हालिया खेती-किसानी कानून क्या वास्तव में अनर्थकारी है?
आज पूरे देश में यदि कोई एक विषय पर चर्चा हो रही है तो वे तीन खेती किसानी सम्बन्धी कानून हैं जिसका विरोध किसानों का एक वर्ग पूरे जोर-शोर से कर रहा है.किसान ख़ास कर दिल्ली बोर्डर पर धरना दे रहे पंजाब और हरियाणा के धनाढ्य किसानों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है.वे इन कानूनों को तुरंत वापस लेने का दबाव केन्द्र सरकार पर बना रहे हैं.कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस आंदोलन को कई राजनीतिक दल हवा दे रहे हैं. उन्होंने इस मुद्दे को लेकर भारत बंद भी करवाया. फिलहाल बीते 16 दिनों से डेडलाक की स्थिति बनी हुई है और Vested Interest की चांदी है जो हमेशा से यह चाहते हैं कि भारत में अस्थिरता बनी रहे ताकि भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने में कोई कसर न रहे. कनाडा जैसा एक देश भी इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय रंग देने की कोशिश कर चुका है. यह वही पश्चिमी देश है जो स्वाभाविक रुप से उदारीकरण एवं वैश्वीकरण का पक्षधर रहा है;आज उसे भारत में यदि मंडी आधारित व्यवस्था हीं पसंद है तो उसका एकमात्र कारण उस देश की अंदरूनी राजनीति है जिसको कनाडा के प्रधानमंत्री ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए साधने का प्रयास किया है. उल्लेखनीय है कि कनाडा में भारी आबादी सिख समुदाय की है जिसे प्राय: हर कोई जानता है.
जब यह मुद्दा इतना संजीदा है तो स्वाभाविक रुप से यह जिज्ञासा हुई कि आखिर में इस कानून में क्या अनर्थकारी है जो किसान इन तीनों कानूनो के रद्द करने से कम पर अपने आंदोलन को खत्म करने पर राजी नहीं हैं.
इनकी मांग ये है कि चाहे कुछ भी हो व्यापारी यदि किसी किसान से उसका उपज खरीदे तो वह उसे हर हाल में MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर ही खरीदें. उनका ये भी मानना है कि सरकार इन कानूनों की आड़ में धीरे-धीरे कृषि उत्पादन बाजार समिति को खत्म कर देगी और किसान आहिस्ता आहिस्ता कारपोरेट एवं पूंजीपति व्यापारी वर्ग के हाथ की कठपुतली भर होकर रह जायेगा. यह वर्ग स्वाभाविक रुप से किसानों से अधिक ताकतवर रहने से अपने शर्त पर किसान से उसका उपज खरीदेगा और किसान भी अपने उपज को औने-पौने दाम पर उन्हें बेचने को मजबूर रहेगा.
उन्हें यह भी डर है कि कृषि व्यापार में कार्यरत बड़ी-बड़ी कम्पनियों से किसान का अपने उपज के लाभकारी मूल्य सम्बंधी करारनामा अंततोगत्वा उन्हें तबाह करके छोड़ देगा क्योंकि ये एकरारनामा ऐसे दो पक्षों के बीच होगा जिसमें एक आर्थिक रूप से जितना बलवान होगा दूसरा पक्ष यानी किसान उतना ही आर्थिक रूप से कमजोर.दोनो के बीच ये भारी स्थायी असमानता के चलते एकरारनामे में कड़ी से कड़ी शर्तें भी किसान के हितों की रक्षा में नाकाम साबित होंगी;आदि-आदि.
दूसरी ओर सरकार की तरफ़ से जो भी बातें कही जा रही हैं उनका लब्बो लुआब यही है कि ये तीनों कानून के बन जाने से किसानों की दशा में क्रांतिकारी परिवर्तन होगा और कृषि क्षेत्र में जो विद्यमान जड़ता है,वह समाप्त हो जायेगा. सरकार का यह भी कहना है कि विकास दर में जो कृषि क्षेत्र की भागीदारी है उसमें जबरदस्त उछाल आयेगा.सेवा क्षेत्र में जो इससे वृद्धि होगी सो अलग.
