अभिवादन करने के विविध प्रकार
हमारे शास्त्र बड़े प्रवीण हैं.शास्त्रानुशीलन से कोई व्यक्ति कोयले से हीरा में परिवर्तित हो सकता है.
***
शास्त्र कहता है कि अभिवादनशील व्यक्ति की सर्वतोभावेन एवं सर्वतोमुखी उन्नति की गारंटी है. विद्या की पहचान सबसे पहले इसी की परख से होती है कि व्यक्ति में विनय कितना है अर्थात् वह अभिवादनशील कितना है.
अकड़ अभिवादन का शत्रु है,वह अभिवादन से घृणा करता है.अस्तु.
सुभाषितानि का एक सुप्रसिद्ध श्लोक है-
अभिवादनशीलस्य नित्यवृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धंते आयुर्विद्या यशोबलम्।
अर्थात् जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा वृद्धजनों की सेवा करने में तत्पर होते हैं;उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में अनायास हीं वृद्धि होती चली जाती है.
इस तरह व्यक्ति के जीवन में उसके अभिवादनशील होने का महत्व असंदिग्ध है.
*******************************************
यह सभी का अनुभव है कि सम्मुख व्यक्ति के वय(age) और उनसे अपने सम्बंध की प्रकृति को देखते हुए हम उनका अभिवादन विभिन्न विधि से करते हैं.
***
उपरोक्त को दृष्टिगत रखते हुए शास्त्रों में अभिवादन के जो प्रकार बताए गए हैं,उसे संक्षेप में अंकित करना हीं प्रस्तुत लेखन का अभीष्ट है.
अभिवादन के प्रकार-
१.साष्टांग प्रणाम(prostration)-
साष्टांग प्रणाम श्रद्धा की उच्चतम भावना के उद्गार के रूप में प्रयुक्त होता है. सामान्यतः साष्टांग प्रणाम इष्टदेव अथवा गुरु के निमित्त किया जाता है. जैसा कि नाम से हीं स्पष्ट है कि यह प्रणाम आठो अंग यथा
सिर,हाथ,पैर हृदय,जानू,मन, वचन एवं दृष्टि को समर्पित कर भूमि को स्पर्श करते हुए किया जाता है. साष्टांग प्रणाम का श्लोक निम्नवत है-
पदभ्यां कराभ्यां जानूभ्यां मुरसान शिरस्तथा।
मनसा वाचा दृष्टया प्रणामोऽष्टांगमुच्यते।।
अंग्रेजी में lying prostrate शब्दों के माध्यम से साष्टांग प्रणाम को परिभाषित किया जा सकता है.
यह बात ध्यान देने की है कि शास्त्र स्त्रियों को साष्टांग प्रणाम करने की अनुमति नहीं देता है; देवताओं के निमित्त भी नहीं.
इसका कारण यह है कि स्त्रियों के गर्भ और वक्ष का भूमि से स्पर्श अशुभ माना जाता है. स्त्रियां गर्भधारण करती हैं तथा उनका वक्ष गर्भस्थ शिशु के आहार का स्त्रोत है.
हाॅंलाकि इसकी उपेक्षा कर कतिपय महिलाएं साष्टांग प्रणाम करती हुई देखी जाती हैं जो सर्वथा अनुचित है.
२.उपसंग्रहण(submission)-
उपसंग्रहण को भी अभिवादन का सर्वश्रेष्ठ प्रकार माना गया है.
यह केवल गुरु, पिता,पितामह,प्रपितामह,मातामह, अन्नदाता (जीविका देनेवाला),भयत्राता(भय से मुक्ति प्रदान करने वाला), आचार्य,मंत्र और विद्या देने वाले परम आदरणीय को और उनकी पत्नियों (माता आदि) को हीं किया जाता है.
उपसंग्रहण विधि से प्रणाम करते समय प्रणाम करने वाला अपना नाम एवं गोत्र आदि को बोलकर अपने दाहिने और बायें कान को बाम और दाहिने हाथ से स्पर्श करके अपने दाहिने हाथ से गुरु के दाहिने पैर को और बाम हाथ से बाएं पैर को पकड़ कर तथा सिर झुका कर के उपसंग्रहण किया जाता है.
३.अभिवादन-
सामान्य अभिवादन करने में पैरों को पकड़ा नहीं जाता केवल पादस्पर्श किया जाना ठीक है.
मामा,चाचा, श्वसुर, जेष्ठ भ्राता और इनकी पत्नियों को एवं मौसी,बुआ आदि को इसी तरह से अभिवादन करना पर्याप्त है.
४. नमस्कार या नमस्ते-
उपरोक्त सम्बंधों के इतर जो भी ज्येष्ठ और श्रेष्ठ हैं, उन्हें नमस्कार अथवा नमस्ते किया जाना चाहिए. नमस्कार या नमस्ते विनम्रता एवं भावपूर्वक दोनों हाथों को जोड़ कर किया जाना चाहिए.
