थ्री क्वेश्चन्स

स्थानांतरण के बाद मिलने वाले पारगमन अवधि ने मुझे अपने पैतृक घर जाने का सुयोग प्रदान किया. जब से नौकरी मिली और खास कर जब से मां-पिताजी का देहांत हुआ घर आना-जाना प्रायः बहुत हीं कम होता चला गया .घर के नाम पर पचास-साठ साल पुराना मेरे पिताजी द्वारा ही बनाया मकान का एक हिस्सा जो लगभग तीन-चार कमरे तक सीमित है, मेरे हिस्से में आया जो वर्षों तक मेरी उपेक्षा का शिकार रहा है. आज उसकी स्थिति यह है कि उसके ढ़ंग से मरम्मत में भी कम से कम तीन -चार लाख का खर्च तो है हीं. फिलहाल इसे यदि मैं नहीं कर पा रहा हूं तो ये मेरी नाअहली है.देखें इसे कब पूरी तरह ठीक करा पाता हूं.
आज उसी घर में मैं स्वयं को जहां-तहां ढूंढ रहा था. बांकी सब कुछ तो लगभग गायब हो चुका था लेकिन थोड़ी-बहुत मदद घर के पुराने किबाड़-चौखट दरवाजे जरूर कर रहे थे. लेकिन सबसे ज्यादा मदद मिली एक पुरानी अलमारी से; खास कर उसमे रखी पुरानी किताबों से जो एकदम से पीली,बेरौनक और कुछेक तो भुरभुरी हो चुकी थी. इन किताबों से कभी मेरा गहरा नाता रहा था जिसे मैंने ही एकतरफा तोड़ डाला था. उसी अलमारी में रखी एक किताब जो कभी मेरे इंटरमीडिएट के अंग्रेजी विषय के कोर्स में शामिल थी, मेरे हाथ में आ गयी. उसी को पलटते-पलटते एक कहानी "थ्री क्वेश्चन्स" को पढ़ने लगा जिसे कभी किशोर काल में मात्र परीक्षा में अच्छे अंक पाने के मकसद से पढ़ना पड़ता था.
  कहानी इतनी अच्छी लगी कि मैं उसे खड़े-खड़ेे हीं दुबारा पढ़ने लगा. 
आज उसी अंग्रेजी कहानी "Three Questions"जो मूलतः रुसी भाषा में महामनीषी लियो टॉलस्टाय ने लिखी है,को आत्मसात करने के अभ्यासार्थ हिंदी में लिखने का प्रयत्न किया गया है.आशा की जाती है कि ये कालजयी कहानी हम सभी को अपने जीवन को बेहतर समझने और बनाने में सहायक साबित होगी.
आदमी भी कितना मतलबी होता है. काम तो वह वही करता है लेकिन समय-समय पर उसे करने का मतलब बदल लेता है.खैर.
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Three Questions
एक बार किसी राजा को कोई तीन प्रश्न उसके मन-मस्तिष्क मथ रहे थे. 
ये प्रश्न थे-
१. मेरे लिए सही चीज क्या है जिसे मुझे करना ही चाहिए? मतलब ऐसा कौन सा काम है जो मेरे यानी एक राजा के लिए करना सबसे महत्वपूर्ण है जिसे छोड़ा बिलकुल नहीं जा सकता.
२.वो जो सही चीज जो मुझे करना है,उसे करने का सही-सही समय क्या है?
३.चूंकि राज काज की जिम्मेदारी काफी व्यस्तता से भरा रहता है गोया मेरी निगाह में वो कौन हो सकता है जो मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है ताकि मैं उसपर हमेशा ध्यान दूं और बकिये को दर गुजर कर दूं जिससे मेरा वक़्त फालतू में बरबाद न हो.
राजा के मंत्रीमंडल एवं दरबार का प्रत्येक सदस्य अपने उत्तमोत्तम ज्ञान, अनुभव एवं विवेक से इन प्रश्नों का उत्तर प्रस्तुत कर रहा था किंतु कोई भी नरेश को संतुष्ट कर पाने में सफल नहीं हो रहा था. 
       निश्चित हुआ कि राज दरबार की तरफ से ये घोषणा कर दी जाय कि जो कोई भी इन प्रश्नों का उत्तर राजा की संतुष्टि के अनुरूप दे पाने में सफल होगा उसे यथेष्ट स्वर्णमुद्राएं पुरस्कारस्वरूप दी जायेंगी.
