अनेकभेद संकुलित संसार

ऐसे तो सबकुछ ब्रह्म ही हैं और जो कुछ भी दिख रहा है या नहीं दिख रहा है उसे ब्रह्म के हीं विविध रूप विद्वानों ने कहा है.  मौन हीं ब्रह्म की सर्वोत्तम व्याख्या विद्वानों ने निश्चय किया हुआ है. यह अव्यक्त है, अविनाशी है, अचिंत्य है; संक्षेप में सम्पूर्ण जड़-चेतन के पकड़ के परे है. ठीक ही है; इसलिए भी कि क्या कार्य कारण को ढ़ूंढ सकता है? नहीं न! क्या जड़-चेतन सभी प्रकृति के कार्य नहीं हैं? और स्वयं प्रकृति भी तो ब्रह्म का एक अंशमात्र हीं तो है. 
********************************************
आंशिक रूप से ही सही;यह पकड़ में तब आता है जब ब्रह्म स्वयं को अनेक भेद एवं रूपों में व्यक्त एवं  परिवर्तित कर लेता है जिसे हम संसार कहते हैं. 
अनेकभेद एवं रूप को भी समान अथवा असमान वर्गों में बांट कर मनुष्य अपने बुद्धि का परिचय आदि काल से देता आ रहा है. 
*******************************************
 विद्वानों ने किस प्रकार अनेकभेद संकुलित संसार को अपने बुद्धि-विवेक से अनेक वर्गों में समुच्चयात्मक  विभाजन किया है,उसकी रूपरेखा मात्र का नीचे के संकलन में दिग्दर्शन कराने की चेष्टा की गई है. 
इस अनेकभेदसंकुलितसंसार की झलक
गणित की एक शाखा में मिलती है.केलकुलस(Calculus) जिसके अंतर्गत सारे गणितीय समाधान मोटा मोटी दो भागों में विभक्त हैं- ये हैं; Differentiation & Integration.
शाखाचंद्रन्याय की दृष्टि से यह संसार ही differentiation & Integration का रणक्षेत्र है. अस्तु.
********************************************
प्रस्तुत संकलन सम्पूर्ण नहीं है; हो भी नहीं सकता. यह मात्र उदाहणात्मक है, सम्पूर्णात्मक तो कदापि नहीं.(only illustrative, not exhaustive).
किंतु पढ़कर शायद रोचक लगे;कदाचित ज्ञानवर्धक भी.आप भी इसमें जोड़ सकते हैं जो इसमें शामिल नहीं किया जा सका है.
एक- एक तो एकमात्र ब्रह्म ही है.(एको अहम् बहु स्याम्)
दो-(Two)
 १. (१.सत-२.असत
 २. (१.ब्रह्म-२.जीव)
 ३. (१.प्रमाता-२.प्रमेय)
 ४. (१.प्रकृति-२.पुरूष)
 ५. (१.द्वैत   २.अद्वैत)
 ६. (१.उपमान २.उपमेय)
 ७.(१.आदि२.अंत)
 ८. (१.कर्ता २.कर्म)
  ९.(१.परिमित२.अपरिमित)
 १०. (१.श्वेताम्बर२. दिगम्बर)
  ११.  (१.महाव्रत २. अनुव्रत)
  १२. (१.सूर्यस्वर २.चंद्रस्वर)
  १३. (१.नर २.नारी; स्त्री-पुरूष)
  १४. (१.शुक्ल पक्ष, २.कृष्ण पक्ष)
तीन-(Three)
१.(त्रिकाल-भूत, भविष्य, वर्तमान)
 २.(त्रिवेणी-गंगा, यमुना, सरस्वती)
                     -इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना)
 ् ३. त्रिशूल/त्रिताप-(दैहिक,दैविक, भौतिक)
  ४.त्रिदोष-(कफ,पित्त,वात)
                     -(काम,क्रोध,लोभ)
  ५.त्रिफला-(आंवला,हर्रे, बहेड़ा)
  ६.त्रिकोण-(न्यूनकोण, समकोण,अधिककोण)
  ७.तीन मार्ग-(ज्ञानमार्ग, योगमार्ग, भक्तिमार्ग)
  ८.गुणों के तीन विभाग-(संत,रज,तम)
  ९.तीन प्रमाण-
                          (प्रामाणिक,प्रतिभासित, पारमार्थिक)
 १०. त्रिदंड-(मनोदंड,कायदंड,वाक्दंड)
 ११. तीन लोक; त्रिभुवन-(देवलोक, भूलोक, पाताल लोक)
 १२.पदार्थ की तीन अवस्था-
