सब देखि पंडिताइन के बहुत खौंझ बैढ़ जाय. ओ विद्यापति सं लड़ैक लेल तैयार भऽ जाथि.
पंडिताइन कहथिन- हम किछु दिन संऽ देख रहल छी अहां ऐ उगना के बड्ड माथ पर चढ़ा देने छियै. इ अहां के बड्ड दुलार भऽ गेल त बड़ बेस किंतु हमर काज-धाज में इ छौंड़ा जं बेसी लाथ करत तऽ हम एकर दशा पुरा देबैक. हिनका हम खाय दुआरे नहिं रखलियेन्ह हं,से बुझि लिय!
बेचारा विद्यापति बाजैथ त कि? जों कदाचित भेद खुजि जायत तखन इ उगना महादेव त छोड़िये कऽ परा जेता!
ओ पंडिताइन के हाथ उगना के गज्जन होइत बड अशोकर्य में पड़ जाथि तथापि उगना के बारे में पंडिताइन के किछु कहबाक मतलब उगना से हाथ धोनाय.
नहिं-नहिं चाहे पंडिताइन उगना के जतेक गज्जन करथुन मुदा हम उगना के रहस्य'क बारे हम हुनका कदापि नै किछु कहबैन.
आ उगना के कोनो अंतर नहिये पड़ैत देखे छी तखन कोन बातक चिंता!
आ सरिपो उगना के पंडिताइन के गज्जन सं कोनो हर्ष विषाद नहिं.ओकरा लखे धैन सन.
******** *********** ************ ***********
पंडिताइन- उगना! रे उगना! कतऽ इ चैल जाय ये से नै कहि.
उगना- हम तऽ एतहिये छी मैलकिनी!कहू ने!
पंडिताइन-रौ एक बेर में नहिं सुनै छैं. मुंह में महादेव अटकल रहै छथुन कि? कोढ़िया नै तन! जो हत्ता से सुखलका गाछक दू टा मोटगर ठाढ़ि काटि कऽ लऽ आ. घर में जारैन-काठी निघैट गेल छै.
उगना- बेस!लाउ कुल्हाड़ी दियऽ;जाय छी.
बड़ी काल धरि जब उगना नहिं आयल त पंडिताइन तामसे घोर भऽ गेली. हुनका भानस में देरी भऽ रहल छलैन.
ओ विद्यापति संऽ बजली- अहां उगना के बड सहका देने छिय. ओ हमर बातक कोनो सुनवाहे नै करैत ये. एक पहर जे गेल से अखन धरि गेले ये. इ सब अहां जे ओकरा माथ चढ़ा देने छी तकरे परिणाम जे आब ओ हमरे नोकर बुझै ये.
हमतऽ भानस भात कऽ के ओकरा खुआबै ले छीहे! आय उगना के आबऽ दियौ हम देखा दै छियै जे के ककर नोकर अछि.
विद्यापति पंडिताइन के क्रोध देख अनिष्ट केर आशंका से चिंतित भऽ उठलाह.
ताबत उगना गाछक दूटा ठाढ़ि लऽ कऽ आबैत दृष्टिगोचर भेलाह.
दलान पर पहुंचैत देरी पंडिताइन उगना के कोढ़िया!काहिल! खाधुर! इत्यादि कहैत बाढ़ैन लऽ कऽ उगना के झांटैक लेल उठलीह.
विद्यापति इ देख विचलित भऽ दौड़ला आ कहऽ लगला- हां!-हां! साक्षात् महादेव के एहन अपमान! पंडिताइन एहन काज जुनि करू!
विद्यापति के इ कहैत देरी उगना लुप्त भऽ गेल.
विद्यापति "उगना रे मोर कतय गेला" कहैत कूही भऽ कऽ कानै लगला. पंडिताइनो के जब इ रहस्य ज्ञात भेलैन त हुनका बहुत ग्लानि भेलेन. उहो कानै लगली.
मुदा आब पश्चाताप भेनै कि!
विद्यापति जाऽधरि जीवित रहला यैह रट लगबैत रहला-उगना रे मोर कतय गेला.
प्राणो निघटलैन हुनकर यैह रटैत-रटैत.
विद्यापति आब सम्पूर्णरूपेण शिवोऽमय भऽ गेला.
(*अपना दिस सं हम इ प्रसंग के किछु रोचक बनेबाक लेल कतिपय हेर फेर कऽ देल ताहि लेल क्षमा प्रार्थना.)
राजीव रंजन प्रभाकर.
२८.०८.२०२१.
Comments