सरकार और उनके मंत्री द्वारा लगातार इन धरनार्थियों को यह भी समझाने का असफल प्रयत्न किया जा रहा है कि इस कानून की बदौलत किसान अपने उपज को भारत में कहीं भी अपनेतया वांछित मूल्य पर बेच पाने में सक्षम हो जायेंगे. इस कानून में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग एंड ट्रांजेक्शन प्लेटफार्म की सुविधा सम्बंधी प्रावधान किया गया है. इसके होने से किसानों का अपने उपज को अपने राज्य के भीतर अथवा राज्य के बाहर के व्यापारियों से ओनलाइन ट्रेड के जरिए बेच पाना अत्यंत आसान हो जाएगा जिसकी अब तक कल्पना तक नहीं की गई थी. इसके जरिए एक वैकल्पिक व्यापारिक चैनल की परिकल्पना की गयी है जो किसानों को मंडी आधारित सीमित भौतिक बाजार यार्ड से बाहर निकाल एक विशाल और विस्तृत अखिल भारतीय बाजार उपलब्ध करायेगा. कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा आज के युग में उपलब्ध टेक्नोलॉजी जिसे इन कानून में विशिष्ट रूप से प्रावधानित किया गया है, से सम्भव होगा.
जहां तक किसानो का यह कहना कि इस कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई चर्चा नहीं है तो सरकार का यह कहना है कि इस कानून का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लेना देना हीं नहीं है;यह लाया हीं गया है दूसरे उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिसकी उपर चर्चा की गई है. जहां तक न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रश्न है यह कभी किसी कानून का हिस्सा नहीं रहा है.
मंडी में अपने उपज को बेचने की जो पहले से विद्यमान सुविधा है उसे कहीं भी समाप्त नहीं किया गया है.यह पहले की तरह जारी रहेगा. जिन किसान भाई को यह वैकल्पिक चैनल के जरिए अपने उपज को बेचने में कोई रूचि न हो वे मंडी के मार्फत अपने उत्पाद को बेचने के लिए स्वतंत्र हैं, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग एंड ट्रांजेक्शन प्लेटफार्म पर उन्हें अपने उपज को बेचने की कहीं कोई बाध्यता भी नहीं है.
जहां तक सुनिश्चित मूल्य पाने और फार्मिंग सर्विस के बाबत जो किसान तथा किसी व्यक्ति (स्पोंसर) के बीच एग्रीमेंट का प्रश्न है इस तरह के एग्रीमेंट में उन सभी शर्तों को आपसी सहमति के आधार पर शामिल किया जा सकेगा जो किसान के उपज का क्वालिटी,ग्रेड, स्टैंडर्ड अथवा उपज की कीमत इत्यादि से ताल्लुक रखता हो.
किसान द्वारा इन कानूनों को काला कानून क़रार देने और इसके बरक्स सरकार का यह कहना कि ये कानून किसान और कृषि दोनों की दशा को सुधारने में मील का पत्थर साबित होगा; इन दोनों दावे-प्रतिदावे के बीच आम आदमी स्वयं को दिग्भ्रमित महसूस कर रहा है कि आखिर इन कानूनों के बारे में क्या राय कायम किया जाय.
मेरे विचार से इन तीनों अधिनियम को हर उस व्यक्ति को अध्ययन नहीं तो कम से कम पढ़ना जरूर चाहिये जो इस मुद्दे पर अपनी स्वयं की राय कायम करना चाहते हैं.
आइये देखते हैं कि इन तीनों कानूनों में वास्तव में क्या है जो इतना हंगामा मचा है.और यह भी कि क्या ये हंगामा इतना जायज़ है कि दिल्ली को अनिश्चितकाल तक के लिए घेर कर एवं सारी यातायात व्यवस्था को चरमरा कर रख दिया जाय.
इन तीनों अधिनियमों का विस्तार से विश्लेषण प्रस्तुत आलेख को और लंबा कर देगा जो पहले हीं काफी विस्तृत हो चुका है; सत्वरूपेण संक्षेप मे बिंदुवार ये निम्नलिखित हैं-
1. पहला कानून
इस अधिनियम का नाम है:
The Farmers' Produce Trade and Commerce(Promotion and Facilitation)Act,2020.
