रामकथा की महिमा

रामकथा भारतीय संस्कृति का प्राणाधार है. 
इसका श्रवण व्यक्ति और समाज दोनों के दोष एवं दुर्गुणों को दूर करने में परम सहायक है. इसका यदि सतत् सुचिंतन किया जाय तो समस्त दोष और दुर्गुण धीरे-धीरे भस्म होते चले जाते हैं.

 यह रामकथा हमारी सनातन संस्कृति में इस तरह से रची बसी है कि अपनी भारत भूमि में प्रत्येक दिन कहीं न कहीं इस कथा का आयोजन होता ही रहता है.

राग,द्वेष,ईर्ष्या एवं मलिन प्रतिस्पर्धा से भरे इस समाज में व्यक्ति का आचरण रामचरित्र के अनुसार यदि थोड़ा सा भी हो जाए तो उसके हृदय को अनिर्वचनीय शांति पहुॅंचती है; व्यक्ति का जीवन उत्तरोत्तर सार्थक होता चला जाता है. 

 रामकथा की महिमा अपरम्पार है. कविकुलतिलक गोस्वामी तुलसीदास जी भी इस रामकथा की महिमा को समग्रता में वर्णन करने में स्वयं को असमर्थ हीं पाये. 
     उपमा-उपमेय का सहारा लेकर हीं वे रामकथा की महिमा का किंचित अंश में हीं दिग्दर्शन करा पाने में समर्थ हो सके.
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रामकथा के संदर्भ में गोस्वामीजी ने मानस में जो कुछ भी में लिखा है उन्हीं चौपाईयों को मैंने स्वान्त:सुखाय चुन-चुन कर एक जगह एकत्रित किया है.

  पुनः इस प्रेरणा से कि क्यों न इसे सुधी पाठकों की सेवा में निवेदित कर दिया जाए!; इसे अर्थ के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है. 

चौपाई या दोहे का प्रायः वही अर्थ लिखा गया है जो ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक ब्रम्हलीन स्व.हनुमान प्रसाद पोद्दार जी द्वारा की गई मानस की टीका में दी गई है.
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रामकथा के बारे में गोस्वामीजी कहते हैं-
१. बुध बिश्राम सकर जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।।
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अर्थ-रामकथा पण्डितों को विश्राम देने वाली, सभी मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और कलियुग के पापों का नाश करने वाली है.
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२.रामकथा कलि पंनग भरनी।पुनि बिबेक पावक कहुॅं करनी।।
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अर्थ- रामकथा कलियुग रुपी साॅंप के लिए मोरनी है और विवेक रूपी अग्नि के प्रकट करने के लिए अरणि है.
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३.रामकथा कलि कामद गाई।सुजन सुजीवन मूरि सुहाई।।
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि।भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि।।
असुर सेन सम नरक निकंदिनि।साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि।।
जम गन मुहॅं मसि जग जमुना सी।जीवन मुकुति हेतु जनु कासी।।
रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी। तुलसीदास हित हियॅं हुलसी सी।।
सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी।सकल सिद्धि सुख संपति रासी।।
सदगुन सुरगन अंब अदिति सी।रघुबर भगति प्रेम परमिति सी।।
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अर्थ-
 गोस्वामी जी कहते हैं—
रामकथा कलियुग में सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली कामधेनु गौ है और सज्जनों के लिए सुन्दर सञ्जीवनी जड़ी है.पृथ्वी पर यही अमृत की नदी है. यह जन्म-मरणरूपी भय का नाश करनेवाली और भ्रमरूपी मेंढ़कों को खा जाने वाली सर्पिणी है.
   रामकथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करनेवाली और देवताओं के कुल का हित करनेवाली पार्वती(दुर्गा) है. 
   रामकथा संत-समाजरूपी क्षीरसागर में लक्ष्मीजी के समान है और सम्पूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है.रामकथा यमदूतों के मुख पर कालिख लगाने के लिए जगत में यमुनाजी के समान है और जीवों को मुक्ति प्रदान करने के लिए तो मानो काशी ही है. यह रामकथा श्रीरामजी को तुलसी के समान प्रिय है और तुलसीदास अपने लिए कहते हैं कि उनके लिए तो उनकी माता हुलसी हीं है जो हृदय से अपने पुत्र का हित चाहती है.

