एक अंग्रेजी अखबार का रवैया
मेरी बेटी आज मुजफ्फरपुर से पटना आयी है किसी विभागीय बैठक में भाग लेने के लिए. उसके हाथ में एक अंग्रेजी समाचार पत्र “द हिंदू’’ देख मुझे जिज्ञासा हुई कि देखें पेपर में क्या सब है.
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बिहार सरकार की सेवा में प्रवेश के साथ हीं मेरा अंग्रेजी समाचार-पत्रों से सम्पर्क क्रमश: छूटता चला गया और उसका स्थान हिंदी अखबार लेता चला गया. अब मेरे लिए हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, प्रभात खबर अखबार हीं काम की चीज़ बन गए. ब्लाॅक पोस्टिंग के दिनों से हीं इन हिंदी अखबारों से जो सम्पर्क बना वह जिलों में पदस्थापन के दरम्यान भी जारी रहा और दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ होता चला गया.
सरकारी कामकाज की भाषा हिन्दी रहने के अतिरिक्त इसका मोटे तौर एक कारण यह भी था कि हिंदी अखबार स्थानीय समाचारों को भी प्रमुखता से प्रकाशित करते थे जो एक प्रशासनिक अधिकारी के लिए उन स्थानीय खबरों से कम से कम अवगत रहने की सीमा तक अवश्य महत्वपूर्ण होते हैं.
इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हिंदी अखबार सिर्फ स्थानीय महत्व के खबरों के लिए हीं उपयोगी है बल्कि इन अखबारों में राष्ट्रीय एवं ज्वलंत मुद्दों पर भी जो खबर एवं विश्लेषण होते हैं उसे मैंने अंग्रेजी अखबार से प्रायः बीस हीं पाया है.
अंग्रेजी अखबार तो शब्दाडंबर से हीं भरे रहते हैं जिसमें तथ्यों और विचारों को ढ़ूंढ ढूंढ़ कर मुझे तब तैयारी के दिनों में निकालना होता था.
अंग्रेजी अखबार के प्रति मेरा ऐसा कहना शायद त्रुटिपूर्ण भी हो सकता है क्योंकि अपनी बेटी के बिपरीत मेरी शिक्षा जन्मत: हिंदी माध्यम से हीं प्रारंभ हुई थी.
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विद्यार्थी जीवन में एक जमाना वह भी था जब मैं कालेज के दिनों में जहाॅं पढ़ता था वहाॅं लोग सोते-उठते-बैठते प्रायः अंग्रेजी में हीं बात किया करते थे मानो उन्हें कभी हिंदी से भेंट न हुआ हो.
फिर यूपीएससी की तैयारी का समय आया.
मुझे याद है कि तब मैं तैयारी के नाम पर तमाम अंग्रेजी अखबारों को डूब कर पढ़ता था. एक तरह से मेरा अंग्रेजी अखबार पढ़ना तैयारी से ज्यादा व्यसन का रूप ले चुका था.
मैं द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स आदि अखबार पढ़ने में दिन के अधिकांश समय को गॅंवा दिया करता था.
‘गॅंवाना’ शब्द का उपयोग यहाॅं पूरी तरह से ठीक नहीं होगा क्योंकि नित्य घंटों अंग्रेजी के विभिन्न अखबारों को पढ़ने से मेरी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बढ़ती चली गयी; अंग्रेजी के शब्द-सामर्थ्य में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई जो कदाचित यार दोस्तों के बीच चलताऊ अंग्रेजी बोलते रहने से बिल्कुल हीं सम्भव नहीं था.
फैशनेबल दिखने के लोभ में या कहिए अज्ञानतावश बात-बात में में अंग्रेजी लहजे में ‘या’ ‘या’ कहने की आदत भी छूट गयी. इसके अलावा अंग्रेजी में लिखने का भी अभ्यास बढ़ा. लेकिन चूॅंकि अधिकांश समय मेरा इन्हीं अखबारों को पढ़ने में निकल जाता था तो आप्शनल विषयों की तैयारी उस स्तर तक हो हीं नहीं सकी जो मुझे यूपीएससी की परीक्षा में सफल बना सकती हो.
इसीलिए मुझे यहाॅं ‘गॅंवाने’ शब्द का प्रयोग करना पड़ा.
वह व्यक्ति क्या जिसे अनुपात का ज्ञान हीं नहीं हो! Sense of Proportion तो हर व्यक्ति में होना हीं चाहिए चाहे वह बोलना हो, लिखना हो, मनोरंजन हो या फिर वह मदवार खर्च ‘समय’का हो, ‘रूपये’ का हो या उपलब्ध किसी अन्य ‘संसाधन’ का.