बहुतेरे ज्ञानी,मनीषी,चिंतक एवं विद्वान ये सुन दरबार में उपस्थित हुए और अपने-अपने हिसाब से इन प्रश्नों के उत्तर देने लगे.
पहले प्रश्न के उत्तर में कुछ का कहना हुआ कि एक राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अपने प्रजा की भलाई का काम करना तो कुछ का मानना था कि नहीं बिल्कुल नहीं!एक राजा का यह दायित्व है कि वह राज्य की सुरक्षा कर इसका अधिक से अधिक विस्तार करे. लाजिमी है कि इसके चलते युद्धकर्म हीं एक राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम है. कुछ पंडित-विद्वानों का मत था कि राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अपने राज्य में तमाम तरह के धार्मिक स्थलों का निर्माण जीर्णोद्धार कराना क्योंकि राजा इस धरती पर ईश्वर का एकमात्र प्रतिनिधि है. जो स्वयं को प्रगतिशील एवं बुद्धि का ज्येष्ठ पुत्र समझते थे वे इस विचार को खारिज कर रहे थे कि इस तरह के काम से राजा का कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए बल्कि राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अस्पताल बनाना,रोड बनाना, पानी के लिए नहर खुदवाना वगेरह वगेरह. 
              दूसरे प्रश्न का जो उन लोगों ने उत्तर दिया वह भी कम रोचक नहीं था.
सही समय के बारे में भी सबके मत अलग-अलग थे. एक का कहना था कि सही समय कौन-सा है इसे जानने के लिए पहले राजा को एक अग्रिम योजना का खाका बना लेना चाहिए जिसमें एक तरफ आने वाले दिन, महीने और साल रहे और उसके सामने उन कामों का विवरण हो जिसे उस तिथि को करना है. ऐसे बनाये गये प्लान के मुताबिक हर समय और तिथि में जो काम अंकित रहे राजा उसे करता जाय. यही प्लानर(Daily Planners) उसे सही काम को सही समय पर करना बताता जायेगा और राजा को माथापच्ची भी नहीं करना पड़ेगा. दूसरे का विचार था कि सही काम को करने का सही समय कौन सा है इसे बिना ज्योतिषी की सहायता से जानना सम्भव नहीं हो सकता है. इसके लिए वह अपने साथ हमेशा एक प्रकांड ज्योतिष को रखे जो मुहूर्त को विचार कर उसे सही समय बतलाता रहे. प्रगतिशील विद्वत वर्ग का स्पष्ट मत था कि किसी काम को करने का सही समय पहले से बिल्कुल ही ज्ञात नहीं किया जा सकता है तब इसका मतलब ये कतई नहीं है कि राजा आलसी हो कर कोई काम करे ही नहीं बल्कि राजा हमेशा चौकन्ना रहे ताकि वह सही समय का चुनाव कर सके. कुछ व्यवहार कुशल विद्वान स्थायी राज्याश्रय पाने की मंशा से राजा को यह सलाह दे रहे थे कि राजा बुद्धिसम्पन्न विद्वानों का एक काउंसिल गठित कर दे जिसका मुख्य दायित्व ये होगा कि वह सही काम को सही समय पर करने का समय समय-समय पर फिक्स करता रहे.
जहां तक तीसरा प्रश्न का प्रश्न था, इसका उत्तर भी सभी ने अलग-अलग ही दिया. क‌ई लोगों का मत था कि एक राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण तो उसका राजवैद्य हीं है जो हमेशा उसके स्वास्थ्य की देखभाल करता है. दूसरे कुछ लोग राजपुरोहित को राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण मान रहे थे. उसके अनुष्ठान से हीं राज में खुशहाली है, ऐसा उनका विश्वास था. बांकि कुछ लोग थे जो ये कह रहे थे कि राजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण तो उसका सेनापति है जो उसके राज्य की सुरक्षा करता है. 
मतलब कि जितने मुंह उतनी बातें.
 सभी विद्वान रिक्त हस्त ही वापस गये;राजा को कोई संतुष्ट नहीं कर सका. 
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राजा की बैचेनी देख प्रधानमंत्री ने फिर सलाह दी. कहा अमुक जंगल में एक पहुंचे हुए महात्मा रहते हैं,दूर-दूर तक उनके बुद्धि एवं विवेक की चर्चा होती है. किन्तु दिक्कत ये है कि एक तो वह जल्दी किसी से मिलते नहीं और मिलते भी हैं तो सिर्फ आम लोगों से;राजा,मंत्री और अधिकारी टाइप के लोग से तो बिलकुल भी नहीं. 
