आम बोलचाल में तो नहीं किन्तु विद्वतमंडली में शास्त्रचर्चा के समय अपने तर्क के समर्थन में अथवा किसी विषय विशेष पर अपना आग्रह, समानता, दृष्टांत या निदर्शना हेतु कतिपय लोकरूढ़ नीतिवाक्य की सहायता ली जाती है। ऐसे हीं कुछ लोकरूढ़ नीतिवाक्यों को पाठकों के प्रसंगानुकूल उपयोग के लिए संग्रह करके नीचे रखा गया है। १. अंधचटकन्याय : जब अपात्र व्यक्ति को कुछ कीमती वस्तु अनायास प्राप्त हो जाता है तो हम सहसा हीं कह बैठते हैं - अंधे के हाथ बटेर लग गया। अंधचटकन्याय यही है। २. अंधपरम्परान्याय :- जब लोग बिना विचारे दूसरों का अंधानुकरण करने लगते हैं। ३. अरूंधती दर्शनन्याय - ज्ञात से अज्ञात का पता लगाना। ४. अशोकवनिका न्याय - रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखा था, परन्तु उसने और स्थानों को छोड़ इसी वाटिका में क्यों रक्खा, इसका कोई विशेष कारण नहीं बताया जा सकता। अर्थात सारांश यह कि जब मनुष्य के पास किसी कार्य को सम्पन्न करने के अनेक साधन प्राप्त हों, तो यह उसकी अपनी इच्छा है कि वह चाहे किसी साधन को अपना ले। ऐसी अवस्था में किसी भी साधन को अपनाने का कोई विशेष कारण नहीं दिया जा सकता। ५. अश्मलोष्टन्याय -...
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