                                            (ठोस,द्रव,गैस)
 १३.साहित्य-(छंद, अलंकार,रस)
 १४.ज्ञान की तीन अवस्था-(ज्ञानी,अज्ञानी,विज्ञानी)
 १५. अध्यात्म के तीन तत्व -(ब्रह्म,माया,जीव)
 १६. बौद्ध दर्शन के तीन यान-
                               (हीनयान,महायान, वज्रयान)
 १७.ज्ञान के तीन स्रोत-(माता,पिता, गुरु)
 १८.छल के तीन प्रकार- वाक्छल, सामान्य चल, उपचार चल.
 १९. प्राणायाम के तीन भेद-पूरक,कुम्भक,रेचक.
 २०. कर्म के तीन भेद-(नित्य,नैमित्तिक,काम्य)
 २१.त्रिदेव-(ब्रह्मा, विष्णु, महेश)
 २२.त्रिविध समीर-(शीतल,मंद और सुगंधित)
 २३.त्रिविध ईशना-(पुत्रैषणा,वित्तैषणा और लोकैषणा)
चार-(Four)
१.चार वेद-
                 (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद.)
२.चार आश्रम-(ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,वाणप्रस्थ, संन्यास.)
३.चार वेदांग-
                  (मंत्रसंहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्)
४.चार कर्तव्य-(जप,तप,दान,यज्ञ)
५.ज्ञानमार्ग के चार दर्शन-
                    (अद्वैत, द्वैत,अद्वैताद्वैत,विशिष्टाद्वैत)
६.चार वर्ण-(ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य, शूद्र)
७.चार धर्म-(हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई)
८.जीवन के चार उद्देश्य-(पुरूषार्थ)-
                 (धर्म,अर्थ, काम,मोक्ष)
९.चार युग-(सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग)
१०.पारंपरिक सेना (चतुरंगिनी)के चार अंग-
                                  (हाथी,घोड़ा,रथ,पैदल)
११.चार अंत:करण-मन, बुद्धि,चित्त, अहंकार
१२.चार प्रमाण-(प्रत्यक्ष, अनुमान,उपमान, शब्द) १३..चार उपवेद-(आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्व शास्त्र,तंत्र 
विद्या)
१४. धर्म के चार चरण-सत्य,शौच,दया और दान.
पांच-(Five)
१.पंचामृत-(दूध,दही,घी,चीनी,मधु)
२.पंचरत्न-(सोना,हीरा,नीलम,लाल,मोती)
३.पंचकन्या-(अहिल्या, द्रोपदी, कुन्ती,तारा, मंदोदरी)
           (इन पांच स्त्रियों के विवाह आदि करने भी इनका कौमार्य पुराण के अनुसार अखंडित माना गया है)
४.पंचध्वनि-
         (वेदध्वनि,बंदीध्वनि,जयध्वनि,              
                                शंखध्वनि,निशानध्वनि)
६.पंचांग-(वार, तिथि, नक्षत्र,योग,करण)
७.पंचकंवल(पंचकौर)-
        पांच ग्रास अन्न जो स्मृति के अनुसार खाने के पूर्व 
                १.कुत्ते२.पतित३.कोढ़ी४.रोगी५.कौए आदि के लिए निकाल दिया जाता है.मनुस्मृति में इसे अग्रासन कहा गया है.
८. पंचक दोष -घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद,उत्तराभाद्रपद और रेवती- येपांच नक्षत्र जिसमें किसी कार्य का आरंभ निषिद्ध है.
९.पंचकोश- उपनिषद् और वेदान्त के अनुसार शरीर संघटित करने वाले ये पांच कोश हैं-
                   १. अन्नमय कोश
                   २.  प्राणमय कोश
                   ३.  मनोमय कोश
                   ४.  विज्ञानमय कोश
                   ५.  आनन्दमय कोश
१०. पंचगंगा-(गंगा, यमुना, सरस्वती,किरणा,धूतपापा) 
११. पंचगव्य-(गाय से प्राप्त होने वाले पांच द्रव्य)
