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Showing posts from June, 2022

Oh Indian Railway! You Are Uniquely Great.

Oh Indian Railway! You Are Uniquely Great. **************************************************** I suppose myself to be perfunctory religious whose concern for religion is more theoretical than practical. It is so because my religiosity in popular terms is mostly limited to reading books of religion. The fact is that I read more and more to follow less and less. But my wife is exactly the opposite. Contrary to my disposition;she reads less but is inclined to do more such things as could make anyone truly religious.  **************************************************** Anyway, my wife said to me that it has been a long time since she went to Devghar-Baidyanath Dham.Towards fulfilment of this joint wish of ours I got tickets booked to journey by train.  **************************************************** Heigh ho! Train after train was being set on fire by the youth(?) of India. Violence,arson,incendiary were at their demoniac display on platforms as if theft,creating filth and...

एक पिता की दुविधा

एक पिता की दुविधा. **************************************************** यह एक कहानी है जिसे मुझे एक महानुभाव ने सुनाया है.उसी को मैंने लिखा है; पढ़िए,शायद अच्छी लगे. **************************************************** पुराने जमाने की बात है.एक आदमी था; बहुत सीधा-साधा. ठाकुरजी में गहरी आस्था. पत्नी का देहांत हो चुका था.अब उसके सिर्फ दो बेटियां हीं थीं.दोनों को वह बहुत प्यार करता था. दोनों को उसने कुछ ज्यादा तो नहीं पढ़ाया बाॅंकि अच्छे संस्कार देने की कोशिश जरूर की.  बेटियों के बड़े होने पर उसने उनकी शादी कर दी.एक की शादी उसने मिट्टी के बरतन बनाने वाले से की तो दूसरे की खेती करने वाले से.       दोनों बेटियां ससुराल में अपने-अपने घर बहुत खुश थीं. दोनों के पति काफ़ी मेहनती तो थे हीं; वे दोनों अपनी पत्नी को भी अपनेतया बहुत खुश रखते थे और पत्नी अपने पति को खुश रखते हुए अपनी-अपनी गृहस्थी को अच्छे से सम्हाल रही थीं.  वह आदमी जब बेटियों के ससुराल के गाॅंववालों से अपने दोनों बेटियों और दामाद की ता'रीफ़ सुनता तो उसे मन हीं मन बहुत ख़ुशी मिलती. वह आदमी बहुत हीं संतुष्...

मनुष्य का भाग्य.

आस्ते भग आसीनस्य ऊर्ध्वं तिष्ठति तिष्ठत: । शेते निपद्यमानस्य चरति चरतो भग: ॥                                                        (ऐतरेय ब्राह्मण) *********************************************** The fortune or luck of a person is closely related to his action. *********************************************** The above shloka seeks to emphasize the above proposition by saying that your fortune literally happens to sit so long as you sit idle.              It rises the moment you stand up to proceed. A man sleeping has his fortune also sleeping along with him.            The luck of a man moving also moves accordingly.             In other words God helps one who helps oneself. *********************************************** जो मनुष्य (कुछ काम किए बिना) बै...

गंगापुत्र भीष्म की स्वीकारोक्ति.

गंगापुत्र भीष्म की स्वीकारोक्ति **************************************************** कतिपय हेरफेर अर्थात् तथ्यगत त्रुटि के साथ नीचे कुछ लिखने का साहस कर रहा हूं. **************************************************** पितामह भीष्म शरशैय्या पर पड़े थे. पांडवों के विरुद्ध लड़ने के बावजूद पांडवों को उनके प्रति तनिक भी क्लेश नहीं था. उनके लिए वह वही पितामह थे जिनके गोद में खेल-कूद कर वे बड़े हुए थे. पितामह भीष्म भी भले हीं युद्ध में कौरवों के तरफ से लड़े थे किन्तु युद्धभूमि से इतर पांडवों के लिए भी वही प्यारे पितामह थे.  यह तो हम सभी जानते हैं कि भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था. युद्ध में धराशायी पितामह के लिए महाभारत का युद्ध देखने की उनकी इच्छा के निमित्त उनके लिए आरामदायक शैय्या के प्रबंध हेतु दुर्योधन जब मखमली गद्दे का शीघ्रता से प्रबंध करने हेतु डांट-डांट कर अपने भृत्यों को हलकान किए जा रहा था तो पितामह ने अर्जुन को पास आने का इशारा किया.  अर्जुन तत्काल उनकी भावना को समझ ग‌ए और तत्क्षण उन्होंने पितामह के शरीर को बाणों से बेधकर उनके लिए शरशैय्या का निर्माण कर दिया. अर्ज...