                            यह रामकथा शिवजी को नर्मदा के समान प्यारी है तथा यह सभी सिद्धियों की तथा सुख संपति की राशि है.
यह रामकथा सद्गुणरुपी देवताओं के उत्पन्न एवं पालन-पोषण करने के लिए माता अदिति के समान है तथा श्रीरघुनाथजी की भक्ति और प्रेम की परम सीमा सी है.
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४.दोहा—
   रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु।
   तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु।।
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अर्थ- तुलसीदासजी कहते हैं -
                  यह रामकथा मन्दाकिनी नदी है, सुन्दर चित्त चित्रकूट है,और सुन्दर स्नेह ही वन है जिसमें श्रीसीतारामजी विहार करते हैं.
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५.महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला।।
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अर्थ- रामचरितमानस में याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज मुनि से कहते हैं- हे तात! 
             बड़ा भारी मोह रूपी अज्ञान विशाल भैंसासुर है और उसका वध करने के लिए यह रामकथा समझो भयंकर कालीजी हैं. इसलिए तुम आदरपूर्वक मन लगाकर सुनो; मैं श्रीरामजी की सुन्दर कथा कहता हूॅं.
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६.रामकथा ससि किरन समाना।संत चकोर करिहिं जेहि पाना।।
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अर्थ- याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज मुनि को कहते हैं-
          रामकथा चन्द्रमा की किरणों के समान है जिसे संतरूपी चकोर सदा पान करते हैं.
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७.रामकथा मुनिबर्ज बखानी।सुनी महेस परम सुख मानी।।

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अर्थ- याज्ञवल्क्य जी कहते हैं- इस रामकथा को मुनिवर अगस्त्यजी ने विस्तार से महादेव को सुनाया था जिसे सुनकर उन्हें असीम सुख की प्राप्ति हुई.
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८.दोहा-
         रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि।
         सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि।।
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अर्थ- 
महादेव शिव अपनी भार्या माता पार्वती को समझा कर कहते हैं- 
रामकथा कामधेनु के समान सेवा करने से सब सुखों को देने वाली है,और सत्पुरुषों के समाज ही सब देवताओं के लोक हैं, ऐसा जानकर इसे कौन नहीं सुनेगा!
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९.रामकथा सुंदर कर तारी।संसय बिहग उड़ावनिहारी।।
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अर्थ- 
महादेव शिव कहते हैं -
               यह रामकथा हाथ की सुन्दर ताली है जो बजाने पर संशय-सन्देहरूपी चिर‌ई-चुनमुनी और पक्षी को उड़ा देती है.
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१०.रामकथा कलि बिटप कुठारी।सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
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अर्थ- 
शिव कहते हैं; हे गिरिजेशनंदिनी!
             यह रामकथा कलियुगरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है.तुम इसे आदरपूर्वक सुनो.
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रामकथा सुनने का अधिकारी कौन है?
           यह कथा उन्हें तो बिल्कुल ही नहीं सुनाना चाहिए जो स्वभाव से सठ है तथा जिसे भगवान की लीला सुनने में कोई रूचि नहीं दिखती हो. इस चराचर जगत के स्वामी में आस्था नहीं रखने वाले लोभ क्रोध और काम के ज्वर से तप रहे व्यक्ति को भी नहीं सुनाना चाहिए.
तो फिर सुनाना किसे चाहिए?
तुलसीदासजी कहते हैं-
रामकथा सुनने का अधिकारी वही है जिन्हें संतो एवं सत्पुरुषों की संगति में रूचि है और उसके लिए तो यह विशेष सुख प्रदान करने वाला है जिन्हें श्री रघुनाथजी सरकार प्राणों से भी प्रिय हैं. 
                 महादेव शिव अपनी अर्धांगिनी उमा को रामकथा की महिमा को निचोड़ कर रखते हुए कहते हैं-
हे उमा! इस रामकथा को तुम जन्म-मरणरूपी रोगनाशक संजीवनी बूटी जानो और जो मनुष्य छल-कपट का त्याग कर इसे गाएगा उसकी सभी मनोकामनाएं मैं पूरी करता हूॅं.
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रामकथा के अधिकारी के संदर्भ में जो उपरोक्त बातें कही गई हैं, वे मानस की अधोलिखित चौपाई पर आधारित हैं —

{राम कथा के तेइ अधिकारी।जिन्ह कें सत संगति अति प्यारी।।

यह न कहिअ सठही हठसीलहि।जो मन लाइ न सुन हरि लीलहि।।

कहिअ न लोभहि क्रोधिहि कामिहि।जो न भज‌इ सचराचर स्वामिहि।।

ता कहॅं यह बिसेष सुखदाई।जाहि प्रानप्रिय श्री रघुराई।।

राम कथा गिरिजा मैं बरनी।कलि मल समनि मनोमल हरनी।।

संसृति रोग सजीवन मूरी। राम कथा गावहिं श्रुति सूरी।।
मन कामना सिद्धि नर पावा।जे यह कथा कपट तजि गावा।।}
जिन्हें हरि और हर के चरणों में कोई प्रीति नहीं है उन्हें यह राम कथा फीकी लगती है;उन्हें सुनाने से कोई लाभ नहीं है.
गोस्वामी जी कहते हैं-
हरि हर पद रति मति न कुतर्की तिन्हहिं कथा सुनि लागहिं फीकी.

राजीव रंजन प्रभाकर 
१५.०९.२०२४.

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