                ये हैं-दूध,दही,घी,गोबर, गोमूत्र.
१२.पंचदेवता-आदित्य,रूद्र, विष्णु, गणेश,देवी.
१३.पंचतत्व-पृथ्वी,जल, अग्नि, वायु,आकाश.
१४.पंचमहाभूत-शब्द, स्पर्श, रूप,रस,गंध.
१५.पंचनद- सतलज,व्यास,रावी,झेलम,चेनाव.
१६.पंचद्रविड़-विन्ध्याचल के दक्षिण में बसे ब्राह्मणों की पांच शाखाएं- महाराष्ट्र, तैलंग,कर्णाट, गुर्जर, द्रविड़.
१७.पंचनाथ-
           बद्रीनाथ, द्वारकानाथ, जगन्नाथ,रंगनाथ, श्रीनाथ
१८.पंचजन-देव,पितर, गंधर्व,असुर, राक्षस.
१९.पंचपल्लव- आम, जामून,कैद,बिजौरा,बेल.
२०.पंचप्राण-प्राण,अपान,समान,ध्यान,उदान नामक पांच प्रकार की वायु.
पंचपरमेष्ठी- जैन शास्त्र के अनुसार
         १.अरिहंत२.सिद्ध३.आचार्य४.उपाध्याय५.साधू
२१.वृक्ष के पांच अंग-(वैद्यक)
          १.जड़२.छाल३.पत्ती४.फूल५.फल.
२२.व्याकरण 
         १. सूत्र२.वार्तिक३.भाष्य४.कोश५.महाकवियों के प्रयोग.
२३.पंचशब्द-पांच मंगलसूचक बाजे जो मंगलकार्यों में बजाये जाते हैं. ये हैं-(तंत्री, ताल,झांझ, नगाड़ा, तुरही)
२४.पंचवाण- ये कामदेव के पांच पुष्प वाण हैं;                         (अरविन्द,अशोक, आम्र,नवमल्लिका,नीलोत्पल)
                                     या
           (उन्मादन,तापन, शोषण,स्तम्भन, सम्मोहन)
२५.पंचलवण-(कांच, सेंधा,सामुद्र,विट,सोंचर)
२६.पंचमहाव्रत-
                  (अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य,सत्य, अपरिग्रह)
२७.पंचमुख-
            (मुख्य भट,असुर,सुर,सर्वसरि,समरत्थ-ये पंचमुखी हनुमान के पांच मुखों के नाम हैं)
२८.पंचमकार-वाममार्ग के पांच साधन; ये हैं-
          (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन)
२९.पंचमहायज्ञ-ये हैं;
       (अध्यापन और संध्या वंदन‌, पितृतर्पण,होम या देवयज्ञ, बलिवैश्वदेव या भूतयज्ञ तथा अतिथि पूजन)
३०.पंचकर्म- उत्प्रेक्षण(उछालना),अवक्षेपन        (फेंकना),आकुंचन(सिकोड़ना), प्रसारण (फैलाना),गमन(चलना)
३१. पांच ज्ञानेन्द्रियां- कान,नाक,नेत्र, त्वचा, रहना.
३२.पांच कर्मेंद्रियां-(हस्त,पाद,वाणी,गुदा,उपस्थ)
३३.निगमन के पांच भेद-(तर्क, निर्णय,वाद,जल्प,वितण्डा, हेत्वाभास)
३४.पंचपांडव-युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव.
३५.पंचफोरन-जीरा,मेथी,मंगरैल,अजवाइन,सौंफ.
३६.पंचमहापाप- शास्त्रों में
     ब्रह्महत्या,सुरापान,चौरकर्म,गुरूपत्नीगमन और पांचवां इन पातको के संसर्ग को पंचमहापाप की संज्ञा दी गई है.
छ:(Six)
१.षडदर्शन-(योग, सांख्य,न्याय,वैशेषिक,पूर्वी मीमांसा, उत्तर मीमांसा)
२.षट्कर्म-(यजन,याजन,अध्ययन,अध्यापन,दान,प्रतिग्रह)
३.षडंग-वेद के छः अंग हैं- शिक्षा,कल्प, व्याकरण,निरूक्त, छंद, ज्योतिष.
४.षटराग-संगीत के छः राग-
     भैरव,मल्हार,श्रीराग,हिंडौली, मालकौंस,दीपक.
५.षटरस- मधुर,लवण,तिक्त,कटु,काषाय,अम्ल
६.छ: आततायी-आग लगानेवाला, जहर देनेवाला, बुरी नीयत से हाथ में शस्त्र ग्रहण करनेवाला,धन लूटनेवाला, खेत और स्त्री को छीनने वाला इसे श्रीमद्भागवत में छ: आततायी कहा गया है.
सात-(Seven)
१.सप्तद्वीप-पुराण के अनुसार पृथ्वी के साथ बड़े और मुख्य विभाग; ये हैं-