चल गई-चल गई.

चल गई- चल गई. *********************************************** प्रसंग बहुत हीं रोचक है तथा संदेश से भरपूर. इस प्रसंग का वर्णन "कल्याण" पत्रिका के आदि सम्पादक स्वनामधन्य हनुमान प्रसादजी पोद्दार द्वारा किया गया है. उनके एक प्रवचन जो कभी किसी सज्जन द्वारा सर्वजनहिताय रिकार्ड कर लिया गया था, में जब मैंने सुना तो अपने शब्दों में इसे लिखे बिना नहीं रहा गया.         स्नेही एवं सुह्रद जन उन्हें "भाईजी" के नाम से सम्बोधित करते थे.बहुसंख्य हिंदू को उनके बारे में जानकारी पर्याप्त नहीं है किन्तु इतना अवश्य है कि बहुसंख्य हिंदू हीं नहीं बल्कि अन्य धर्मावलंबी भी उनके नाम से अनभिज्ञ नहीं हैं. उनके बारे में वर्तमान जनमानस में अपर्याप्त जानकारी का हेतु क्या है यह शोध का विषय है. ********************************************** सचमुच संत की वाणी जिस किसी भी रूप में प्राप्त होती है अपने समीपस्थ को प्रभावित किए बिना नहीं रह सकती. उनकी वाणी के श्रवणमात्र से लाभ होता है; चिंतन और अनुशीलन करने पर तो बात हीं क्या है. ********************************************** भाईजी कहते हैं कि- कहानी मेर...

हनुमान प्रसादजी पोद्दार-भाईजी.

कल्याण पत्रिका के आदि सम्पादक हनुमान प्रसाद जी पोद्दार *********************************************  हनुमान प्रसाद पोद्दार कल्याण पत्रिका के आदि सम्पादक थे. मेरी ऐसी धारणा है शायद हीं कोई ऐसा भारतीय होगा जो इस कल्याण पत्रिका के नाम से परिचित न हो. सनातन धर्म प्रेमियों के बीच यह पत्रिका देश से लेकर विदेशों तक में अपनी अमिट पहचान कायम किए है. यही एकमात्र ऐसी पत्रिका है जिसमें किसी तरह का कोई विज्ञापन कोई नहीं छपवा सकता है चाहे इसके लिए वह कितना भी मूल्य भुगतान करने को तैयार हो. ऐसा अमल इस पत्रिका के प्रकाशन के समय वर्ष १९२६ ईस्वी से हीं चल रहा है जो महात्मा गांधी के सुझाव से उद्भूत था.         स्नेही एवं सुह्रद जन हनुमानप्रसादजी को  "भाईजी" के नाम से सम्बोधित करते थे.बहुसंख्य हिंदू की उनके बारे में जानकारी पर्याप्त नहीं है किन्तु इतना अवश्य है कि बहुसंख्य हिंदू हीं नहीं बल्कि अन्य धर्मावलंबी भी उनके नाम से अनभिज्ञ नहीं हैं. उनके बारे में वर्तमान जनमानस में अपर्याप्त जानकारी का हेतु क्या है यह शोध का विषय है किन्तु इतना सत्य है कि सनातन धर्म,संस्कृति की जिस प...

An Individual Amidst The Vortex of Relationships

         An Individual Amidst The Vortex of Relationships **************************************************** Relations in the world are as old as the civilization itself.  A number of relationships are formed just by simply taking birth.            One thereby instantly becomes either son or daughter or the father- mother-aunt-uncle of the child so born. As one grows up this relationship also goes on multiplying.  That is why Rousseau said- Man is born free but everywhere he is in chains. ****************************************************                During the period spent as student by an individual yet a new relation comes to exist in the form of teacher- student relationship. Side by side develops yet another relationship called that of friendship.  ****************************************************        When the study of an individual comes t...

ईमानदारी की समीक्षा.