राजा ने कहा-कोई समस्या नहीं. मैं स्वयं उनसे वेष बदल कर आम आदमी की तरह उनके पास जाउंगा और उनसे अपने प्रश्न का उत्तर पूछूंगा. यही हुआ. राजा अपने लाव-लश्कर के साथ जंगल की ओर सूरज निकलने के पहले हीं कूच कर गया. जब जंगल में महात्मा की कुटिया कुछ दूर रह गया तो राजा अपने अंगरक्षक को वहीं रोक साधारण कपड़े पहन कुटिया की तरफ चला. 
कुटिया पर पहुंचने पर सूरज निकल चुका था; महात्मा कुटिया के सामने खाली जमीन को कुदाल से खोद रहे थे. महात्मा ने अपना काम जारी रखते हीं राजा की तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गए.
राजा ने अत्यंत विनम्र होकर महात्मा का अभिवादन कर उनसे अपने वे तीनों प्रश्नों का उत्तर मांगा.
महात्मा उनके वे तीनों प्रश्नों को सुनकर चुप हीं रहे बल्कि अपना काम उन्होंंने बिना कुछ जवाब दिएे जारी रखा.
राजा ने कहा- महात्मा जी!आप कुदाल चलाते-चलाते बहुत थक ग‌ए हैं; लाइये मैं आपकी थोड़ी मदद करता हूं.ये कह राजा ने महात्मा के हाथ से कुदाल ले स्वयं ज़मीन की खुदाई करना शुरू कर दिया.दुबले-पतले महात्मा वहीं खेत की मेड़ पर बैठ गए.
राजा ने कुदाल चलाते-चलाते हीं साधु से फिर अपने प्रश्न के बारे में पूछा.किंतु अभी भी महात्माजी ने इस पर अपना मौन को क़ायम हीं रखा. कुछ देर बाद महात्मा जी उठ खड़े हुए और राजा से कहा- "लाओ तुमने मेरी काफी मदद की,अब कुदाल मुझे दो. अब तुम काफी थक चुके हो."
राजा का जवान और गठीला शरीर वास्तव में थक चुका था. वह मेड़ पर जा बैठा और महात्मा के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.दोपहर का सूरज कब का ढ़ल चुका था, जंगल के झुरमुट में शाम का समय भी रात जैसा मालूम दे रहा था.
तभी एक आदमी उन दोनों की तरफ गिरता पड़ता आता मालूम पड़ा. अपने दोनों हाथों से पेट पकड़े वह बुरी तरह कराहता जब नजदीक आया तो राजा ने देखा उसके पेट से खून निकल रहा था.
राजा फौरन अपने कपड़े को फ़ाड़-फ़ाड़ कर अजनबी के पेट की पट्टी किये जा रहा था ताकि उसके पेट से बहते खून पर काबू पाया जा सके. बहुत मुश्किल से बहते खून पर काबू पा राजा ने उस अजनबी को साधु की कुटिया के एक भाग में लिटा कर स्वयं भीं वहीं लेट गया. रात भी काफी हो चुकी थी. पहले से ही बुरी तरह थका राजा कब सो गया उसे पता हीं नहीं चला.
दूसरे दिन जब राजा की आंख खुली तो सूरज काफी निकल आया था. अजनबी पहले ही जग चुका था. राजा को नींद से उठा देख वह उसकी तरफ देख फूट-फूटकर रोने लगा.उसने रोते-रोते कहा-मुझे माफ़ कर दो. मैं तुम्हारी ताजिंदगी गुलामी करूंगा, तुमने मेरी जान बचाई है.
राजा ये सुनकर हैरान हो गया; उसने अजनबी से कहा-किस बात की माफी अजनबी! मैं तो तुम्हें जानता तक नहीं. रही बात जान बचाने की तो वह तो तुम अपनी किस्मत से बचे हो मैंने तो उस समय जो कुछ मेरे फ़र्ज़ के तौर पर जो मुमकिन था,वही किया है.