      जंबू, कुश,प्लाक्ष,शाल्मलि, क्रौंच,शाक, पुष्कर
२.सप्तपुरी- ये सात पवित्र नगर या तीर्थ जो मोक्षदायक कहे गए हैं-
    अयोध्या, मथुरा,माया(हरिद्वार),काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी),द्वारका
३.सप्तर्षि-शतपथ ब्राह्मण के अनुसार
     ये सात ऋषि-गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वशिष्ठ, कश्यप,अत्रि
महाभारत के अनुसार-
मरीचि,अत्रि, अंगिरा,पुलिस,क्रतु, पुलस्त्य, वशिष्ठ.
४.राज्य के सात अंग-चाणक्य के अनुसार राज्य के साथ अंग हैं-
  स्वामी,अमात्य,जनपद,दुर्ग,कोश,दंड,मित्र.
५. सात ब्रह्मव्यंजक स्वर- षड्ज(सा),ऋषभ(रे),गान्धार(गा),मध्यम(म),पंचम(प),धैवत(ध),निषाद्(नि)
६.सात छंद-गायत्री,‌त्रिष्टुप,अनुष्टुप,उष्णिक,बृहती, पंक्ति और जगती-ये सात छंद हैं.
७.सात दिवस-रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार.
८.सात-बहनें- उत्तर-पूर्व के सात राज्य; असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम.
९.इन्द्रधनुष के सात रंग- बैंगनी,नीला,आसमानी,हरा,पीला, नारंगी,लाल.
१०. सप्त अनाज- मूंग,उड़द,चना, गेंहू,जौ,बाजरा,चावल.
११. सप्तपदी-विवाह के निमित्त अग्नि को साक्षी मानकर लिये गये सात कदम(फेरे);पहला पद-अन्न के लिए, दूसरा पद-बल(पुष्टि)के लिए, तीसरा पद-धन के लिए,चौथा पद-सुख के लिए, पांचवां पद-परिवार(कुटुंब के लिए)छठा पद-संतानोत्पत्ति(ऋतुचर्या), सातवां पद-परस्पर मित्रता के लिए.
आठ-(Eight)
१.आयुर्वेद के आठ विभाग
 (१.शल्य,२.शालाक्य३.कायचिकित्सा४.भूतविद्या५.कौमारभृत्य६.अगदतंत्र७.रसायनतंत्र८.वाजीकरण)
२.शरीर के आठ अंग-
 (१.जानु२.पद३.हाथ४.उर५.शिर६.वचन७.दृष्टि८.बुद्धि.
३.अष्टधातु-
(१.सोना,२.चांदी,३तांबा,४.रांगा५.जस्ता६.सीसा,७.लोहा८.पारा.)
४.अष्टद्रव्य-
(१.अश्वत्थ,२.गूलर,३.पाकर,४.वट५.तिल६.सफेद सरसो७.पायस८.घी.)
५.आठ मंगल-आठ मंगल द्रव्य
  (सिंह,वृष,हाथी,कलश, पंखा, वैजयंती,मेरी, दीपक)
६.अष्टमूर्ति-शिव की आठ मूर्तियां
  (शर्व,भव,रूद्र,उग्र,भीम, पशुपति, ईशान, महादेव)
७.अष्टकृष्ण-
वल्लभ सम्प्रदाय के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की आठ मूर्तियां
(श्रीनाथ, नवनीत प्रिया, मथुरानाथ,विट्ठलनाथ, द्वारकानाथ,गोकुलनाथ, गोकुलचंद्र, मदनमोहन.)
८.अष्टकमल-हठयोग के अनुसार मूलाधार से ललाट तक के आठकमल- ये हैं; मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र,अनाहत चक्र,विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र,मनश्चक्र(बिन्दु या ललना),सहस्त्रार चक्र.
९.कर्ता के आठ चिन्ह-
               (कर्ता,कर्म,करण,सम्प्रदाय, अपादान, सम्बन्ध,अधिकरण, सम्बोधन)
१०. अष्टसिद्धि-
(अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य,ईशत्व, वशित्व)
११.अष्टांग योग- पतंजलि के अनुसार योग के आठ भाग
(यम,नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,धारण, ध्यान,समाधि)
१२.अष्टांग मार्ग-(बौद्धदर्शन के अनुसार)
  (सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक्, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीव,सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति,सम्यक समाधि)
