विवाहपंचमी.
आज विवाहपंचमी है. विवाहपंचमी जब कहते हैं तो इसका आशय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जनकनंदिनी भगवती सीता के विवाह से है. मान्यता है कि हिन्दू मास मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष पंचमी को भगवान श्रीराम का विवाह हुआ था.
मिथिला क्षेत्र में विवाहपंचमी का अपना महत्व है. जनकदुलारी जानकी मिथिला की बेटी हैं. इस दृष्टि से श्रीराम सम्पूर्ण मिथिला के पाहुन हैं.इस अवसर पर यहां वातावरण बिना किसी विशेष साधन के हीं आनन्ददायक हो जाता है.
दशरथनंदन का जनकनंदिनी से विवाह हुआ; मिथिला में सम्पन्न विवाहोत्सव के अनंतर अवधेश राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों और पुत्रवधुओं के साथ सम्पूर्ण लोकों के ऐश्वर्य को समेटते हुए अयोध्या आ गये. ऐसा होना नितांत हीं स्वाभाविक था, जब स्वयं नारायण और महालक्ष्मी दशरथ के साथ अयोध्या के लिए चले हों तो अन्य लोकों मे बचा हीं क्या रह गया!
ऋद्धि-सिद्धि की स्वामिनी प्रकृतिस्वरूपा महालक्ष्मी भगवती सीता के अयोध्या आगमन मात्र से नगर के सौंदर्य, ऐश्वर्य तथा आनन्दोल्लास में जो अनन्त गुना वृद्धि हुई उसका शब्दों में वर्णन नहीं हो सकता.
गोस्वामीजी भी मानस में इन चार चौपाईयों के माध्यम से इस ऐश्वर्य का दिग्दर्शन मात्र हीं करा पाए हैं.
इन चारों चौपाईयों को देखें:
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।
भुवन चारिदस भूधर भारी।सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी।।
(जब से श्रीरामचन्द्रजी विवाह करके घर आए,तब से अयोध्या में नित्य नये मंगल हो रहे हैं; आनंद के बधावे बज रहे हैं. चौदहों लोकरूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्यरूपी मेघ सुखरूपी जल बरसा रहे हैं.)
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई।उमगि अवध अंबुधि कहुं आई।।
मनिगन पुर नर नारि सुजाती।सुचि अमोल सुंदर सब भांती।।(२)
(ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्तिरूपी नदियां उमड़-उमड़ कर अयोध्यारुपी समुद्र में आ मिलीं. नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं,जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं.)
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।रामचंद मुख चंदु निहारी।।(३)
(नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता.ऐसा जान पड़ता है,मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है.सब नगर निवासी श्रीरामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देख कर सब प्रकार से सुखी हैं)
मुदित मातु सब सखीं सहेली।फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ।प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।(४)
सब माताएं और सखी-सहेलियां अपनी मनोरथ रुपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं.श्रीरामचंद्रजी के रुप,गुण,शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशररथजी बहुत हीं आनंदित होते हैं.
ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इन चारों चौपाईयों को भक्ति और श्रद्धा से प्रतिदिन मगन होकर पढ़े तो उसके यहां सुख समृद्धि में कितनी वृद्धि होगी इसका तो पता नहीं किन्तु इस बात की गारंटी है कि उसके यहां गरीबी कभी पैर नहीं दे सकती.
शेष भगवत्कृपा.
राजीव रंजन प्रभाकर.
(विवाह पंचमी)
१९.१२.२०२०.
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