इस अधिनियम के जरिए यह व्यवस्था की गई है कि-
(अ) किसान को अपने उपज जिसमें चावल, गेहूं, मोटा अनाज,दाल, खाद्य तेल,सब्जी, मसाला,गन्ना,कपास पशु चारा, दुग्ध उत्पाद एवं मुर्गीपालन, बकरीपालन, मछलीपालन, सुअरपालन से सम्बंधित सभी उत्पाद शामिल है, को राज्य के भीतर और राज्य के बाहर किंतु बाजार समिति द्वारा नियंत्रित भौतिक रूप से सीमित मार्केट यार्ड के बाहर किसी व्यापारी से व्यापार करने का इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग एंड ट्रांजेक्शन प्लेटफार्म के माध्यम से विकल्प होगा.
वह कृषि उपज जो कृषि उत्पादन बाजार समिति द्वारा specified है जिसे अधिनियम में Schedule Farmers' Produce के रूप में परिभाषित किया गया है, का यदि कोई व्यापारी किसी किसान से अंत:राज्यीय या अंतरराज्यीय व्यापार करता है तो उसके पास आय-कर अधिनियम के तहत Permanent Account Number (PAN No.) का होना आवश्यक होगा.
व्यापारी उसी दिन जिस दिन उसने किसान का उत्पाद खरीदा हो या अधिक से अधिक उसके तीन दिनों के भीतर किसान को उसके उत्पाद की कीमत अदा करने हेतु बाध्य होगा.
(आ) इस अधिनियम में किसान और व्यापारी के बीच उत्पन्न व्यापारिक विवाद समाधान का एसडीएम अपने अधीनस्थ पदाधिकारी की अध्यक्षता में एक Conciliation Board गठित कर करा सकेगा. इस बोर्ड के सदस्य के रूप मेें दोनों पक्ष अपना प्रतिनिधि नामित कर सकेगा. बोर्ड द्वारा समाधान न हो पाने की स्थिति में एसडीएम दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात आदेश पारित करेगा जो सिविल कोर्ट द्वारा पारित डिक्री के समतुल्य होगा.अधिनियम में एसडीएम के आदेश के विरुद्ध कलक्टर के समक्ष अपील का भी प्रावधान किया गया है.
विवाद समाधान की प्रक्रिया अनावश्यक रूप से न्यायालय के भ्रमरजाल में फंसकर प्रभावहीन न हो जाय इसे ध्यान में रख इस अधिनियम को सिविल कोर्ट की अधिकारिता से बाहर रखा गया है और कार्यपालक पदाधिकारी को विवाद समाधान को एक निश्चित समयावधि जो 30 दिनों की निर्धारित की गयी है,के भीतर सुनिश्चित कराने को कहा गया है.
(इ) इस कानून के उल्लंघन करनेवाले व्यापारी या किसान पर 25000 रूपए से लेकर 500000 रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है और यदि यह उल्लंघन इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग एंड ट्रांजेक्शन प्लेटफार्म के स्तर पर होता है तो उसके मालिक/नियंत्रक या आपरेटर पर जुर्माना राशि 50000 रूपए से लेकर 1000000 रुपए तक तय की गई है.
2.दूसरा कानून
इस अधिनियम का नाम है-
The Farmers(Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act,2020.
(अ) जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है,मोटे तौर पर यह कानून किसान या रजिस्टर्ड किसान संगठन को अपने उपज का लाभकारी मूल्य पाने के लिए या/और फार्म सेवा पाने के निमित्त उपज के पहले हीं किसी व्यापारी (इसे इस अधिनियम में Sponsor की संज्ञा दी गई है) से Farming Agreement करने की सुविधा प्रदान करता है ताकि स्पांसर उसके उपज को पहले से आपसी सहमति से उत्पन्न क़रार द्वारा तय मूल्य पर खरीदने हेतु बाध्य रहेगा.
इस एग्रीमेंट में कृषि सेवा प्रदाता(Farm Service Provider) या समूहक (Aggregator) के तौर पर कोई व्यक्ति तृतीय पक्षकार के रूप में शामिल हो सकता है.
