अनेकभेद संकुलित संसार
ऐसे तो सबकुछ ब्रह्म ही हैं और जो कुछ भी दिख रहा है या नहीं दिख रहा है उसे ब्रह्म के हीं विविध रूप विद्वानों ने कहा है. मौन हीं ब्रह्म की सर्वोत्तम व्याख्या विद्वानों ने निश्चय किया हुआ है. यह अव्यक्त है, अविनाशी है, अचिंत्य है; संक्षेप में सम्पूर्ण जड़-चेतन के पकड़ के परे है. ठीक ही है; इसलिए भी कि क्या कार्य कारण को ढ़ूंढ सकता है? नहीं न! क्या जड़-चेतन सभी प्रकृति के कार्य नहीं हैं? और स्वयं प्रकृति भी तो ब्रह्म का एक अंशमात्र हीं तो है. ******************************************** आंशिक रूप से ही सही;यह पकड़ में तब आता है जब ब्रह्म स्वयं को अनेक भेद एवं रूपों में व्यक्त एवं परिवर्तित कर लेता है जिसे हम संसार कहते हैं. अनेकभेद एवं रूप को भी समान अथवा असमान वर्गों में बांट कर मनुष्य अपने बुद्धि का परिचय आदि काल से देता आ रहा है. ******************************************* विद्वानों ने किस प्रकार अनेकभेद संकुलित संसार को अपने बुद्धि-विवेक से अनेक वर्गों में समुच्चयात्मक विभाजन किया है,उसकी रूपरेखा मात्र का नीचे के संकलन में दिग्दर्शन कराने की चेष...