१३.अष्टछाप-पुष्टिमार्ग के आठ कवि- कुम्भनदास, सूरदास, कृष्णदास, परमानन्ददास, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, नंददास, चतुर्भुजदास.
१४.विवाह के आठ प्रकार- हिन्दू धर्मशास्त्रों में विवाह के आठ प्रकार बताए गए हैं;ये हैं-(ब्रह्म,दैव,आर्ष, प्राजापत्य,असुर,गांधर्व,राक्षस और पैशाचिक)
१५.साष्टांग प्रणाम-व्यक्ति किसी को यदि सिर,हाथ,पैर, ह्रदय,आंख,जांघ,वचन और मन; इन आठो को मिलाकर सीधा जमीन पर लेट कर प्रणाम करें तो उसे साष्टांग प्रणाम या साष्टांग दंडवत कहेंगे.
निम्न श्लोक देखें.
(पदभ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्तथा।
  मनसा वाचा दृष्ट्या प्रणामोऽष्टांगमुच्यते।।)
नौ-(Nine)
१.नवनिधि- ये कुबेर के नौ रत्न हैं-
(पद्म, महापद्म,शंख,मकर,कच्छप, मुकुंद,कुंद,नील,खर्व)
२.नवग्रह-
 (सूर्य, चंद्र,मंगल,बुध, गुरु, शुक्र,शनि,राहु,केतु)
३.नवदुर्गा-(शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री.)
४.नवधाभक्ति-(श्रवण, कीर्तन, स्मरण,पादसेवन,अर्चन,वंदन,दास्य,सख्य,आत्मनिवेदन)
दस-(Ten)
१.दशनाम-
 संन्यासियों के दस भेद जो ये हैं-
   (तीर्थ,आश्रम,वन,अरण्य,गिरि,पर्वत,सागर, सरस्वती, भारती,पुरी)
२.दस दिशा-
(उत्तर, दक्षिण,पूर्व, पश्चिम, ईशान,नैऋत्य, आग्नेय, वायव्य,आकाश, पाताल.)
एकादश-(Eleven)
१.एकादश रूद्र-
(कपाली,पिंगला,भीम,विरुपाक्ष,विलोहित,अजक,शासन,शास्ता, शम्भु,चण्ड और भव)
द्वादश-(Twelve)
१. बारह खड़ी- देवनागरी वर्णमाला के बारह स्वर
 (अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ऐ,ओ,अं,अ:)
२.बारह आदित्य-(धाता,मित्र,अर्यमा,शक्ल, वरूण,भग,विद्वान,पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु)
३.बारह मास- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष,पौष,माघ, फाल्गुन)
४.द्वादश राशि- (मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन)
५.द्वादश ज्योतिर्लिंग-
    (सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुश्मेश्वर)
तेरह,चौदह, एवं पंद्रह अवयवों का समुच्चय फिलहाल खोज नहीं पाया हूं;हां सोलह अवयवों का समुच्चय के रूप में षोडशोपचार पूजन के रूप में अवश्य ध्यान में आ रहा है.
सोलह-(Sixteen)
१.षोडशोपचार पूजा-
(आवाहन,आसन, अर्घ्य,पाद्य,आचमन,मधुपर्क, स्नान, वस्त्राभरण, यज्ञोपवीत, गंध, पुष्प,धूप,दीप, नैवेद्य, ताम्बुल, परिक्रमा)
इसी प्रकार सत्रह अवयवों का समुच्चय भी सम्प्रति खोजने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूं.
अठारह-(Eighteen)
१.अष्टादश पुराण-
(ब्रह्म,पद्म, विष्णु,शिव, श्रीमद्भागवत,नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग,वाराह, स्कन्द,वामन, कूर्म, मत्स्य, गरूड़ और ब्रह्माण्ड में अठारह पुराण हैं)

क्षमायाचना सहित;
राजीव रंजन प्रभाकर
  (संकलनकर्ता)
   १९.०४.२०२१.

  
  










                


        
                              
     

Comments

Popular posts from this blog

साधन चतुष्टय

न्याय के रूप में ख्यात कुछ लोकरूढ़ नीतिवाक्य

भावग्राही जनार्दनः