सुरक्षित यात्रा करने की चुनौतियां
अब यात्रा करना भी खतरनाक हो चला है.
क्या सड़क मार्ग, क्या रेलमार्ग, क्या वायु मार्ग;
कुछ भी सुरक्षित नहीं रह गया है.
और तो और पैदल चलना भी निरापद नहीं है.
सड़क पर पैदल चलो तो पीछे से बंदूक से निकले गोली की रफ्तार से बाइकर गैंग का कोई 'प्रबुद्ध' सदस्य सन्न से जब आगे निकल जाता है तो पता चलता है कि खुशकिस्मती से जान बची.
कब कौन सनक रफ्तार वाहन सवार पीछे से आकर ठोकर मार कर निकल जाए और आप सड़क पर गिर जाएं तथा दूसरा आपको होस्पीटल ले जाने की बजाय या तो रील बनाने में लग जाए अथवा आपको आपके हाल पर छोड़ आगे बढ़ जाए, कहा नहीं जा सकता.
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घर में बैठ नहीं सकते; रोजी रोजगार का मामला है.
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भारतीय रेल का सुरक्षित रेल यात्रा कराने का दावा खोखला है. रोज कोई न कोई ट्रेन पलट जा रही है; उलट जा रही है.
अपनों से मिलने का सपना पाले ट्रेन में सवार लोगों की रेलयात्रा परलोक यात्रा में नहीं बदले, इसकी रेलवे गारंटी नहीं देता है.
कभी कोई ट्रेन चालक की लापरवाही से बेपटरी हो जाती है और यदि सौभाग्य से ऐसा नहीं होता है तो कोई 'भारतीय' ट्रैक पर कभी सिलेंडर तो कभी पत्थर के बौल्डर रख कर उसे बेपटरी करने का मंसूबा पाले रखता है.
अपने हीं घर में कोई आग लगाता है क्या?
रेल ट्रैक के प्रति ऐसा व्यवहार अपने हीं घर में आग लगाने जैसा नहीं है तो और क्या है?
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पहले बचपन में देखा करता था कि दो रेलकर्मी रेल की पटरी पर पटरी के inspection-मुआयना करने निकले 'एक साहब टाइप' के साहब को ट्रोली में बिठा कर ट्रोली को पीछे से पकड़ कर धकेलने के लिए ट्रैक पर स्वयं दौड़ते हुए ट्रोली को दौड़ाते थे.
बाद में ट्रोली दौड़ाने वाले का स्थान ट्रोली में फिट किए गए स्वचालित इंजन ने ले लिया.
सिग्नल आटोमेशन और तरह-तरह के मोडरनाइजेशन स्कीम ने ऐसे लोगों की नौकरी जिनकी तादाद लाखों में थी,छीन जरूर ली लेकिन रेलवे में ताबड़तोड़ आटोमेशन रेल दुर्घटना को ताबड़तोड़ होने से रोक नहीं पायी बल्कि उसमें और इजाफा हुआ चाहे रेल मंत्री जितना भी दावा कर लें कि कोलिजन फ्री ट्रेवल को यकीनी बना दिया है.
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हवाई जहाज की अपनी दास्तां है. कभी इससे कोई पक्षी टकरा जाता है तो कभी यह रनवे को छूने में हुई अथवा की गई चूक से तो कभी आतंकी खतरे से दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है. लोग जब तक विमान के अंदर रहते हैं भगवान-भगवान हीं करते रहते हैं और विमान से बाहर आते हीं भगवान को भूल दुनिया की रंगीनियों में खो जाते हैं.
कभी हवाई जहाज स्वयं मौसम की खराबी के पेशे नज़र बल खाकर जमीन पर गिर जाता है.
ये तो सौभाग्य कहिए कि हवाई जहाज कहीं ऐसी जगह गिरता है जहाॅं आबादी नहीं होती है,'अमूमन वह भूभाग जलक्षेत्र रहता है या जंगल का कोई हिस्सा.
लेकिन जो उनमें सवार रहते हैं वे उतने भाग्यशाली नहीं होते हैं जो बच जाएं.
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अंत में
आज के इस क्लेशयुग में यदि आप घर से निकल कर वापस घर आ गये तो समझिए आप अत्यंत भाग्यशाली हैं.
इसलिए प्रभु का स्मरण कर हीं यात्रा पर निकलें
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी
माॅं भवानी हम सभी की रक्षा करें.
राजीव रंजन प्रभाकर
१२.१०.२०२४.
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