५.करमेलन(Handshake)
वैसे तो आज के दौर में इसी का जोर है जिसे हम आप हैंडशेक (Handshake) कहते हैं और अंग्रेजी संस्कृति से लिया गया मानते हैं किन्तु यह पूरी तरह सही नहीं है.
समवयस्कों से हाथ मिलाने की परंपरा भी भारतीय एवं शास्त्रीय है.
श्रीमद्भागवत पुराण में इसका उल्लेख है-
जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में प्रवेश किया तो उन्होंने बंधु बांधव, नगरवासियों और सेवकों से उनकी योग्यता के अनुसार अलग-अलग मिलकर सबका सम्मान अभिवादन, नमस्कार करमेलन आदि किया है.
श्लोक इस प्रकार है-
प्रह्वाभिवादनाश्लेषकरस्पर्शस्मितेक्षणै।
आश्वास्त चाश्वपाकेभ्यो वरैश्चाभिमतैर्विभु:।।
रामचरितमानस में भी जब भगवान श्रीराम का लंका विजय के पश्चात अयोध्या आगमन होता है तो सभी अयोध्या वासियों से वह यथा योग्य मिलते-जुलते हैं जिसका दर्शन निम्न चौपाई से किया जा सकता है.
अमित रूप प्रगटे तेहि काला।
जथा जोग मिले सबहि कृपाला।।
६. हृदयालिंगन-
यदि अंतरंगता अधिक हो तो यही करमेलन हृदयालिंगन में परिवर्तित हो जाता है.
पति-पत्नी,प्रियतम-प्रियतमा के मिलन, सुहृदों का मिलन अथवा अंतरंगता वाली मैत्री में हृदयालिंगन अनुचित नहीं है.
७. स्मित मुस्कान-
यह भी ध्यान देने योग्य है कि व्यक्ति अभिवादन करने वाले व्यक्ति के किसी अंग को स्पर्श किए बिना भी अपनी स्मित मुस्कान प्रेषित कर उसे अभिवादन करता है.
अंग्रेजी भाषा में विशेष कर सोशल मीडिया में स्माइली (smiley) देने का चलन समझ में आता है जब अभिवादन करने वाला व्यक्ति अभिवादन पाने वाले के उतना समीप न हो जितना सामीप्य अभिवादन की उपरोक्त विधि में आवश्यक है.
अभिवादन की यह विधि भी प्रभावकारी है शर्त यह है कि भाव शुद्ध एवं निर्मल हो.
यह भी ध्यान देने की बात है कि बिना भाव के अभिवादन की चाहे कोई भी विधि क्यों न अपनाई जाए वह तो काग़ज़ के एक फूल से अधिक नहीं है.
आश्चर्य नहीं कि तब इसे लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने की गरज से एक प्रपंच के रूप में देखते हैं.
***
अभिवादन की चर्चा करने के क्रम में एक दो बातें का और उल्लेख किया जाना आवश्यक है.
उदाहरणार्थ-
ऐसी अवस्था में प्रणाम नहीं किया जाना चाहिए जब वह व्यक्ति या जो अभिवादन कर रहा है वह किसी जप आदि श्रेष्ठ कार्य में संलग्न हो अथवा वह मलमूत्रत्यागादि की स्थिति के कारण अशुद्धावस्था में हो या जन्म-मृत्यु आदि अन्य कारणों से अशौचावस्था में हो.
****
नोट—किसी भी व्यक्ति को एक हाथ से प्रणाम कभी नहीं करना चाहिए. यह शास्त्र निषिद्ध है. जो व्यक्ति एक हाथ से प्रणाम करता है, उसके जीवन भर का किया हुआ पुण्य निष्फल हो जाता है; उसकी अधोगति होती है.
इस सम्बन्ध में व्याघ्रपादस्मृति में एक श्लोक है-
जन्मप्रभृति यत्किञ्चित्सुकृतं समुपार्जितम्।
तत्सर्वं निष्फलं याति एकहस्ताभिवादनात।।
इसके अतिरिक्त ऐसा कर जिसे प्रणाम किया जाता है उसके प्रति respect से ज्यादा disrespect को दर्शाता है.कभी कभी तो यह धृष्टता एवं उद्दंडता का परिचायक माना जाता है.
हाॅं; हाथ जोड़ने के बाद हाथ हिला कर अभिवादन करना दूसरी बात है.
इसे आज के दौर में hand waiving कहते हैं. उसे हम एक हाथ से प्रणाम करना नहीं कहेंगे.
इसके मूल में जनसभा में उपस्थित सभी लोगों को एक साथ नमस्कार करने की आवश्यकता के मद्देनजर प्रायः नेता गण के द्वारा किया जाता है.
विनयावनत-
राजीव रंजन प्रभाकर
११.०६.२०२४.
Comments