एक परिस्थितिजन्य अनुमान/संदेह
कोरोना को लोग वायरस बता रहे हैं.हो सकता है ये सही भी हो. लेकिन इसके प्राकृतिक वायरस होने पर भी संदेह जताया गया है. जापान के एक पूर्व नोवेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक ने तो यहां तक कहा है कि यह एक प्रकार का प्रयोगशाला उत्पाद है. खैर.
लेकिन जिस तरीके से यह सिर्फ हमारे हीं देश को चपेट में लिए हुए है इससे मुझे अब इसके जैविक हथियार होने का अंदेशा हो चला है. आज के जमाने में कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग या ऐसे ही उच्चतम तकनीकी के सहारे (जिसका मैं सिर्फ अनुमान हीं लगा सकता हूं) किसी जैविक हथियार के प्रसार को भौगोलिक क्षेत्र विशेष में सीमित करना अनुमान से परे नहीं हो सकता है. हो सकता है हमारे देश की सीमा के अनुरूप प्रोग्रामिंग के जरिए उक्त भौगोलिक क्षेत्र विशेष को सीमित-सील कर इस जैविक हथियार की मारक क्षमता को बढ़ाते हुए पिशाच नृत्य-सभा कराने की साज़िश कोई देश कर रहा हो ताकि वह हमसे अपनी भितरिया दुश्मनी बिना expose हुए निकाल सके. क्योंकि दुश्मनी और जलन के मामले में व्यक्ति और देश दोनों का आचरण लगभग एक जैसा ही होता है. यह जैविक हथियार चलाने वाला मुल्क कौन हो सकता है; पाकिस्तान तो बिलकुल नहीं.पर इसका अंदाज़ा लगाना इतना भी मुश्किल नहीं होना चाहिए.
गो कि ये पिछले साल कमोवेश दुनिया के सभी देशों में मौत का संदेश लेकर आया था, लेकिन इस बार ये स्थिति सिर्फ भारत में हीं क्यों बनी है.
हो सकता है मेरा ये संदेह गलत साबित हो; इसके लिए मेरी बुद्धि,समझ और अनुमान लगाने की क्षमता पर यदि कोई सहानुभूति मिलती है तो वह मुझे क्षमा याचना के साथ स्वीकार होगा.
बहरहाल अपना और अपनों का तथा हो सके तो औरों का भी अपने सामर्थ्य भर ख्याल रखिए. विपत्ति की घड़ी में परस्पर मदद का कोई विकल्प नहीं है.
आपका;
राजीव रंजन प्रभाकर.
०५.०५.२०२१.
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