अनुपात का ज्ञान आवश्यक है.
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Heigh ho! मैंने क्या लिखना शुरू किया और क्या लिखता चला गया!
मैंने उस अंग्रेजी के “द हिंदू” अखबार के पन्ने को पलटना शुरू किया.
National headlines- “Keep gods away from politics; SC tells Naidu ” के अतिरिक्त एक-से-एक समाचारों को देखा.पुराने समय की यादें ताजा हो चली. रोमांच बढ़ता गया क्योंकि एक अरसा बाद इस अखबार को देख रहा था.
समाचारों में कुछ चेन्नई के थे कुछ दिल्ली के कुछ इंदौर के कुछ गाजियाबाद से.
चूॅंकि आफिस जाने में देर हो रही थी इसलिए सरसरी तौर पर पन्ने को तेजी से पलटना शुरू करना पड़ा. फिर एकाएक दिमाग में एक बात कौंधा कि—---
अरे ! इसमें तो अपने प्रदेश बिहार का एक भी समाचार नहीं है?
मैं फिर से रिवर्स गियर में पन्ने को पलटना शुरू किया.
उहूॅं; एक भी न्यूज़ बिहार से नहीं था. सूक्ष्मता एवं सावधानी से खोजने पर भी नहीं मिला.
तो क्या बिहार का एक भी खबर इस अंग्रेजी अखबार ने प्रकाशन योग्य नहीं समझा? या बिहार से सम्बंधित जो खबर है वह महत्व की है हीं नहीं?
एक मन हुआ कि द हिंदू अखबार की उक्त प्रति कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली या चेन्नई या विजयवाड़ा आदि जगहों से प्रकाशित है? तब बिहार का कोई खबर न रहना उन जगहों से प्रकाशित अंग्रेजी अखबारों के लिए एक सामान्य बात हो सकती है.
किंतु आश्चर्य! वह अखबार पटना एडीशन हीं था जो मेरे हाथ में था.
मेरे समय में तो द हिंदू अखबार का पटना एडिशन निकलता भी नहीं था.
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मतलब अखबार छापिएगा आप पटना से, उसे बेचिएगा बिहार में और India’s National Newspaper since 1878 के नाम पर सारा खबर परोसिएगा चेन्नई का, विजयवाड़ा का,त्रिची का, इंदौर का, बेंगलुरु का?
पटना या बिहार का एको खबर नहीं?
वह भी पटना से प्रकाशित संस्करण में!
इससे साफ पता चलता है कि आपको’ संस्करण’ शब्द का सही अर्थ पता नहीं है.
ये तो नाइंसाफी हुआ न? इस तरह के डिस्क्रिमिनेशन अंग्रेजी अखबारों में आपको प्रायः मिलेंगे जो मुझे तैयारी के दिनों में समझ में नहीं आ सकते थे.
शायद यही वजह है कि बिहार में बढ़िया अंग्रेजी जानने वाले भी स्वयं को इन अंग्रेजी अखबार से ठीक से कनेक्ट नहीं कर पाते हैं. थोड़ा बहुत इस आवश्यकता की पूर्ति अंग्रेजी अखबार द हिंदुस्तान टाइम्स का पटना संस्करण जरूर करता है किंतु उस अखबार के सर्कुलेशन को ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ अपने धनबल और बेहतर नेटवर्किंग स्किल से परास्त किए रहता है.अस्तु
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वहीं राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी अखबार जो पटना से प्रकाशित होती हैं, की सुर्खियां इस प्रकार थी—---
प्रदेश में बाढ़ का कहर जारी; और चार जगह बांध टूटे.
भगवान को राजनीति से दूर रखें-सुप्रीम कोर्ट
~दैनिक जागरण
नदियों ने मचाई तबाही; गाॅंवों में फैला बाढ़ का पानी
~प्रभात खबर
दस जिलों में बांधों पर भारी दबाव
~हिंदुस्तान
ये सभी हिंदी अखबार भी राष्ट्रीय दैनिक हीं हैं जो अन्य जगहों सहित पटना से भी प्रकाशित हैं.
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आप हीं बताइए कोई ऐसा अखबार क्यों पढ़े जिसमें अपने राज्य का एक भी खबर न हो?
हाॅं; मेरी तरह अंग्रेजी सुधारना हो या सिविल सर्विस जैसी कोई परीक्षा की तैयारी करनी हो तो बात और है.
वैसे इसके अलावा अंग्रेजी अखबार बिहार में फोकस पाने के लिए भी कई लोग रखते हैं.
राजीव रंजन प्रभाकर
०१.१०.२०१४.
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