कपट और क्रोध:एक संक्षिप्त विश्लेषण

कपट और क्रोध के विषय में आप क्या सोचते हैं? यही न कि ये दोनों हीं व्यक्ति के चारित्रिक दुर्गुण हैं जिसे कोई भी पसन्द नहीं करता भले ही पसन्द-नापसंद करनेवाला स्वयं कपटी या क्रोधी क्यों न हो।
बात बिल्कुल सही है। लेकिन यदि कपट एवं क्रोध के बीच किसी एक को चुनने की बाध्यता हो तो आप का चुनाव कैसा होगा ये मुझे पता नहीं किन्तु मेरी दृष्टि में कपटी व्यक्ति को दूर से हीं प्रणाम कर अपनी राह पकड़ लेना ज्यादा हितकारी है; शर्त ये है कि हमें यह निश्चित तौर पर पता हो कि अमुक व्यक्ति का कार्यकलाप पूर्व में कपटपूर्ण रहा है। उस पर विश्वास नहीं करने में जितना कल्याण है उतना कर के कदापि नहीं। इस सम्बन्ध में नदी किनारे हाथ में कंगन लिये बैठे बाघ की कथा का स्मरण अनायास ही कथा से परिचित लोगों को हो गया होगा। 
उपर कपट के विषय में कुछ कहने का अभीष्ट कदापि नहीं है कि क्रोध का किसी भी रूप में समर्थन हो जाय। अपितु यह तो सर्वानुभवगम्य तथ्य है कि क्रोध का ग्रास सर्वप्रथम क्रोधी स्वयं होता है।
मेरा मत है कि कोई भी व्यक्ति भले ही स्वभाव से क्रोधी हो किन्तु वह क्रोध करना चाहता नहीं है। वह  प्रकृतिवश प्रतिकूलता की स्थिति में क्रोधित हो उठता है। यह एक प्रकार से उसकी लाचारी हुई। वह अपनी इस कमजोरी से वाकिफ रहते हुए भी इससे मजबूर है। अतः क्रोध व्यक्ति के दीनता का परिचायक है जिसमें वह यदि परिस्थिति को स्वयं के अनुसार नहीं पाता है या बना पाता है तो स्वयं की ऐसी असमर्थता छिपाने और नकली सामर्थ्य को दिखाने के लिए अपने से कमजोर पर क्रोध उतारना शुरू कर देता है।क्या अपने से सबल पर कोई क्रोध करता है? इसीलिए मैं क्रोधी को दीन समझता हूँ और इसलिए ऐसा आपने भी अनुभव किया होगा कि व्यक्ति का क्रोधज्वर जब उतरता है तो वह किस कदर हारा हुआ और दीन मालूम पड़ता है।
इसके विपरीत कपटपूर्ण व्यवहार व्यक्ति स्वयं को अधिक बुद्धिमान और सबल समझ कर हीं करता है तथा जिसके साथ वह ऐसा कपटपूर्ण व्यवहार करता है उसे वह सरल या मूर्ख तक समझता है तभी तो वह ऐसा करने की सोचता है। कपटी व्यक्ति को सामनेवाला अपना हितैषी हीं मानता रहता है जबतक उसके साथ धोखा हो गया है, का उसे अहसास नहीं हो जाता। क्रोधी के बलाबल का परिचय उसके साथ अल्पसम्पर्क में हीं हो जाता है किन्तु दक्ष-कपटी का संसर्ग व्यक्ति को उसके नाशकाल तक पता नहीं चलता सिवा इसके कि भला ये मेरा बुरा क्यों सोचेंगे!
क्या दुर्योधन को अपने मामा शकुनि का कपट का पता अंतकाल तक चल सका?
राजीव रंजन प्रभाकर.
१३.१०.२०१९.

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