बाद में वह फ़सल खरीदने से इंकार नहीं कर सकता है कि फ़सल कम गुणवत्ता,ग्रेड या स्टैंडर्ड का है. इसके लिये करारनामा में इससे संबंधित शर्तों को आपसी सहमति से शामिल किया जा सकेगा कि उत्पाद को खरीदने के लिए उसकी क्वालिटी,ग्रेड या स्टैंडर्ड क्या होगा. एकरारनामे में तृतीय पक्ष द्वारा निरीक्षण या मूल्यांकन सम्बंधी शर्त भी आपसी सहमति से शामिल किया जा सकता है.
(आ) यदि एकरारनामे में उत्पाद खरीद मूल्य परिवर्तनीय रखा गया हो तो दोनों पक्षों के लिए यह बाध्यकारी होगा कि उसी एकरारनामे में गारंटीड कीमत का भी प्रावधान हो तथा Price Reference का भी उल्लेख हो तथा जिसे बाजार समिति के मूल्य से सम्बद्ध किया जा सके.
(इ) इस तरह तय पाये एकरारनामा को इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्री के जरिए निबंधित भी कराया जा सकेगा. निबंधन पदाधिकारी राज्य सरकार का एक पदाधिकारी होगा.
इस एकरारनामे में किसी बंटाईदार के हित या हक के प्रतिकूल कोई प्रावधान नहीं शामिल किया जा सकेगा. भूमि पर किसान के मालिकाना हक भी ऐसे करारनामा से प्रभावित नहीं होगा,इसका इस अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख है.
करारनामा एक उत्पादन चक्र से लेकर अधिकतम पांच साल तक के लिए किया जा सकता है.
(ई) इस अधिनियम में भी विवाद समाधान की प्रक्रिया लगभग वही है जो पहले अधिनियम में वर्णित है.
इस अधिनियम के तहत उस स्थिति में किसान से किसी प्रकार की वसूली कोई स्पांसर नहीं करा सकता है यदि कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिस पर किसान का कोई नियंत्रण न हो और इस तथ्य का समाधान पदाधिकारी के समक्ष सुनवाई में भी साबित हो जाय.
अधिनियम में किसान की स्पॉन्सर के प्रति देनदारीें से मुक्ति की principle of force majeure के तहत पूरी मान्यता है.
3.तीसरा कानून
इस अधिनियम का नाम है-
The Essential Commodity (Amendment)Act2020.
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह कोई नया कानून नहीं है बल्कि आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 को संशोधित इस चलते किया गया है कि चावल, गेहूं,दाल,आलू, प्याज, खाद्य तेल जैसे कृषि उपज की खरीद-बिक्री आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत आपूर्ति विषयक विनियमन (regulation) से प्रतिकूल रूप से प्रभावित न हो अन्यथा उपर के दोनों अधिनियम ही बेमानी साबित हो सकते हैं.
इसलिये यह व्यवस्था की गई है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम मेे संशोधन किया जाय जिससे कि उपरोक्त वस्तुओं की आपूर्ति को मात्र असाधारण परिस्थितियो में ही रेगुलेशन किया जा सके अन्यथा की स्थिति में यह डिरेगुलेटेड रहेगा.
जाहिर है कि बाजार आधारित व्यवस्था को लागू करने के लिए ऐसा स्टाक रखने की सीमा के संदर्भ में भी कोई आदेश तब तक नहीं जारी किया जायेगा जब तक कि बागवानी उत्पाद के मामले में इनकी कीमत में पिछले बारह महीने की तुलना में दोगुना एवं शीघ्र नष्ट न होने वाले कृषि उत्पाद के मामले में इनकी कीमत पिछले बारह महीने की तुलना में डेढ़ गुना न हो जाय.
यही तीन हालिया खेती-किसानी कानून है जिनके मुख्य प्रावधानों को मोटे तौर पर यहां संक्षेप में लिखने का प्रयास किया है.