स्थल- केन्द्रीय सचिवालय का केंटीन समय- लंच टाइम. *********************************************** एक ओडरली(अपने साहब का बखान अपने सहकर्मियों के बीच)- हमर साहब बहुतै ईमानदार हैं. घूस-घास से कोसों दूर. हम तो क‌ई बार देखे हैं उ जौन फाइल में कोनो प‌इसा कौड़ी वाला मामला रहता है उनको तुरंतै पता चल जाता है;उ न तुरंत अपने स्टेनो को कह देते हैं-जो देखो जी कोई लालच में नहीं आना है; नहीं तो फिर समझ लेना कोई शिक़ायत अगर मिला तो तुम्हारी खैर नहीं होगी.  दूसरा ओडरली- छोड़िए-छोड़िए ज्यादा बोलिए मत. हम न जानते हैं का आपके साहब को? अरे हम उनके साथ भी रहे हैं जब उ फलनवां डिपाट में थे. हुंए से न उ आपके विभाग में आये हैं. माने कि पैसा कौड़ी लेने का शिकायत नहीं है; बांकि हैं पक्का जातिवादी. खोज-खोज के अपन जाति के लोगन के मदद पहुंचाते हैं. एकरे आप ईमानदारी कहते हैं. एक बार तो कौन दो परचेज के ठेका भी उ अपन जाते भाई के दे दिहिन थे जे पर एल वन वाला ढ़ेर हल्ला-गुल्ला मचैले था विभाग में; बोल रहा था टेंडर मैनेज कर अपन जात के ठीका को दे दिया गया.  एकरे आप ईमानदारी कहते हैं जी? पहला- लीजिए इ कोनो बात हुआ. अ...

भारतीय संस्कृति और संस्कार

  हमारी सभ्यता,संस्कृति और संस्कार किसी महासागर से कम नहीं. कोई भी इसका वर्णन नहीं कर सकता न हीं इसका थाह पा सकता है बल्कि युक्ति के सहारे मात्र इसकी झांकी प्राप्त की जा सकती है. *********************************************** इसी झांकी के साक्षी बने महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोबिंद के पैत्रिक गांव परौंख(जिला -कानपुर देहात; उ.प्र.)के लोग और उनके साथ-साथ प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से समस्त भारतीय सहित सम्पूर्ण वैश्विक समुदाय जब उन्होंने देखा कि राष्ट्र के प्रथम नागरिक श्री रामनाथ कोबिंद ने मानवनिर्मित प्रोटोकॉल को तोड़ सनातन संस्कृति निर्मित प्रोटोकॉल के वशीभूत होकर अपने गांव परौंख पहुंचे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की खुद अगवानी की.  ये है भारतीय सनातन संस्कृति और संस्कार! यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कार और संस्कृति को नियमों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. वरना एक राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अगवानी भला क्यों करें? भगवद्गीता में भगवान ने कहा है- यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरूते लोकस्तदनुवर्तते।। श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचर...

हनुमान चालीसा

हनुमान चालीसा **************************************************** भारत वर्ष में ऐसा कौन अभागा होगा जो हनुमान चालीसा के बारे में नहीं सुना हो? बल्कि मेरी तो ऐसी धारणा है कि प्रत्येक हिन्दू ने कभी न कभी अपने जीवन में इसे अवश्य पढ़ा है और अधिकांश को तो यह चालीसा पूर्णरूपेण नहीं तो कम से कम अधिकांश मे याद अवश्य है; और इसमें कोई अचरज की बात भी नहीं है.            आज के इस घोर भोगपरायण वातावरण में भी हनुमानजी के प्रति आस्था में रंचमात्र कमी नहीं देखी जा रही है और यह हनुमानचालीसा हीं है जो इस आस्था के प्रकटीकरण का अपरिहार्य एवं प्रायः एकमेव साधन है.             क्या स्त्री क्या पुरुष, क्या बालक क्या बालिका;क्या बच्चा क्या जवान क्या बूढ़ा; क्या मूर्ख क्या पंडित;क्या आस्तिक क्या नास्तिक; क्या आसक्त क्या विरक्त; क्या भोगी क्या योगी; क्या अभक्त क्या भक्त;क्या आर्त क्या अर्थार्थी क्या जिज्ञासु क्या ज्ञानी ; क्या वैष्णव क्या शैव क्या शाक्त; क्या नैष्ठिक क्या उपकुर्वाण; क्या गृहस्थ क्या संन्यासी सभी ने कभी न कभी हनुमान चालीसा अवश्य सुन...