यदि सम्मान नहीं दे सकते तो किसी को अपमानित न करें.

अपमान विषतुल्य है.अपने प्रति किये गये अपमान को व्यक्ति कभी भूलता नहीं.
अनेक उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि अपमान कितना अनिष्टकारी साबित होता है.
विभीषण का लंकेश रावण ने न केवल तिरस्कार किया बल्कि भरी सभा में उसे लात से मारा. परिणाम बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि इस एक लात ने अहंकारी रावण के पराभव एवं नाश को कैसे सुकर बना दिया.
भरी सभा में द्रौपदी का दुर्योधन को लक्ष्य कर कहा गया एक उपहासयुक्त व्यंगवचन "अंधे का पुत्र अंधा" को  महाभारत के मूल में समझा जा सकता है. इस एक व्यंगवाण ने दुर्योधन को भीतर से इतना घायल कर दिया कि विवेकशून्य दुर्योधन ने पांचाली को सभामध्य निर्वस्त्र कर अपने अपमान का बदला लेना चाहा.
पांडवों की ओर से संधि का प्रस्ताव लेकर आये श्रीकृष्णचंद्र को अपमानित करने के लिए क्रोधमूर्छित दुर्योधन ने क्या क्या नहीं कहा.यहां तक कि उन्हें बांधना भी चाहा. अंत में क्या हुआ यह सभी जानते हैं. कौरव पक्ष का संहार हो गया.
जरा सा पद, कद और धन बढ़ा नहीं कि हम इसका अहसास सबसे पहले अपने से कमजोर को कराने हेतु आतुर हो जाते हैं. ऐसा करनेवाला जल्द नहीं तो समय आने पर पद एवं कद से रहित होकर श्रीहीन हो काल का ग्रास बन जाता है.
                यदि अधिकारी हुआ तो कमजोर अधीनस्थ पर रौब गांठना, उसके काम की आड़ में उसे अपमानित या नीचा दिखाने का अवसर ढूंढ़ना आदि आजकल का ट्रेंड बन चुका है. बात बात में झिड़कना, सीधे मुंह बात नहीं करना, अपने से छोटे ओहदे के कर्मी द्वारा किये गये प्रणाम की उपेक्षा करना,उसके समझ की कमी का सभी के सामने खिल्ली उड़ाना अथवा उपहास करना आदि सूक्ष्म रूप से अपमानित करने के स्थापित तौर तरीके बन चुके हैं.
ऐसे दम्भी एवं अधकचरे को तत्काल भले यह लगे कि वह जो कुछ कर रहा है सब ठीक है किन्तु समय आने पर उसे इसकी कीमत विभिन्न प्रकार से चुकानी पड़ती है.
एक बात साफ है;वो ये कि अपमान करनेवाला कितना भी शक्तिशाली अथवा ताकतवर क्यों न हो यदि वह अपने से कमजोर समझ किसी का अपमान करता है और यदि अपमानित व्यक्ति अपने इस अपमान को चुपचाप सह ले तो उसका परिणाम समय आने पर अपमानकर्ता के लिए अत्यंत भयंकर एवं प्रलयंकर होता है.
इसका कारण जानते हैं? अपमानित व्यक्ति यदि अपने इस अपमान को ईश्वर को सौंप देता है तो आगे इसका हिसाब भगवान लेना शुरू कर देते हैं.
निर्बल के बल राम.
राजीव रंजन प्रभाकर.
१७.०४.२०२०.

Comments

Anonymous said…
अपमानित व्यक्ति यदि अपने इस अपमान को ईश्वर को सौंप देता है तो आगे इसका हिसाब भगवान लेना शुरू कर देते हैं.

बहुत ही मार्मिक और गहरी पंक्ति है सर������

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