हमें कोई बताए कि यदि इस अधिनियम के माध्यम से किसान को यदि यह विकल्प दिया गया है कि वह अपना उपज मंडी के बाहर भी online electronic trade and transaction platform के जरिए बेच सकता है तो इस विकल्प में क्या बुराई है? क्या आज हम अपनी आवश्यकता की वस्तु आमेजन,फ्लिपकार्ट आदि online platform पर नहीं खरीदते हैं?इस इंटरनेट युग में Consumer Items के context में offline trade को बचाने के लिए भौतिक रूप से अवस्थित दूकानों के व्यापारियों का online trade का विरोध कामयाब हो सका? उल्टे यह इ- कामर्स इस डिजिटल युग में बिजली के रफ्तार से बढ़ रहा है. इसे न तो रोका जा सकता है न हीं यह वांछनीय हीं है. यदि ऐसा हो तो सेवा क्षेत्र जो हमारे जीडीपी का कर्णधार बना है,अपना जुआ पटक देगा. कृषि और उद्योग की जीडीपी में कितनी कम भागीदारी है ये बात किसी से छिपी नहीं है.
जब हमारे जीवन में डिजिटल दखल हमारी जरूरत बन चुकी है तो क्यों नहीं इसका लाभकारी उपयोग कृषि क्षेत्र में भी किया जाय जो दशकों से जड़ता का शिकार है. यह अधिनियम तो किसान को अपना कृषि उपज मंडी के बाहर इंटरनेट के जरिए बेचने की आजादी देता है तो यह इतना ख़राब हो गया? आप नहीं बेचना चाहते हैं तो कोई जबरदस्ती तो है नहीं.
क्या किसान और उनके बच्चे online purchase नहीं करते हैं?कहने की आवश्यकता नहीं है कि आज का किसान वर्ग इंटरनेट से अनभिज्ञ नहीं है,वह किसान वर्ग तो बिल्कुल ही नहीं जो दिल्ली को हफ्तों से घेरे हुए हैं.Consumer items के ऐसे online trade में तो पीड़ित पक्ष के हित संरक्षण का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के इतर कोई संरचनात्मक ढांचा भी नहीं है. यहां तो इस अधिनियम में किसान और व्यापारी के बीच विवाद समाधान के निमित्त एक सुस्पष्ट ढ़ांचे के निर्माण की व्यवस्था को भी अधिनियमित किया गया है.
असल में समस्या यह अधिनियम नहीं है. समस्या का सेन्टर आफ ग्रेभिटी अधिनियम के बाहर है.अधिनियम का विरोध तो मात्र एक बहाना है. किसान को यह भारी अंदेशा हो चला है कि जिस तरह कनज्यूमर आईटम का ओनलाइन ट्रेड भौतिक दूकानों को लीलता जा रहा है उसी तरह यह कृषि उपज का ओनलाइन ट्रेड समय के साथ एमएसपी को लील जायेगा और वे पूरी तरह से बाजार के रहमो-करम पर रह जायेंगे और मौक़ा पाते ही सरकार एमएसपी को समाप्त कर देगी.
बाजार उनके उत्पाद को एमएसपी जैसे ऊंची कीमत पर कभी नहीं खरीदेगा. अभी जो सौ-सौ एकड़ जोत वाले किसान अपने हजारों क्विंटल उपज को बिना किसी टेंशन के मंडी में एमएसपी पर बेच कर निश्चिंत हो जाते हैं,एमएसपी खत्म होने पर उन्हें अपने फसल को बेचने के लिए ओनलाइनबाजार में ओनलाइन चिरौरी करना पड़ेगा जो उन्हें market forces पर निर्भर बना देगा.ऐसा पंजाब हरियाणा का बड़ा-बड़ा किसान हरगिज नहीं चाहेगा.
इसलिये वे एमएसपी पर कानून बनाने पर अड़े हुए हैं ताकि सरकार इसे कभी खत्म ही न कर पाये. यदि ऐसा न हो तो उनकी मांग यही है कि इन हालिया अधिनियम में ही ऐसा प्रावधान किया जाय कि व्यापारी भी किसान का उपज एमएसपी से कम कीमत पर न खरीदें.यह मांग न केवल अव्यावहारिक है बल्कि यदि इसे बाध्यकारी बना दिया जाय तो खाद्य पदार्थ की वो कीमत हो जायेगी जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. इस कीमत पर शायद ही कोई ग़रीब आदमी (जिसमें देश के दूसरे भाग का किसान भी शामिल है) अपने जरूरी खाने का सामान खरीद पाने में सक्षम होगा.
मेरी इस मामले में अब तक यही समझ बन पाई है.
राजीव रंजन प्रभाकर.
13.12.2020.
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