अजनबी बोला- "तुम मुझे नहीं पहचानते हो. मैं तुम्हारा पुराना शत्रु हूं जिसे तुमने बहुत पहले युद्ध में हरा दिया था. तब से बदले की आग में जलता मैं तुम्हें मारने की फिराक में था. मुझे इसका पता चल चुका था कि तुम इस महात्मा से बिना किसी सुरक्षा के एक आम जन के रूप में आकर मिलने वाले हो. मैंने इसे तुम्हें मारने का अच्छा मौका देख तुम्हारा पीछा किया और जब तुम महात्मा के पास पहुंचे तो मैं भी एक झुरमुट में छिप तुम्हारे वापस लौटने की प्रतीक्षा करने लगा. किन्तु जब तुम शाम होने तक वापस नहीं लौटे तो मुझे लगा कि आज तुम कुटिया में ही रूकोगे. इसलिए झाड़ियों से जब मैं निकलने लगा तो तुम्हारे अंगरक्षकों ने मुझे देख लिया और मेरीे मंशा को भांप मुझ पर हमला करते हुए मेरे पेट पर खंजर चला दिया.
राजन! तुमने मेरी प्राणरक्षा की है. मेरे मन का सारा मैल धुल गया है. मैं तुम्हारा यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा और पूरी जिंदगी तुम्हारी गुलामी करूंगा."
राजा ये जान बहुत खुश हुआ. अनायास ही उसका एक पुराना शत्रु मित्र बन चुका था. 
उसने अजनबी से कहा, 'मैं यहां से लौटते हीं तुम्हारी समुचित चिकित्सा के लिए अपने राज्य का अनुभवी चिकित्सक को भेजता हूं जो तुम्हारे जख्म को जल्द ही ठीक कर देगा'
राजा जब कुटिया से बाहर निकला तो देखता है कि कल जिस जमीन को कुदाल से खोद कर तैयार किया गया था उसे समतल कर महात्मा जी उसमें कुछ बीज बोए जा रहे थे.
महात्मा को देखते ही राजा ने कहा- हे ज्ञानी महात्मा! अब तो मैं जा रहा हूं.अंतिम बार मैं फिर से निवेदन करता हूं कि मुझे मेरे प्रश्नों का उत्तर देना आपको मंजूर है तो दें अन्यथा अब मैं चलता हूं.
महात्मा बोले- राजा! तुम्हें तो तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर मिल चुका है!
 कैसे मिल गया? राजा ने काफी हैरान होकर महात्मा से पूछा. 
 महात्मा बोले- देखो जब तुम यहां आये और हमारे कमजोर शरीर पर तरस खाकर मेरी मदद करने नहीं रूक जाते तो तुम्हारे उसी समय लौटने पर वह अजनबी तुम पर हमला कर देता. तब तुम्हें इसका अफसोस जरूर होता कि काश मैं इस कुटिया पर ही कुछ वक्त बिता कर जाता.
इसलिए राजा! तुम्हारे लिए वह सबसे महत्वपूर्ण समय था जब तुम मेरे खेत की खुदाई कर रहे थे और उस सबसे महत्वपूर्ण समय पर तुम मेरे साथ थे; इसलिए उस सबसे महत्वपूर्ण समय पर तुम्हारे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मैं था और तुमने उस सबसे महत्वपूर्ण समय पर जो खुदाई की वह मेरी मदद में मेरे भले के लिए किया. वह खुदाई हीं तत्समय तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य था. 
उसके बाद जब वह अजनबी यहां दौड़ता आया तो जिस समय तुम उसकी मरहम-पट्टी कर रहे थे वह तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण समय था. यदि तुम उसकी मरहम-पट्टी नहीं करते तो तुमसे बिना सुलह किये वह मर जाता और तुम्हारे उस दुश्मन राजा के आल औलाद के साथ वह शत्रुता बनी ही रह जाती और मैत्री का जो अवसर उसके जान बचाने के कारण जो तुम्हें मिला वह नहीं मिलता. इसलिए वह अजनबी तुम्हारे लिए उस महत्वपूर्ण समय पर जो तुम्हारे साथ था वही तुम्हारे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति था और तुमने उसके भले के लिए जो बीमार हालत में देखभाल की वह उस सबसे महत्वपूर्ण समय पर उस सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के प्रति तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य था.
          इसलिए बर्खुरदार! वर्तमान क्षण या समय हीं सबसे महत्वपूर्ण समय होता है क्योंकि यही वो समय है जिसपर हमारा नियंत्रण होता है और जिसमें हम तत्समय उपलब्ध परिस्थिति में अपनी क्षमता, योग्यता,सामर्थ्य या हुनर से जो कुछ सम्भव है,कर सकते हैं. और उस वर्तमान में जो हमारे साथ है वही हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है तथा उसके भले केे प्रति हमारा किया गया कार्य हीं सबसे महत्वपूर्ण कार्य है.
राजीव रंजन प्रभाकर.
११.०३.२०२१.
(महाशिवरात्रि)

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